सफलता के सूत्र : स्वामी विवेकानंद Swami Vivekanand


सफलता के सूत्र : स्वामी विवेकानंद
14 Jan, 2013


सफलता के सूत्र उत्तिष्ठत ! जाग्रत ! प्राप्य वरान्निबोधत!
हे युवाओं , उठो ! जागो !
लक्ष्य प्राप्ति तक रुको नहीं

पीछे मत देखो, आगे देखो, अनंत ऊर्जा, अनंत उत्‍साह, अनंत साहस और अनंत धैर्य तभी महान कार्य, किये जा सकते हैं ।
आज मैं तुम्हें भी अपने जीवन का मूल मंत्र बताता हूँ ,  वह यह है कि -
प्रयत्न करते रहो, जब तुम्हें अपने चारों ओर अन्धकार ही अन्धकार दिखता हो, तब भी मैं कहता हूँ कि प्रयत्न करते रहो !  किसी भी परिस्थिति में तुम हारो मत,  बस प्रयत्न करते रहो!   तुम्हें तुम्हारा लक्ष्य जरूर मिलेगा ,  इसमें जरा भी संदेह नहीं ! - विवेकानन्द
सफलता के सूत्र

कभी मत सोचिये कि आत्मा के लिए कुछ असंभव  है ऐसा  सोचना  सबसे  बड़ा  विधर्म है. अगर  कोई   पाप  है,  तो  ये  कहना कि तुम निर्बल  हो या  अन्य  निर्बल हैं…. ब्रह्माण्ड  की   सारी  शक्तियां  पहले से  हमारी हैं. वो हम ही हैं  जो अपनी आँखों  पर हाथ रख लेते  हैं  और  फिर रोते हैं कि कितना अन्धकार है! – विवेकानन्द
यदि जीवन में सफल होना है; जीवन में कुछ पाना है; महान बनना है; तो स्वामी विवेकानन्द के दर्शन और विचारों को जीवन में अपनाना चाहिये।
वर्तमान समय में युवाओं के सम्मुख अनेक चुनौतियाँ हैं। हर व्यक्ति प्रयत्नशील है; बेहतर भविष्य के लिए, सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए एवं अच्छे जीवन के लिए। ऐसे समय में युवाओं के आदर्श स्वामी विवेकानन्द के संदेश व्यावहारिक मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
लक्ष्य निर्धारण :
सर्वप्रथम हमें अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। स्वामी जी कहा करते थे, ‘जिसके जीवन में ध्येय नहीं है, जिसके जीवन का कोई लक्ष्य नहीं है, उसका जीवन व्यर्थ है’। लेकिन हमें एक बात का ध्यान रखना चाहिये कि हमारे लक्ष्य एवं कार्यों के पीछे शुभ उद्देश्य होना चाहिए।
जिसने निश्चय कर लिया, उसके लिए केवल करना शेष रह जाता है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था – जीवन में एक ही लक्ष्य साधो और दिन- रात उस लक्ष्य के बारे में सोचो और फिर जुट जाओ उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए। हमें किसी भी परिस्थिति में अपने लक्ष्य से भटकना नहीं चाहिए। स्वामी विवेकानन्द जी कहा करते थे, आदर्श को पकड़ने के लिए सहस्‍त्र बार आगे बढ़ो और यदि फिर भी असफल हो जाओ तो एक बार नया प्रयास अवश्‍य करो। इस आधार पर सफलता सहज ही निश्चित हो जाती है।
आत्मविश्वास :
जीवन में जो तय किया है या जो लक्ष्य निर्धारित किया है, उसे प्राप्त करने के लिये आवश्यक है- अपने आप में विश्वास।  आत्मविश्वास, सफलता का रहस्य है। यदि हमें अपने आप पर ही विश्वास नही है तो हमारा कार्य किस प्रकार सफल होगा? जो भी कार्य करो, आस्था और विश्वास के साथ।
स्वामी विवेकानन्द जी कहा करते थे कि आत्मविश्वास – वीरता का सार है। सफलता के लिए जरूरी है – अपने आप पर मान करना, अभिमान करना, विश्वास और लगन के साथ जुटे रहना। धीरज और स्थिरता से काम करना – यही एक मार्ग है। यदि तुममें विश्वास है, तब प्रत्येक कार्य में तुम्हें सफलता मिलेगी। फिर तुम्हारे सामने कैसी भी बाधाएँ क्यों न हों, कुछ समय बाद संसार तुमको मानेगा ही। जब तक तुम पवित्र होकर अपने उद्देश्य पर डटे रहोगे, तब तक तुम कभी निष्फल नहीं होओगे। तभी महान कार्य किये जा सकते हैं।

समर्पण :
समर्पण का अर्थ है – अपने लक्ष्य के प्रति सदैव जागरूक रहना और जीवन के प्रत्येक क्षण में उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयास करते रहना। किसी भी कार्य में सफलता पाने के लिए समर्पण अनिवार्य है।
दृढ़ निश्चय ही विजय है। युवाओं से उनका सम्बोधन था, ‘ध्येय के प्रति पूर्ण संकल्प व समर्पण रखो’। इस संसार में प्रत्येक वस्तु संकल्प शक्ति पर निर्भर है। शुभ उद्देश्य के लिए  सच्ची लगन से किया हुआ प्रयत्न कभी निष्फल नहीं होता।
समर्पण से कार्य को पूर्ण करने की लगन ही युवाओं को सफलता प्रदान कर सकती है। स्वामी विवेकानन्द जी अक्सर कहते थे, जीवन में नैतिकता, तेजस्विता और कर्मण्यता का अभाव नहीं होना चाहिये। इसमें कोई सन्देह नहीं कि सभी महान कार्य धीरे धीरे होते हैं परन्तु पवित्रता, धैर्य तथा प्रयत्न के द्वारा सारी बाधाएँ दूर हो जाती हैं।
चरित्र र्निर्माण :
संस्कार, सुविचार, संकल्प,  समर्पण व सिद्धता इस पंचामृत के ‍सम्मिलित स्वरूप का नाम है -  सफलता।  स्वामी जी ने युवावर्ग का आह्वान करते हुए कहा था कि वही समाज उन्नति और उपलब्धियों के चरम शिखर पर पहुंच सकता है जहां व्यक्ति में चरित्र होता है।
भारत की सत्य-सनातन संस्कृति, व्यक्ति के चरित्र के निर्माण में सहायक बनती है। आवश्यक है कि आप चरित्र व आचरण की महत्ता को समझें, सभ्यता, शालीनता, विनम्रता को अपनाएँ। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्ति के लिए  आवश्यक है; सद्‍गुण, सद्‍व्यवहार, सदाचार, सद्‍ संकल्प।

स्वामी विवेकानन्द जी ने युवा वर्ग को चरित्र निर्माण के पांच सूत्र दिए। आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता, आत्मज्ञान, आत्मसंयम और आत्मत्याग। उपयुक्त पांच तत्वों के अनुशीलन से व्यक्ति स्वयं के व्यक्तित्व तथा देश और समाज का पुनर्निर्माण कर सकता है।

संगठन :
वर्तमान युग संगठन का युग है। व्यक्तिगत स्वार्थों का उत्सर्ग सामाजिक प्रगति के लिए कार्य करने की परम्परा जब तक प्रचलित नहीं होगी, तब तक कोई राष्ट्र सच्चे अर्थों में सार्मथ्यवान् नहीं बन सकता है। वर्तमान समय में सामूहिक आत्मविश्वास के जागरण की अत्यन्त आवश्यकता है। उदात्त ध्येय के लिये संगठित शक्ति का समर्पित होना अनिवार्य है।

स्वामी विवेकानन्द जी अमरिका में संगठित कार्य के चमत्कार से प्रभावित हुए थे। उन्होंने ठान लिया था कि भारत में भी संगठन कौशल को पुनर्जिवित करना चाहिये। उन्होंने स्वयं रामकृष्ण मिशन की स्थापना कर सन्यासियों तक को संगठित कर समूह में काम करने का प्रशिक्षण दिया।

इस बात पर संदेह नहीं करना चाहिये कि विचारवान और उत्साही व्यक्तियों का एक छोटा सा समूह इस संसार को बदल सकता है। वास्तव मे इस संसार को संगठित शक्ति ने ही बदला है।

स्वामी विवेकानन्द हमें यह प्रेरणा प्रदान करते हैं कि जीवन में सतत आगे बढते रहना हमारा कर्त्तव्य है। जीवन पथ में अनेक बाधाएँ आती हैं परन्तु , क्रमशः समस्त प्रकार की बाधाओं को दूर  कर करके, उससे ऊपर उठकर, असम्भव को भी संभव किया जा सकता है। जब-जब मानवता निराश एवं हताश होगी, तब-तब स्वामी विवेकानंद जी के उत्साही, ओजस्वी एवं अनंत ऊर्जा से भरपूर विचार और दर्शन जन-जन को प्रेरणा देते रहेंगे।
आगे बढो और याद रखो….
धीरज, साहस, पवित्रता और अनवरत कर्म सफलता के माध्यम हैं।
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युवा प्रेरक के रूप में स्‍वामी विवेकानंद की प्रासंगिकता

Written by  आलोक देशवाल  13 January 2015

भारत विश्व में सबसे ज्यादा युवाओं का देश है जिसकी लगभग 65 प्रतिशत जनसंख्या की आयु 35 वर्ष से कम है। उम्मीद की जाती है कि वर्ष 2020 तक भारत की आबादी की औसत आयु 28 वर्ष होगी जबकि अमेरिका की 35, चीन की 42 और जापान की औसत आयु 48 वर्ष होगी। वास्तव में युवा किसी भी देश की जनसंख्या में सबसे गतिशील और जीवंत हिस्सा होते हैं।
एक बार स्वामी विवेकानंद ने कहा था, "आप जैसा सोचते हैं, आप वैसे ही बनेंगे। अगर आप खुद को कमजोर सोचते हैं तो आप कमजोर बनेंगे; यदि आप खुद को शक्तिशाली सोचते हैं तो आप शक्तिशाली होंगे।" उन्होंने यह भी कहा था, "शिखर पर नजर रखो, शिखर पर लक्ष्य करो और आप शिखर पर पहुंच जाएंगे"। उनका संदेश सामान्य लेकिन कारगर था। विवेकानंद ने अपने विचारों को लोगों खासकर युवाओं तक सीधे पहुंचाया। उन्होंने धर्म और जाति के बंधनों को तोड़ते हुए विश्व बंधुत्व का संदेश दिया। उन्होंने जो कुछ कहा उसमें उनके विचारों की महानता समाहित है और आज भी वह देश के युवाओं के लिए आदर्श हैं। उन्होंने युवाओं की उन्नत ऊर्जा और सत्य की खोज के लिए उनकी बेचैनी को साकार किया।

लेकिन, मौजूदा बदलाव के दौर में युवाओं को स्वामी विवेकानंद की प्रासंगिकता का अहसास कैसे कराया जाए, जबकि एक तरफ लोग और राष्ट्र युवाओं को राष्ट्र निर्माण के कामों में लगाकर युवाओं के व्यक्तित्व और नेतृत्व कौशल को विकसित करने का महान काम कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ भूख, गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और आतंकवाद जैसी चुनौतियां हैं।

स्वामी विवेकानंद ने भारतीय समाज के पुनर्निमाण के लिए जो सुझाव दिए हैं उनमें शिक्षा लोगों को सश्क्त करने का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है। उन्होंने एक बार कहा था, "ऐसी शिक्षा जो साधारण लोगों को जीवन के संघर्ष के योग्य नहीं बनाती है, जो चरित्र निर्माण की शक्ति, परोपकार की भावना और शेर की तरह साहस का विकास नहीं करती है वह केवल नाम के लिए है। वास्तव में शिक्षा वह है जो किसी को आत्मनर्भर बनाती है।" उनके लिए शिक्षा का मतलब ऐसे चिरकालिक अध्ययन से था जिससे छात्रों का चरित्र और मानवीय भावनाओं का निर्माण होता है।

भारत सरकार ने स्‍वामी विवेकानंद की 150वीं जयन्‍ती मनाते समय रामकृष्‍ण मिशन की मूल्‍य–आधारित शिक्षा परियोजना को मंजूरी दी, ताकि बच्‍चों में नैतिकता प्रत्‍यारोपित होने के साथ–साथ हमारे समाज में बढ़ते वाणिज्‍यवाद और उपभोक्‍तावाद के विरूद्ध एक मूल्‍य प्रणाली विकसित करने में मदद मिले। रामकृष्‍ण मिशन स्‍वामी विवेकानन्‍द द्वारा स्‍थापित एक संगठन है, जो मूल्‍य-आधारित शिक्षा, संस्‍कृति, स्‍वास्‍थ्‍य, महिला सशक्तिकरण, युवा और जनजातीय कल्‍याण तथा राहत और पुनर्वास के क्षेत्र में सराहनीय कार्य के लिए व्‍यापक रूप से जाना जाता है ।

स्वामी विवेकानंद पीठ स्थापित करने के लिए इसने शिकागो विश्वविद्यालय को 15 लाख अमरीकी डालर की धनराशि भी उपलब्ध कराई, ताकि व्याख्यानों, विचारगोष्ठियों और भारतीय संस्कृति तथा भारतीय अध्ययनों पर आधारित शैक्षिक गतिविधियों के अनुकूल गतिविधियों द्वारा विवेकानंद के विचारों पर जोर दिया जा सके। प्रत्येक विद्वान द्वारा दो वर्षों की अवधि के लिए इस पीठ का आयोजन किया जाएगा। शिकागो विश्वविद्यालय भी शिकागो विश्वविद्यालय और भारत सरकार के बीच अनुसंधान क्षेत्र के विद्वानों के आदान-प्रदान की सुविधा उपलब्ध कराएगा। इस स्थायी धनराशि से राष्ट्रों के बीच धार्मिक सदभाव का संदेश फैलाने और आपसी समझ कायम करने के साथ ही मानवता की आध्यात्मिक एकरूपता कायम करने में मदद मिलेगी, जिसके लिए स्वामी विवेकानंद काम किया था।

स्वामी विवेकानंद के अनुसार, "अपने आप को शिक्षित करो, प्रत्येक व्यक्ति को उसकी वास्तविक प्रकृति के बारे में शिक्षित करो, सुसुप्त आत्मा को पुकारो और देखो कि वह कैसे जागती है। जब यह सोयी हुई आत्मा जागकर आत्मचेतना की ओर प्रवृत्त होगी तब शक्ति मिलेगी, गौरव प्राप्त होगा, अच्छाई आएगी, शुद्धता आएगी और वे सभी चीजें आएंगी जो विशिष्ट हैं।"
सरकार वर्तमान संदर्भ में स्वामी विवेकानंद के उपदेशों को व्यवहार में लाने के लिए भी प्रयास में जुटी है। एक अरब से भी अधिक लोगों की जरूरतों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करना कोई आसान कार्य तब तक नहीं है, जब तक कि देश के उन क्षेत्रों में कुछ समन्वित कार्य न किए जाएं जहां क्षमता का केन्द्र है। देश के सभी हिस्से में कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा, व्यावहारिक और गुणवत्तापूर्ण बिजली, भूतल परिवहन तथा बुनियादी सुविधाएं, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी तथा सामरिक क्षेत्र आपस में निकटतापूर्वक जुड़े हैं। यदि इन क्षेत्रों में समन्वित कार्य शुरू किया जाए तो इससे भारत की खाद्य और आर्थिक सुरक्षा के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा भी मजबूत होगी।

सरकार ने एकजुट, सशक्त और आधुनिक भारत के निर्माण के काम पर जोर दिया है ताकि विवेकानंद जैसे महान चिंतकों के सपने के पूरा किया जा सके। ''एक भारत, श्रेष्ठ भारत'' के बाद "सबका साथ, सबका विकास" के सिद्धांत का स्थान है। ये महज नारे नहीं हैं, बल्कि जनता, विशेषकर युवाओं की प्रति एक संकल्प है, जो राष्ट्र को नई ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए हैं। हाल में कई क्रांतिकारी कदम उठाए गए हैं। एक वैश्विक निर्माण केन्द्र के रूप में भारत को विकसित करने के उद्देश्य से "मेक इन इंडिया" अभियान शुरू किया गया है। "डिजिटल इंडिया" नामक पहल में भारत को डिजिटल रूप से एक सशक्त समाज और ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था के रूप में परिणत करने पर जोर दिया गया। भारतीय लोगों को भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ-साथ विश्वभर में मिलने वाले अवसरों के लिए तैयार करने के उद्देश्य से आवश्यक कौशल प्रदान करने के लिए "कुशल भारत" की शुरुआत की जा रही है। बुनियादी सुविधाएं विकसित करने के उद्देश्य से स्मार्ट सिटी परियोजना सहित कई प्रयास किए गए हैं। इन सबमें "स्वच्छ भारत अभियान" और "स्वच्छ गंगा" अभियान एक स्वच्छ और हरित भारत के निर्माण के लिए शुरू किए गए हैं।

सरकार की इन सभी पहलों के लिए युवाओं की सक्रिय भागीदारी और उनका समर्थन आवश्यक है, क्योंकि वे इस देश के भविष्य के प्रमुख हितधारक हैं। कौशल विकास और उद्यमिता विकास ऐसे फ्लैगशिप कार्यक्रम हैं जो भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए शुरू किए गए हैं। सरकार देश के युवाओं में सभी शक्तियां सन्निहित करने के लिए हर संभव प्रयास में जुटी है, क्योंकि एक आधुनिक और समृद्ध भारत के निर्माण के महत्वाकांक्षी कार्य के लिए यह आवश्यक है। जैसा कि स्वामी विवेकानंद ने एक बार आह्वान किया था, "जागो, उठो और मंजिल तक पहुंचने से पहले मत रुको", हम सभी एकजुट हों और शुद्धता, धैर्य और दृढ़ता के साथ देश के लिए काम करें, क्योंकि स्वामी विवेकानंद ने काफी पहले इस महसूस किया था कि ये तीनों सफलता के लिए अनिवार्य हैं।

(लेखक पत्र सूचना कार्यालय, नई दिल्‍ली में उप-निदेशक - मीडिया और संचार हैं)

टिप्पणियाँ

  1. हेलो एडमिन सर,
    आपका वेबसाइट बहुत ही सुंदर है, ।ऐ रोज आपका वेबसाइट विजिट करती हूँ।
    आपके वेबसाइट के आर्टिकल बहुत ही इंफोर्मेशनल होते है जिनसे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला।
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