संविधान में त्यागपत्र वापसी नियम नहीं, क्या नियमों की समीक्षा होगी ? tyagpatr vapsi snvidhan virodhi
संविधान में त्यागपत्र वापसी नियम नहीं, मगर राजस्थान में हां, क्या नियमों की समीक्षा होगी ?
राजस्थान में विधानसभा अध्यक्ष को कांग्रेस के 91 विधायकों ने अपने इस्ताफे सौंपे,सावेजनिकरूप से, प्रमाणित रूप से सौंपे, समाचारपत्रों में लगातार तीन महीनें से इनकी चर्चा प्रकाशित हो रही है।, विपक्षी दल भाजपा ने जगाया भी। इस्तीफा देनें वाले सभी विधायक / मंत्री सरकारी कामकाज भी कर रहे हैं। विधानसभा अध्यक्ष ने इन्हे विधानसभा सचिवालय के रिकार्ड पर लिया या नहीं , यह भी पता नहीं । अन्ततः उच्च न्यायालय की शरण में उपनेता प्रतिपक्ष पहंचे, न्यायालय को भी कोई जबाव नहीं दिया। क्या एक संवैधानिक पद पर बैठ कर , दल गत षढयंत्र का हिस्सा, कोई बन सकता है ? मेरा मानना है कि यह सारा मामला न्यायालय संविधान की लीपी से देखे और अपराध , षढयंत्र एवं पद र्दुउयोग की प्रवृति पर रोक लगाये।
मेनें संविधान को खोल कर उनमें पद त्याग के अनुच्छदों को गहराई से पढ़ा, उनमें कहीं भी यह नहीं है कि पद त्याग करने वाला, त्यागपत्र वापस ले सकता है। संविधान की भाषा शीघ्रता से निर्णय लेनें की है, असीमित समय कतई प्रदान नहीं करती है।
आप भी संवैधानिक प्रावधानों को देखें -
जब इस बात को विधायक के संदर्भ में लिया जाये तो, पद त्याग चुके विधायक पुनः जनता रूपी निर्वाचक मण्डल अर्थात विधानसभा के मतदाताओं के द्वारा चुन कर जानें पर ही फिर से विधायक बन सकते हैं।
राजस्थान के कथित 91 विधायकों के संदर्भ में बहुत स्पष्ट है कि उन्हानें स्वयं अपने अपने त्यागपत्रों पर हस्ताक्षर किये, विधानसभा अध्यक्षजी को प्रत्यक्ष सौंपे, यह निर्णय पूर्ण होसो हवास में केबिनेट मंत्री के घर पर लिया गया। लगातार मीडिया में प्रकाशित होनें के बाद भी कभी इसका खण्डन, विधानसभा अध्यक्ष जी के द्वारा एवं सम्बंधित विधायकों के द्वारा किया गया । इसका एक ही मतलब है कि “ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पक्ष में , कांग्रेस हाई कमान को अपनी ताकत और अंतिम सीमा तक जानें का संदेश देनें के लिये , गहजोत समर्थक विधायकों ने स्वैच्छा से असली त्यागपत्र दिये थे। जिन्हे अपनी शक्तियों का र्दुउपयोग करते हुये विधानसभा अध्यक्ष सी पी जोशी ने अपने पास रखे हुये हैं। उच्च न्यायालय के द्वारा नोटिश दिये जानें के बाद भी सही स्थिती बतानें से विधानसभा अध्यक्ष सी पी जोशी बचे हैं। इसी कारण उच्च न्यायालय की खण्डपीठ नें उन्हे 10 दिन के अन्दर निर्णय लेकर अगली तारीख पर बतानें को कहा है।
हलांकी इससे विधानसभा अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री सहित त्यागपत्र देनें वाले विधायकों को राहत मिलती दिख रही है कि विधानसभा अध्यक्ष के द्वारा त्यागपत्र स्विकार किये जानें के पूर्व त्यागपत्र देनें वाले सदस्यों के द्वारा अपने त्यागपत्र वापस ले लिये गये हैं। यह उत्तर दिया जा सकता है। इसी के साथ मामले का पटाक्षेप हो जायेगा। क्यों कि एक वर्ष से भी कम समय की आयु वाली विधानसभा में कोई भी इतनी बडी संख्या में उपचुनाव को नहीं जाना चाहेगा।
अब हम देखते हैं कि पद त्याग का अधिकार संविधान के किस किस अनुच्छेद के अन्तर्गत है-
1- भारत के महामहिम राष्ट्रपति महोदय संविधान के अनुच्छेद 56 (1) क के माध्यम से पद त्याग सकते हैं। इसी प्रकार माननीय उपराष्ट्रपति महोदय संविधान के अनुच्छेद 67 (क) से,राज्यसभा के उपसभापति संविधान के अनुच्छेद 90 (ख) से, लोकसभा के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष संविधान के अनुच्छेद 94 (ख) से महामहिम राज्यपाल महोदय संविधान के अनुच्छेद 156 (2) से , विधानसभा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष संविधान के अनुच्छेद 179 (ख) से , अपने पद से स्वैच्छिक पद त्याग कर सकते हैं।
2- पदत्याग के संदर्भ में लोकसभा, राज्यसभा, विधान परिषद एवं विधानसभा सदस्यों के संदर्भ में संविधान में सावधानी रखी गई है। कि त्यागपत्र देनें वाले सदस्य के द्वारा दिया गया त्यागपत्र जांच कर सुनिश्चित किया जावे कि वे स्वैच्छिक एवं असली हैं। यदि अध्यक्ष या सभापति पायें कि त्यागपत्र “ स्वैच्छिक और असली नहीं है, तो वह त्यागपत्र स्वीकार नहीं किया जायेगा।“
3- “राजस्थान विधानसभा के प्रक्रिया एवं कार्य संचालन सम्बंधी नियम” का अवलोकन करने पर उसमें संविधान से कुछ भिन्नता पाई जाती है। इसके अध्याय 21 जो कि “ सदन में स्थानों का त्याग एवं रिक्तता ” के विषय में है। इसका नियम 173 में संविधान के अनुच्छेदों की सदस्यों के संदर्भ में पद त्याग हेतु वर्णित सावधानियों के अतिरिक्त भी कुछ प्रावधान किये हुये हैं। जो कि राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष एवं विधायकों के अधिकार बढ़ाते हैं।
जैसे कि 1- उपरोक्त नियम 173 के उपनियम 4 में प्रावधान है कि त्यागपत्र देनें वाला विधायक, विधानसभा अध्यक्ष के द्वारा त्यागपत्र स्विकार करने से पूर्व, दिया गया अपना त्यागपत्र वापस ले सकेगा।
2- इसी नियम में एक स्पष्टीकरण भी है जो विधानसभा अध्यक्ष को सुविधा देता है कि “ जब सदन सत्र में नहीं हो तो अध्यक्ष सदन की फिर से बैठक होनें के तुरन्त पश्चात सदन को सूचित करेगा। ”
विवादास्पद बिन्दू ......
सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि संविधान किसी भी त्यागपत्र को दिये जानें के बाद, त्यागपत्र वापस लेनें का अधिकार नहीं देता । तब राजस्थान विधानसभा इस तरह का नियम कैसे बना सकती है, जो संविधान के प्रत्यक्ष अनुच्छेद में प्रदत्त विधि को शिथिल करके अधिक अधिकार प्रदान करते हों।
संविधान के अनुच्छेद 101 (3) ख एवं संविधान के अनुच्छेद 190 (3) ख की लीपी में और राजस्थान में “राजस्थान विधानसभा के प्रक्रिया एवं कार्य संचालन सम्बंधी नियम” 173 की लीपी में अंतर है। इसलिये यह विषय संविधान पीठ का भी बनता है। क्यों कि संविधान के अनुच्छेद से अधिक कुछ दिया गया है तो क्या वह संविधान सम्मत है ? या इस तरह की सुविधा अनैतिकता उत्पन्न करने का साधन है और इसे निरस्त किया जाये। विशेषकर यह दोनों नियम राजस्थान में अनैतिकता को संरक्षण प्रदान करने का माध्यम बन गये हैं।
अर्थात संविधान की त्यागपत्र वापसी पर न, मगर राजस्थान में हां, क्या नियमों की समीक्षा होगी ?
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“राजस्थान विधानसभा के प्रक्रिया एवं कार्य संचालन सम्बंधी नियम”
अध्याय 21 जो कि “ सदन में स्थानों का त्याग एवं रिक्तता ” के विषय में है। इसका नियम 173
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