क्या नेहरूजी नें संघ के एजेण्डे पर लालचौक में तिरंगा फहराया था - अरविन्द सिसौदिया

 

राहुलजी बतायें उनके नाना नेहरूजी ने क्या संघ के एजेण्डे से लालचौक पर तिरंगा फहराया था - अरविन्द सिसौदिया
Tell Rahulji, did his maternal grandfather Nehruji hoist the tricolor at Lalchowk on the agenda of the Sangh - Arvind Sisodia

 

Tell Rahulji, did his maternal grandfather Nehruji hoist the tricolor at Lalchowk on the agenda of the Sangh - Arvind Sisodia

 क्या संघ के एजेण्डे पर,राहुलजी के नाना नेहरूजी नें भी लाल चौक पर तिरंगा फहराया था - अरविन्द सिसौदिया
कांग्रेस के युवराज की “भारत जोडो यात्रा“ अन्ततः कश्मीर को बर्बाद करनेवाली ताकतों के साथ मिल कर सम्पन्न होनें जा रही है। फारूख अब्दुल्लाह चीन की बात करते हैं तो महबूबा पाकिस्तान की.....! इन देशविरोधी ताकतों के साथ कांग्रेस ने लाल चौक पर झण्डा फहरानें से किनारा करके स्वयं को कटघरें में खडा कर लिया है। सच बहुत कठोर होता है, राहुल की यात्रा के किये धरे पर अब उनके ही द्वारा पानी फिरता नजर आ रहा है। लाल चौक घण्टाघर, श्रीनगर में अतीत से ही महत्वपूर्ण स्थान है। पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस स्थान पर वर्ष 1948 में राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। यह जगह जम्मू कश्मीर के मुखिया (सदर-ए-रियासत) शेख मोहम्मद अब्दुल्ला और प्रधान मंत्री जवाहरलाल के समझौते का भी गवाह है।
जब देश की स्वतंत्रता के बाद 1948 में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू नें भी इसी जगह लाल चौक घण्टाघर का श्रीनगर में तिरंगा फहराया था। तो उसी जगह पहुंच कर उन्हे भी तिरंगा फहराना चाहिये था। इससे कांग्रेस को भी बल मिलता और उनका भी कद बडता ।

कांग्रेस नेता  जम्मू कश्मीर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस  की इंचार्ज और पार्टी सांसद रजनी पाटिल नें घोषणा की है कि राहुल गांधी श्रीनगर के लाल चौक में तिरंगा नहीं फहरायेंगे, ऐसा करना संघ का एजेण्डा होगा। यह अजीब सा तर्क है। राहुल जी से पूछा जाना चाहिये कि क्या उनके नानाजी संघ के एजेण्डे पर काम कर रहे थे, जो 1948 में तिरंगा लाल चौक में फहराया। उनसे यह भी पूछना चाहिये कि प्रधानमंत्री रहते हुये नेहरूजी नें राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ को गणतंत्र दिवस की परेड में क्यों आमंत्रित और सम्मिलित किया था।

सच यह है कि राहुल गांधी , गांधी परिवार और कांग्रेस पाकिस्तान परस्त और चीन परस्त ताकतों , दलों गुटों के खिलाफ जा ही नहीं सकते , बल्कि ये तो इन देशों से स्वयं मदद लेते हैं, रिश्ते रखते हैं।

 

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Concluding Day Program of Bharat Jodo Yatra: जम्मू कश्मीर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (AICC) की इंचार्ज और पार्टी सांसद रजनी पाटिल (Rajni Patil) ने मंगलवार को बताया कि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) 30 जनवरी को श्रीनगर (Srinagar) में पार्टी मुख्यालय में ध्वजारोहण (Flag Hoisting) के साथ अपनी भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) का समापन करेंगे। वह लाल चौक (Lal Chowk) पर ध्वजारोहण नहीं करेंगे। वहां ऐसा करना “आरएसएस का एजेंडा (RSS agenda)” होगा।

मुख्य समारोह शेर-ए-कश्मीर इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर में होगा
भारत जोड़ो यात्रा के 30 जनवरी को समापन पर राहुल गांधी के राष्ट्रीय ध्वज फहराने की योजना के बारे में पूछे जाने पर पाटिल ने कहा, “हम लाल चौक पर तिरंगा फहराने के आरएसएस के एजेंडे में विश्वास नहीं करते हैं, जहां वह पहले ही फहरा चुका है।” यात्रा के समापन का मुख्य समारोह शेर-ए-कश्मीर (Sher-i-Kashmir) इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर (SKICC), श्रीनगर में आयोजित किया जाएगा।

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उपरोक्त आलेख बी बी सी से साभार लिया गया है-
https://www.bbc.com/hindi/india-49335873

कश्मीर: 1992 में लाल चौक पर तिरंगा फहराने में नरेंद्र मोदी का क्या योगदान था
15 अगस्त 2019
मुरली मनोहर जोशी
कश्मीर का लाल चौक, जहां अनुच्छेद 370 हटाए जाने से पहले भारतीय तिरंगा झंडा फहराने की बात हमेशा होती रहती थी.
लेकिन 26 जनवरी 1992 को गणतंत्र दिवस के मौक़े पर भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी की अगुवाई में वहां झंडा फहराया गया था.
इसके लिए दिसंबर 1991 में कन्याकुमारी से 'एकता यात्रा' की शुरुआत की गई थी, जो कई राज्यों से होते हुए कश्मीर पहुंची थी. मुरली मनोहर जोशी के साथ उस वक़्त नरेंद्र मोदी भी थे.

बीते पांच अगस्त को वर्तमान की नरेंद्र मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाने का फ़ैसला किया. इस फ़ैसले के बाद मुरली मनोहर जोशी ने क्या कहा, नरेंद्र मोदी ने उस एकता यात्रा में किस तरह की भूमिका निभाई थी, इन सभी पर बीबीसी संवाददाता विनीत खरे ने उनसे बात की.

नरेंद्र मोदी

1991 में शुरू हुई एकता यात्रा का मक़सद क्या था?
एकता यात्रा का उद्देश्य बहुत स्पष्ट था. जम्मू-कश्मीर में पिछले कई सालों से जो हालात थे वो लोगों को परेशान कर रहे थे. बहुत सारी सूचनाएं आती थीं इस बारे में. मैं उस वक़्त पार्टी का महासचिव था. यह तय हुआ कि जम्मू-कश्मीर का ग्राउंड सर्वे किया जाए. वो किया भी गया.

केदारनाथ साहनी, आरिफ़ बेग और मैं, तीन लोगों की कमेटी बनी और हम 10-12 दिन तक जम्मू-कश्मीर में दूर-दूर तक गए. जहां 'आतंकवादियों' को प्रशिक्षण दिया जा रहा था, उसे भी देखने गए. जो कश्मीरी पंडित वहां से निकाले गए थे और जिन कैंपों में वो रह रहे थे, वहां भी गए, उनसे भी मिले और घाटी में जो कुछ भी भारत विरोधी गतिविधियां हो रही थीं, उसे भी देखा.


दूसरी तरफ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस में दो गुट आपस में राजनीतिक वर्चस्व के लिए लड़ रहे थे. दोनों यह साबित करने में लगे थे कि कौन ज़्यादा भारत विरोधी है. कुछ ऐसा वातावरण था वहां.

इन सभी स्थितियों की विस्तृत रिपोर्ट बनाई गई और वो रिपोर्ट सरकार को भी सौंपी गई और पार्टी के भीतर भी उस पर विचार किया गया.

राज्य में आज़ादी की मांग बढ़ने लगी थी और देश को यह समझाने की ज़रूरत थी कि देश को इससे क्या हानि होने वाली है. इसके लिए पार्टी की कार्यकारिणी समिति ने यह फ़ैसला किया कि देश में एक यात्रा निकाली जाए जो कन्याकुमारी से शुरू होकर कश्मीर में ख़त्म हो और उस यात्रा का प्रमुख उद्देश्य भारत के तिरंगे झंडे को कश्मीर में जाकर फहराना होगा क्योंकि वहां तिरंगे का अपमान ज़्यादा हो रहा था, जो भारत की संप्रभुता का प्रतीक है.

सोच विचार के बाद इसका नाम एकता यात्रा रखा गया क्योंकि कन्याकुमारी से कश्मीर तक यह देश को एक रखने के मक़सद से किया गया था.

यह एक बड़ी यात्रा थी. यह लगभग सभी राज्यों के होकर गुज़री. मक़सद यह था कि तिरंगे को सम्मान मिले और कश्मीर को भारत से अलग नहीं होने दिया जाएगा.

इस यात्रा को सभी समुदाय के लोगों ने समर्थन दिया. सभी ने सैंकड़ों-हज़ारों झंडे हमें दिए और वो चाहते थे कि हम उन्हें वहां फहराए.

नरेंद्र मोदी एकता यात्रा

उस वक़्त लाल चौक पर तिरंगा फहराना कितनी बड़ी चुनौती थी?
हमारे तिरंगा फहराने के पहले वहां तिरंगा नहीं फहराया गया था. हम वहां 26 जनवरी को झंडा फहराना चाहते थे क्योंकि ठंड में राजधानी बदल जाती थी. लोगों के पास वहां तिरंगे भी नहीं थे. मैंने लोगों से पूछा कि तिरंगा कैसे फहराते हैं तो उन्होंने बताया कि तिरंगा वहां मिलता ही नहीं है. 15 अगस्त को भी झंडा वहां नहीं मिलता था बाज़ारों में.

ऐसी स्थिति थी वहां. यात्रा के बाद बदलाव आया.

जम्मू-श्रीनगर हाइवे से आपको नहीं जाने दिया गया था और आपको हेलिकॉप्टर के ज़रिए वहां ले जाया गया था.

केंद्र सरकार बहुत घबराई हुई थी. उसका वश चलता तो वो मुझे पहले ही गिरफ़्तार कर लेती लेकिन इतनी बड़ी संख्या में लोगों का समर्थन हासिल था कि वो ऐसा कर नहीं पाई. अगर वो ऐसा करती तो यात्रा को और ज्यादा समर्थन हासिल होता.

ख़ैर, जब हम वहां पहुंचे तो सवाल खड़ा हुआ कि कितने लोग जाएंगे लाल चौक क्योंकि हमारे साथ एक लाख लोगों का समूह था और इतनी बड़ी संख्या में वहां जाया नहीं जा सकता था. तो वहां के राज्यपाल ने कहा कि ये संभव नहीं है और दूसरी बात ये थी कि वहां आतंकवाद की घटनाएं बहुत हो रही थीं तो यह ख़तरनाक साबित होता.

फिर यह तय हुआ कि कम लोग लाल चौक जाएंगे. 400 से 500 लोगों के जाने की बात हुई लेकिन इतनी संख्या में भी वहां जाने का प्रबंध करना उनके लिए मुश्किल था. फिर तय हुआ कि अटल जी और आडवाणी जी समूह का नियंत्रण करेंगे और सिर्फ़ मैं वहां जाऊंगा.

फिर एक कार्गो जहाज़ किराए पर लिया गया और 17 से 18 लोग उसमें बैठ कर गए. जब हमारा जहाज़ वहां उतरा तो मैंने देखा कि सेना के लोगों में काफ़ी प्रसन्नता थी. उनका कहना था कि आप आ गए तो घाटी बच गई. इस पूरी स्थिति में हम वहां पहुंचे और 26 जनवरी की सुबह तिरंगा लाल चौक पर फहराया गया.

एकता यात्रा

क्या कोई धमकी भी मिली थी?
हां. वो धमकियां दे रहे थे कि हमें मार दिया जाए और हम सभी बच कर न निकल पाएं. वो अशोभनीय गालियां भी हमें दे रहे थे. उनके ट्रांसमीटर इतने पावरफुल थे कि चंडीगढ़ और अमृतसर में लोग उन्हें सुन रहे थे. जब हम तिरंगा फहरा कर लौटे तो चंडीगढ़ के लोगों ने हमें यह बात बताई.

उस वक़्त वहां दहशत का माहौल था और वो यह दिखाना चाहते थे कि वहां कोई झंडा न फहरा पाए.
झंडा फहराए जाने के वक़्त लाल चौक पर आपके साथ कौन-कौन लोग मौजूद थे?
सभी के नाम तो याद नहीं हैं लेकिन कुछ लोगों के याद हैं. चमनलाल थे, जो उस वक़्त वहां के प्रमुख कार्यकर्ता थे और शायद उस समय जम्मू-कश्मीर के अध्यक्ष थे. पार्टी के उपाध्यक्ष कृष्णलाल शर्मा साथ थे. वर्तमान के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी साथ थे. वो यात्रा के व्यवस्थापक थे. मदनलाल खुराना भी थे. पश्चिम बंगाल और गुजरात के कुछ लोग साथ थे.

झंडा फहराने की व्यवस्था करने के लिए पहले से पहुंचे हुए लोग भी मौजूद थे, लेकिन स्थानीय लोग इसमें शामिल नहीं हो पाए थे.

मुरली मनोहर जोशी

आप 15 मिनट वहां रुके थे, क्या हुआ था उस 15 मिनट के दौरान?

उस 15 मिनट के दौरान रॉकेट फायर हो रहे थे. पांच से दस फीट की दूरी पर गोलियां चल रही थीं. कहीं से फायरिंग हो रही थी. पड़ोस में कहीं बम भी मारा गया था.

इनके अलावा वो हमें गालियां भी दे रहे थे लेकिन हमलोगों ने उन्हें सिर्फ़ राजनीतिक उत्तर ही दिए. उस दिन यह कहा जा रहा था कि कश्मीर के बिना पाकिस्तान अधूरा है तो हमलोगों ने अटल बिहारी वाजपेयी की बात दोहरायी और कहा कि फिर पाकिस्तान के बिना हिंदुस्तान अधूरा है.

मैंने यह भी कहा था कि लाल चौक पर जब तिरंगा फहराया जा रहा है तो उसकी सलामी पाकिस्तानी रॉकेट और ग्रेनेड दे रहे हैं. वो हमारे झंडे को सलामी दे रहे थे.

आपने बताया कि नरेंद्र मोदी उस वक़्त आपके साथ थे, क्या आप बता सकते हैं कि उनकी भूमिका आख़िर क्या थी?

वो यात्रा सफल हो सके, इसका प्रबंधन उनके हाथों में था. यात्रा लंबी थी. अलग-अलग राज्यों के अलग-अलग प्रभारी थे और उनका कोऑर्डिनेशन नरेंद्र मोदी करते थे. यात्रा सुगमता से चलती रहे, लोगों और गाड़ियों का प्रवाह बना रहे, सबकुछ समय पर हो, यह सारा काम नरेंद्र मोदी ने बहुत कुशलता के साथ किया और जहां आवश्यकता होती थी, वहां वो भाषण भी देते थे.

वो यात्रा के अभिन्न अंग के रूप में शुरू से आख़िर तक साथ रहे.

मुरली मनोहर जोशी

आपके तिरंगा फहराने के बाद क्या कुछ बदला?
देखिए, तिरंगा फहराने का सबसे बड़ा असर फौज के मनोबल पर पड़ा. उनका मनोबल काफ़ी बढ़ा क्योंकि उनको लग रहा था कि वो वहां लड़ रहे हैं, मर रहे हैं. जनता का मनोबल भी गिरा हुआ था. वातावरण अच्छा नहीं था. राज्य की सरकार सत्ता के संघर्ष में व्यस्त थी. इसका फ़ायदा उठा कर सारे कश्मीर का वातावरण ख़राब किया जा रहा था.

तिरंगा फहराने के बाद तत्काल चीज़ें बदलीं और लोगों को भरोसा हुआ कि देश इस मामले में हमारे साथ है और वो किन कठिनाइयों में रह रहे हैं, देश उसे समझ रहे हैं.

पाकिस्तान की तरफ़ से जो आतंकवाद फैलाया जा रहा था वहां, उस स्थिति को बदलने का संदेश पूरे देशभर में गया. मैं नहीं समझता हूं कि उससे पहले ऐसी जागृति फैली होगी. इससे जनजागरण हुआ और कश्मीर भारत का अंग है, यह संदेश बच्चे-बच्चे तक पहुंचा.

कश्मीर

370 हटाने के लिए सरकार ने जिस तरह के क़दम उठाए, टेलिफ़ोन, इंटरनेट बंद कर देना, उसे कितना सही मानते हैं आप?

यह निर्णय सरकारी है. सरकार ने किस आधार पर और किन सूचनाओं के आधार पर इंटरनेट और टेलीफ़ोन लाइन बंद की है, इसकी जानकारी मुझे नहीं है.

लेकिन अगर उन्हें ख़ास जानकारी होगी तो उसके मुताबिक़ ये फ़ैसले लिए गए होंगे. जो उचित लगा, उन्होंने किया. उनका 370 हटाने का फ़ैसला ठीक है. इसके लिए जो संवैधानिक प्रक्रिया अपनाई गई, वो देश के सामने है.

ये संविधान के अनुसार किया गया. सरकार ने जो भी क़दम उठाए हैं कश्मीर के लिए, वो अपनी जानकारियों के आधार पर उठाए होंगे और यह उनका अधिकार है.

एक संवेदनशील इलाक़े की सुरक्षा का ज़िम्मा सरकार की होती है और सरकार ने उसके मुताबिक़ क़दम उठाए होंगे.

भारत एक लोकतांत्रिक देश है और इतने बड़े क़दम से पहले किसी तरह की चर्चा नहीं की गई, वहां के स्थानीय नेताओं से भी कोई बातचीत नहीं की गई, यह कितना सही है?

वहां के लोगों से बात करना है या नहीं करना है, ये सरकार बेहतर जानती है. लेकिन 370 के हटाने के लिए जो भी प्रक्रिया संसद में अपनाई गई, उसे मैं सही मानता हूं.

अब सवाल उठाया जा रहा है कि स्थानीय नेताओं से बात क्यों नहीं की गई, तो मैं सवाल करना चाहता हूं कि इमरजेंसी के समय बातचीत क्यों नहीं की गई थी. अनेक सरकारों ने अनेक ऐसे फ़ैसले लिए हैं, जिन पर जितनी बातचीत होनी चाहिए थी, उतनी नहीं की गई.

एक जनतांत्रिक सरकार को, जिसके पास बहुमत है, उसे भी कुछ करने का हक़ है. जनता ने सरकार के इस फ़ैसले पर कोई आपत्ति नहीं जताई है. ये भी कुछ पहलू हैं, जिसे देखे जाने की ज़रूरत है.

लेकिन भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में इतने बड़े फ़ैसले से पहले स्टेकहोल्डर्स से बात भी नहीं करना, इस पर आप क्या कहेंगे.

प्रदर्शन हुए हैं, वहां के लोगों को भी अपनी बात कहने का हक़ है. लेकिन मेरी राय में उन्हें यह समझाया जाना चाहिए कि यह फ़ैसला उनके हित में है. अब ज़िम्मेदारी सरकार की है कि वो वहां शांति, लोगों का विश्वास और साम्प्रदायिक सौहार्द बहाल करे. अन्य पार्टियों को भी इसके लिए साथ आना होगा.


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