विपक्ष नें कांग्रेस को युवराज सहित नो चांस पर ला दिया - अरविन्द सिसौदिया Rahul Gandhi Congress

 


 विपक्ष नें कांग्रेस को युवराज सहित नो चांस पर ला दिया  - अरविन्द सिसौदिया
Opposition brought Congress along with Yuvraj to no chance - Arvind Sisodia


भारत के लोकतंत्र में स्व के भाव में और स्व की चेतना में आने के लिये 75 वर्ष लग गये । सही मायनें में 2014 के बाद से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में स्व का भाव भारत में उभरकर आया है। इससे भारत में हिन्दू एकता को बल मिला है और हिन्दुत्ववादी शासन में हैं।  मोदी एवं योगी की लोकप्रियता से हिन्दू एक जुट हुआ है और अपने हितों की बात करने लगा है। इसी के चलते दो बार से हिन्दू विरोधी मानसिकता से ग्रस्त कांग्रेस लोकसभा के सदन में और विभिन्न प्रदेशों में सिमट गई है।

कांग्रेस को 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूती के बाद पूर्ण बहूमत प्राप्त हुआ था , तब से वह पूर्ण बहूमत से कांग्रेस को सदन में नहीं ला पाई। हलांकी इस दौरान कांग्रेस के नरसिंहराव व मनमोहन सिंह सहित कांग्रेस समर्थन से कई प्रधानमंत्री बनाये। 2014 और 2019 में हांसिये पर पहुंचाई जा चुकी कांग्रेस तमाम वे तरीके अजमा रही है। जो सत्ता में आनें पे पूर्व भाजपा ने अजमाये थे। भाजपा की एकता यात्रा की तर्ज पर कन्याकुमारी से श्रीनगर तक कांग्रेस नें भी भारत जोडा यात्रा सम्पन्न की , वहीं सगठन में भी वह अब भाजपा की नकल करती नजर आ रही है। इन प्रयत्नों का लाभ कांग्रेस को भविष्य में मिल सकता है। 

 कांग्रेस के इस यात्रा के पांच मकसद थे, पहला राहुल गांधी को अगला प्रधानमंत्री प्रत्याशी के रूप में रखना, दूसरा कांग्रेस युवराज राहुल गांधी को स्थापित करना, तीसरा विपक्ष का नेता बनने की काबिलियत कांग्रेस में है यह स्थापित करना, चौथा कांग्रेस हिन्दू विरोधी नहीं हैं बल्कि भाजपा व संघ परिवार विरोधी है यह साबित करना और पांचवा मकसद था मुस्लिम वोट बैंक में अपना आधार पुनः स्थापित करना । भाजपा और संघ विरोधी प्रत्येक ताकत को अपने साथ रखना । कांग्रेस के लोगों ने इन पांचों लक्ष्यों पर अपना पूरा पूरा ध्यान केन्द्रित किया भी और वे लगभग उसमें अपने आप में सफल भी रहे हैं।

किन्तु भारत की जो वर्तमान राजनीति और उसमें क्षैत्रीय क्षत्रप जो हैं, वे भाजपा व संघ विरोधी होते हुये भी, कांग्रेस के साथ उस ताकत से खडे नहीं हयु जिससे कांग्रेस बलशाली दिखती । यह सब अंतिम दिन तब हुआ जब इस यात्रा का समापन समारोह था। माना जाता है कि कांग्रेस पार्टी नें समापन समारोह  हेतु 23 दलों को आमंत्रित किया था और उसमें से मात्र 8 दल ही सम्मिलित हुये। जिनमें दो तो जम्मू और कश्मीर के ही है। अर्थात मात्र 6 दल ही देश के दूसरे क्षैत्र से पहुंचे। बिहार यूपी बंगाल उडीसा सहित प्रमुख बडे प्रांतो की अनुपस्थिती नें इस यात्रा को बंतिम दिन धडाम से औंधे मुंह गिरा दिया है। समापन समारोह में विपक्ष को नहीं बुलाया जाता तो बंदी मुठ्ठी लाख की बात रह जाती ।

सबसे महत्वपूर्ण बिहार की अनुपस्थिती रही , जहां से सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल दोनों ही श्रीनगर नहीं पहुंचे। इनके नेता भी इस यात्रा में शामिल नहीं हुए थे। जबकि कांग्रेस वहां महागठबंधन सरकार का हिस्सा है। यही हाल यूपी का भी रहा वहां से सपी एवं बसपा का कोई नेता सम्मिलित नहीं हुआ तो पश्चिम बंगाल से ममता बनर्जी भी नहीं आईं ।

साथ चले लेकिन समापन में नहीं पहुंचे
भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कई पार्टियों के नेता शामिल हुए थे। कांग्रेस को यात्रा के दौरान राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी , शिवसेना (उद्धव बाला साहेब ठाकरे), जेएमएम और डीएमके का साथ मिला था। यात्रा के महाराष्ट्र में प्रवेश करने पर आदित्य ठाकरे (शिवसेना) और सुप्रिया सुले राहुल के साथ चले थे। संजय राउत भी जम्मू में राहुल गांधी के साथ चले थे। लेकिन श्रीनगर में आयोजित समापन कार्यक्रम से ये लोग नदारद रहे।

यहां समापन कार्यक्रम में शामिल होने वालों में डीएमके के तिरुचि शिवा, सीपीआई के महासचिव डी राजा, नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला, पीडीपी की महबूबा मुफ्ती, आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन और आईयूएमएल के के नवस कानी ,झामुमो और वीसीके के प्रतिनिधि भी समापन कार्यक्रम मौजूद थे।

इस प्रकार से यह बहुत स्पष्टता से सामनें आया कि भारत के बडे क्षत्रप दलों ने राहुल
गांधी को नेता एवं संयुक्त विपक्ष का नेतृत्व से स्विकार कर दिया है। दरकिनार कर दिया है। या यूं कहें कि संयुक्त विपक्ष नें कांग्रेस को युवराज सहित साइड लाईन कर दिया है।

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