वरुण गांधी की राजकुमारी सोच, आत्मघाती विचलन varun gandhi
वरुण गांधी की राजकुमारी सोच का आत्मघाती विचलन
कांग्रेस के राजकुमार राहुल गांधी तीन तीन प्रधानमंत्री देनें वाले परिवार में जन्मे और इससे उनकी जो सोच बनीं, उसीने उन्हें स्वयंभू, गुस्सैल और सर्वोच्च होनें के अहंकार से भर दिया, वे कभी कोई कागज फाड़ते, तो कभी कोई घोषणा करते, तो कभी कुछ कहते तो कभी कुछ.. हर किसी का अपमान कर देतें हैं। अंततः उनका नामकरण पप्पू तक जा पहुंचा। अब उन्होंने खुद अपना नामकरण तपस्वी कर लिया.... खैर अब इस बीमारी से पीड़ित होते खान - गांधी के दूसरे राजकुमार वरुण गांधी भी होते नजर आ रहे हैं।
समझदार माने जाने वाले वरुण गांधी एक समय भाजपा के राष्ट्रीय पदाधिकारी भी रहे हैं और लोकसभा सांसद लगातार हैं हीं, उनकी माताजी मेनका गांधी भी भाजपा की कृपा से हीं राजनीति में स्थापित हैं।
युवराज वरुण खान - गांधी परिवार के ही राजकुमार हैं। मगर उन्हें इंदिरा गाँधी आवास में या इंदिरा गाँधी के राजनैतिक उत्तराधिकारीयों में जगह नहीं मिली। न ही सोनिया गांधी परिवार नें उन्हें अपनाना और न वे भविष्य में भी अपनाना चाहता।
इंदिरा गाँधी की छोटी बहू मेनका गाँधी संजय गांधी की मृत्यु के समय से ही यह उपेक्षा लगातार भुगत रहीं है। मेनका गांधी को घर से निकाला जाना अमानवीय एवं अनैतिक था।, उन्हें राजनीति में भी विफल करने में कांग्रेस ने कभी कोई कसर नहीं छोडी।
प्रियंका के विवाह में वरुण और मेनका को नहीं बुलाया गया और वरुण के निमंत्रण पर सोनिया, राहुल, प्रियंका आये भी नहीं। याने निरंतर राहें अलग अलग रहीं हैं।
वरुण गांधी नें सार्वजनिक रूपसे राहुल को साथ देनें के संकेत दिये तब भी राहुल नें सार्वजनिकरूप से मना कर दिया।
अब उन्होंने अखिलेश यादव के कसीदे पढ़ने प्रारंभ कर दिये हैं। माना जा रहा है कि सपा में जानें का संकेत दे रहे हैं। कुल मिला कर राजनैतिक महत्वकांक्षा हिलोरेँ मार रही हैं, वे यूं पी के मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पाले बैठे हैं। इसलिए वे भाजपा विरोधी बयान एवं आलोचनाएँ लगातार कर रहे हैं।
यूं तो वरुण गांधी कालिदास की तरह जिस डाल पर बैठे हैं उसे काटने में लगे हुए हैं। जिस पार्टी नें मेनका और वरुण को सम्मान दिया व स्थापित किया वे लगातार उसके खिलाफ बोल रहे हैं। ये उनकी गद्दारी ही है। किन्तु जब महत्वकांक्षा की पट्टी आँखों पर बंधी हो, तो सब संभव है।
सच यह है की वरुण गांधी में एक राजकुमार जाग रहा है। येशा ही राजकुमार आदित्य ठाकरे के भी जागा था, वहाँ तो एक मज़बूत संगठन भी था, मगर उनका तमाशा बन चुका है आगे और भी मुश्किल में उन्हें फंसना है।
मेनका वरुण पर कोई संगठन नहीं है, न उनमें कोई विशेषज्ञता जिससे जनता उनसे जुड़े। बल्कि उनकी वही कमजोरी है, जो राहुल की है! लाख गांधी सरनेम लगालो, मगर सब जाग्रत भारत जानता है कि ये सभी इंदिरा गांधी के पति फिरोज खान गांधी परिवार कि वंश पराँम्परा से हैं। राहुल गाँधी उत्तर प्रदेश में चुनाव हार चुके हैं, यही हाल रहा तो वरुण भी अगला चुनाव में हारने वाले हैं। वे सपा में भी जायेंगे तो भी अखिलेश डिंपल के पीछे ही रहना होगा।
यूं तो भाजपा से अलग हो कर स्वतंत्र पार्टी बनाते हैं तो मेनका वरुण का राजनैतिक अस्तित्व अस्त होता महसूस हो रही है।
वे सपा में जाएँ या अन्य किसी दल में उन्हें लगना तो लाइन में पीछे ही पड़ेगा। कोई उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बना रहा।
जब पीछे ही लगना है तो भाजपा से अच्छा ऑप्शन और क्या है। बनी बनाई इज्जत समाप्त करने से अच्छा समय का इंतजार करना होता है।
वरुण गांघी को राजकुमारी सोच से आ रहे विचलन पर नियंत्रण पाना होगा, उन्हें अपने अच्छे के लिये राजकुमारी सोच से बाहर निकल कर, उनके स्वयं की वास्तविक स्थिति का आकलन करना चाहिए।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें