इस्तीफा देनें वाले विधायक शून्य हैं, न्यायपालिका इन्हे जनता के पास भेजे - अरविन्द सिसोदिया The MLAs who resigned are zero

इस्तीफा देनें वाले विधायक शून्य हैं, न्या The MLAs who resigned are zero, the judiciary should send them to the public - Arvind Sisodia

इस्तीफा देनें वाले विधायक शून्य हैं, न्यायपालिका इन्हे जनता के पास भेजे - अरविन्द सिसोदिया
The MLAs who resigned are zero, the judiciary should send them to the public - Arvind Sisodia
 भारत का संविधान एवं परम्परागत परम्परायें यही बताती हैं कि राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष को असीमित अधिकार नहीं हैं। जिन विधायकों ने तीन माह पूर्व स्वैच्छा से इस्तीफे सौंपें थे, वे तत्काल प्रभाव से स्वंय स्वीकृत हैं। उन्हे नैसर्गिक स्विकार्यता प्राप्त है। वे विधि संगत हक त्याग की तरह संविधानसम्मत पद त्याग है, जिसे वापसी की कोई संविधानिक व्यवस्था नहीं है।
The Constitution of India and traditional traditions tell that the Speaker of the Rajasthan Legislative Assembly does not have unlimited powers. The MLAs who voluntarily submitted their resignations three months back are automatically accepted with immediate effect. They have natural acceptance. They are relinquishment of office as per law, like relinquishment of legitimate rights, for which there is no constitutional provision for withdrawal.

यूं भी इस्तीफे दिये जानें के घटनाक्रम का सार्वजनिक रूप से समाचारपत्रों में सारा विवरण प्रकाशित होते रहनें के बावजूद किसी एक ने भी त्यागपत्र देनें वाले विधायक नें अपना त्यागपत्र नहीं दिया जाना कभी भी नहीं बताया। किसी एक भी त्यागपत्र प्रदाता विधायक नें इस बात का खण्डन नहीं किया है कि वह उनका त्यागपत्र नहीं हैं। स्वयं विधानसभा अध्यक्ष ने भी कभी यह नहीं कहा कि इस विधायक ने अपने इस्तीफे से इंकार किया है।

In spite of all the details of the events of resignation being publicly published in the newspapers, none of the MLAs who resigned ever told that they had not tendered their resignations. Not even a single resignation MLA has denied that it is not his resignation. The Assembly Speaker himself never said that this MLA has refused his resignation.

भारतीय लोकतंत्र का यह दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि राजस्थान के तमाम समाचारपत्रों में एक साथ 90 विधायकों के इस्तीफे के समाचार छपनें के बाद भी महामहिम राज्यपाल महोदय नें राज्य सरकार से अपना बहूमत सिद्ध करनें को नहीं कहा। माननीय उच्च न्यायालय नें स्वस्फूर्त संज्ञान नहीं लिया । सच यह है कि इस्तीफे की खबर आते ही विधानसभा का फलोर टेस्ट होना चाहिये था। प्रश्न तो यही है कि बहूमत खो चुकी सरकार , सरकार कैसे चला रही है ?
It will be said that it is a misfortune of Indian democracy that even after the news of the resignation of 90 MLAs was published simultaneously in all the newspapers of Rajasthan, His Excellency the Governor did not ask the state government to prove its majority. Hon'ble High Court did not take suo motu cognizance. The truth is that the floor test of the Vidhan Sabha should have happened as soon as the news of his resignation came. The question is that the government which has lost its majority, how is it running the government?

भारत में विधि भी यह कहती है कि इच्छा मात्र सर्वोपरी होती है। जब इस्तीफे दे दिये तो फिर उन कुर्सियों से चिपके रहनें का क्या अर्थ। जनप्रतिनिधि जनता का प्रतिनिधि है, उसे किसी राजनैतिक दल की नौटंकी का हिस्सा बनने का अधिकार जनता ने कभी नहीं दिया है। भारत और तमाम लोकतांत्रिक देशों की परम्परायें यह कह रहीं हैं कि इस्तीफा देनें वाले विधायक अब विधायक नहीं हैं।

The law in India also says that only desire is paramount. When you have resigned then what is the meaning of sticking to those chairs. The people's representative is the representative of the public, the public has never given him the right to be a part of the gimmick of any political party. The traditions of India and all democratic countries are saying that the MLAs who resign are no longer MLAs.

विधानसभा अध्यक्ष एवं महामहिम राज्यपाल का तीन माह से मौन रहना भी इस बात की पुष्ठि करता है कि सदन से त्यागपत्र स्विकृत है। उन पर कोई विवाद शेष नहीं है। इसलिये विधानसभा अध्यक्ष एवं अन्य कोई भी विधि त्यागपत्र प्रदान करने  वाले विधायकों को पुनः सदन का सदस्य नहीं बना सकती है। उन्हे अब जनता से पुनः विश्वास प्राप्त करने चुनाव में जाना और वहां से चुन कर आना अनिवार्य है।
The silence of the Speaker and His Excellency the Governor for three months also confirms that the resignation from the House is accepted. There is no dispute left on them. That's why the Speaker of the Vidhansabha and no other law can make the MLAs who have resigned as members of the House again. Now it is mandatory for them to go to the elections to regain the trust of the public and get elected from there.

कोई भी राजनैतिक दल अपनी इच्छापूर्ती का साधन संविधान को नहीं बना सकता और न ही अपने हित निहित के लिये “संविधान - सम्मत“ विधि की हत्या ही कर सकता है। यह मामला माननीय उच्च न्यायालय के समझ विचाराधीन होनें का मतलब यह नहीं है कि त्यागपत्रों को त्यागपत्र नहीं माना जायेगा। बल्कि त्यागपत्र तो त्यागपत्र ही है। उन्हे त्यागपत्र ही माना जायेगा। जिस परह दान पर किसी दानदाता का दान के बाद कोई अधिकार नहीं होता है, उसी तरह त्यागपत्र के बाद किसी भी त्यागपत्र प्रदाता को उसे वापस लेनें का अधिकार नहीं रहता है।

No political party can make the constitution a means of fulfilling its wishes, nor can it kill a "constitutional" law for its vested interests. The fact that this matter is under consideration of the Hon'ble High Court does not mean that the resignations will not be considered as resignations. Rather, resignation is resignation. They will be treated as resignation only. Just as a donor does not have any right on a donation after donation, in the same way, after resignation, any resignation provider does not have the right to take it back.

जिस तरह एक शरीर आत्महत्या के बाद पुर्न जीवित नहीं हो सकता, उसी तरह एक बार त्यागपत्र देनें के बाद वह पुर्न जीवित नहीं हो सकता। इसलिये त्यागपत्र देनें वाले सभी सदस्य अब सदन के सदस्य नहीं हैं।

Just as a body cannot come back to life after suicide, similarly it cannot come back to life once it has resigned. That's why all the members who have resigned are no longer members of the House.

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राजस्थान के कांग्रेस प्रभारी, पूर्व मंत्री एवं विधायक तथा पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष पंजाब कांग्रेस सुखजिंदर सिंह रंधावा इन दिनों राजस्थान में हैं और कांग्रेस को ठीक करनें की कोशिश कर रहे हैं।

Rajasthan के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत। (फोटो-इंडियन एक्‍सप्रेस)।
कांग्रेस अध्यक्ष पद चुनाव के दौरान राजस्थान के सियासी घटनाक्रम की वजह से पार्टी की जमकर किरकिरी हुई। अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के समर्थन में राजस्थान कांग्रेस के करीब 90 विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को इस्तीफा दे दिया था। अब खबर यह है कि कांग्रेस के ये सभी विधायक जल्द ही अपने इस्तीफे वापस ले सकते हैं।

कांग्रेस पार्टी (Congress Party) की तरफ से अभी इस बारे में कोई फैसला नहीं लिया गया है लेकिन सूत्रों ने अंग्रेजी अखबार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया कि विधायकों से कहा गया है कि वे सभी अपने इस्तीफे वापस लें। कांग्रेस पार्टी के एक नेता ने बताया कि विधायक विधानसभा स्पीकर से जाकर मिलेंगे और अपने इस्तीफे वापस लेने का पत्र सौंपेंगे।

क्यों दिया था इस्तीफा?
कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए अशोक गहलोत का नाम तय होने के बाद पार्टी आलाकमान मुख्यमंत्री बदलना चाहता था। कहा जाता है कि सचिन पायलट राजस्थान के मुख्यमंत्री पद के लिए कांग्रेस की पहली पसंद भी थे। पार्टी के इसी फैसले से गहलोत के वफादार खुश नहीं थे.

इसके बाद कांग्रेस आलाकमान के “एकतरफा” रवैया से नाराज अशोक गहलोत के करीब 90 वफादारों ने कांग्रेस विधायक दल की बैठक में शिरकत नहीं की और 25 सितंबर को विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी को अपने इस्तीफे सौंप दिया, जो तब से उनके पास लंबित हैं। कांग्रेस के एक नेता का कहना है कि आने वाले दिनों में इस्तीफे वापस ले लिए जाएंगे।

Rajasthan Politics

दरअसल राजस्थान में आने वाले दिनों में 3 महत्वपूर्ण घटनाक्रम होने वाले हैं। पहला, 23 जनवरी से बजट सत्र की घोषणा, दूसरा लंबित इस्तीफे पर राजस्थान हाई कोर्ट द्वारा अध्यक्ष जोशी को नोटिस और तीसरा नए कांग्रेस राज्य प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा द्वारा जयपुर में पार्टी नेताओं के साथ करीब तीन दिन तक होनी वाली चर्चा।
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हाइलाइट्स
कांग्रेस के 91 विधायकों ने समानांतर बैठक बुलाकर विधानसभा अध्यक्ष को सौंपे थे इस्तीफे
न्यायपालिका और विधायिका के बीच ऐसे विवाद के मामलों में संविधान का अनुच्छेद 212 होता है अहम
 
जयपुर. कांग्रेस विधायकों (Congress MLA) के सामूहिक इस्तीफे के मामले को लेकर हाईकोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष और सचिव से जवाब-तलब किया है. राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) की ओर से विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी और सचिव को नोटिस जारी कर दो हफ्तों में जवाब मांगा गया है कि कांग्रेस के 91 विधायक-मंत्रियों के 25 सितम्बर 2022 को विधानसभा की सदस्यता से दिए गए इस्तीफों की क्या स्थिति है. बीते 25 सितंबर को कांग्रेस हाईकमान के आब्जर्वर यहां आए थे तब कांग्रेस के 91 विधायकों ने इसके समानांतर बैठक बुलाकर विधानसभा अध्यक्ष को इस्तीफे सौंपे थे.


Rajasthan Politics : राजस्थान में गहलोत का सियासी खेल, विधायकों का इस्तीफा भी हो गया फेल

कांग्रेस के जिन 91 विधायकों ने 25 सितम्बर को विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को इस्तीफे सौंपे थे, उन्होंने अपने इस्तीफे वापस ले लिए हैं। माना जा रहा है कि राजस्थान हाईकोर्ट में दो जनवरी को इस मामले में सुनवाई को देखते हुए विधायकों ने यह कदम उठाया है। उधर, इस्तीफे मंजूर किए जाने की मांग को लेकर याचिका दायर करने वाले उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने इसे लोकतंत्र का तमाशा बताया है।


ashok gehlot
कांग्रेस के जिन 91 विधायकों ने 25 सितम्बर को विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को इस्तीफे सौंपे थे, उन्होंने अपने इस्तीफे वापस ले लिए हैं। माना जा रहा है कि राजस्थान हाईकोर्ट में दो जनवरी को इस मामले में सुनवाई को देखते हुए विधायकों ने यह कदम उठाया है। उधर, इस्तीफे मंजूर किए जाने की मांग को लेकर याचिका दायर करने वाले उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने इसे लोकतंत्र का तमाशा बताया है।


विधायक दल की बैठक के बहिष्कार के बाद कांग्रेस के 91 विधायकों ने स्वेच्छा से इस्तीफे विधानसभा अध्यक्ष को सौंप दिए थे। विधायक इस्तीफा देकर आलाकमान पर इस बात का दबाव बनाने का प्रयास कर रहे थे कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को यदि पद से हटाया जाता है तो उनके गुट के 102 विधायकों में से ही किसी को मुख्यमंत्री बनाया जाए।

उस समय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का नामांकन दाखिल करने वाले थे, जिसे देखते हुए नए नेता के चयन के लिए कांग्रेस आलाकमान ने पर्यवेक्षक भेजे थे। विधायक दल की बैठक में जाने के बजाय गहलोत समर्थक विधायक शांति धारीवाल के सरकारी निवास पर एकत्र हो गए थे। बाद में उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष के घर जाकर इस्तीफे सौंप दिए थे। हालांकि विधानसभा अध्यक्ष ने ये इस्तीफे न तो मंजूर किए, और न ही उन पर कोई कार्रवाई की।


विधानसभा कार्यालय में पहुंचे ही नहीं थी इस्तीफे

विधानसभा अध्यक्ष के इस्तीफे मंजूर नहीं किए जाने को लेकर राठौड़ ने पिछले दिनों राजस्थान उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी। जिसकी सुनवाई दो जनवरी को होनी थी। माना जा रहा है कि कानूनी पेचीदगियों को देखते हुए विधायकों को इस्तीफे वापस लिए जाने के लिए कहा गया हो। पिछले एक-दो दिन से विधायक अपने इस्तीफे वापस लेने की प्रक्रिया में लगे हुए हैं। कुछ विधायक जयपुर से बाहर होने के कारण अभी इस्तीफे वापस नहीं ले पाए हैं लेकिन दो जनवरी से पहले सभी के इस्तीफे वापस हो जाएंगे। विधानसभा सूत्रों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर राजस्थान पत्रिका को बताया कि न तो विधानसभा कार्यालय को ये इस्तीफे प्राप्त हुए थे, और न ही वापस लिए जाने की सूचना हैं।


इस्तीफे वापस लेने का कोई प्रावधान नहीं

उप नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने कहा कि ये लोकतंत्र का तमाशा है। एक दफा इस्तीफे देने के बाद, वापस लिए जाने का कोई प्रावधान नहीं है। ये लोग जनता को गुमराह कर रहे हैं। मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया तो अब तक उनके फैसले कैसे लागू हो रहे थे। सरकार को सदन में विश्वास हासिल नहीं था। मंत्री और विधायकों को इस अवधि तक के वेतन और भत्ते भी वापस लौटाने चाहिए । कांग्रेस के ये विधायक याचिका में उठाए बिन्दुओं का सामना करने की स्थिति में नहीं थे, इसी कारण इस्तीफे वापस लिए गए हैं।

सीजे की खण्डपीठ करेगी सुनवाई

प्रतिपक्ष के उपनेता राजेन्द्र राठौड़ ने 91 विधायकों के इस्तीफों को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर रखी है, जिस पर कोर्ट विधानसभा अध्यक्ष व विधानसभा सचिव को नोटिस जारी कर चुका है। अब इस याचिका पर मुख्य न्यायाधीश पंकज मित्तल और न्यायाधीश शुभा मेहता की खण्डपीठ में दो जनवरी को सुनवाई होनी है।


राजभवन का दखल!
विधायकों के इस्तीफों की वापसी को राजभवन के दखल से भी जोड़ा जा रहा है। अटकलें लगाई जा रही हैं कि राज्यपाल कलराज मिश्र और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच गुरुवार को विधायकों के इस्तीफों को लेकर भी बात हुई। राज्यपाल ने मुख्यमंत्री से विधायकों के इस्तीफे का प्रकरण लंबित होने के बीच नए सत्र की मंजूरी पर सवाल उठाया, तो उन्हें प्रकरण का पटाक्षेप कर दिए जाने का भरोसा दिलाया गया था।

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