जोशीमठ : पर्याप्त मुआबजा,जलरिवास रोकें एवं एक नया शहर भी बसायें joshimath

निश्चित रूप से हिमालय में कुछ चल रहा है। निरंतर चलता रहता भी है। यूं भी हिमालय के बारे में कहा जाता है कि वह प्रतिवर्ष कुछ ऊंचा होता जा रहा है। कोई कहता है कि यह नीचा होता जा रहा है। कहीं कही यह बात आती है कि इसके पहाड़ बहुत ही कच्चे हैं। हाल ही में केदारनाथ दुखान्तकी और धारादेवी प्रकरण हमनें देखा भी है। इससे पहले महानदी सरस्वती के भूगर्भ में समा जाने का वृतांत भी हमारे सामने है। पृथ्वी के आंतरिक क्रियाकलापों के बारे में अब विज्ञान ने बहुत कुछ उजागर किया भी है। पृथ्वी की सतह की ही तरह अन्दर भी एक अलग दुनिया हैं, बड़ी बड़ी प्लेटों पर बाहरी पृथ्वी टिकी हुई है। जरा सी आंतरिक खिसका खिसकी या स्थान परिवर्तन पर बडे बडे भूकंप आ जाते हैं, तबाही हो जाती है। इसलिए हिमालय एक संवेदनशील क्षेत्र तो है ही किन्तु वह भारतीय संस्कृति का उद्गम और भारत का सुरक्षा कवच भी है।

जोशीमठ और उसके आसपास के जगहों में आंतरिक भूस्खलन या भूगर्भीय जल रिसाव के किन्हीं कारणों से मकानों का धंसना और असुरक्षित होना लगातार पाया जा रहा है। लोगों के जीवन को खतरा उत्पन्न हो गया है।

पुराणों अनुसार भूकंप, जल प्रलय और सूखे के बाद पवित्र गंगा लुप्त हो जाएगी और इसी गंगा की कथा के साथ जुड़ी है पवित्रधाम बद्रीनाथ एवं केदारनाथ तीर्थस्थल भी नहीं रहेंगे।पुराणों अनुसार आने वाले कुछ वर्षों में वर्तमान बद्रीनाथ धाम और केदारेश्वर धाम लुप्त हो जाएंगे और वर्षों बाद भविष्य में भविष्यबद्री नामक नए तीर्थ का उद्गम होगा। यह भी मान्यता है कि जोशीमठ में स्थित नृसिंह भगवान की मूर्ति का एक हाथ साल-दर-साल पतला होता जा रहा है। जिस दिन यह हाथ लुप्त हो जाएगा उस दिन ब्रद्री और केदारनाथ तीर्थ स्थल भी लुप्त होना प्रारंभ हो जाएंगे। 

खतरे के चलते,600 परिवारों को हटाया
6 जनवरी को यहां मां भगवती का मंदिर ढह गया है, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी जोशीमठ के अति संवेदनशील स्थानों वाले क्षेत्रों में बने भवनों को तत्काल खाली कराने के निर्देश दिए हैं। वहीं अधिकारियों को जोशीमठ के जोखिम वाले घरों में रहने वाले लगभग 600 परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट करने के लिए कहा गया है। निश्चित ही किसी को अपना घर छोडना बहुत ही कठिन फैसला होता है। किन्तु जान है तो जहान है। इसलिये खतरे वाले स्थानों को खाली करना ही उचित समाधान है।

हटाये जाने वाले घर मालिकों को पर्याप्त मुआवजा दिया जाये
संकट आना एक बात है, संकट का समाधान दूसरी बात है। संकट से हुई क्षति की भरपाई वास्तविक राहत है। उत्तराखंड सरकार और भारत सरकार को मिल कर यह जिम्मेदारी उठानी चाहिये कि उन्हें नुकसान हो रहा है। उसको पर्याप्त मुआवजा राशि एवं वैकल्पिक निवास स्थान , रोजगार एवं जीवन यापन की व्यवस्था हो । लोकतंत्र एक कल्याणकारी व्यवस्था का नाम होता है।

राहतकोष एकाउन्ट बनायें देश  मदद को तैयार है
इसलिये बेहद संवेदनशीलता से सरकार भी समाज भी पीड़ितों की मदद के लिए आगे बडें। इस हेतु प्रधानमंत्री अथवा मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड एक राहत कोष अकाउंट खोल कर राहत राशि देशवासियों से आमंत्रित कर सकते हैं। प्रभावितों के मकान किराये के लिये 4000 रूपये महीने की व्व्यवस्था की गई है। मगर जीवन जीनें के लिये यह राशि कुछ नहीं है। बहुआयामी व्यवस्थाऔं एवं प्रबंधन पर ध्यान दिया जाना चाहिये।

सुरंग के काम में स्थानीय जनता को विश्वास में लिया जाये
उत्तराखंड के जोशीमठ में स्थिति हर दिन और ज्यादा खराब होती जा रही है, दरारें पहले से भी ज्यादा भयावह रूप ले रही हैं। जो दरारें पहले महज दो इंच की थीं वो बढ़कर अब 8-9 इंच की हो गई हैं। स्थानीय लोगों ने भू-धसाव के पीछे का कारण एनटीपीसी की सुरंग में ब्लास्ट से जमीन धंसना बताया है। 12 किलोमीटर लंबी ये निर्माणाधीन सुरंग सेलग नाम की जगह से शुरू होती है जो तपोवन तक बनेगी इसका अभी तक 8 किलोमीटर तक काम हो गया है। 


जलाशय निर्माण के दौरान पानी के बडे भराव से नीचे की तरफ खतरे की बात समझ में आती है, जो कि धारा देवी के  जलमग्न होने के समय सामने केदारनाथ दुखान्तिका के रूप में देखने में आई थी। सुरंग में यदि ठेकेदारों ने काम को जल्द करने और कम लागत पर करने के लालच में ब्लास्टिंग की है जो मकानों में दरार इससे संभव है। खनन क्षेत्रों में इस तरह से मकान दरकनें की घटनाएं सामने आती रहती है। यूं भी हिमालय में ब्लास्टिंग खतरे से भरी ही रहती है। इस तथ्य पर ध्यान दिया जाना चाहिए इस हेतु स्थानीय नागरिकों की देखरेख में काम हेतु एक कमेटी गठित की जा सकती है। फिलहाल सुरंग पर राज्य सरकार ने रोक लगा दी है।

जगह बदल कर नया शहर बसाया जाये
एक और वजह सामनें है कि हिमालय की नदियों के आंतरिक तट यानी कि नीचे की तलहटी धीरे धीरे और नीचे बैठती है, इसका कारण आंतरिक मिट्टी का कटाव एवं वहाब है। जो निरंतर चल रहा है। इसलिये इन पहाडी नदियों के आंतरिक कटाव के संरक्षण की भी चिन्ता करनी होगी । वहीं इनकी एक  मैपिंग प्रणाली विकसित करनी होगी, जिससे आंतरिक परिवर्तनों का अधतन जानकारी उपलब्ध रहे और संकट को समय से पहचाना जा सके। मुझे यह अधिक प्रतीत हो रहा है कि जोशीमठ के आसपास की नदियों में आंतरिक रिसाव और कटाव जरूर हो रहा होगा । इसका उपचार मात्र यही है कि जगह बदल कर नया शहर बसाया जाये।

बस्ती के घरों में जल रिसाव की खोज तक पहुंचना आवश्यक है
जोशीमठ बहुत ही उच्चस्तरीय सनातन मान्यताओं के पवित्र स्थलों के प्रवेशद्वार के रूप में है। यहां से पास में ही बद्रीनाथ धाम और केदारनाथ धाम हैं । इसलिये इसकी सुरक्षा एवं संरक्षण अत्यंत महत्व का विषय है।  मकानों में जल रिवास की वजह तक पहुंचना बहुत जरूरी है। उसे रोकना भी बहुत जरूरी है। प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा चिंता किये जाने का अर्थ ही समाधान तक पहुंचना होता है। आशा है कुछ समय में जोशीमठ में चल रहे अप्रिय घटना चक्र से राहत मिलेगी। 

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