भारत और राक्षस चीन

राक्षस जैसी स्थिति में पहुच चुके चीन को समझने के लिए यह लेख काफी सहायक होगा यही मानते हुए इसे प्रस्तुत किया गया ..,डॉ. राम तिवारी को इस तरह कि तथ्यात्मक जानकारी के लिए बहुत बहुत साधुवाद ..,  भारत में चीन के प्रती जो नर्म रवैया जवाहरलाल नेहरू जी ने वर्ता है , उस पर आगे चर्चा करेंगे..! चीन को इतना बड़ा भष्मासुर बनाने में हमारा भी योगदान कम नहीं है..!! नेहरू जी ने कई कांटे इस देश को दिए हैं उनमें जम्मू और कश्मीर से भी ज्यादा खतरनाक  मशला चीन का है..,, 
- अरविन्द सीसोदिया 
भारत कि सुरक्षा को चीन की चुनौती:डाँ. राम तिवारी
( हिमालिनी नेपाल की एकमात्र हिन्दी पत्रिका है यह लेख उसमें २ दिसंबर २००९ के अंक में प्रकाशित हुआ था , सम्पूर्ण विश्व और भारतवासियों  के लिए यह सारगर्भित जानकारी प्रस्तुत है..... )
चीन विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है। वर्तमान में इसकी कुल जनसंख्या 1 अरब 27 करोड़ 31 लाख से अधिक है। इस देश की राजधानी बीजिंग (पुराना नाम पीकिंग) है तथा प्रमुख भाषा चीनी (मेंडारिन) है। इस देश का प्रमुख धर्म सरकारी स्तर पर अनीश्वरवादी है फिर भी ज्यादातर आबादी बौद्ध व ताओ धर्म की अनुयायी है तथा जातीय समूह हान चाइनीज है। यहाँ की मुद्रा युआन है। ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार ईसा पूर्व 1500 में चीन में शांग राजवंश का शासन स्थापित था। सन् 1911 ई0 में एक जनक्रांति के द्वारा मांचू राजंवश का तख्ता पलट करने के बाद डॉ0 सन-यात सेन ने औपचारिक तौर पर 1 जनवरी 1912 ई0 को गणतंत्र की स्थापना की। कुओमितांग पार्टी के संस्थापक डॉ0 सन-यात सेन ने अपने संक्षिप्त कार्यकाल में चीन की प्रगति के लिए अनेक कदम उठाए, किन्तु पराजित हुई राजशाही के कृत्यों के चलते यह देश एक बार पुनः गृहयुद्ध की चपेट में आ गया। इस घटना के बाद चीनी राजनीतिक पटल पर सबसे शक्तिशाली व्यक्त्वि के रूप में माओत्सेतंुग का पदार्पण हुआ जिन्हें माओजिडांग के नाम से भी जाना जाता है। इन्होनें राजशाही समर्थकों व कुओमितांग पार्टी के विरूद्ध सशस्त्र संघर्ष छेड़ दिया।
    1 अक्टूबर 1949 ई0 को माओत्सेतुंग के नेतृत्व में चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के शासन की स्थापना हुई। माओत्सेतुंग के कार्यकाल में देश की प्रगति के लिए ‘महान अग्रगामी उछाल नीति (दि ग्रेट लीप फारवर्ड 1958-60) और सांस्कृतिक क्रांति (1965-68) का सूत्रपात हुआ। चीन में सांस्कृतिक क्रांति का दौर भारी उथल-पुथल का था। माओत्सेतुंग ने बुजुर्वा (जमीदारों व पूँजीपति मानसिकता) वर्ग के समापन के लिए नृशंस कदम उठाए और सरकारी आतंक के चलते अनेक बुद्धिजीवियों, शिक्षकों व व्यापारियों को उत्पीड़ित किया गया।
9 सितम्बर, 1976 ई0 को माओत्सेतुंग की मृत्यु के पश्चात् डेंग शियाओपिंग ने कम्युनिस्ट पार्टी की बागडोर संभाली। डेंग के आगमन से चीन में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। 1980 ई0 से डेंग ने चीन मे नव आर्थिक सुधार कार्यक्रम शुरू किये जो साम्यवाद (कम्युनिज्म) की मूलभूत मान्यताओं से मेल नहीं खाते थे। डेंग के इन आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को चीन के वर्तमान शासक जारी रखे हुए है।
चीन आर्थिक नीतियों के सन्दर्भ में तो पूँजीवाद की राह पर चल निकला है, पर इस देश में राजनीतिक व्यवस्था के रूप में साम्यवाद वर्तमान में भी कायम है। प्रशासनिक व्यवस्था के लिहाज से चीन को 22 प्रांतों में विभक्त किया गया है। इसके अतिरिक्त 5 स्वायत्तशासी क्षेत्र और विशेष प्रशासनिक क्षेत्र (हांगकांग व मकाओ) है।
चीन की सेना को ‘जनमुक्ति सेना’ के नाम से सम्बोधित किया जाता है।
मुक्ति आन्दोलन के दौरान अस्तित्व में आई जनमुक्ति सेना (लाल सेना) की मुख्य विशेषताएँ निम्नवत् हैः-
1. जन सेना होने के कारण यह जनता के विभिन्न कार्यों व उत्पादन में उनकी सहायता करती है।
2. सेना का मुख्य कार्य साम्राज्यवादी आक्रमण से देश की रक्षा करना व देश के निर्माण को संरक्षित रखना है।
3. सेना में राजनीतिक कार्य तत्वतः सेना में दल का कार्य है और दल के कार्यकारी संगठन ही राजनैतिक अंग है। राजनीतिक अंगों के माध्यम से दल सारी सेना की वैचारिक शिक्षा को निर्देशित करता है।
भारत और चीन के मध्य विवाद के प्रमुख बिंदु :-
1. मैकमोहन लाइनः- ब्रिटेन और तिब्बत के बीच हुए सन् 1914 ई0 के शिमला समझौते के तहत जो लाइन ब्रिटिश भारत और तिब्बत की सीमा रेखा के तौर पर खींची गयी थी उसे ही मैकमोहन लाइन कहते है। इस लाइन को सर हेनरी मैकमोहन जो इस समझौते के मुख्य समन्वयक व उस वक्त भारत में ब्रिटेन के विदेश सचिव थे, के नाम पर मैकमोहन लाइन कहा जाता है। 550 मील की यह लाइन भूटान से हिमालय के सहारे ब्रह्मपुत्र नदी के महान मोड़ तक जाती है। यह लाइन लगभग उतनी ही लम्बी है जितनी भारत नियंत्रित क्षेत्र और चीन अधिकृत क्षेत्र के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा। इस लाइन को भारत अपनी स्थायी सीमा रेखा मानता है जबकि चीन इसे एक अस्थायी नियंत्रण रेखा मानता है। इसके अलावा चीन मैकमोहन लाइन के दक्षिण में स्थिति अरूणाचल प्रदेश पर भी अधिकार जताता है।
2. अरूणाचल प्रदेश :- भारत का यह सुदूर पूर्वी राज्य भारत और चीन के मध्य विवाद का एक मुख्य विषय बना हुआ है। मैकमोहन लाइन के दक्षिण में स्थित इस विवादित क्षेत्र को भारत ने सन् 1954 ई0 में पूर्वोत्तर सीमा एजेंसी  नाम दिया और 1972 ई0 में इसे केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया। सन् 1987 ई0 में इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया। सन् 1937 ई0 में सर्वे ऑफ इंडिया ने प्रथम बार अपने नक्शे में मैकमोहन लाइन को आधिकारिक सीमा रेखा के रूप में दर्शाया था और इस विवादित क्षेत्र को भारतीय हिस्सा माना था। इसके बाद सन् 1938 ई0 में ब्रिटेन द्वारा अधिकारिक तौर पर शिमला समझौते के प्रकाशन के बाद इस क्षेत्र पर भारतीय अधिकार सिद्ध हो गया था। लेकिन सन् 1949 ई0 में चीनी क्रांति के बाद स्थापित साम्यवादी सरकार ने इस क्षेत्र पर अपना अधिकार जताना आरम्भ कर दिया और तब से लेकर वर्तमान तक यह दोनों देशों के मध्य विवाद का बिंदु बना है।
3. अक्साई चिन – जम्मू-कश्मीर के पूर्वी क्षेत्र में स्थित अक्साई चिन का रणनीतिक दृष्टि से काफी महत्व है। इस पर फिलहाल चीन का कब्जा है, जबकि भारत सदैव से ही इस पर अपना दावा जताता रहा है। अक्साई चिन उइगुर भाषा का शब्द है और इसका अर्थ चिन का सफेद पत्थरों वाला रेगिस्तान होता है (यहाँ चिन का अर्थ क्विंग वंश से है) 5,000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित तिब्बती पठार के इस हिस्से को सोडा मैदान भी कहा जाता है। यहाँ बारिश बहुत ही कम होती है। इस हिस्से में आबादी न के बराबर है (चीनी सैनिकों को छोड़कर)।
     अक्साई चिन 19वीं शताब्दी तक लद्दाख साम्राज्य का अभिन्न हिस्सा था। इसके बाद जब लद्दाख पर ‘कश्मीर’ का नियंत्रण हो गया तो ‘अक्साई चिन’ भी कश्मीर साम्राज्य का हिस्सा बन गया। सन् 1950 ई0 के दशक में अक्साई चिन पर चीन ने कब्जा कर लिया और इस क्षेत्र में होते हुए उसने तिब्बत तक एक सड़क ‘चीन राष्ट्रीय राजमार्ग-219′ का निर्माण शुरू कर दिया। इसी सड़क के निर्माण को लेकर भारत-चीन के सम्बन्ध इस स्तर तक बिगड़े की इसकी परिणति 1962 ई0 के भारत-चीन युद्ध में हुई। अक्साई चिन का दायरा लगभग 38,000 वर्ग किमी0 है। चीन के लिए अक्साई चिन चीन राजमार्ग जिक्यिाँग एवं तिब्बत को जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य करता है और उसके लिए यह मार्ग सामरिक दृष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। स्त्रातजीय दृष्टि से भारत के लिए भी इस क्षेत्र का अधिक महत्व है क्योंकि यह एक ऐसा स्थल बिन्दु है जहाँ रूसी गणराज्य (तजाकिस्तान), अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत व चीन के भू-भाग मिलते है।
4. ब्रह्मपुत्र को मोड़ने की योजना :- चीन वर्तमान में एक ऐसी योजना को अंजाम देने की कोशिश कर रहा है। जिससे भारत की सुरक्षा प्रभावित हो रही है। चीन की मंशा है कि वह ब्रह्मपुत्र नदी से सलााना दो सौ अरब घन मी0, पानी येलो नदी में डाल दें। ब्रह्मपुत्र नदी से पानी लेने की योजना पर चीन पिछले कई वर्षों से कार्य कर रहा है। यह चीन की विशाल ‘साउथ नोर्थ वाटर लिंक’ योजना का हिस्सा है। चीन के इस कोशिश को नदी में ‘पानी की डकैती के रूप में देखा जा सकता है। भारत और बांग्लादेश के लिए ब्रह्मपुत्र पानी के बड़ी स्त्रोतों में से एक है। यदि चीन इस योजना में सफल हो जाता है तो इससे भारत के लिए जल-विज्ञान और भू-विज्ञान सम्बन्धी खतरे पैदा हो जाएंगे। चीन शूमाटन प्वाइंट पर प्रस्तावित बाँध के लिए ब्रह्मपुत्र नदी से पानी लेने की योजना बना रहा है। यह जगह चीन के हिमालय क्षेत्र मे है। यह वह जगह है जहाँ भारतीय और यूरेशियन प्लेटें मिलती है जिसकी वजह से भारतीय क्षेत्र में भूस्खलन या भूकम्प जैसी गतिविधियाँ होने की आशंका ज्यादा रहती है।
5. हिमालय पर चीन का खतरा :- चीन सतलुज और उसकी सहायक नदियों पर तिब्बत में कई बिजली परियोजनाओं का निर्माण कर रहा है। इसके कारण बरसात के मौसम मंे यह नदियाँ हिमाचल प्रदेश में तबाही ला सकती है। दूसरी ओर गर्मियों में इनके कारण पानी का अकाल पड़ सकता है। जानकारी बाँटने के लिए भारत के साथ किये गये समझौते का पालन भी चीन नहीं कर रहा है।
6. तिब्बत का बिन्दु :- चीन के कब्जे में आने से पहले तिब्बत की भूमिका ब्रिटिश भारत और उत्तर-पूर्वी एशियाई देशों के बीच एक ‘बफर स्टेट’ के रूप में थी। उस समय बाहरी विश्व से तिब्बत का जो भी व्यापारिक या सांस्कृतिक सम्पर्क होता था वो भारत के जरिए होता था। सन् 1949 ई0 की चीनी क्रांति से पहले तिब्बत की राजधानी ल्हासा में भारत और चीन के दूतावास स्थापित थे।
        सन् 1892 ई0 में तिब्बत को लेकर चीन ने दावे करने शुरू कर दिए और सन् 1913 ई0 तक उसने कई बार तिब्बत पर कब्जा करने के असफल प्रयास किये। सन् 1913 ई0 में तिब्बत ने स्वतन्त्रता की घोषण कर दी और सन् 1914 ई0 में इस मुद्दे को लेकर शिमला में बैठक हुई। ब्रिटेन, तिब्बत और चीन के बीच हुई इस बैठक में तिब्बत ने संप्रभुता की माँग रखी जिसे चीन ने मानने से इन्कार कर दिया। इसके बाद तिब्बत को आतंरिक व बाहरी तिब्बत में बाँटने का निश्चय किया गया। इसमें से बाहरी तिब्बत पर स्वायत्तता के साथ चीन की सर्वोच्चता स्थापित करने की बात कही गई। लेकिन चीन और आंतरिक तिब्बत के बीच सीमा निर्धारण को लेकर बात बिगड़ गई और चीन इस बैठक से बाहर हो गया। बाद में तिब्बत ने ‘लोचन शात्रा शात्रा’ के नेतृत्व में और ब्रिटेन ने सर हैनरी मैकमिलन के नेतृत्व में द्विपक्षीय ‘शिमला समझौता’ किया और मैकमोहन लाइन अस्तित्व में आई। इस समझौता मे तिब्बत को एक स्वतंत्र राष्ट्र माना गया था न कि चीन का प्रांत। तब से लेकर अब तक चीन मैकमोहन लाइन को नकारता आ रहा है।
        सन् 1949 ई0 में जब चीन में साम्यवादी सरकार बनी तब तिब्बत ने चीन से ल्हासा स्थित चीनी दूतावास छोड़ देने को कहा। इससे चीन और तिब्बत के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए। सन् 1950 ई0 की शुरूआत में चीन ने तिब्बत से शांतिपूर्वक विलय की बात कही और तिब्बत के पूर्व में स्थिति ‘चामदो’ शहर में अपनी सेना इकट्ठी कर ली। 7 अक्टूबर, 1950 ई0 को जब तिब्बती प्रतिनिधि मंडल चीन से वार्ता करने वाला था उसी समय चीन के 80,000 सैनिकों ने तिब्बत पर आक्रमण कर कब्जा कर लिया और विश्व में प्रचारित किया कि हमने तिब्बतियों को साम्राज्यवादी शक्तियों (भारत) के शिकंजे से मुक्त कर दिया। इसके बाद 23 मई 1951 ई0 के दिन चीन ने दलाईलामा से 17 सूत्री समझौते पर जबरदस्ती हस्ताक्षर करवा लिए और तिब्बत पर चीन का अधिकारिक कब्जा हो गया। इस घटना के बाद से दलाईलामा ने भारत में बहुत से तिब्बती लोगों के साथ शरण ले रखी है।
    भारत के पड़ोसी देशों को चीन अपने प्रभाव में लेकर वहाँ भारत विरोध की जमीन तैयार कर रहा है यह स्थिति भारत के लिए खतरनाक होती जा रही है। पहले पाकिस्तान की बात करे तो चीन भारत के खिलाफ पाकिस्तान की नफरत का इस्तेमाल कर रहा है। नेपाल के माओवादी चीन से प्रशिक्षित है, वही से उनको हथियार और पैसा आ रहा है। भारत के खिलाफ साजिश रचने में चीन माओवादियों की भरपूर मदद कर रहा है। बांग्लादेश में चीन भारी मात्रा में पैसो का निवेश कर रहा है जिससे कि वह आगे चलकर भारत के विरूद्ध उसके बंदरगाह का प्रयोग कर सके। श्रीलंका में अनबटोटा में नौसेना का बंदरगाह चीन के सहयोग से बनाया जा रहा है।
     यह स्थिति भारत के लिए सामरिक दृष्टि से उचित नहीं है। सिक्किम के उत्तरी हिस्से में फिंगर टिप पर अगस्त 2009 के दूसरे पखवाड़े में चीन ने 1966 ई0 के द्विपक्षीय समझौते का उल्लंघन करते हुए गोलाबारी की जिससे दो जवान गम्भीर रूप से घायल हो गये। इस घटना से कुछ ही समय पहले ही 31 जुलाई, 2009 को लद्दाख में चीनी सैनिको ने घुसपैठ की और भारतीय सीमा के अंदर लाल झंडे लगाकर पत्थरों पर अपनी भाषा में चीन लिखने की हरकत की। चीन ढाई सौ से ज्यादा बार भारतीय सीमा का अतिक्रमण कर चुका है। ऐसी विषम परिस्थितियों में भारत को चीन के विरूद्ध ठोस कदम उठाने होंगे। क्योंकि चीन सिर्फ शक्ति की भाषा ही समझता है और अगर हम यह समझते है कि हमारी दोस्ती की भाषा से चीन प्रसन्न हो जाएगा तो ये हमारी सबसे बड़ी भूल होगी।
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टिप्पणियाँ

  1. भारत कि विदेश निति फेल होने क़े करण सभी पडोसी देश भारत बिरोधी होते जारहे है चीन अपनी रोटिय सेक रहा है आखिर कौन सा करण है कि जो देश हम पर निर्भर है वे भी हमें आखे दिखाते है मालद्वी जैसे देश हमारे देश क़े खिलाडियों क़े कोई भी अध्यात्मिक चित्र एयरपोर्ट पर ही उतरवा देता है ,हमें नेहरु कि विदेश निति से बाहर निकल एक नयी निति बनाना चाहिए.

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