राहुल गांधी की राजनैतिक अपरिपक्वता,जगमोहन जैसा राज्यपाल लगायें
- अरविन्द सीसोदिया
कश्मीर के मुख्य मंत्री उमर अब्दुल्ला को और समय और सहयोग देने की बात कर राहुल गांधी ने राजनैतिक अपरिपक्वता का परिचय दिया है...! समस्या से मुह मोड़ लेना समस्या का हल नहीं होता, इस वक्त यह स्थपित सत्य है क़ी उमर विफल हो चुके हैं .., उन्हें बनाये रखना खतरे से खाली नही है.., वहां सरकार निलंवित कर जगमोहन जैसा राज्यपाल लगा कर स्थिती नियंत्रित करनी चाहिए..!
राहुल गांधी जो वंश परंपरा कि एक नई पीढी के अवतार हैं .., मूलतः राजनैतिक समझ में परिपक्व होने चाहिए.., मगर अभी तक उनके द्वारा किये गए विविध प्रकार के क्रिया कलापों में वह बात नजर नहीं आई जो इस तरह के परिवार में जन्में एक व्यक्ति में होनी चाहिए..! युवा क़ी जहाँ तक बात करें तो अब राहुल (40 वर्ष) उस एज ग्रुप से तो बहार होते जा रहे हैं ..! भावनाओं की बात कहें तो यह समझ में आता है कि युवा वर्ग पर्याप्त मात्रा में हो.., और वह कहाँ हो .., मुझे लगता है क़ी पंचायती राज और पालिकाओं के सिस्टम में जनप्रतिनिधित्व वर्ग ५० से कम ऊम्र का होना चाहिए.., मगर जवावदेह पदों पर अनुभव कि दरकार को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता.., वह भी अंतरराष्ट्रीय कुस्त्ती का मैदान बनें कश्मीर में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर..! राहुल ने जब उमर को मुख्यमंत्री बनवाया था , तब लगता था कि वे संभाल लेंगे.., मगर सब कुछ गड़बड़ होता गया.., लगता ही नहीं कश्मीर में कोई मुख्यमंत्री है.., भारत सरकार भी कोई ज्यादा परिपक्वता से फैंसले लेते हुए नजर नहीं आई.., य़ू पी ए -२ के कार्यकाल में तो हर मामले पर ये फेल है..,
राहुल गांधी (जन्म: 19 जून 1970) और उमर अब्दुल्ला (10 मार्च 1970 )दोनों का जन्म 1970 में हुआ था। वे ऐसे राजैतिक खानदानों में जन्मे, जिन्हें भारत की राजनीति में विशेषाधिकार हासिल हैं। 1971 में जब पाकिस्तान से जंग छिड़ी और उसके बाद शिमला समझौते पर दस्तखत किए गए, तब वे चलना भी नहीं सीखे थे। 1975 में जब शेख अब्दुल्ला-इंदिरा गांधी समझौते पर दस्तखत किए गए, तब उन्होंने स्कूल जाना भी शुरू नहीं किया था। एक मायने में वे 70 के दशक के उतार-चढ़ाव भरे घटनाक्रम से अप्रभावित थे। फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाले उमर और राहुल ने अच्छे स्कूलों में तालीम हासिल की और वे विलायत में खासा वक्त बिता चुके थे। कश्मीर और भारत इन के लिए राजनैतिक सुखभोग की भूमि है..! मन बहलाने का खिलौना है.., अन्यथा गुणवत्ता क़ी चर्चा क्यों नही होती..?
महज दो सालों के भीतर तस्वीर बदल गई। उमर अब्दुल्ला अब रक्षात्मक भूमिका में हैं। उनकी टेक्नोक्रेट स्टाइल को अलग-थलग और संवेदनहीन बताकर उसकी आलोचना की जा रही है। उन्हें सत्ता से बेदखल करने का अभियान शुरू हो गया है। उनकी पार्टी , सहयोगी पार्टी के लोग लगभग खुल कर चला रहें हैं..! कश्मीर की सड़कों पर पिछले तीन माह से जारी हिंसा की वारदातों को उमर विरोधी आंदोलन के रूप में देखा जा रहा है। युवा तुर्क की उम्मीदों की सुबह सूर्यास्त के झुटपुटे में गुम गई।
राहुल गांधी अभी तक भाग्यशाली साबित हुए हैं। 2009 के चुनाव में यूपीए बहुमत जुटा लेने के बाद भी प्रधानमंत्री नहीं बनने का फैसला उनके लिए रक्षाकवच साबित हुआ। उनकी कर्मभूमि उत्तरप्रदेश में मायावती और बसपा ने हाल ही में हुए उपचुनावों में सभी सीटों पर जीत दर्ज की है, जबकि उनके नेतृत्व में एनएसयूआई ने तकरीबन आठ सालों बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी के चुनाव में हार का सामना किया।
पाकिस्तान में एक राजनैतिक ट्रेंड है क़ी भारत को गाली दो और राज करो...! देश की जनता भी साथ , फोजें भी साथ और पश्चमीदेशों से खूब धन वर्षा...!! चीन भी खुश .., और भी बहुत कुछ...!! यही काम कश्मीर में शेख अब्दुल्ला करते रहे हैं.., उन्होंने जवाहरलाल नेहरु के खास दोस्त बन कर अपनी राजनीति जमाई.., कांग्रेस के सहयोग से कश्मीर में जमें .., नेहरु जी की मदद से कश्मीर के प्रधान मंत्री बनें.., फिर वही किया जो आज सड़कों पर हो रहा है.., भारत से विद्रोह के तूफान खड़े किये गए.., नेहरु जी ने उन्हें पकड़ कर जेल में डाला.., आज जो भी कश्मीर में हो रहा है वह सभी कुछ इन दो सालों में ही पुनः उठ खड़ा हुआ है.., इससे पहले कश्मीर पटरी पर था यह बात विश्व समुदाय स्वीकार कर रहा था.., वहां शांती का माहोल बन गया था जो कुछ बिगाड़ा है वह अभी के २ सालों में ही बिगाड़ा है.., उमर साहब के दो साल ही कश्मीर को बिगड़ने के लिए जिम्मेवार हैं , उनके द्वारा ३ माह में एक भी इस तरह का फैसला नहीं आया क़ी उनकी दूरदर्शिता दिखा सके..! इस पर राहुल गांधी के द्वारा उमर का पक्ष लेना गलत ही है..! इसके परिणाम और भी कुछ गलत होने की आशंका को जन्म देता है..!! यह अपरिपक्वता है..!!
agreed , we need a Dutch uncle in Kasmir
जवाब देंहटाएंराहुल गाधी क़ा बयान ऊमर को बचाने वाला है सेकुलर निति ही भारत क़े लिए घटक है कैथोलिक पुत्र राहुल से कोई उम्मीद करना भरी भूल होगी कश्मीर में कोई प्रतिनिधि मंडल भेजने की कोई आवस्यकता नहीं है क्यों की जो आतंकबादी है वे बार्ता क़ा बहिस्कार करेगे उनकी माग तो स्वतंत्रता है क्या हम अब देश क़ा एक और टुकड़े करना चाहते है वास्तव में धारा ३७० हटाकर वहा क़ा बज़ात रोक देने से आतंकबाद बंद हो सकता है भारत क़े धन से भारत बिरोधी युद्ध छेद रखा है कश्मीरियों ने युद्ध छेद रखा है युद्ध क़ा मुकाबला अनुदान देने से युद्ध नहीं रुकता उसके लिए युद्ध लड़ना पड़ता है .
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