स्विस बैंकों में, क्या काला धन कांग्रेस का है ...?

- अरविन्द सीसोदिया
क्या काला धन कांग्रेस का है ...?
स्विसबेंक उसी के धन से अटे पड़े हैं ...??
धन वापसी के ईमानदार प्रयत्न क्यों नहीं...???
और कौन कौन इसमें शामिल हैं....????
अभी बहुत जोर शेर से प्रचारित किया जा रहा है कि स्विट्जरलेंड सरकार से समझौता हो गया है, अब काला धन वापस लाना संभव होगा , मगर यह असलियत नहीं है , इस संदर्भ में लोक सभा में लाल कृष्ण आडवानी जी के प्रश्न के जबाब में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के लोकसभा में दिए बयान के बाद स्पष्ट हो गया है कि यह समझौता स्विस बैंकों में पूर्व में जमा कराए धन पर लागू नहीं होता है। इस समझौते के तहत दोनों देश सीमित तौर पर ही सूचनाओं का आदान-प्रदान कर सकेंगे, जिसका उपयोग भी दोहरे कराधान को रोकने में किया जा सकेगा। स्विस सरकार बैंकिंग लेन-देन से संबंधित किसी प्रकार का खुलासा नहीं करेगी।
     प्रणब मुखर्जी की इस स्वीकारोक्ति के बाद सवाल यह उठता है कि जब सरकार समझौता कर रही थी, तो इस तरफ उसका ध्यान क्यों नहीं गया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले ऐसे किसी भी द्विपक्षीय समझौते में राष्ट्रीय हित सवरेपरि रहते हैं। ऐसे में सरकार स्विस बैंकों में जमा काला धन किसका है, यह जानकारी हासिल करने का बिंदु कैसे भूल सकती है?यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि भले ही स्विस सरकार और हमारे वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी बैंकिंग सूचनाओं के लेन-देन के क्रम में नियम-कायदों का हवाला दें, लेकिन अमेरिका ने जब चाहा है उसे स्विस बैंकों ने जानकारी उपलब्ध कराई है। ऐसा इसलिए संभव हो पाया है कि अमेरिका ने इस बारे में दृढ़ता दिखाई, जबकि हमारी सरकार ऐसा करने में नाकाम रही। इससे तो उसकी मंशा पर ही सवाल उठता है कि उसने काले धन की वापसी के लिए प्रयास दृढ़ इरादों के साथ किए ही नहीं।

     बात उस समय की है जब प्रधानमंत्री राजीवगांधी थे और उनके मंत्रीमंडल से वरिष्ठ मंत्री वी पी सिंह ने बोफोर्स तोप सौदों में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया था, राजीव के नेतृत्व में कांगेस अगला चुनाव हार गई थी , वी पी सिंह प्रधानमंत्री बने थे ..! तब यह बात सामने आई थी कि राजीव गांधी के नाम से काला धन स्विस बैंक में जमा है, एक किसी विदेशी पत्रिका ने कुछ प्रभावशाली लोगों के फोटो सहित कोई राशी भी छपी थी , उस पत्रिका की खबर पर न तो कांग्रेस ने और ना ही राजीव ने कभी खंडन किया और न ही मानहानी आदी का नोटिस ही दिया ..! इस तरह के मामले में स्पष्टता से खुल जाने पर भी कुछ नहीं होने से...., कालेधन को प्रोत्साहन मिला और इतना प्रोत्साहन मिला कि आज पूरे विश्व में भारत सबसे ज्यादा काला धन जमा करवाने वाला देश है...!
        - एस. गुरूमूर्ति ने जब स्विस बैंको में जमा कालाधन का मामला उठ रहा था तब यह लेख लिखा था जो आज भी प्रासंगिकता रखता है, इसके निम्न अंशों को पुनः पढना उचित होगा ,तब ही यह मामला समझ में पूरी तरह से आयेगा .....
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान दोनों प्रतिद्वंद्वी धड़ों मित्र राष्ट्र और धुरी राष्ट्रों से उसकी ( स्विट्जरलैंड ) दोस्ती थी। लेकिन नेपोलियन के समय से ही सभी का मित्र रहा तटस्थ देश स्विट्जरलैंड आज मित्रविहीन हो गया है। इसका सबसे बड़ा आकर्षण थी कानून से संरक्षित वित्तीय गोपनीयता, वही आज उसके लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन गई है। सबसे पहले जर्मनी, उसके बाद फ्रांस, अमरीका और अब इंग्लैण्ड अलग-अलग और मिलकर भी गोपनीय बैंकिंग और स्विटजरलैंड जैसे करवंचकों के विरूद्ध युद्ध की घोषणा कर चुके हैं। मीडिया के अनुसार यह पश्चिम का स्विट्जरलैंड के विरूद्ध धर्मयुद्ध है। करवंचकों के स्वर्ग (टैक्स हैवन) में अनिवासियों को न तो आयकर देना पड़ता है और न वहां के बैंक जमा कराए जा रहे धन के बारे में कोई प्रश्न ही पूछते हैं। आधुनिक पूंजीवाद गोपनीय बैंकों की अब तक अनदेखी करता रहा है। लेकिन अब पश्चिम देशों के निशाने पर अल कायदा की तरह ही गोपनीय धन भी है।
यह चमत्कारिक परिवर्तन क्यों हुआ इसका संक्षिप्त उत्तर है "वित्तीय संकट"। ब्रिटिश समाचार पत्र "गार्जियन" ने पिछले महीने ही लिखा है "यूरोपीय देशों के नेता इस बात से बेहद चिंतित हैं कि टैक्स हैवन गोपनीयता को प्रोत्साहित कर दुनियाभर के बैंकों के ढहने में योगदान कर रहे हैं।"

  स्विस बैंकों के विरूद्ध मुहिम का श्रीगणेश जर्मनी ने 2008 के शुरू में तब किया, जब उसकी खुफिया एजेंसी को घूस की जानकारी जुटाने के लिए भी घूस देनी पड़ी। लीयटेन्सटिन स्थित एलजीटी बैंक के एक मुखबिर ने घूस लेकर एक गोपनीय सीडी उपलब्ध कराई, जिसमें लगभग डेढ़ हजार करवंचकों के नाम थे। इनमें से लगभग आधे जर्मन थे, जिनके यहां छापे मारे गए। दूसरे देशों के जिन लोगों के नाम इस सीडी में थे, उन्हें मुफ्त में इसकी जानकारी उपलब्ध कराने की पेशकश जर्मनी ने की। इस पर कई देशों ने पहल कर अपने-अपने देश के लोगों के नाम जान भी लिए। उसके बाद 2008 की तीसरी तिमाही में जर्मनी ने आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) पर दबाव डाला कि वह करवंचकों का बचाव करने वाले स्विट्जरलैंड को काली सूची में डाल दे।
        अमरीका की घुड़की और भी जोरदार थी। अठारह फरवरी को अमरीकी आंतरिक राजस्व विभाग ने सबसे बड़े स्विस बैंक यूबीएस को मुकदमा ठोकने की धमकी दी। अमरीका का कहना था कि बैंक ने यदि लगभग तीन सौ अमरीकी करवंचकों के नाम उजागर नहीं किए तो मुकदमा ठोककर वह यूबीएस को दिवालिया कर देगा। डर कर यूबीएस ने किसी स्विस अदालत से स्थगनादेश मिलने से पहले ही समर्पण कर अमरीका को गोपनीय आंकड़े उपलब्ध करा दिए। इस सबसे घबराए स्विस वित्तमंत्री पिछली 14 मार्च को ब्रिटिश प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन से मिले और अपने देश को जी-20 की बैठक में काली सूची में डालने की पहल रोकने के लिए समझौता किया।
समझौते के तहत स्विस बैंक ओईसीडी देशों के बैंक पारदर्शिता नियम अपनाएंगे। ब्राउन का दावा है कि यह बैंकिंग गोपनीयता के अंत की शुरूआत है। अमरीका तो इससे भी आगे जाकर बैंकिंग गोपनीयता को दण्डनीय बनाने के लिए कानून बनाने का दबाव डाल रहा है।
  पश्चिम में जब स्विस बैंकों के खिलाफ अभियान सफल हो रहा है, तब यहां मनमोहन सिंह और उनकी सरकार इसका जश्न मनाने के बजाय अमरीका व पश्चिम की सफलता से चिंतित लगती है। इसके तीन प्रमाण हैं।
- पहला तो यह कि जब जर्मनी के वित्त मंत्रालय ने एलटीजी बैंकसे मिली गोपनीय सूचनाएं किसी भी देश को मुफ्त उपलब्ध कराने की पेशकश की तो मनमोहन सिंह सरकार ने जानकारी नहीं मांगी, हालांकि ऎसी सूचनाएं थीं कि इसमें लगभग सौ भारतीयों के नाम हैं। पिछले साल अप्रेल में जब लालकृष्ण आडवाणी ने डा. सिंह को पत्र लिखकर जर्मनी से जानकारी लेने का आग्रह किया तो भी वित्त मंत्री ने कोई कार्रवाई नहीं की। साफ है कि सरकार जानकारी लेने से कतरा रही है।
- दूसरा, बर्लिन में हुई जी-20 की तैयारी बैठक में जर्मनी और फ्रांस ने स्विस और अन्य गोपनीय टैक्स हैवन्स को काली सूची में डालने की धमकी दी, तो भारत ने चुप्पी साध ली। भारत बैंकिंग गोपनीयता के प्रमुख पीडि़तों में एक है, उसे तो बैंकिंग गोपनीयता के विरूद्ध युद्ध का नेतृत्व करना चाहिए। युद्ध छेड़ना तो दूर भारत युद्ध छेड़ने वालों को नैतिक समर्थन तक नहीं दे रहा।
- तीसरा, जब पिछले रविवार को लालकृष्ण आडवाणी ने डा. सिंह से कहा कि वे जी-20 में बैंकिंग गोपनीयता खत्म करने के प्रयासों में शामिल हों, तो प्रधानमंत्री ने कोई प्रतिक्रिया नहीं जताई। कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि जी-20 इसके लिए उचित मंच नहीं है। वे इसकी जानबूझकर अनदेखी कर गए कि जी-20 शिखर बैठक की मुख्य कार्यसूची में ही यह विषय शामिल था।
    डा. सिंह की मजबूरियां समझना मुश्किल नहीं है। 1987 में सत्तासीन परिवार ने जिस डर से विदेश में छिपे भारतीय धन की जांच रूकवा दी थी, वह अब भी कायम है। विदेश में जमा भारत का गुप्त धन स्वदेश वापस लाने को चुनावी मुद्दा बनाने की आडवाणी की चेतावनी से मनमोहन सिंह और उनकी पार्टी मुश्किल में पड़ गई है।
 गुरुमूर्त्त के इस लेख से इतना  तो समझ में आगया कि माजरा क्या है |
अब हमें अलग अलग स्तरों से प्राप्त तथ्यों को समझना होगा, क्यों कि यह मामला देश की कितनी बड़ी बर्बादी और देश द्रोहीता से जुड़ा है.....,
स्विस बैंकों में काला धन -
स्विस बैंकिंग एसोसिएशन रिपोर्ट, 2006 के विवरण में  स्विट्ज़रलैंड के राज्यक्षेत्र में निम्नलिखित देशों के नागरिकों के द्वारा बैंक जमा,शीर्ष पांच :-
भारत 1456 अरब $
रूस 470 अरब $
ब्रिटेन 390 अरब $
यूक्रेन 100 अरब $
चीन 96 अरब $
भारत 1,456 अरब $ या 1.4 ट्रिलियन $ के साथ दुनिया के संयुक्त देशो से ज़्यादा पैसा स्विस बैंकों में जमा करने मे अग्रेसर हे. यह 1947 के बाद से जारी  सार्वजनिक लूट है , कुछ वित्त विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों का मानना है कि  यह   गरीब देशों के खिलाफ पश्चिमी दुनिया के एक षड्यंत्र होने का प्रमाण  है. बीसवीं सदी में कर वाले देश के प्रसार को अनुमति दे के विकासशील देशो की पूंजी को धनी देशो मे ले जाने का ये एक षड्यंत्र  हे जिससे विकासशील देशो का अर्थ तंत्र प्रभावित हो. मार्च 2005 में, कर न्याय नेटवर्क (टी जे एन )ने संशोधन कर के ढूँढा कि $ 11 .. 5 खरब काली निजी संपत्ति दुनिया भर के अमीर व्यक्तियों द्वारा उपार्जित की गई हे,जिसका प्रदर्शन प्रकाशित किया गया.
  यह अनुमानित निष्कर्ष है कि इस धन का एक बड़ा हिस्सा कुल 70 कर वाले देश से प्रबंधित किया गया . इसके अलावा, टी जे एन के इस संशोधन को रेमंड बेकर के व्यापक रूप से है,  पुस्तक 'पूंजीवाद के अकिलीस एड़ी: गंदा धन और कैसे मुक्त बाजार प्रणाली' -मे बताया गया हे की कम से कम 5 खरब $ गरीब देशों में से 1970 के मध्य के बाद से पश्चिम  मे स्थानांतरित किया गया है. मूलतः यह गैर इसाई देशों के नागरिकों को बी पी एल स्तर की गरीवी में धकेलने का माध्यम है, देश के हित के बजाय दूसरे देश में अपने हित के लिए जमा है . इस शुद्ध लूट को अभीतक भी जायज बनाये रखना भी तो षडयंत्र  है...!!  जब बहुत  बड़े देशों के बड़े बड़े बैंक धराशाही होने लगे तब चेता गया , अन्यथा इस आपराधिकता को कानूनी मानते रहना भी तो विश्व समुदाय कि बदमाशी ही तो थी .
  यह भी एक विशेषज्ञों का अनुमान हे की वैश्विक जनसंख्या के 1 प्रतिशत लोगो के पास कुल वैश्विक संपति के 57 प्रतिशत से अधिक संपत्ति है जो ऐसे देशो की बैंक  मे जमा पड़ी हे. इसमे से भारत की कितनी संपत्ति  हे ये अनुमान का विषय हे. मगर वह इस तरह का धन जमा करवाने वालों में सर्व प्रथम है...!
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  भारत से भ्रष्टाचार के जरिये जो भी कमाई होती है उसका बहुत  बड़ा हिस्सा सीधे स्विस बैंक में पहुंच जाता है। लगभग पांच साल में यह काला धन दोगुना हो जाता है। इस अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार भारत से अकेले 2002-2006 के दौरान 1 लाख 36 हजार 466 करोड़ रुपए स्विस बैंकों में जमा किया गया । ये जरूरी नहीं कि भारत का सारा काला धन स्विस बैंक में ही जमा हो। ये धन कई देशों के बैंकों मे जमा हैं, जहां जमा धन पर कोई कर नहीं लगाया जाता और गोपनीयता पूरी बरती जाती है। हां यह सत्य है पूरे विश्व से कालेधन का एक तिहाई से अधिक हिस्सा अकेले स्विस बैंक में जमा है। हालांकि भारत से विदेशों में काला धन भेजने की परंपरा नेहरू के जमाने से ही शुरू हो गई थी। इस संबंध में जो भी दस्तावेज सामने आए हैं उनमें सबसे विश्वसनीय दस्तावेज देव कार और देवोन राइट्र्स स्मिथ द्वारा जारी 2002-2006, ए ग्लोबल फाइनेंशियल इंटेग्रेट रिपोर्ट ही है। इसे फोर्ड फाउंडेशन ने प्रायोजित किया था। इस रिपोर्ट में यह बताया गया है कि किस तरह गैरकानूनी ढंग से कमाए गए धन, जिनमें घूस और कमीशन खोरी प्रमुख रूप से शामिल है, देश से निकालकर विदेशों में पहुंचाया गया। इस काले धन के कारण न सिर्फ सरकार को कर का नुकसान होता है बल्कि देश की संपदा विदेशों के काम आती है। देश का विकाश अवरूध होता है और विदेशी इस धन से अपना विकाश करते हैं .., बिना ब्याज के ...!!
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Saturday, November 1, 2008

स्विस बैंक एसोसियेशन की रिपोर्ट: 2008
टॉप फाइव जमाकर्ता देश:
भारत 1891 अरब डॉलर (Rs. 94,000 अरब approx.)
रूस 610 अरब डॉलर
चीन 213 अरब डॉलर
ब्रिटेन 210 अरब डॉलर
उक्रेन 140 अरब डॉलर
बाकी दुनिया 300 अरब डॉलर
   यहाँ उल्लेख  है कि इन स्विस और स्विस स्टाइल देशों में  जमा भारतीयों की संपत्ति का अधिकांश पैसा भ्रष्ट तरीके से अर्जित नाजायज है. स्वाभाविक है कि गोपनीयता ऐसे स्थानों में बैंक खातों के साथ जुड़े इस मुद्दे करने के लिए, शब्द 'कर वाले देश' के रूप में उनकी कम कर दरों केंद्रीय नहीं है.बोफोर्स को याद की जी ये की ऐसी गोपनीयता इन बैंक खातों के साथ जुड़ने की वजह से उन लेन देनों के अंतिम लाभार्थी को भारत ट्रेस नहीं कर सका है.
- भारत में स्विस बैंक के खातों की चर्चा होते ही करप्शन और साजिश की बू आने लगती है। पिछले दो साल से स्विस बैंक असोसिएशन का एक डेटा चर्चा में है। इसके मुताबिक, स्विट्जरलैंड में स्थित बैंकों में भारतीयों का लगभग 14.56 खरब डॉलर जमा है। इसके मुकाबले रूसियों का 4.70 खरब डॉलर पैसा स्विस बैंक में जमा है। बाकी देश रईसी की इस होड़ में काफी पीछे हैं। मगर २००८ में यह धन  भारत के नाम  1891 अरब डॉलर (Rs. 94,000 अरब approx.) हो गया था अब तो इसमें ५०० अरब  डालर और जुड़ गए होंगे...!!

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जर्मन की कार्यवाही जैसा हमारा दम नहीं......, 
जर्मनी में एक शख्स के सरकार को 35 लाख डॉलर के एवज़ में डेढ़ हज़ार जर्मन नागरिकों के स्विस बैंक अकाउंट्स की जानकारी देने की पेशकश पर जर्मनी की चांसलर एंगेला मर्केल ने कहा है कि जर्मनी को टैक्स चोरी करने वालों के बारे में जानकारी जुटाने की हर मुमकिन कोशिश करेगी. मैं ( एंगेला मर्केल, जर्मन चांसलर ) टैक्स चोरी पर लगाम लगाना चाहती हूं. अगर कोई जानकारी दे रहा है तो हमें इसे लेना चाहिए. जर्मनी के वित्त मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने इस मुद्दे पर फ़ैसला लेने के लिए दो साल पुराने मामले का हवाला दिया है. तब जर्मनी ने एक हज़ार टैक्स चोरी करने वालों की जानकारी के एवज़ में क़रीब 70 लाख डॉलर दिए थे.
  इस गोपनीय जानकारी को ख़रीदने पर कई दिनों से राजनेताओं, पादरियों और सुरक्षा अधिकारियों के बीच बहस छिड़ी हुई है.वैसे आर्थिक दृष्टिकोण से ये बुरा सौदा नहीं होगा. इस शख्स को 35 लाख डॉलर के बदले मिलने वाली इस जानकारी से जर्मन सरकार सौ करोड़ डॉलर तक वसूल सकती है.
--- ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट में हमें भ्रष्टाचार के मामले में 85 वां स्थान मिला है जो की ऊपर दिए गए आंकडों को देखते हुए काफी सम्मानजनक है, स्थिति और भी ज़्यादा गंभीर है. यह 85 वां स्थान हमारी बेईमानी को उजागर नहीं करता बल्कि उसे ढंकता है, भारत का स्विस बैंकों में पड़ा सड़ रहा यह काला धन 1891 अरब डॉलर है, जो की भारत के सभी बैंकों की कुल संपत्ति के जोड़ से भी ज़्यादा है! यदि इस धन को भारत ला कर गरीवों में बांटा जाये तो प्रत्येक गरीब को २ लाख रूपये से भी ज्यादा का भुगतान हो सकता है ...!!
अर्थात देश में सत्ता संरक्षित भ्रष्टाचार जिन्दावाद....!!

टिप्पणियाँ

  1. खून खौल जाता है जब बात आती है काँग्रेस कि तो, आज तक देश के लिए काँग्रेस ने किया क्या है जो अब करेगा | देश को नर्क को ओर धकेलने का कदम हमेशा रहता है | इन्हें सिर्फ मतलब है कि कैसे मेरी कुर्सी बची रहे भले ही ये कुर्सी नर्क कि ही क्यों ना हो| थू है ऐसे अपने देश के नेताओ पर, अगर मेरा देश नेताविहीन हो तो स्वर्ग हो जाय |

    आप के पोस्ट से बहुत ही अच्छी जानकारी मिली . आशा है आगे भी मिलती रहेगी|
    जय श्री राम

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