७० मौतों ( हत्या ) के बाद.? राजस्थान सरकार जागी..!
मुख्य कारण मरीजों पर भाषाई अत्याचार,
डॉक्टरों की हड़ताल और मरीजों की मौत
जायज नहीं इस तरह की हड़ताल
- अरविन्द सीसोदिया
* मेरा मानना है की नागरिक जीवन रक्षा से जुड़े जितनें भी कार्य हैं उनमें ४८ घंटे का नोटिस दिए बिना हड़ताल गैर कानूनी होनी चाहिए..! किसी भी व्यक्ती के जीवन से खिलवाड़ का अधिकार किसी को भी नही है तो चिकित्सकों को कैसे हो सकता है... उनकी हड़ताल से हुई मौतें हत्या हैं....!!
* सरकार ने जो कदम ७० मौतों के बाद उठाये वे पहले दिन उठाने में क्या कठनाई थी ...? परोछ रूप से राज्य सरकार और उसका मुख्यमंत्री भी जिम्मेवार है...!!
* केंद्र सरकार को चिकित्सा शिक्षा में देश की भाषाओँ में भी व्यावहारिक जहाँ देना चाहिए...!! इस संदर्भ में नागरिक द्रष्टिकोण से भी विचार होना चाहिए..!!
* प्रत्येक चिकित्सालय में अधिकतम सूचनाएं और जानकारियां समझमें आने वालीं भाष्ह में हो इया तरह का ध्यान रखा जाये..!!
में प्रतिदिन न सही तो भी ३० में से २० दिन किसी न किसी कारण से चिकित्सालयों में जाता हूँ, सरकारी और निजी ; दोनों ही प्रकार के चिकित्सालयों में जाना होता है और दोनों के ही व्यवहार में जमीन आसमान का फर्क है , यह फर्क सकारात्मक व्यवहार और सझने का है, निजी क्षैत्र में मरीज और उसके परिजनों को पूरी तरह से विश्वास में लिया जाता है, जब कि सरकारी क्षैत्र में इस तरह के सद्व्यवहार कि बहुत ज्यादा कमी जाती है ....! इससे भी ज्यादा कहर तब होता है जब डाक्टर साहब का पर्चा न तो मरीज और न ही मरीज के परिजन की समझ में आता है, उसमें लिखी जांच, जांच का निष्कर्ष और निदान, शल्य चिकित्सा या दबाईयाँ ...!! न परहेज पता चलते न समय बधता का पता चलता , कारण यह है कि एक डाक्टर पर आप ४० मरीज छोड़तें है , वह नीचे पर , फिर कंपोंडर पर कुल मिला कर किसी रोगी के मरीज ने दो बार बोतल बदलने कि कह दिया तो उसकी उपेछा शिरू ..., किसी नेता का फोन आगया तो उसको दूसरे अस्पताल में रेफर कर दिया जायेगा या छुट्टी दे दी जायेगी...!! कुल मिला कर मरीज को समझनें और समझाने का है...!! इसमें जो गेप है वो ही सारी जड है, अपनी की भाषा में सारी दुनिया के लोग इलाज करवाना चाहते हैं , ज्यादातर देशों में नागरिकों को अपनी भाषा में इलाज उपलब्ध है , सबसे बड़ी बात यह है की जब हम बच्चों को १००० पेज की अंग्रेजी पुस्तकें याद करबाते हैं तो अपनी भाषा में इलाज याद क्यों नहीं करवा सकते ...!! उन्हें जो कुछ हिन्दी में लिखवाया जा सकता है वह हिन्दीं में क्यों नहीं लिखवा सकते ...!! ६० साल बाद भी भाषी गुलामी शर्मनाक है...!
ख़ैर यदी मरीज का इलाज किये जाने वाला परचा , हिन्दी या अन्य राज्यों में वहां की प्रांतीय भाषा में हो तो बहुतसी बातें मरीज और उसके परीजनों को स्वंय समझ में आजाये !
बातको समझने के लिए कुछ उदाहरन ....
**** एक विशेष मामला - हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा
जबलपुर। हाईकोर्ट ने मध्य प्रदेश राज्य सरकार से पूछा है कि जूनियर डॉक्टर की हड़ताल की पुनरावृत्ति नहीं हो, इसके लिए क्या ऎहतियाती कदम उठाए जाएंगे। एक पत्र याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश एसआर आलम एवं न्यायाधीश आलोक अराधे की खंडपीठ ने राज्य शासन को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है। मध्यप्रदेश के सभी मेडिकल कालेजों में जूनियर डॉक्टर की हड़ताल को चुनौती देते हुए इंदौर के एसपी आनंद ने मुख्य न्यायाधीश को तार भेजा था। तार को जनहित याचिका के रूप में स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने शासन को उक्त निर्देश दिए। याचिका में कहा गया कि जूडा हड़ताल भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का खुला उल्लंघन है, जो कि नागरिक को मानवोचित सम्मान के साथ जीवन जीने का अधिकार देता है। याचिका में कहा गया कि हड़ताल के चलते कई मरीजों की मौत हो गई। सुनवाई के दौरान शासन की ओर से बताया गया कि हड़ताल समाप्त हो गई है। दो दिन पूर्व सरकार ने हड़तालियों को 48 घंटे का अल्टिमेटम दिया था। न्यायालय ने पूछा कि भविष्य में इस तरह की परिस्थिति उत्पन्न नहीं हो, इसके लिए सरकार ने क्या इंतजाम किए हैं। सुनवाई के दौरान शासन की ओर से उप महाधिवक्ता कुमारेश पाठक एवं संजय द्विवेदी उपस्थित हुए।
अन्य घटना क्रम ....
1- राजस्थान प्रदेश में रविवार से चल रही डॉक्टरों की हडताल आखिर मंगलवार (०७-०९-२०१० ) शाम समाप्त हो गई। हडताली डॉक्टरों की मांग पर सरकार ने जोधपुर शहर की अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट स्नेहलता पंवार और अपर पुलिस अधीक्षक शहर राजेश सिंह को पद से हटा दिया है। इस सम्बन्ध में आदेश जारी होने के बाद रेजीडेंट डॉक्टरों, मेडिकल टीचरों विद्यार्थियों सहित सभी डॉक्टरों ने अपनी हडताल समाप्त कर दी।
2- राजधानी दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में एक महिला डॉक्टर के साथ हुई रात हुई हाथापाई की घटना को लेकर उत्तेजित 700 से अधिक रेजीडेन्ट डॉक्टर हड़ताल पर चले गए। रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के महा सचिव डॉक्टर राज ने बताया कि अस्पताल में कल रात एक महिला डॉक्टर के साथ रोगी के परिजनों द्वारा किए गए अभद्र व्यवहार और धक्का मुक्की की घटना से नाराज रेजीडेंट डॉक्टर हड़ताल पर चले गए।
अधिकतर रेजिडेंट डॉक्टरों का कहना है कि अस्पताल में इस प्रकार की स्थिति से निपटने के लिए पर्याप्त सुरक्षा के इंतजाम नहीं है जबकि अस्पताल प्रशासन का कहना है सुरक्षाकर्मियों की भर्ती के लिए दो माह पूर्व निविदाएं जारी की जा चुकी हैं। रेजिडेंट डॉक्टरों के हड़ताल पर चले जाने के कारण चिकित्सा सेवाएं अस्तव्यस्त हो गईं हैं।
3- मुंबई के केईएम अस्पताल के डॉक्टर हड़ताल पर ( २४-०८-२०१०)
एक डाक्टर की पिटाई को लेकर करीब साढे पांच सौ डॉक्टर हडताल पर चले गए हैं. अस्पताल के जनरल वार्ड सहित ओपीडी पूरी तरह ठप्प हो गई है. जिसका खामियाजा अस्पताल के मरीजों को भुगतना पड़ रहा है. डॉक्टरों ने कहा है कि वो इमरजेंसी वार्ड में भी काम नहीं करेंगे. दरअसल, एक मरीज की मौत से भड़के उसके परिवारवालों ने अस्पताल के एक डॉक्टर की जमकर पिटाई की थी. इस पर कार्रवाई की मांग को लेकर डॉक्टर हड़ताल पर चले गए हैं.
ये घटनाएँ यह बतातीं हैं कि चिकित्सक हड़ताल पर कभी भी किसीको भी मौत के मुह में छोड़ कर चले जाते हैं ..! सम्पन्न और अति संपन्न वर्ग के इन सपूतों का यह तरीका अनेकानेक बार सामने आचुका है, जनता के स्वास्थ्य से खेलने का अधिकार तो देश की सर्वोच्च सत्ता को भी नहीं है , तब यह इस तरह का खेल किस अधिकार के साथ कर सकते हैं ...!!
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