विभाजन के दौरान मुस्लिम कट्टरता से हिंदू पक्ष को हुए नुकसान से, वर्तमान भारत को सीखना चाहिए - अरविन्द सिसोदिया
विभाजन के दौरान मुस्लिम कट्टरता से हिंदू पक्ष को हुए नुकसान से, वर्तमान भारत को सीखना चाहिए प्रस्तावना भारत का विभाजन केवल राजनीतिक घटना नहीं थी; वह भारतीय सभ्यता के मनोवैज्ञानिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विभाजन का भी क्षण था। 1947 की त्रासदी ने यह दिखाया कि जब धार्मिक कट्टरता राजनीति पर हावी हो जाती है, तब कोई भी राष्ट्र अपनी नैतिक और सामाजिक एकता खो देता है। मुस्लिम लीग की सांप्रदायिक नीति और कांग्रेस नेतृत्व की असमंजस भरी प्रतिक्रिया के कारण हिंदू समाज को भारी जन-धन, सम्मान और भूभाग की हानि उठानी पड़ी। यह इतिहास केवल अतीत की स्मृति नहीं, बल्कि वर्तमान भारत के लिए एक गहरी चेतावनी है। 1️⃣ विभाजन की पृष्ठभूमि: सांप्रदायिक राजनीति की जड़ें बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में ही ब्रिटिश नीति “Divide and Rule” के रूप में सामने आ चुकी थी। 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना और 1909 के मॉर्ले-मिंटो सुधारों ने मुस्लिमों को अलग निर्वाचन-क्षेत्र देकर राजनीतिक अलगाव की नींव रखी। 1930 में मुहम्मद अली जिन्ना ने "Two Nation Theory" दी, जिसमें उन्होंने कहा कि हिंदू और मुसलमान दो अलग सभ्यताएँ हैं और सा...