कविता - चुनौती आई है फिरसे kavita chunoti aai he
कविता
लेखक - अरविन्द सिसोदिया
चुनौती आई है फिरसे, पागलपन ने धमकाया है,
अहंकार की आँधी ने फिर से, झूठ का परचम लहराया है।
शब्दों के शस्त्र सजाए हैं, भ्रम की जाल बिछाई है,
न्याय और सच्चाई के दर पे, फिर अंधी चाल चलाई है।
===1==
वो कहता है, "मैं शक्ति हूँ", पर मानवता को भूल गया,
स्वार्थ की नींव पे खड़ी इमारत में, वो खुद डगमग झूल गया।
पर इतिहास ने देखा है, जब-जब संकट आया है,
जनता ने मिलकर, हर ज़ालिम को रास्ता दिखाया है।
==2==
एक जुट हो जाओ साथियों, ये वक़्त है जागने का,
सत्य की मशाल लेकर, फिरसे नई राह बनाने का।
पुरुषार्थ हमारा अस्त्र बने, विवेक हमारा ढाल हो,
संविधान का सूरज चमके, ना कोई काली रात हो।
===3==
अंहकार क्या चीज़ है, जब आत्मबल हमारा है,
देश दुनिया कहीं भी हो, अडिग संकल्प हमारा है।
हम न झुकेंगे, न बिकेंगे, न डर की छाया में आएँगे,
संघर्ष ही जीवन है, इस मंत्र को निरंतर अपनाएँगे।
==4==
तो आओ फिरसे उठ खड़े हों, इक नई सदी रचाने को,
हर पागलपन को जवाब दें, इंसानियत बचाने को।
एकता की आवाज हम, एक जुट संकल्प हम।
हम विजय के सारथी, राष्ट्र प्रथम ही हैँ हम।
जय हिंद।
समाप्त
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