congress anti hindu & hindutva
मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम पर कांग्रेस हमेशा से हिंदू विरोध की मानसिकता से ग्रस्त रही है। देखिए हिंदुओं से नफरत के 17 सबूत~
सबूत नंबर – 1
7 फरवरी, 1916
जवाहर लाल नेहरू और कमला नेहरू की शादी में नेहरू ने तीन कार्ड छपवाए थे। तीनों कार्ड अंग्रेजी के अलावा सिर्फ अरबी लिपि और फारसी भाषा में छपे थे। तीनों ही कार्ड में किसी भी हिन्दू देवी देवता का नाम नहीं लिखा गया था। न ही उन कार्ड पर हिन्दू धर्म से जुड़ा कोई श्लोक लिखा था। हिन्दू संस्कृति या फिर संस्कृत भाषा का कार्ड में कोई नामोनिशान तक नहीं था।
सबूत नंबर – 2
आजादी के बाद जब बल्लभ भाई पटेल ने सोमनाथ मंदिर के दोबारा निर्माण की कोशिश शुरू की तो महात्मा गांधी ने इसका स्वागत किया, लेकिन जवाहर लाल नेहरू इसका लगातार विरोध करते रहे। यहां तक कि जब तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद वहां गए तो उन्होंने बकायदा उन्हें जाने से मना किया और विरोध भी दर्ज कराया।
सबूत नंबर – 3
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दू शब्द रखने पर जवाहर लाल नेहरू को घोर आपत्ति थी, उन्होंने इस शब्द को हटाने के लिए कहा था। पंडित मदन मोहन मालवीय पर दबाव भी डाला था। हालांकि उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में मुस्लिम शब्द रखने पर कभी आपत्ति नहीं जताई।
सबूत नंबर – 4
वंदे मातरम को राष्ट्रगीत बनाने पर जवाहर लाल नेहरू ने आपत्ति जताई थी। उन्हीं की आपत्ति के बाद मुस्लिमों का मनोबल बढ़ा, जिससे आज तक मुस्लिम वंदे मातरम गाने का विरोध करते हैं।
सबूत नंबर – 5
7 नवंबर, 1966 को दिल्ली में हजारों नागा साधु इकट्ठा होकर ये मांग कर रहे थे कि – गाय की हत्या बंद होनी चाहिए, इंदिरा गांधी किसी भी कीमत पर गौ हत्या बंद करने के मूड में नहीं थी। फिर क्या था, दिल्ली में ही इंदिरा गांधी ने जालियावाला कांड दोहराया और जनरल डायर की तरह हजारों नागा साधुओं के ऊपर गोलियां चलवा दीं, इस गोलीबारी में 6 साधु की मौत हो गई, यही नहीं उस समय गौभक्त माने जाने वाले गुलजारी लाल नंदा को इंदिरा ने गृहमंत्री पद से हटा दिया। इस घटना के बाद इंदिरा गांधी कई राज्यों में चुनाव हार गई थीं।
सबूत नंबर – 6
26 फरवरी, 1968
हिन्दू साधुओं पर गोली चलाने से चुनाव हार चुकी इंदिरा गांधी ने राजीव गांधी की शादी में हिन्दी में कार्ड तो छपवाया… लेकिन कार्ड में कहीं भी हिन्दू देवी देवता के नाम से परहेज किया गया। इसमें भगवान गणेश का भी नाम नहीं था ।
सबूत नंबर – 7
नेहरू-गांधी परिवार ने कभी कोई हिन्दू त्यौहार पारंपरिक रूप से नहीं मनाया। जिस प्रकार रमजान में ये परिवार हर साल इफ्तार पार्टी का आयोजन करता है, वैसा आयोजन आज तक कभी नवरात्रि में उनके घर पर नहीं हुआ। कभी कन्याओं को भोजन नहीं कराया गया। कभी किसी ने दिपावली में दीये जलाते नहीं देखा।
सबूत नंबर – 8
राहुल गांधी की उम्र 48 साल है, जबकि प्रियंका गांधी की 46 साल। कभी राहुल को प्रियंका गांधी से किसी ने राखी बंधवाते नहीं देखा। जबकि हिन्दुओं में भाई-बहन का रिश्ता बहुत ही पवित्र माना जाता है। कोई भी हिन्दू परिवार रक्षा बंधन से परहेज नहीं करता।
सबूत नंबर – 9
राहुल गांधी सिर्फ मोदी को हराने के लिए हिन्दू बने हैं… वर्ना पूरे नेहरू परिवार का कभी भी हिन्दू धर्म से नाता नहीं रहा है। यहां तक कि हिन्दु पर्व त्योहारों में बधाई देना भी अपमान माना जाता है। उदाहरण के लिए इस साल पहली बार कांग्रेस दफ्तर में होली मनाई गई, इससे पहले अघोषित बैन था। राहुल गांधी ने पहली बार लोगों को 2017 में दिवाली की शुभकामनाएं दी।
सबूत नंबर – 10
नेहरू गांधी परिवार कभी भी राम मंदिर निर्माण का समर्थन नहीं करता। बल्कि राम मंदिर के निर्माण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई में भी कांग्रेसियों ने रोड़े अटकाने का काम किया है। कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि राम मंदिर की सुनवाई जुलाई 2019 तक टाल दी जाए – ताकि लोक सभा चुनाव हो सके। ताकि कांग्रेस हिन्दुओं को बरगला कर सत्ता में आ जाए और राम मंदिर के निर्माण पर हमेशा के लिए रोक लग जाए।
सबूत नंबर – 11
2007 में कांग्रेस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा था कि राम, सीता, हनुमान और वाल्मिकी काल्पनिक किरदार हैं, इसलिए रामसेतु का कोई धार्मिक महत्व नहीं माना जा सकता है।
सबूत नंबर – 12
कांग्रेस ने ही पहली बार मुस्लिमों को हज में सब्सिडी देने और अमरनाथ यात्रा पर टैक्स लगाने का पाप किया। गौरतलब है कि दुनिया के किसी भी देश में हज में सब्सिडी नहीं दी जाती है, सिर्फ कांग्रेस ने भारत में ये शुरू किया। मोदी सरकार ने इसे खत्म कर दिया।
सबूत नंबर – 13
कांग्रेस ने ही सबसे पहले दुनिया भर में हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए हिन्दू आतंकवाद नाम का शब्द गढ़ा। एक ऐसा शब्द ताकि मुस्लिम आतंकवाद की तरफ से दुनिया का ध्यान भटकाकर हिन्दुओं को आतंकवादी सिद्ध किया जा सके।
सबूत नंबर – 14
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक बयान के जरिए देश की बहुसंख्यक आबादी को चौंका दिया, जब उन्होंने कहा कि मंदिर जाने वाले लोग लड़कियों को छेड़ते हैं। हिन्दू धर्म में मंदिर जाने वाले लोग लफंगे होते हैं।
सबूत नंबर – 15
तीन तलाक पर सुनवाई के दौरान राहुल गांधी के करीबी कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने इस्लामी कुरीति की तुलना राम से कर दी। उन्होंने ये तुलना जान बूझकर की थी।
सबूत नंबर – 16
राहुल गांधी ने विदेश जाकर ये फैलाने की कोशिश की कि लश्कर से भी ज्यादा कट्टर आतंकी हिन्दू होते हैं। जबकि आज तक कभी ये सामने नहीं आया कि कोई हिन्दू आतंकी बना हो।
सबूत नंबर – 17
राहुल गांधी ने जर्मनी जाकर फिर से हिन्दू धर्म को बदनाम करने का प्रयास किया। राहुल ने कहा कि भारत में महिलाओं के खिलाफ जो अत्याचार होते हैं, उसकी वजह भारतीय संस्कृति है।
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कांग्रेस कितनी ज्यादा हिन्दू विरोधी पार्टी है आगर सच्च में आप यह जानना चाहते हैं तो इस आलेख को कृप्या पूरा पढ़ें | इसमें दो वाक्याओं का जिक्र है । एक तरफ कांग्रेस की सरकार मुस्लिम शरणार्थियों पर तो करोड़ों रुपए खर्च कर रही थी और .. एक तरफ 40 हजार हिंदू शरणार्थियों पर पुलिस द्वारा अंधाधूंध गोलियां बरसा रही थी
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" यूएनएचसीआर की ‘द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड रिफ्यूजी-2000’ रिपोर्ट के अनुसार, होर्डिज्क ने विश्व निकाय को बताया कि एक महीने के भीतर, लगभग दस लाख शरणार्थी पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य दमन से भागकर भारत में प्रवेश कर गए थे. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘मई के अंत तक, भारत में औसत दैनिक प्रवाह 100,000 से अधिक था और कुल लगभग चार मिलियन तक पहुंच गया था.’ भारतीय आधिकारिक रिपोर्टों ने लगभग 10,000-50,000 शरणार्थियों के दैनिक आगमन का आंकड़ा रखा.
यूएनएचसीआर ने इसे 20वीं सदी के उत्तरार्ध में शरणार्थियों के दुनिया के सबसे बड़े आंदोलन के रूप में सूचीबद्ध किया है. भारत सरकार ने शरणार्थियों के लिए राशन तय किया था. प्रत्येक वयस्क को प्रति दिन 300 ग्राम चावल, 100 ग्राम गेहूं का आटा, 100 ग्राम दाल, 25 ग्राम खाद्य तेल और 25 ग्राम चीनी प्रति दिन और आधी मात्रा बच्चों को दी जाती थी. उन्हें दैनिक खर्च के लिए नकद राशि भी दी जाती थी. "
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ये थी पहली रिपोर्टिंग ..
अब आगे पढिए दूसरी रिपोर्टिंग ... दिल थाम कर क्योंकि ये है दिल दहलाने वाली जिसे ...मरीचझापी नरसंहार ..के नाम से जाना जाता है। इसे आप गूगल और विकिपेडिया पर भी पढ़ - देख सकते हैं | लेकिन आपको ज्यादा कष्ट न करना पड़े इसलिए पूरा समाचार ही यहाँ पर उद्धृत कर दिया है ।
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आज़ाद भारत का सबसे वीभत्स नरसंहार, जब बाघों को लग गई थी 'इंसानी गोश्त' खाने की लत
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कोलकाता: 31 जनवरी 1969,
वो तारीख जब पश्चिम बंगाल के सुंदरबन में एक द्वीप पर बसे हिंदू शरणार्थियों पर पुलिस ने अंधाधुंध गोलीबारी की। इस घटना को मरीचझापी नरसंहार (Marichjhapi Massacre) के नाम से जाना जाता है। आजाद भारत के इस सबसे भीषण नरसंहार में मार डाले गए हिंदू शरणार्थियों की तादाद को लेकर पुष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। अब इस नरसंहार की याद में बंगाल भाजपा की तरफ से मार्च किया गया है। इस मार्च का मकसद उन असहाय शरणार्थियों को याद करना है, जिन्हे वामपंथी शासनकाल में मौत के घाट उतार दिया गया।
मरीचझापी में मार डाले गए हिंदू शरणार्थियों की तादाद सरकारी फाइलों में लगभग 10 बताई जाती है। जब अलग-अलग आकलनों में यह आंकड़ा 10 हजार तक पहुँच जाता है। जिनकी हत्याएं हुईं, उनमें अधिकतर दलित (नामशूद्र) थे। जिनकी शह पर यह नरसंहार हुआ, वह दलितों के वोट से बंगाल में दशकों तक शासन करने वाले वामपंथी थे। वहीं, नरसंहार और उसे इतिहास के पन्नों से मिटा देने की साजिश को केंद्र की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस ने मौन सहमति दे रखी थी। बंगाल में अपने तीन दशक के राज में वामपंथियों ने जो खूनी दहशत कायम की थी, उसका ही नतीजा है कि लगभग चार दशक पुरानी इस घटना की अधिक जानकारी नहीं मिलती। अमिताव घोष की पुस्तक ‘द हंग्री टाइड्स’ इसी नरसंहार की पृष्ठभूमि पर लिखी गई है। इसके अलावा आनंद बाजार पत्रिका और स्टेट्समैन जैसे उस वक़्त के समाचार पत्रों में भी इस नरसंहार का एकाध विवरण मिलता है। इसका सबसे खौफनाक और प्रमाणिक विवरण पत्रकार दीप हालदार की एक पुस्तक ‘ब्लड आइलैंड (Blood Island: An Oral History of the Marichjhapi Massacre)’ में देखने को मिलता है। दीप ने इस नरसंहार में जीवित बच गए लोगों और इससे संबंधित अन्य किरदारों के मार्फत उस खौफनाक घटनाओं की वीभत्सता दिखाई है।
आप जानकर हैरान हो जाएँगे कि वाम मोर्चे की सरकार ने जिन लोगों का क़त्ल करवाया, उन्हें यहाँ बसने के लिए भी इन्ही वामपंथियों ही प्रोत्साहित किया था। यह उस समय की बात है जब वामपंथी सत्ता में नहीं आए थे और हिंदू नामशूद्र शरणार्थी उन्हें अपना शुभचिंतक मानते थे। वामदलों के कहने पर खासकर, राम चटर्जी जैसे नेताओं के बुलावे पर ये नामशूद्र शरणार्थी दंडकारण्य से आकर दलदली सुंदरबन डेल्टा के मरीचझापी द्वीप पर आकर बस गए। अपने पुरुषार्थ के बल पर बिना किसी सरकारी सहायता के इस निर्जन द्वीप को रहने योग्य बना लिया। खेती करने लगे, मछली पकड़ना शुरू किया। यहाँ तक कि इन्होने खुद ही स्कूल और क्लीनिक भी खोल लिए। नामशूद्र दलित हिंदुओं का यह समूह उस पलायन का एक छोटा सा हिस्सा था, जो बांग्लादेश से प्रताड़ित होकर भारत के विभिन्न हिस्सों में आकर बसे थे। मगर, सत्ता पाने के बाद वामपंथियों को ये शरणार्थी बोझ लगने लगे।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी 1979 में मरीचझापी द्वीप पर बांग्लादेश से आए लगभग 40,000 शरणार्थी बसे थे। वन्य कानूनों का हवाला दे वामपंथी सरकार ने उन्हें खदेड़ने का षड़यंत्र रचा। 26 जनवरी को मरीचझापी में धारा 144 लगा दी गई। टापू को 100 मोटर बोटों ने घेर लिया। दवाई, खाद्यान्न समेत तमाम वस्तुओं की सप्लाई रोक दी गई। पीने के पानी के एकमात्र स्रोत में जहर मिला दिया गया। पाँच दिन बाद 31 जनवरी 1979 को हुई पुलिस की अंधाधुंध गोलीबारी में शरणार्थियों को निर्दयता से मार डाला गया। प्रत्यक्षदर्शियों का अनुमान है कि इस दौरान 1000 से अधिक लोग मारे गए। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, हाई कोर्ट के आदेश पर 15 दिन बाद रसद आपूर्ति की इजाजत लेकर एक टीम यहाँ पहुंची थी। इसमें जाने-माने कवि ज्योतिर्मय दत्त भी शामिल थे। दत्त के मुताबिक, उन्होंने भूख से मरे 17 व्यक्तियों के शव देखे। 31 जनवरी की गोलीबारी के बाद भी लगभग 30,000 शरणार्थी मरीचझापी में बचे हुए थे। मई 1979 में इन्हें वहां से खदेड़ने के लिए पुलिस के साथ वामपंथी कैडर भी पहुॅंचे।
14-16 मई के बीच जनवरी से भी भीषण नरसंहार का दौर चला। ‘ब्लड आइलैंड’ में इस घटना का बेहद दर्दनाक ब्यौरा दिया गया है। मकान और दुकानें जला डाली गईं, महिलाओं के साथ दुष्कर्म हुए, सैंकड़ों हत्याएँ कर लाशों को पानी में फेंक दिया गया। जो बच गए उन्हें ट्रकों में जबरदस्ती भर दुधकुंडी कैम्प में भेज दिया गया। पुस्तक में एक प्रत्यक्षदर्शी के हवाले से कहा गया है कि, '14-16 मई 1979 के बीच आजाद भारत में मानवाधिकारों का सबसे वीभत्स उल्लंघन किया गया। पश्चिम बंगाल की सरकार ने जबरदस्ती 10 हजार से अधिक लोगों को द्वीप से खदेड़ दिया। दुष्कर्म, हत्याएँ और यहाँ तक की जहर देकर लोगों की हत्याएं की गई और समंदर में लाशें दफन कर दी गईं। कम से कम 7000 हजार मर्द, महिलाएँ और बच्चे काल के गाल में समा गए।' इस पुस्तक में मनोरंजन व्यापारी के हवाले से बताया गया है कि लाशें जंगल में भी फेंके गए और सुंदरबन के बाघों को इंसानी गोश्त खाने की लत गई।
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क्या कांग्रेस हिन्दू विरोधी पार्टी है?
मुझे ज्यादा कुछ जानकारी या सच्चाई तो मालूम नहीं है।मेरे ख्याल से हिन्दू सिविल कोड व मुस्लिम पर्सनल लॉ की वजह से कांग्रेस को हिन्दू विरोधी या फिर मुसलमानों की पक्षधर कहा जाने लगा।मैं भी इस प्रकार धर्म के आधार पर भेदभाव करने का विरोधी हूँ।जहां संविधान कहता है कि जाति या धर्म के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं भरता जायेगा।वहीं सरेआम पग पग पर भेदभाव देख रहा हूँ।हिन्दू दो शादी नहीं कर सकता,मुस्लिम तीन शादी बेरोकटोक कर सकता है।अब सोचने की बात यह है कि मुस्लिम पुरुषों को तो इससे फायदा हुआ वहीं मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का स्पष्ट हनन होता है।हिन्दू अगर अपनी पत्नी से तलाक लेना चाहता है तो अदालत क
कांग्रेस तो है ही हिन्दू विरोधी पार्टी।
भाजपा भी हिंदुओं को बेवकूफ़ बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ती। बस झुनझुने का लालच दिखा के वोट लेने का काम करती है।
हिन्दू मंदिर अभी भी सरकारी कब्ज़े में हैं।
आप और हम जो भी चढ़ावा चढ़ाते हैं मंदिर में वह सरकारी अफसरों के जेबें गर्म करता है।
भाजपा चाहे तो रातों रात मंदिरों को सरकारी कब्ज़े से मुक्त कर दे।
ऐसे ही जब बंगाल में हिंदुओं पर अत्याचार होता है, दिल्ली के दंगों में हिंदुओं पर आक्रमण होता है या फिर कहीं भी हिंदुओं पर खतरा होता है तो ये भाजपा वाले और उनके अंधभक्त और IT सेल वालों का बोल बचन शुरू हो जाता है।
कोरोना काल में भी ये भाजपाई राजनीति करने से बाज नहीं आए। अब
कांग्रेस पार्टी एक समय हिन्दुओं की पार्टी कहीं जाती थी,पर ये बात आज़ादी से पहले की है,मुस्लिम लीग कांग्रेस को हिन्दू समर्थक मानती थी।
हां अब तो ये हिन्दू विरोधी ही है,और आजादी के वक़्त भी इसने ऐसे काम किए जो हिन्दू विरोधी थे।
जब भारत का बंटवारा धार्मिक आधार पर हुआ और जिन्ना जब खुद कहता था कि हिन्दू और मुस्लिम दो बिल्कुल अलग धर्म है और एक साथ नहीं रह सकते,इसलिए मुस्लिमो को अलग देश चाहिए,जिन्ना चाहता था कि भारत के सारे मुसलमान पाकिस्तान और पंजाब, बंगाल आदि के सारे हिन्दू भारत में आ जाए।
मतलब भारत में कोई मुस्लिम नहीं और पाकिस्तान में कोई हिन्दू नहीं।
तो अब ये सवाल है कि क्यूं कोंग्रेस ने इसे मानने स
नमस्कार,
जैसा कि सवाल किया गया है कि काँग्रेस हिन्दू विरोधी है या नही तो ऐसा सही कहा गया है मैं कोई आपको पुरानी बातें और ऐसे तथ्य नही देना चाहता जोकि संदेहास्पद हो और तथ्य पूरा और सही न हो मैं बस यह कहना चाहूंगा कि कांग्रेस पार्टी ने कभी हिन्दुओ के लोए कोई आदेश या फिर कोई नियमो में आगे बढ़कर उसका समर्थन नही कोय वो कहती है को वो धर्मनिरपेक्ष पार्टी है लेकिन ऐसा नही धर्मनिरपेक्षता में सारे समाज के लोग और सारे धर्म और जातियां समान होती है फिर क्यों किसी वर्ग विशेष को खुश करने में काँग्रेस पार्टी लगी रहती है।
जब कोई चुनाव आता है तभी इनको हिन्दू धर्म याद आता है।
बहरहाल मैं यह सोचता की अपनी सोच और अपना
मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम पर कांग्रेस हमेशा से हिंदू विरोध की मानसिकता से ग्रस्त रही है। देखिए हिंदुओं से नफरत के 17 सबूत~
सबूत नंबर – 1
7 फरवरी, 1916
जवाहर लाल नेहरू और कमला नेहरू की शादी में नेहरू ने तीन कार्ड छपवाए थे। तीनों कार्ड अंग्रेजी के अलावा सिर्फ अरबी लिपि और फारसी भाषा में छपे थे। तीनों ही कार्ड में किसी भी हिन्दू देवी देवता का नाम नहीं लिखा गया था। न ही उन कार्ड पर हिन्दू धर्म से जुड़ा कोई श्लोक लिखा था। हिन्दू संस्कृति या फिर संस्कृत भाषा का कार्ड में कोई नामोनिशान तक नहीं था।
सबूत नंबर – 2
आजादी के बाद जब बल्लभ भाई पटेल ने सोमनाथ मंदिर के दोबारा निर्माण की कोशिश शुरू की तो महात्मा
प्रारम्भ कान्ग्रेस व्दारा देश की स्वतंत्रता मे 20% योगदान है, 80% दूसरे फैक्टर रहे, देश की बहुसंख्यक गरीब और अनपढ जनता ने इसी पार्टी को अपना देवता माना खान्ग्रेसियों ने इस बहुसंख्यक अनपढ गरीब जनता को अन्धेरे मे अपने स्वार्थ पूर्ण करने और देश अवैधानिक शोषण करने मे कसर नहीं छोडी, वास्तव इस बहुसंख्यक अनपढ गरीबो को अपना गुलाम समझती रही, और धोखे का,गद्दारी रुपी धर्म के अफीम का नशा कराती रही इसे कभी देश के बहुसंख्यक समाज की भावना से कोई मतलब नही रहा और अपने कुत्सित इरादे पूरा करती रही, और स्वयं को अल्पसंख्यक समाज का सदस्य बता कर उनके प्रति तुष्टीकरण की नीति अपनाया, और 60 साल तक देश महत्वपूर्ण सांस्क
खुले तौर पर तो ये नहीं कहा जा सकता की कांग्रेस पार्टी हिन्दू विरोधी पार्टी है,लेकिन जब पार्टी का अध्यक्ष खुले तौर पर ये ऐलान करे, कि कांग्रेस पार्टी मुस्लिमो की पार्टी है,तो इसमें कोई शक नहीं रह जाता, की कांग्रेस पार्टी किस धर्म के लोगों की हिमायत करने वाली पार्टी है।हिन्दू आतंकवाद, भगवा आतंकवाद जैसे शब्दों का गठन भी इसी पार्टी के लोगों ने किया है।आतंकवादियों को “भटके हुए नवजवान” कहने वाली पार्टी भी यही है।अब आप समझ सकते हैं, कि ये पार्टी हिन्दू विरोधी है, या हिन्दुओं की हिमायती।
।।जय भारत।।
क्या कांग्रेस पार्टी हिंदू विरोधी है जिसके कारण वह सत्ता की कुर्सी हासिल नहीं कर पा रही है इस मामले में आपका क्या कहना है?
कांग्रेस हिन्दू ही नहीं,हिन्दी और हिन्दुस्तान की विरोधी है। कांग्रेस पार्टी को गठित भी एक विदेशी,एक अंग्रेज ने भारतीयों में उभर रहे स्वतंत्रता की भावना के उभार को अपनी आवश्यकता के अनुरूप मोड़ने के लिए किया था। चूंकि कांग्रेस सारे प्रचार तंत्र, मीडिया को नियंत्रित करती थी अतः जन सामान्य को ऐसा विश्वास दिलाया गया कि कांग्रेस देश की हितैषी है।अब सोशल मीडिया तक जनसामान्य की पहुंच हो जाने से कांग्रेस के छुपे षड्यंत्रकारी कार्यक्रम.. एजेंडा लोगों को समझ में आने लगे हैं तो इसकी जमीन खिसक गई है। कांग्रेस ने हमेशा हिन्दुओं को विभाजित रखा।इसी षड्यंत्र के तहत शिक्षा और नौकरियों में जाति आधारित आरक्षण, एस
याद करिए कांग्रेस ने पिछले 70 सालों से राम मंदिर का मामला कोर्ट में लटका रखा था इतना ही नहीं बल्कि राम मंदिर के खिलाफ और बाबरी मस्जिद में के समर्थन में दो दर्जन बड़े-बड़े वकील सुप्रीम कोर्ट में खड़े किए थे जिनकी फीस लाखों करोड़ों रुपए में थी यह फीस कांग्रेस पार्टी अपने पार्टी फंड से दे रही थी इतना ही नहीं बल्कि धारा 370 हटाने का विरोध करने वाली गद्दार कांग्रेस पार्टी का कहना है कि उसकी सरकार बनने पर पुनः धारा 370 35 A को पुनः लागू करेंगे इन दोनों प्रमाण से यह साबित हो गया है कि कांग्रेस पार्टी सिर्फ हिंदू विरोधी नहीं बल्कि देश विरोधी, गद्दार पार्टी भी है
कांग्रेस शुरू से ही हिंदू विरोधी और मुस्
जो पार्टी गांधी के आदर्शों पर चल रही है वह हिंदू विरोधी ही हो सकती है क्योंकि गांधी ने कभी हिंदुओं का भला नहीं चाहा
हा, हिन्दी विरोधी पार्टी हैं।
लेकिन नहेरु गांधी परिवारकी हाइब्रिड पेदाइश और यह परिवारकी भक्ति करनेवालों के लिए मत लेने के अलावा हर विषयमें सब धर्म की विरोधी हैं और उनकी बर्बादी भी कर रही हैं।
मुसलमानों की हितैषी होने से लगता है कि वह हिन्दू विरोधी पार्टी है जबकि वह सिर्फ वोट के लिए ऐसा करती है । यह उसकी कमजोरी है । भाजपा के लिए देश धर्म से ऊपर है । यह उसकी ताकत है ।
क्या कांग्रेस पार्टी हिंदू विरोधी है जिसके कारण वह सत्ता की कुर्सी हासिल नहीं कर पा रही है इस मामले में आपका क्या कहना है?
आपने तो मेरे दिल का सवाल कर दिया ।ईश्वर करे कुछ और दूर चला जाय और सदा सदा के लिए डूब जाय ताकि देश का भला हो सके ।
क्या कांग्रेस पार्टी हिंदू विरोधी है जिसके कारण वह सत्ता की कुर्सी हासिल नहीं कर पा रही है इस मामले में आपका क्या कहना है?
हिन्दु विरोधी तो थे ही धोखाधड़ी एक से बढ़कर एक घोटाले और देश से ग़द्दारी !😩
बीमारी सेक्युलर नाम की तो थी और पूरा बेनिफ़िट भी हिन्दु विरोधी लोगों को मील रहा था इन की सरकार में 😒
किसी ना किसी बहने हिन्दु लोगों से डर और नफ़रत से भारी है ! ये पार्टी(माँ,बेटा और अब बेटी भी) एक तो करेला ऊपर से नीम पर चढ़ा कभी भी ऐसा कोई काम नही किया ये तिनो ने ‘ या इन की पार्टी ने हिन्दु लोगों के लिए? ऊपर से देश में हिन्दु लोगों को पूरे वर्ल्ड में बदनाम किया 😳
कोई नेता है इन के पास जो देश के लिए काम कर सके ? क्या राहुल जी , प्रधान मंत्री के लायक़ है 👀😏इस से ज़्यादा शर्म की कोई बात नही हो सकती !
अगर कभी बन गए शायद ?
कांग्रेस कितनी ज्यादा हिन्दू विरोधी पार्टी है आगर सच्च में आप यह जानना चाहते हैं तो इस आलेख को कृप्या पूरा पढ़ें | इसमें दो वाक्याओं का जिक्र है । एक तरफ कांग्रेस की सरकार मुस्लिम शरणार्थियों पर तो करोड़ों रुपए खर्च कर रही थी और .. एक तरफ 40 हजार हिंदू शरणार्थियों पर पुलिस द्वारा अंधाधूंध गोलियां बरसा रही थी
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" यूएनएचसीआर की ‘द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड रिफ्यूजी-2000’ रिपोर्ट के अनुसार, होर्डिज्क ने विश्व निकाय को बताया कि एक महीने के भीतर, लगभग दस लाख शरणार्थी पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य दमन से भागकर भारत में प्रवेश कर गए थे. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘मई के अंत तक, भारत में औसत दैनिक प्रवाह 100,000 से अधिक था और कुल लगभग चार मिलियन तक पहुंच गया था.’ भारतीय आधिकारिक रिपोर्टों ने लगभग 10,000-50,000 शरणार्थियों के दैनिक आगमन का आंकड़ा रखा.
यूएनएचसीआर ने इसे 20वीं सदी के उत्तरार्ध में शरणार्थियों के दुनिया के सबसे बड़े आंदोलन के रूप में सूचीबद्ध किया है. भारत सरकार ने शरणार्थियों के लिए राशन तय किया था. प्रत्येक वयस्क को प्रति दिन 300 ग्राम चावल, 100 ग्राम गेहूं का आटा, 100 ग्राम दाल, 25 ग्राम खाद्य तेल और 25 ग्राम चीनी प्रति दिन और आधी मात्रा बच्चों को दी जाती थी. उन्हें दैनिक खर्च के लिए नकद राशि भी दी जाती थी. "
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ये थी पहली रिपोर्टिंग ..
अब आगे पढिए दूसरी रिपोर्टिंग ... दिल थाम कर क्योंकि ये है दिल दहलाने वाली जिसे ...मरीचझापी नरसंहार ..के नाम से जाना जाता है। इसे आप गूगल और विकिपेडिया पर भी पढ़ - देख सकते हैं | लेकिन आपको ज्यादा कष्ट न करना पड़े इसलिए पूरा समाचार ही यहाँ पर उद्धृत कर दिया है ।
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आज़ाद भारत का सबसे वीभत्स नरसंहार, जब बाघों को लग गई थी 'इंसानी गोश्त' खाने की लत
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कोलकाता: 31 जनवरी 1969,
वो तारीख जब पश्चिम बंगाल के सुंदरबन में एक द्वीप पर बसे हिंदू शरणार्थियों पर पुलिस ने अंधाधुंध गोलीबारी की। इस घटना को मरीचझापी नरसंहार (Marichjhapi Massacre) के नाम से जाना जाता है। आजाद भारत के इस सबसे भीषण नरसंहार में मार डाले गए हिंदू शरणार्थियों की तादाद को लेकर पुष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। अब इस नरसंहार की याद में बंगाल भाजपा की तरफ से मार्च किया गया है। इस मार्च का मकसद उन असहाय शरणार्थियों को याद करना है, जिन्हे वामपंथी शासनकाल में मौत के घाट उतार दिया गया।
मरीचझापी में मार डाले गए हिंदू शरणार्थियों की तादाद सरकारी फाइलों में लगभग 10 बताई जाती है। जब अलग-अलग आकलनों में यह आंकड़ा 10 हजार तक पहुँच जाता है। जिनकी हत्याएं हुईं, उनमें अधिकतर दलित (नामशूद्र) थे। जिनकी शह पर यह नरसंहार हुआ, वह दलितों के वोट से बंगाल में दशकों तक शासन करने वाले वामपंथी थे। वहीं, नरसंहार और उसे इतिहास के पन्नों से मिटा देने की साजिश को केंद्र की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस ने मौन सहमति दे रखी थी। बंगाल में अपने तीन दशक के राज में वामपंथियों ने जो खूनी दहशत कायम की थी, उसका ही नतीजा है कि लगभग चार दशक पुरानी इस घटना की अधिक जानकारी नहीं मिलती। अमिताव घोष की पुस्तक ‘द हंग्री टाइड्स’ इसी नरसंहार की पृष्ठभूमि पर लिखी गई है। इसके अलावा आनंद बाजार पत्रिका और स्टेट्समैन जैसे उस वक़्त के समाचार पत्रों में भी इस नरसंहार का एकाध विवरण मिलता है। इसका सबसे खौफनाक और प्रमाणिक विवरण पत्रकार दीप हालदार की एक पुस्तक ‘ब्लड आइलैंड (Blood Island: An Oral History of the Marichjhapi Massacre)’ में देखने को मिलता है। दीप ने इस नरसंहार में जीवित बच गए लोगों और इससे संबंधित अन्य किरदारों के मार्फत उस खौफनाक घटनाओं की वीभत्सता दिखाई है।
आप जानकर हैरान हो जाएँगे कि वाम मोर्चे की सरकार ने जिन लोगों का क़त्ल करवाया, उन्हें यहाँ बसने के लिए भी इन्ही वामपंथियों ही प्रोत्साहित किया था। यह उस समय की बात है जब वामपंथी सत्ता में नहीं आए थे और हिंदू नामशूद्र शरणार्थी उन्हें अपना शुभचिंतक मानते थे। वामदलों के कहने पर खासकर, राम चटर्जी जैसे नेताओं के बुलावे पर ये नामशूद्र शरणार्थी दंडकारण्य से आकर दलदली सुंदरबन डेल्टा के मरीचझापी द्वीप पर आकर बस गए। अपने पुरुषार्थ के बल पर बिना किसी सरकारी सहायता के इस निर्जन द्वीप को रहने योग्य बना लिया। खेती करने लगे, मछली पकड़ना शुरू किया। यहाँ तक कि इन्होने खुद ही स्कूल और क्लीनिक भी खोल लिए। नामशूद्र दलित हिंदुओं का यह समूह उस पलायन का एक छोटा सा हिस्सा था, जो बांग्लादेश से प्रताड़ित होकर भारत के विभिन्न हिस्सों में आकर बसे थे। मगर, सत्ता पाने के बाद वामपंथियों को ये शरणार्थी बोझ लगने लगे।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी 1979 में मरीचझापी द्वीप पर बांग्लादेश से आए लगभग 40,000 शरणार्थी बसे थे। वन्य कानूनों का हवाला दे वामपंथी सरकार ने उन्हें खदेड़ने का षड़यंत्र रचा। 26 जनवरी को मरीचझापी में धारा 144 लगा दी गई। टापू को 100 मोटर बोटों ने घेर लिया। दवाई, खाद्यान्न समेत तमाम वस्तुओं की सप्लाई रोक दी गई। पीने के पानी के एकमात्र स्रोत में जहर मिला दिया गया। पाँच दिन बाद 31 जनवरी 1979 को हुई पुलिस की अंधाधुंध गोलीबारी में शरणार्थियों को निर्दयता से मार डाला गया। प्रत्यक्षदर्शियों का अनुमान है कि इस दौरान 1000 से अधिक लोग मारे गए। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, हाई कोर्ट के आदेश पर 15 दिन बाद रसद आपूर्ति की इजाजत लेकर एक टीम यहाँ पहुंची थी। इसमें जाने-माने कवि ज्योतिर्मय दत्त भी शामिल थे। दत्त के मुताबिक, उन्होंने भूख से मरे 17 व्यक्तियों के शव देखे। 31 जनवरी की गोलीबारी के बाद भी लगभग 30,000 शरणार्थी मरीचझापी में बचे हुए थे। मई 1979 में इन्हें वहां से खदेड़ने के लिए पुलिस के साथ वामपंथी कैडर भी पहुॅंचे।
14-16 मई के बीच जनवरी से भी भीषण नरसंहार का दौर चला। ‘ब्लड आइलैंड’ में इस घटना का बेहद दर्दनाक ब्यौरा दिया गया है। मकान और दुकानें जला डाली गईं, महिलाओं के साथ दुष्कर्म हुए, सैंकड़ों हत्याएँ कर लाशों को पानी में फेंक दिया गया। जो बच गए उन्हें ट्रकों में जबरदस्ती भर दुधकुंडी कैम्प में भेज दिया गया। पुस्तक में एक प्रत्यक्षदर्शी के हवाले से कहा गया है कि, '14-16 मई 1979 के बीच आजाद भारत में मानवाधिकारों का सबसे वीभत्स उल्लंघन किया गया। पश्चिम बंगाल की सरकार ने जबरदस्ती 10 हजार से अधिक लोगों को द्वीप से खदेड़ दिया। दुष्कर्म, हत्याएँ और यहाँ तक की जहर देकर लोगों की हत्याएं की गई और समंदर में लाशें दफन कर दी गईं। कम से कम 7000 हजार मर्द, महिलाएँ और बच्चे काल के गाल में समा गए।' इस पुस्तक में मनोरंजन व्यापारी के हवाले से बताया गया है कि लाशें जंगल में भी फेंके गए और सुंदरबन के बाघों को इंसानी गोश्त खाने की लत गई।
ये तो इतिहास बताता है,, कॉग्रस हिंदू विरोधी हैं!!
क्या कांग्रेस पार्टी की छवि हिन्दू विरोधी है?
ये तो ये लोग अपनी हरकतों से खुद साबित कर देते है।
1 बटवारे के समय मुसलमानों को इन्डिया में रखना।
2जब इन लोगो को कश्मीरी पंडितों की मौत पर रोना नही आया। कश्मीर घाटी से कैसे निकले कश्मीरी सबको पता है।
3राममंदिर का फैसला हिन्दू लोगो के पक्ष में न आये इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में अपने वकीलो की सिब्बल जैसो की फ़ौज खड़ी करना।
4 राहुल गांधी को मुसलमानो की सबसे सुरक्षित सीट वायनाड से चुनाव लड़ना।
5अब ताज़ा CAA का विरोध करना। और पब्लिक ट्रांसपोर्ट ओर ट्रैन को जलाने वालो के लिए शहीद बोलना।
ये लोग सदा से देश को तोड़नेवाले रहे है।
क्या कांग्रेस पार्टी हिंदू विरोधी है जिसके कारण वह सत्ता की कुर्सी हासिल नहीं कर पा रही है इस मामले में आपका क्या कहना है?
कॉन्ग्रेस हिन्दू विरोधी है और हिन्दू अपना खुद का विरोधी है वर्ना आज़ादी से लेकर 1977 तक निर्बाध रूप से कॉन्ग्रेस को सत्ता नहीं मिलती ।
लेकिन अब कुछ (कुछ) जागरूकता आई है लेकिन फिर भी कई हिन्दू अभी भी कॉन्ग्रेस को सपोर्ट करते हैं ।
मुझे तो लगता है कि हिंदू नाम वाले हिन्दू विरोधी बहुत सारे हैं, जैसे कॉन्ग्रेसी, वामपंथी, आपिये, सपाई, बसपाई, टीएमसी, टीडीपी, टीआरएस, डीएमके, एनसीपी और नया एडिशन शिव सेना ।
पता नहीं हिन्दू किस मिट्टी का बना हुआ है कि वह अपना अच्छा बुरा क्यों नहीं समझ पाता है और पार्टी के प्रति वफादारी और सत्ता के लालच में अपने देश और धर्म के विरुद्ध काम करता रहा है ।
अगर ऐसा नहीं होता तो मुग़ल 600 साल और अंग्रेज़ 200 साल राज नहीं कर पाते ।
वैसे, आज के परिप्रेक्ष्य में कॉन्ग्रेस और वामपंथी (हिन्दुस्तान में सिर्फ हिन्दू ही वामपंथी बनता है, 'शातिप्रिय समुदाय' नहीं), दोनों देश के लिए खतरनाक हैं ।
कॉन्ग्रेस पार्टी चीन से समझौते पर हस्ताक्षर कर लेती है और 10 साल किसी को पता भी नहीं चलता ।
वामपंथी, पहले सोवियत संघ और अब चीन द्वारा संचालित हैं, वो आज तक 1962 की लड़ाई के लिए भारत को दोषी ठहराते हैं ।
कॉन्ग्रेस की मनमोहन सरकार और तामिलनाडु की राज्य सरकार की मिलीभगत से (तब) भारत सरकार द्वारा चीन को 40 लाख करोड़ रुपए का थोरियम चीन को औने-पौने दाम में बेच दिया गया, जो चीन के दो हजार साल की जरूरत के लिए काफ़ी है ।
अब आप स्वयं तय कर सकते हैं कि कॉन्ग्रेस दोबारा सत्ता में आने लायक है कि नहीं ?
और वामपंथी तो भारत देश के धर्म और संस्कृति के लिए हानिकारक हैं ।
किन वजहों से कांग्रेस को हिंदू विरोधी पार्टी कहा जाता है?
क्योंकि नेहरू परिवार एक मुस्लिम परिवार था । इनके नेहरू व गांधी दोनो ही सरनेम फर्जी हैं । विश्व के तमाम मुस्लिमो की तरह इस परिवार का भी उद्देश्य हिंदुस्तान को इस्लामी मुल्क बनाना ही था ।
बड़े धैर्य का परिचय देते हुए इस परिवार ने सत्ता सम्हालकर भारतीयों को अपने असली मकसद की भनक नही लगने दी और धीरे धीरे हिन्दू विरोधी कानून पास कराकर लागू कराते रहे ।
कुछ ऐसे भी कानून हैं जो बनाये तो पर पास नही करवा पाए तब तक मोदी सरकार आ गई । अब तो हिन्दू भी निद्रा त्याग चुका है फिर भी गजवा एजेंडा वाले अपनी साजिशें जारी रखे हुए हैं ।
अगर किसी को इन साजिशों का प्रमाण चाहिए तो आप सिर्फ इस पोस्ट पर होने वाली टिप्पणियों पर ध्यान दें । ऐसे बहुत आएंगे जो हिन्दू मुस्लिम करने पर नाराजगी जाहिर करेंगे, कुछ नेहरू खानदान को त्यागी औऱ बलिदानी बताएंगे । देश के लिए शहीद हुआ बताएंगे । नफरत की राजनीति छोड़कर भाईचारे की सलाह देंगे । यही पहचान होगी गजवाईयों की ।
जिनको शक है, वो एक बार कांग्रेस द्वारा प्रस्तावित हिन्दू कोड बिल के बारे में जानकारी प्राप्त कर लें, पूछने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
हां..कांग्रेस एंटी हिंदु पार्टी है।
बिल्कुल
कांग्रेस पार्टी हिंदू विरोधी क्यों है ?
मैं धर्म विरोधी हूँ, क्योंकि मै अंधविस्वास विरोधी हूँ।
कांग्रेस के पूर्वज मुस्लिम है, वो तो हिंदुस्तान मे राज करने के लिए हिंदू धर्म को अपनाया, लेकिन अंतरमन में हिन्दू से घृणा ही करते हैं।
वैसे मुस्लिम समुदाय मे अय्यासी बहुत बड़े स्तर पर होती है। इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी ये सभी विदेशी हैं सिर्फ कहने मात्र को हिंदुस्तानी है।
हिंदुस्तान सत्य सनातन अंधविस्वासि की धरती है। यहाँ अधिकतर अंधविस्वास में विस्वाश करते हैं।
यह मेरा खुद का विचार है, दूसरे की सहमति जरूरी नही हैं। इसलिए टिप्पणी बॉक्स में पान खाकर ना थुकें। अन्यत्र कहीं भी पान थूंकना सरकार ने मना किया है
जी हाँ कांग्रेस एक हिन्दू विरोधी पार्टी है।
और जिन लोगों को यह बात अभी तक समझ नहीं आई है उनकी बुद्धि पर बस तरस ही खाया जा सकता है।
हां कांग्रेस हिन्दू विरोधी पार्टी है । धन्यवाद
हाँ
Koi shaque khangress hamesh hindu virodhi party rahi hai iske bahot sare proof hai lehru ke waqt se somnath mandir na bane dena shastriji ka khoon indira dwara karpatri maharaj or sadhu ko marna khoon karvana indira dwara palghar ke sadhu ko be rahem marna 84 ke delhi ke sikh logo ka katal rajiv dwara karana pak ko duplicate note bana ke bharat me faila na pak madad karna china ko banjar jamin kehke de dena lehru dwara kashmir me 370 na hatana babri masjid ke liye hindu ka katal hal hi me karnataka me pak jindaba bolna itne saboot kafi nahi ki khangress bharatiyon virodhi hai
फिर कहते है कि मैं दत्तात्रेय गोत्र का शिवभक्त जनेऊधारी पंडित हूँ।और मुजे वोट दो क्योंकि मेरी नाक दादी से मिलती है।
हाँ
कांग्रेस की स्थापना एक अंग्रेज ए ओ ह्यूम ने की थी, वह रींवा मे कलेक्टर था, जब वहां आजादी के लिये विद्रोह हुआ तब वो सलवार पहन कर काला रंग चुपड़ी कर भागा था , बहुत विचार विमर्श के बाद उसने एक दल या समिती बना दी नाम रखा कांग्रेस
अब उसने ये सोच के तो नही बनाई होगी कि मै तुम्हारी पार्टी बनादूँ और तुम हमको भगा देना
सिद्ध है कि उसने पार्टी विद्रोह विरोध कम करने के लिये बनाई,
अगर कांग्रेस हिन्दू विरोधी है तो इसके क्या कारण हो सकते हैं?
जैसे DNA होता है न पीढ़ियो तक असर डालता है, वैसा ही है कुछ कुछ।
कांग्रेस की स्थापना 1885 में अग्रेजी शासन के दौरान एक अंग्रेज द्वारा की गई थी।
जरा सोचें कोइ अंग्रेज अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध ही भारतीयों की पार्टी क्यो बनायेगा ।यह साजिश थी ,तीस साल पहले 1857 में अंग्रेजों के विरुद्ध बिगुल बज चुका था।असल में वे भारत में जयचंदों को इकट्ठा करने की फिराक में थे।वे सफल भी हुऐ।
भारत की आजादी को तो कोई माई का लाल नहीं रोक सकता था असल में उन्हें लड़ाको को रोकने वाले नेता चाहिए थे।और कांग्रेस ने यह खूब किया, उदाहरण भगत सिंह का हो या सुभाषचंद्र बोस या अन्य सैकड़ो क्रातिवीरों का।यह जयचंद अंग्रेजों से मिले रहे और इनका विरोध करते रहे।
जरा खोजें किस कांग्रेसी को कठोर कारावास मिला शायद ही कोई इक्का दुक्का नाम मिले।
नेहरू जी कोई इतिहासकार थे नहीं वे वकील थे इंग्लैंड से पढ़े हुए उन्हें प्रेरित किया डिसकवरी आफ इंडिया लिखने के लिये, नहीं तो क्या उनके पास समय था डिसकवरी करने का ,जो बताया गया सो लिखा ।अगर यह भारतीयों के लिये होती तो हिंदी मे होती यह अंग्रेजों के मार्ग दर्शन मे उनके अनुसार उनकी देख रेख मे जेल में उनकी कांग्रेस पार्टी के आदमी द्वारा अंग्रेजी में लिखी गई।
अंग्रेजों को कांग्रेस बनाने का लाभ तब मिला जब कांग्रेस ने विभाजन स्वीकार कर लिया ।भारत की स्वतंत्रता तो निश्चित विधान था पर विभाजन, बिना कांग्रेस की सहायता के नहीं हो सकता था।1948 में काश्मीर मुद्दे को UNO मे ले जाकर एक बार फिर नमक का हक अदा किया कांग्रेस ने।
ऐसी पार्टी के लिये देश और जनता दूसरे नंबर पर है हिंदू तो छोड़ो मुसलमानों के साथ क्या अच्छा किया।उन्हें एक वोट बैंक समझने अलावा क्या किया।
कांग्रेश को हिंदू विरोधी पार्टी माल लेने से पहले हमें यह जान लेना होगा कि मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान की मांग उठाया तो इसके पीछे उन्होंने एक यह भी कारण बताएं की कांग्रेश पर हिंदुओं का कब्जा है।
लोकतंत्र में बहुमत होता है और बहुमत में जिस वर्ग के लोग अधिक होते हैं उनका ही राज होता है।गांधी और नेहरू बार-बार यह विश्वास दिलाने की कोशिश करते रहे की स्वतंत्र भारत में हिंदू मुस्लिम में कोई भी भेदभाव नहीं किया जाएगा।
इसी कारण गांधी और नेहरू को अपमानित भी होना पड़ा क्योंकि हिंदू समाज के लोग यही समझते रहे कि यह हिंदुओं को उन्नति नहीं चाहते हैं। लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम था कि हिंदू मुस्लिम एकता देश क
कार्टूनिस्ट कुरील कांग्रेस टूलकिट पर तो कार्टून बना सकता पर क्या कुरील निष्पक्ष है? अगर कुरील निष्पक्ष है तो वैक्सिन घोटाले पर भी केंद सरकार के कार्टून बनाये।
केंद्र सरकार देश की जनता को केवल गुमराह कर रही है। और गोदी मीडिया और कुरील जैसे कार्टूनिस्ट इसका साथ दे रहे है।
कोरोना पर इतनी भयावह त्रासदी हुई इतनी लाशें बिछी पड़ी है परिवार के परिवार उजड़ गए बच्चे अनाथ हो गए।
कुरील से मेरा आग्रह है कि कुछ शर्म कर सरकार के खिलाफ भी कार्टून बनाये।
सबूत संबित पात्रा खुद दे रहा है👇
क्या कांग्रेस हिंदू विरोधी है?
हिंदू विरोधी कांग्रेस और हिंदुत्व
आधुनिक समय की मुस्लिम लीग पार्टी जिसे कांग्रेस पार्टी कहा जाता है, द्वारा हिंदू विरोधी कानूनों को पारित करने के बाद भी हिंदू अभी भी कांग्रेस पार्टी और इस्लामी नेहरू राजवंश को नहीं समझ सकते हैं :
अनुच्छेद 25, 28, 30 (1 टीवी950)
एचआरसीई अधिनियम (1951)
एचसीबी एमपीएल (1956)
धर्मनिरपेक्षता (1975)
अल्पसंख्यक अधिनियम (1992)
युद्धबंदी अधिनियम (1991)
वक्फ अधिनियम (1995)
राम सेतु शपथ पत्र (2007)
भगवा आतंकवाद (2009)
1. उन्होंने अनुच्छेद 25 द्वारा धर्मांतरण को वैध बनाया ।
2. उन्होंने अनुच्छेद 28 के माध्यम से हिंदुओं से धार्मिक शिक्षा छीन ली
लेकिन अनुच्छेद 30 में मुसलमानों और ईसाइयों को धार्मिक शिक्षा की अनुमति दी ।
3. उन्होंने एचआरसीई अधिनियम 1951 बनाकर हिंदुओं से सभी मंदिरों और मंदिरों का पैसा छीन लिया ।
4. उन्होंने तलाक कानून, हिंदू कोड बिल के तहत दहेज कानून द्वारा हिंदू परिवारों को नष्ट कर दिया
लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ को नहीं छुआ ।
उन्हें बहुविवाह की अनुमति दी ताकि वे अपनी जनसंख्या में वृद्धि कर सकें ।
5. 1954 में स्पेशल मैरिज एक्ट लाये ताकि मुस्लिम लड़के आसानी से हिंदू लड़कियों से शादी कर सकें ।
6. 1975 में उन्होंने आपातकाल लगाया, संविधान में बलपूर्वक धर्मनिरपेक्षता शब्द जोड़ा और बलपूर्वक भारत को धर्मनिरपेक्ष बना दिया ।
7. लेकिन कांग्रेस यहीं नहीं रुकी ।
1991 में वे अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम लाए और मुसलमानों को अल्पसंख्यक घोषित कर दिया,
हालांकि धर्मनिरपेक्ष देश में बहुसंख्यक - अल्पसंख्यक नहीं हो सकते ।
8. उन्होंने अल्पसंख्यक अधिनियम के तहत मुसलमानों को छात्रवृत्ति, सरकारी लाभ जैसे विशेष अधिकार दिए ।
9. 1992 में, उन्होंने कानूनी तरीके से हिंदुओं को अपने मंदिरों को वापस लेने से रोक दिया और पूजा स्थल अधिनियम द्वारा हिंदुओं से 40000 मंदिरों को छीन लिया ।
10. कांग्रेस यहीं नहीं रुकी और 1995 में वक्फ एक्ट के द्वारा मुसलमानों को किसी भी जमीन पर दावा करने, किसी भी हिंदू की जमीन छीनने का अधिकार दे दिया और मुसलमानों को भारत का दूसरा सबसे बड़ा जमीन मालिक बना दिया ।
11. 2007 में, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में रामसेतु हलफनामे में श्री राम के अस्तित्व को अस्वीकार कर दिया और हिंदू विरोधी धर्मयुद्ध में चरम बिंदु 2009 में था जब कांग्रेस ने भगवा आतंकवाद शब्द गढ़कर हिंदू धर्म को आतंकवादी धर्म घोषित किया ।
12. वहीं कांग्रेस ने अपने 136 साल के इतिहास में कभी भी इस्लामिक आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल नहीं किया ।
13. कांग्रेस धीरे धीरे बड़ी चालाकी से हिन्दुओं को नंगा करती रही ।
वे एक-एक करके हिंदू अधिकारों को छीनते रहे और अब हिंदू पूरी तरह से हर चीज से वंचित हैं और मजेदार बात यह है कि उन्हें इसका पता भी नहीं है ।
14. उनके पास अपने मंदिर नहीं हैं, उनके पास उनकी धार्मिक शिक्षा नहीं है,
उनकी भूमि उनकी स्थायी संपत्ति नहीं है ।
और वे सवाल भी नहीं पूछते !
क्यों मस्जिद और चर्च मुक्त हैं, लेकिन मंदिर सरकार के अधीन हैं ।
नियंत्रण सरकार का क्यों हैं ?
मदरसों, कॉन्वेंट स्कूलों को वित्त पोषित लेकिन सरकारी नहीं ।
वित्त पोषित गुरुकुल ?
वक्फ एक्ट क्यों है लेकिन हिंदू लैंड एक्ट क्यों नहीं ?
उनका मुस्लिम पर्सनल बोर्ड क्यों है लेकिन हिंदू पर्सनल बोर्ड नहीं ?
यदि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है तो बहुसंख्यक अल्पसंख्यक क्यों है ?
स्कूलों में रामायण और महाभारत क्यों नहीं पढ़ाया जाता ?
15. औरंगजेब ने हिंदू धर्म को नष्ट करने के लिए तलवार का इस्तेमाल किया ।
कांग्रेस ने हिंदू धर्म को नष्ट करने के लिए संविधान, अधिनियमों, विधेयकों का इस्तेमाल किया
और जहां तलवार विफल रही,
वहां संविधान ने किया ।
16. और फिर मीडिया है ।
अगर कोई इन सवालों को पूछने की कोशिश करता है,
तो उसे सांप्रदायिक, भगवा आतंकवादी घोषित कर दिया जाता है ।
यदि कोई राजनेता इन गलतियों को सुधारने का प्रयास करता है तो उसे बुलाया जाता है क्योंकि वे लोकतंत्र को कमजोर कर रहे हैं ।
17. याद रखें कि शक्तिशाली रोमन धर्म के पतन में सिर्फ 80 साल लगे थे ।
रोमन सभ्यता के पतन के बारे में प्रत्येक हिंदू को अवश्य पढ़ना चाहिए ।
कोई भी बाहरी ताकत उन्हें पराजित नहीं कर सकी, वे अपने ही शासक कॉन्सटेंटाइन और ईसाई धर्म द्वारा आंतरिक रूप से पराजित हुए ।
18. हिंदुओं ने 1950 से नेहरू और उनके परिवार को चुना और इसकी भारी कीमत चुकाई है और अधिकांश वर्षों तक कांग्रेस सरकार और जिहादी ताकतों से अंत तक प्राप्त करते रहे हैं ।
19. हिंदुओं के लिए गुलाम मानसिकता से बाहर आने और शिवाजी और राणा प्रताप की तरह बनने का समय है जो अपने शासनकाल के दौरान कभी गुलाम नहीं बने ।
20. आज हमारे पास एक गतिशील प्रधान मंत्री हैं जिनके हाथों को तब तक मजबूत करने की आवश्यकता है जब तक हम तलवार से नहीं बल्कि "वसुधैवम कुटुम्बकम" से विश्व को जीत लेते हैं ।
क्या हमें इस एक पार्टी की जरूरत है जिसने हिंदुओं के साथ इतना अन्याय किया है ???
....... दोष सिर्फ कांग्रेस के सिर ही नहीं मढ़ना चाहिए...
राजनीतिक कारणों से समय-समय पर कांग्रेस के साथ गठबंधन करने वाले और मूक दर्शक बने रहने वाले क्षेत्रीय दलों को भी दोषी ठहराया जाना चाहिए ...
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क्या कांग्रेस हिन्दुओं का समूल विनाश करना चाहती है?
करना नही चाहती कर चुकी है। आज हम सभी मानसिक गुलामी से बाहर आने की लड़ाई लड़ रहे है। जिनको विश्वास नही होता तो कांग्रेस द्वारा दो बार लाया कम्युनल वायलेंस बिल 2012 पड़ ले, अगर रोंगटे ना खड़े हो गए तो कहना। फिर भी अधिकतर मूर्ख हिन्दू विदेशी महिला के इशारे पर नाच रहे हैं। यह मानसिक गुलामी नही तो क्या है।
हमारा इतना गौरवपूर्ण इतिहास होते हुए हमें झूठा इतिहास कुईं पड़ाया गया। जालिम अकबर ओर ओररंगजेब कैसे महान हो गए।आज कुईं डर लगता है पुरानी मस्जिदों ओर किलो की इंस्पेक्शन से। अगर हिंम्मत है तो करने दे इंस्पेक्शन, सचाई सामने आ जायेगी।
जब कांग्रेस का सीक्रेट एजेंडा गजवा एह हिन्द फेल हुआ है तभी से इनको बहुत तकलीफ हो रही है। मोदी ने कुछ भी ना किया हो कम से कम आने वाले खतरों के लिए हिन्दुओ को आगाह किया है। जाग जाओ वरना फिर गुलाम बनने को तैयार रहो। इसी से तकलीफ हो रही है इन लोगो को। अगर इन कायर कांग्रेस्सियो ओर इनकी धोती ओर चरखे ने आज़ादी दिलवाई है तो अब अफगानिस्तान और यूक्रेन के मामले में भी जाकर उन्हें भी आज़ादी दिलवा दे। सारा संसार इनका अहसान मंद होगा। आज़ादी हाई जेक करके स्ता हथिया ली । शूरवीरों को तिल तिल कर मरने को छोड़ दिया।
छिपकली को ड्रैगन, व कंगाल पाकिस्तान को सुपर पावर समझ कर 2013 तक हम गिड़गराते रहे आज किउं फिर दोस्ती की भीख मांग कंगाल पाकिस्तान। हर वर्ष हम चीन को अपनी जमीन गिफ्ट देते रहे अब कैसे ओर क्यों हमने उनसे कब्जा छीन लिया। हमारे जवानों ने उनके कमांडर को उनकी पोस्ट से कैसे उठा लिया। आज क्यो सेना मजबूत हो रही है, कैसे बॉर्डर तक सड़के बन गयी। जिस सेना को दिल्ली से गोली चलाने की परमिशन मांगनी पड़ती थी वो अब आज़ाद कुईं है। लाखो करोड के घपले अब कुई नही होते। अगर अमा संसार की चौथी अमीर सियासतदान है कोई तो बता दे मोदी का बैंक बैलेंस कितना है। ऐसे ही बातें नही उठती। जब लंदन कोर्ट ने मनमोहन सिंह पर मालिया को कर्ज देने पर उँगलिये उठाई तो सब को समझ आया वरना काँग्रेस तो मोदी को कोस रही थी। नीरज मोदी ने राहुल पर भागने के आरोप लगाए।
यह सिर्फ चंद बातें है। वरना इसने कोई कसर नही छोड़ी थी भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाने की ओर हिन्दुओ को गुलाम बनाने की।
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नरेंद्र मोदी को आप क्या मानते हैं? हिंदूवादी या राष्ट्रवादी? या कुछ और?
आखिर इतिहास में अकबर और बाबर क़ो एक महान शाशक क्यों बताया गया और इसके पीछे क्या मनसा थी कांग्रेस की ?
सपा, बसपा, कांग्रेस और भाजपा सभी ब्राह्मणों रिझाने में लगे हैं, अचानक उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण इतने महत्वपूर्ण क्यों हो गए हैं?
नेहरु हैदराबाद को पकिस्तान को देने के इच्छुक क्यों थे? क्या हैदराबाद को भी कश्मीर की तरह भारत का स्थायी नासूर बनाना चाहते थे ?
अंग्रेजों और गाँधी की पसंद होने के कारण नेहरू को सत्ता हस्तांतरित तो हो गई थी लेकिन जैसे जैसे कोई नेहरू के बारे में विस्तार से पढेगा, उसे ऐसा जरूर लगेगा कि नेहरू ने भारत के साथ एक प्रधानमंत्री के रूप में इतनी बेरुखी क्यों दिखाई? क्यों उन्होंने हिंदुओं और हिंदू धर्म के प्रति इतना सौतेला व्यवहार किया ? क्यों उन्होंने यह सुनिश्चित किया की भारत में आने वाले वर्षों में सनातन धर्म और सनातन संस्कृति समाप्त होती रहे तथा क्रमिक रूप से इस्लामिक राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर होता रहे?
जवाहरलाल नेहरू को आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाता है, ऐसा कहने के पीछे उपलब्धियां उनके नाम करने की मंशा होती है. नेहरू की नीतियों और असामान्य गलतियों के कारण भारत की प्राचीन सभ्यता और सांस्कृतिक उपलब्धियों को नकारने का पाप और भारत के इतिहास को नेहरूवियन धर्मनिरपेक्ष दिखाने के लिए तथ्यों को तोड़ने मरोड़ने का जैसा विकृत खेल हुआ, उस पर नेहरू की संलिप्तता से इनकार किया जाता है. इस्लामिक आक्रांताओं द्वारा हिन्दुओं पर किए गए धार्मिक और सांस्कृतिक अत्याचार छिपाने और आक्रांताओं को महिमामंडित करने का महापाप भी जिन नेहरूवादी इतिहासकारों और नेहरू समर्थकों द्वारा किया गया, उसमें भी नेहरू की भूमिका को नकारा जाता है. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में तपे हुए एक नेता को देश की एकता और अखंडता के लिए जो करना चाहिए था, वह तो नेहरू ने नहीं किया. इसके विपरीत राष्ट्रीय एकता और अखंडता को लगे कुछ घावों नेहरू की भूमिका संदिग्ध दिखाई पड़ती है.
बहुत अधिक लोगों को यह नहीं मालूम होगा कि अगर जवाहरलाल नेहरू का निजाम शासित हैदराबाद रियासत के संदर्भ में प्रयोग सफल हो गया होता तो दक्षिण भारत में देश के बीचो बीच कश्मीर से भी बड़ी और भयानक समस्या खड़ी हो चुकी होती.
हैदराबाद में 1348 से लेकर 17 नवंबर 1948 तक लगभग 600 वर्ष तक मुस्लिम शासन रहा जो दिल्ली पर मुस्लिम आक्रांताओं के शासन से भी ज्यादा था. जैसे जैसे देश में स्वतंत्रता आंदोलन ज़ोर पकड़ रहा था, हैदराबाद के निजाम रियासत को मुस्लिम बाहुल्य इस्लामिक राष्ट्र बनाने की कोशिश में लग गए थे. मुस्लिम जनसंख्या बढ़ाने के लिए, इथियोपिया, यमन, चीन तथा अन्य देशों से मुस्लिमों को लाकर बसाने के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश और बिहार से भी बड़ी संख्या में मुस्लिमों को लाकर बसाया गया. 1923 में मजलिसे इत्तेहादुल मुसलमीन (एमआईएम जो आज की एआईएमआईएम है), के अतिरिक्त जिनदार नामक संस्था का गठन किया गया. जहाँ एमआईएम पर मुस्लिम एकीकरण की जिम्मेदारी थी, वहीं जिनदार को व्यापक धर्मांतरण का कार्य सौंपा गया. जिन्दार के लोग हिंदू सन्यासियों के भेष में दलित बाहुल्य क्षेत्रों में घूमते थे और अपने मुखिया को चंद्रकेशव का अवतार बताकर कहते थे कि भगवान विष्णु का आदेश है कि सभी दलित इस्लाम स्वीकार करें. इस तरह दलितों का बड़ी संख्या में धर्मांतरण कराया गया. आनाकानी करने वाले लोगों पर भयानक अत्याचार किए जाते थे. निज़ाम ने रजाकार नाम की एक संस्था का भी गठन कराया जिसका स्वरूप निजी सेना का था और उसका कार्य धर्मांतरण न करने वाले और हैदराबाद रियासत का भारतीय संघ में विलय करने की मांग करने वाले हिंदुओं पर ठीक उसी तरह से अत्याचार करना था, जैसे मालाबार में मोपला कांड के रूप में ओर डायरेक्ट एक्शन के रूप में बंगाल में किए गए थे.
1946 में सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज, भारतीय नौसेना और वायु सेना में विद्रोह तथा थलसेना में सुभाषचंद्र बोस के प्रति गहरे सम्मान के कारण संभावित विद्रोह को देखते हुए अंग्रेजों ने भारत छोड़ने का निर्णय लिया. ब्रिटिश सरकार के निर्णय के अनुसार भारतीय राज्यों और रियासतों को हिंदू बाहुल्य, मुस्लिम बाहुल्य और मिश्रित आबादी के रूप में चिन्हित किया गया था जिन्हें क्रमशः A, B, C श्रेणी कहा गया था. भारत में लगभग 565 रियासतों को विकल्प दिया गया था कि वे चाहें तो हिंदुस्तान में मिले या पाकिस्तान में और चाहे तो स्वतंत्र रह सकते हैं. रजाकार संगठन और एमआईएम ने हैदराबाद रियासत को स्वतंत्र इस्लामिक राष्ट्र बनाने के लिये निजाम के सहयोग से ऐसे सभी लोगों को मौत के घाट उतारने की योजना बनाई जो हैदराबाद का भारत में विलय चाहते थे. ऐसा चाहने वालों में मुख्यतः हिंदू थे, जिनके गांव के गांव जला दिए जाते थे. लोगों को लाइन में खड़ा करके गोली मार दी जाती थी और हिंदू महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किए जाते थे.
15 अगस्त 1947 को जब अंग्रेजों ने गाँधी द्वारा नामित और ब्रिटिश सरकार की पसंद नेहरू को प्रधानमंत्री बनाकर सत्ता हस्तांतरित की तो निजाम ने हैदराबाद रियासत को भी स्वतंत्र घोषित कर दिया. उन्होंने भारत के विरुद्ध युद्ध की स्थिति में जिन्ना से मदद भी मांगी. जिन्ना ने संयुक्त राष्ट्र में नियुक्त पाकिस्तान के राजदूत और अपने विश्वस्त लियाकाली को हैदराबाद भेज कर निज़ाम का मुख्यमंत्री बनवा दिया ताकि हैदराबाद की स्वतंत्र इस्लामिक राष्ट्र की लड़ाई को मजबूती से लड़ा जा सके. जिन्ना के ही विश्वस्त कासिम रिजवी रजाकार संगठन तथा एमआईएम के मुखिया थे जो हैदराबाद को स्वतंत्र इस्लामिक राष्ट्र बनाने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे. निजाम के प्रतिनिधि के रूप में वह सरदार वल्लभ भाई पटेल से मिलने दिल्ली गए. उसने हैदराबाद को पूर्ण स्वतंत्रता देने का आग्रह किया जिसे पटेल ने स्वीकार नहीं किया. उसने पटेल को धमकी देते हुए कहा कि ऐसा न करने के परिणाम अत्यंत घातक होंगे. हम (मुसलमान) गोरी और बाबर की संतानें हैं. हमने पूरे विश्व का भूगोल बदला है और नए देश बनाए हैं. अभी हम सिर्फ हैदराबाद रियासत की बात कर रहे हैं और अगर यह बात नहीं मानी गई तो हम बंगाल की खाड़ी से अरब सागर तक इस्लामिक परचम फहरा देंगे. अगर भारतीय सेना ने हस्तक्षेप करने की हिमाकत की तो लाशों के अंबार लगा देंगे. आप (पटेल) हैदराबाद के मुसलमानों को नहीं जानते, एक भी हिंदू जीवित नहीं बचेगा. पटेल ने उसे डांटते हुए कहा कि जब आप ये करेंगे तो उस समय हम क्या कर रहे होंगे ये जरूर सोच लेना और भगा दिया.
निज़ाम, जिन्ना, माउंटबेटन और नेहरू के बीच कुछ खिचड़ी पक रही थी. नेहरू हैदराबाद को मिश्रित संस्कृति वाला ऐसा राज्य बनाना चाहते थे, जो पूरे विश्व को सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश दे सकें. एक ऐसा राज्य जिसमें उर्दू की नफासत हो, हिन्दुस्तानी और पर्शियन विरासत हो, निजामी विलासता हो, दक्षिण भारतीय सादगी हो. जिससे भारत और नेहरू का नाम पूरी दुनिया में रोशन हो सके. समझा जा सकता है कि उनके दिमाग में क्या था. माउंटबेटन ने निज़ाम और भारतीय संघ के बीच समझौते का एक मसौदा तैयार किया जिसके अनुसार हैदराबाद की यथास्थिति बनाये रखी जानी थी, यानी हैदराबाद का जो रिश्ता अंग्रेजी सरकार के साथ था वही रिश्ता भारत सरकार के साथ बना रहना था. इसका मतलब था हैदराबाद को न तो पूर्ण स्वतंत्रता और न ही उसका भारत में विलय. जून 1948 में जब हृदयाघात से पीड़ित सरदार वल्लभ भाई पटेल देहरादून के अस्पताल में थे, माउंटबेटन के नेतृत्व में प्रधानमंत्री नेहरू, रक्षा मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह पटेल से मिलने गए और उन्हें समझौते का प्रारूप दिखाया, जिसे पटेल ने सिरे से खारिज कर दिया. माउंटबेटन की भावनात्मक अपील पर सरदार पटेल सहमत हो गए लेकिन बाद में इस समझौते को रजाकार संगठन और एमआईएम ने स्वीकार नहीं किया.
माउंटबेटन के जाने के बाद राजाजी गवर्नर जनरल बने और उनकी अध्यक्षता में जब हैदराबाद के विरुद्ध सैन्य कार्यवाही की बात आई तो नेहरू ने कहा कि वह रजाकार संगठन, कासिम रिजवी और निजाम के विरुद्ध कोई सैन्य कार्रवाई नहीं करना चाहते क्योंकि इससे भारत-पाकिस्तान के रिश्ते प्रभावित होंगे और संयुक्त राष्ट्र संघ में कश्मीर का मुद्दा भी कमजोर हो जाएगा. पटेल ने रजाकार, कासिम रिजवी और निजाम द्वारा हिंदू नरसंहार कि अनेक रिपोर्ट बताई. उन्होंने यह भी बताया कि कैसे रजाकार संगठन ने अनेक हिंदू महिलाओं के साथ उनके सगे संबंधियों के सामने सामूहिक बलात्कार के सार्वजनिक आयोजन किए लेकिन नेहरू सैन्य कार्रवाई के लिए तैयार नहीं हुए. तब राजाजी ने नेहरू को ब्रिटिश हाई कमिश्नर का एक पत्र दिया जिसमे सिकंदराबाद में अंग्रेज ननो के साथ रजाकारो द्वारा सामूहिक बलात्कार की घटनाओं पर गंभीर रोष प्रकट किया गया था. हिंदू महिलाओं के बलात्कार पर चुप्पी साधने वाले नेहरू, अंग्रेज ननो के बलात्कार पर चिंतित हो गए और उन्होंने हैदराबाद रियासत पर सैन्य कार्रवाई करने पर हामी भर दी.
सरदार पटेल ने अपने विश्वस्त के एम मुंशी को हैदराबाद रियासत का एजेंट जनरल ऑफ इंडिया बनाया ओर सैन्य कार्रवाई की शुरूआत कर दी. मुंशी की चतुराई से निज़ाम ने समर्पण कर दिया. सैन्य कार्रवाई को ऑपरेशन पोलो या पुलिस एक्शन नाम दिया गया. स्वयं निजाम ने रेडियो पर घोषणा की कि वह भारतीय सेनाओं को हैदराबाद में रजाकारों के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं ताकि कानून और व्यवस्था स्थापित की जा सके. भारतीय सेना ने रजाकारों को समाप्त किया. कासिम रिजवी को आजीवन कारावास की सजा में जेल में डाल दिया गया. एमआईएम को प्रतिबंधित कर दिया गया और इस प्रकार हैदराबाद रियासत का भारत में पूर्ण रूप से बिना शर्त विलय हो सका.
1957 में आम चुनावों में अपनी सरकार की वापसी और हैदराबाद में सरकार बनाने के उद्देश्य से मुस्लिम तुष्टीकरण के अविष्कारक नेहरू ने एमआईएम से प्रतिबंध हटा लिया, जिसे आज एआईएमआईएम के नाम से ओवैसी चला रहे हैं. ज्यादातर रजाकार कांग्रेस में शामिल कर लिए गए. मुस्लिम वोटरों को रिझाने के लिए नेहरू ने कासिम रिजवी को भी आजीवन कारावास से मुक्त कर सकुशल पाकिस्तान भेज दिया.
क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र बन जाने के बाद भी नेहरु हिन्दुओं के लिए बचे शेष भारत में मुसलमानों के लिए काम कर रहे थे?
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