BLA क्या कर रहे हैं ? SC ने बिहार SIR पर निष्क्रियता को लेकर पार्टियों को फटकारा
BLA क्या कर रहे हैं ? SC ने बिहार SIR पर निष्क्रियता को लेकर पार्टियों को फटकारा
जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने सीधे तौर पर राजनीतिक दलों को फटकार लगाई कि जब लाखों मतदाताओं के नाम मसौदा सूची से हटा दिए गए हैं तो वे अपनी आपत्ति या शिकायत दर्ज क्यों नहीं करा रहे हैं।
Fri, 22 Aug 2025,
BLA क्या कर रहे हैं? SC ने बिहार SIR पर निष्क्रियता को लेकर पार्टियों को फटकारा
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बिहार के राजनीतिक दलों को मतदाता सूची से बाहर रह गए लोगों को दावे और आपत्तियां दर्ज कराने में मदद करने में निष्क्रियता के लिए फटकार लगाई है। शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी चुनाव आयोग के उस बयान के बाद आई है जिसमें चुनाव आयोग ने कहा था कि जनता की आलोचना के बावजूद किसी भी प्रमुख राजनीतिक दल ने कोई आपत्ति या शिकायत दर्ज नहीं कराई है। आपको बता दें कि चुनाव आयोग बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) कर रहा है। उसने कहा था कि किसी भी प्रमुख राजनीतिक दल ने सार्वजनिक आलोचना के बावजूद कोई आपत्ति या शिकायत दर्ज नहीं कराई है।
जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने सीधे तौर पर राजनीतिक दलों को फटकार लगाई कि जब लाखों मतदाताओं के नाम मसौदा सूची से हटा दिए गए हैं तो वे अपनी आपत्ति या शिकायत दर्ज क्यों नहीं करा रहे हैं। कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि 12 मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों में से केवल तीन ही अदालत में क्यों हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, "हम राजनीतिक दलों की निष्क्रियता से आश्चर्यचकित हैं। बीएलए नियुक्त करने के बाद, वे क्या कर रहे हैं? लोगों और स्थानीय राजनीतिक व्यक्तियों के बीच दूरी क्यों है? राजनीतिक दलों को मतदाताओं की सहायता करनी चाहिए।"
सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग की पैरवी कर रहे वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि उन्होंने स्वीकार किया कि कोई भी बड़ी पार्टी आपत्ति दर्ज कराने के लिए अदालत में नहीं आई है। उन्होंने यह भी कहा कि जिन लोगों के नाम हटाए गए हैं, वे कहीं से भी ऑनलाइन दावा दायर कर सकते हैं। उन्हें बिहार आने की जरूरत नहीं है।
आरजेडी की तरफ से पेश हुए मशहूर वकील कपिल सिब्बल ने स्पष्ट किया कि वह राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के सांसद मनोज झा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं न कि पूरी पार्टी का।
वहीं, अभिषेक मनु सिंघवी की दलील थी कि उनकी याचिका में आठ विपक्षी दल शामिल हैं, जिनमें से अधिकांश मान्यता प्राप्त हैं। इस पर जस्टिस कांत ने उनसे पूछा कि अगर वे इतने सारे दलों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, तो उन्हें यह बताना चाहिए कि कितने लोगों ने आपत्तियां दायर की हैं और कितने बूथ-स्तरीय एजेंट (बीएलए) नियुक्त किए गए हैं।
अदालत में चुनाव आयोग ने बताया कि 1.6 लाख बीएलए हैं और उन्होंने अनुमान लगाया कि यदि प्रत्येक बीएलए प्रतिदिन 10 लोगों से मिलता है, तो 16 लाख लोगों तक पहुंचा जा सकता है। आयोग के वकील ने कहा कि यह व्यक्तिगत मतदाता की जिम्मेदारी है कि वह अपना पता बदलने या परिवार में किसी की मृत्यु होने पर इसकी जानकारी दे। उन्होंने राजनीतिक दलों पर असहयोग का आरोप लगाया।
आप BJP की पैरवी कर रहे? भावी CJI ने AM सिंघवी से पूछा तो कपिल सिब्बल लगाने लगे ठहाका
SC ने बिहार SIR पर आज सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग को बड़ा आदेश देते हुए कहा कि वोटर लिस्ट में सुधार के लिए 11 दस्तावेजों में आधार कार्ड को भी शामिल किया जाए। SC ने साफ किया कि इसे भी निवास के प्रमाण के रूप में माना जाएगा।
आप BJP की पैरवी कर रहे? भावी CJI ने AM सिंघवी से पूछा तो कपिल सिब्बल लगाने लगे ठहाका
Bihar SIR SC Hearing: बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर उपजे विवादों पर सुप्रीम कोर्ट ने आज भी सुनवाई की। शीर्ष अदालत चुनाव आयोग के 24 जून के निर्देश को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इस दौरान जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने इस मुद्दे पर हंगामा करने वाले राजनीतिक दलों के आगे नहीं आने पर आश्चर्य जताया। पीठ ने सुनवाई के दौरान वकीलों से पूछा कि कौन किस दल का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और दलीय प्रतिनिधित्व की कमी देख टिप्पणी की कि SIR के तहत मतदाताओं के नाम हटाए जाने के मामले में सुधार के लिए राजनीतिक दलों का आगे न आना आश्चर्य की बात है।
इस दौरान चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि बिहार में SIR में 85 हजार नए मतदाताओं के नाम सामने आए, लेकिन राजनीतिक दलों के बूथ स्तरीय एजेंटों ने केवल दो आपत्तियां ही दर्ज कराईं हैं। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि एसआईआर की पूरी प्रक्रिया मतदाताओं के अनुकूल होनी चाहिए, और राजनीतिक दलों को भी इसमें आगे आना चाहिए।
ADR की तरफ से प्रशांत भूषण, EC की तरफ से द्विवेदी
लाइव लॉ के मुताबिक, चुनाव आयोग की तरफ से वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी मामले की पैरवी कर रहे थे, जबकि प्रशांत भूषण ADR की तरफ से पैरवी कर रहे थे। इसी दौरान भावी CJI जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा, "कोर्टरूम में हमारे सामने कितने राजनीतिक दल हैं?" उन्होंने प्रशांत भूषण से पूछा, "क्या आपको पता है कि हमारे सामने कितने हैं?" इस पर EC के वकील द्विवेदी ने कहा, "एक भी नहीं।" तभी वरिष्ठ वकिल कपिल सिब्बल बोल पड़े, “मैं आरजेडी की ओर से हूँ।”
सबसे बेहतर स्थिति में आप ही हैं
इसके बाद वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, "दूसरी याचिका में आठ विपक्षी दल हैं... आप, कांग्रेस, सपा, यूबीटी हैं और अधिकांश मान्यता प्राप्त दल हैं।" इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “तो आप ही हमें यह बताने की सबसे बेहतर स्थिति में हैं कि कितने लोगों ने आपत्तियाँ दर्ज कराई हैं...कितने बीएलए नियुक्त किए गए हैं।”
BLA क्या कर रहे हैं? SC ने बिहार SIR पर निष्क्रियता को लेकर पार्टियों को फटकारा
सांसदों ने याचिका दाखिल की है दलों ने नहीं
इसके बाद EC के वकील राकेश द्विवेदी ने स्थिति साफ करते हुए कहा, “सांसदों ने याचिका दाखिल की है, राजनीतिक दलों ने नहीं।” इस बीच, जस्टिस कांत ने एक-एक करके पूछना शुरू किया और कौन किस दल का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। कपिल सिब्बल ने स्पष्ट किया कि वह राजद सांसद मनोज झा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, राजद पार्टी का नहीं। इसी दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने अभिषेक मनु सिंघवी से पूछ लिया कि क्या आप भारतीय जनता पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं? इतना सुनते ही कोर्टरूम में मौजूद कपिल सिब्बल ठहाका लगाने लगे और बोले- शायद नहीं। इससे कोर्टरूम का माहौल हल्का हो गया।
12 में से सिर्फ तीन राजनीतिक दल!
इसी दौरान एडवोकेट निज़ाम पाशा बोल पड़े, "मैं एआईएमआईएम की तरफ से हूँ, हालाँकि राज्य में इसे मान्यता प्राप्त नहीं है।" इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि एक तरह से, 12 में से सिर्फ तीन राजनीतिक दल ही यहां हमारे सामने हैं। शीर्ष अदालत ने राजनीतिक दलों को बिहार में मतदाता सूची से बाहर हुए मतदाताओं की सहायता करने और उनके दावे दर्ज कराने के लिए कहा। कोर्ट ने बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को अदालती कार्यवाही में राजनीतिक दलों को पक्षकार बनाने और दावों के बारे में स्थिति रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने ने निर्वाचन आयोग को राजनीतिक दलों के बूथ स्तरीय एजेंटों की ओर से प्रस्तुत दावों के बदले रसीद प्रदान करने का भी निर्देश दिया। बता दें कि जस्टिस सूर्यकांत इस साल के अंत में मौजूदा CJI बीआर गवई के रिटायर होने के बाद देश के अगले मुख्य न्यायाधीश बनने वाले हैं।
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बिहार SIR में आधार को मानना ही होगा, चुनाव आयोग से सुप्रीम कोर्ट की दो टूक
सुप्रीम कोर्ट कोर्ट ने शुक्रवार को साफ किया कि वोटर लिस्ट के लिए चल रही एसआईआर की प्रक्रिया के दौरान वोटर्स द्वारा दिए जाने वाले 11 डॉक्युमेंट्स या फिर आधार कार्ड को स्वीकार करना होगा।
बिहार SIR में आधार को मानना ही होगा, चुनाव आयोग से सुप्रीम कोर्ट की दो टूक
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा है कि चुनाव आयोग को आधार कार्ड स्वीकार करना ही होगा। कोर्ट ने शुक्रवार को साफ किया कि वोटर लिस्ट के लिए चल रही एसआईआर की प्रक्रिया के दौरान वोटर्स द्वारा दिए जाने वाले 11 डॉक्युमेंट्स या फिर आधार को मानना होगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि हम बिहार के लिए आधार कार्ड या किसी अन्य स्वीकार्य दस्तावेज के साथ हटाए गए मतदाताओं के दावों को ऑनलाइन प्रस्तुत करने की अनुमति देंगे।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एसआईआर प्रक्रिया के दौरान हटाए गए वोटर्स के नामों में सुधार के लिए पॉलिटिकल पार्टियों के आगे न आने पर भी आश्चर्य व्यक्त किया। कोर्ट ने चुनाव आयोग के इस बयान पर संज्ञान लिया है कि एसआईआर अभियान में 85,000 नए मतदाता सामने आए हैं और राजनीतिक दलों के बूथ-स्तरीय एजेंटों द्वारा केवल दो आपत्तियां दर्ज की गई हैं। कोर्ट ने कहा कि बिहार के सभी 12 राजनीतिक दल पार्टी कार्यकर्ताओं को विशिष्ट निर्देश जारी करेंगे कि वे फॉर्म 6 या आधार कार्ड में से किसी भी 11 दस्तावेजों के साथ आवश्यक फॉर्म दाखिल करने और जमा करने में लोगों की सहायता करें।
कोर्ट ने कहा है कि कोई भी व्यक्ति खुद से या बीएलए (बूथ लेवल एजेंट) की मदद से ऑनलाइन आवेदन कर सकता है और उसे भौतिक रूप में आवेदन जमा करना आवश्यक नहीं है। सभी राजनीतिक दलों के बीएलए को यह प्रयास करने का निर्देश दिया जाता है कि लगभग 65 लाख ऐसे लोगों को, जो ड्राफ्ट रोल में शामिल नहीं हैं, एक सितंबर की अंतिम तिथि तक अपनी आपत्तियां दर्ज कराने में सुविधा प्रदान की जाए, सिवाय उन लोगों के जो मर चुके हैं या स्वेच्छा से पलायन कर गए हैं।
बिहार में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, जिसके पहले चुनाव आयोग वोटर्स लिस्ट में नाम शामिल करवाने के लिए बड़े स्तर पर एसआईआर नामक प्रक्रिया चला रहा है। इसके तहत पहले वोटर्स से 11 तरह के डॉक्युमेंट्स मांगे जा रहे थे, जिसमें आधार कार्ड शामिल नहीं था। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इन डॉक्युमेंट्स में आधार को भी शामिल करने का निर्देश दिया है। चुनाव आयोग ने काटे गए 65 लाख वोटर्स के नामों को भी पिछले दिनों प्रकाशित कर दिया।
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा कि बिहार के 65 लाख मतदाताओं के नाम और विवरण, जो एक अगस्त को प्रकाशित मसौदा मतदाता सूची में शामिल नहीं थे, राज्य के सभी 38 जिला निर्वाचन अधिकारियों की वेबसाइटों पर डाल दिए गए हैं। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सूची में उनके शामिल न होने के कारण भी शामिल हैं, जिनमें मृत्यु, सामान्य निवास का स्थानांतरण या डुप्लिकेट प्रविष्टियां शामिल हैं। चुनाव आयोग ने कहा कि सूची की फिजिकल कॉपीज बिहार भर के गांवों में पंचायत भवनों, खंड विकास कार्यालयों और पंचायत कार्यालयों में लगाई गई हैं ताकि लोग आसानी से उन तक पहुंच सकें और पूछताछ कर सकें।
चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाएं आरजेडी सांसद मनोज झा, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), पीयूसीएल, कार्यकर्ता योगेंद्र यादव, तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा और बिहार के पूर्व विधायक मुजाहिद आलम ने दायर की थीं। याचिकाओं में चुनाव आयोग के 24 जून के उस निर्देश को रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई थी, जिसके तहत बिहार के मतदाताओं के एक बड़े वर्ग को मतदाता सूची में बने रहने के लिए नागरिकता का प्रमाण प्रस्तुत करना अनिवार्य है। याचिकाओं में आधार और राशन कार्ड जैसे व्यापक रूप से प्रचलित दस्तावेजों को मतदाता सूची से बाहर रखने पर भी चिंता जताई गई थी। उनका कहना है कि इससे गरीब और हाशिए पर रहने वाले मतदाता, खासकर ग्रामीण बिहार में, असमान रूप से प्रभावित होंगे।
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