विभाजन पर कांग्रेस के हस्ताक्षर और स्वीकार्यता है bharat vibhajan
बिलकुल—AICC (दिल्ली, 14–15 जून 1947) की बैठक में अध्यक्ष के रूप में जवाहरलाल नेहरू ने जो भाषण दिया, उसके कुछ अहम अंश/मुख्य कथन नीचे दे रहा हूँ (उसी समय के प्रामाणिक संकलन The Indian Annual Register, Jan–June 1947 में दर्ज पाठ से):
“डॉमिनियन स्टेटस बनाम पूर्ण स्वतंत्रता—इस विवाद का अब कोई अर्थ नहीं… डॉमिनियन-स्टेटस की स्वीकृति संविधान सभा के ‘रिपब्लिक’ प्रस्ताव के प्रति बिना किसी पूर्वाग्रह के है।”
“पाकिस्तान और हिंदुस्तान की सारी बात एक गलतफ़हमी से पैदा हुई है… व्यवहारिक और विधिक दृष्टि से भारत एक इकाई के रूप में विद्यमान है—फर्क सिर्फ इतना है कि कुछ प्रांत/भाग अलग होने की इच्छा जता रहे हैं… भारत सरकार अक्षुण्ण है, इसलिए ‘हिंदुस्तान’ और ‘पाकिस्तान’ को लेकर भ्रम न फैलाया जाए।”
“वर्तमान शायद सबसे कठिन समय है… हमें सबसे पहले भारत की स्वतंत्रता को दृढ़ता से स्थापित करना है और एक शक्तिशाली केंद्रीय सरकार खड़ी करनी है; जब यह हो जाएगा तो बाकी कार्यक्रम कठिन नहीं रहेंगे… कांग्रेस की भारी जिम्मेदारी है।”
इसी बैठक में AICC ने 3 जून 1947 की घोषणा (माउंटबैटन योजना) के अनुसार जन-इच्छा जानने की प्रक्रिया को स्वीकार करते हुए प्रस्ताव पारित किया—जिसमें यह भी दर्ज था कि परिस्थितियों में “कुछ हिस्सों के पृथक्करण” की संभावना AICC “खेद के बावजूद” स्वीकार करती है; साथ ही भारत की आर्थिक-भौगोलिक एकता और “दो-कौम के सिद्धांत” की असत्यता पर ज़ोर दिया गया।
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मैं आपको जवाहरलाल नेहरू के अध्यक्षीय भाषण (AICC विशेष अधिवेशन, दिल्ली, 14–15 जून 1947) और उसके साथ पारित प्रस्ताव के प्रासंगिक हिस्से का एक सतत रूप और हिंदी अनुवाद दे रहा हूँ।
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नेहरू का भाषण (मुख्य अंश, अंग्रेज़ी मूल से संक्षेप)
> “The controversy between Dominion Status and complete independence has little meaning now… Acceptance of Dominion Status is without prejudice to the Constituent Assembly’s resolution for a Republic.
The talk about Pakistan and Hindustan has arisen out of a misunderstanding… In fact and in law, India continues as one entity. What is happening is that certain parts are seeking separation. India as a whole continues to exist, and the Government of India continues. Therefore there is no such thing as Hindustan and Pakistan.
The present time is perhaps the most difficult… We must, first of all, establish India’s independence firmly and create a strong central authority. Once that is done, the rest of our programme will not be so difficult. The Congress has a heavy responsibility on its shoulders.”
— (Indian Annual Register, Jan–June 1947)
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हिंदी अनुवाद
> “डॉमिनियन स्टेटस और पूर्ण स्वतंत्रता के बीच का विवाद अब कोई अर्थ नहीं रखता… डॉमिनियन स्टेटस की स्वीकृति संविधान सभा के ‘गणराज्य’ प्रस्ताव के प्रति बिना किसी पूर्वाग्रह के है।
पाकिस्तान और हिंदुस्तान की सारी चर्चा एक गलतफ़हमी से उठी है… वस्तुतः और विधिक रूप से भारत एक इकाई के रूप में विद्यमान है। जो हो रहा है वह यह है कि कुछ भाग अलग होने की मांग कर रहे हैं। भारत एक संपूर्ण के रूप में मौजूद है, और भारत सरकार भी मौजूद है। अतः ‘हिंदुस्तान’ और ‘पाकिस्तान’ कहना भ्रामक है।
वर्तमान समय शायद सबसे कठिन है… हमें सबसे पहले भारत की स्वतंत्रता को दृढ़ता से स्थापित करना होगा और एक मज़बूत केंद्रीय सत्ता खड़ी करनी होगी। जब यह हो जाएगा तो हमारे शेष कार्यक्रम इतने कठिन नहीं रहेंगे। कांग्रेस के कंधों पर भारी ज़िम्मेदारी है।”
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AICC द्वारा पारित प्रस्ताव (15 जून 1947) – सार
कांग्रेस ने 3 जून 1947 की घोषणा (माउंटबेटन योजना) को स्वीकार किया।
प्रस्ताव में कहा गया:
भारत की आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक एकता अब भी निर्विवाद है।
“दो राष्ट्र सिद्धांत” को कांग्रेस ने झूठा बताया।
परंतु परिस्थितियों में कुछ क्षेत्रों के पृथक्करण की संभावना को कांग्रेस ने “गहन खेद” के साथ स्वीकार किया।
कांग्रेस का ध्येय रहेगा कि शेष भारत को एक स्वतंत्र, एकीकृत, मज़बूत और लोकतांत्रिक राज्य के रूप में विकसित किया जाए।
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नेहरू का भाषण और प्रस्ताव मिलकर यह दिखाते हैं कि कांग्रेस ने विभाजन को अनिवार्य परिस्थिति के रूप में स्वीकार किया,
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