Dismantling Global Hindutva vs rss vhp bjp


असल में कई वर्षो से हम यह देख रहे हैँ कि पश्चिमी देशों में हिंदुत्व के विरुद्ध एक सुनियोजित अभियान चल रहा है। कनाडा, अमेरिका सहित अनेक ईसाई देशों में यह भिन्न भिन्न रूप में देखने को मिला किन्तु मूलतः ये सब जहां मिलते हैँ वह " डिसमेंटत्लिंग ग्लोबल हिंदुत्व " अभियान है, इसी की भाषा जार्ज सोरस बोलता है, यही भाषा राहुल गाँधी बोलते हैँ ओर वर्तमान में अमरीकी व्यवहार के लिए यही अभियान अंतर्निहित प्रतीत हो रहा है। अन्य बातें बेकार हैँ।

ईसाई धर्मगुरु पोप नें एक बार भारत में ही यह कहा था कि पहली सहस्त्रावदी में हम यूरोप में स्थापित हुये, दूसरी सहस्त्रावदी में अमेरिका ऑस्ट्रेलिया आदि में स्थापित हुये ओर तीसरी साहस्त्रावदी में एशिया को ईशा के झंडे के नीचे लाना है ओर भारत इसकी चाबी है.

प्रतीत होता है कि भारतीय प्रायदीप पर अमरीका जो सिकंजा कस रहा है वह इसी लक्ष्य की प्राप्ती के क्रम में की जा रहीं कार्यवाहीयां है. जिनका मूल उद्देश्य हिंदुत्व के प्रभाव को रोकना ओर अंततः ईसाइयत स्थापित करना है। हिंदू से मुस्लिम को लड़ना ओर अपने पैर जमाने का काम ब्रिटिश सरकार में भी हुआ और यह कांग्रेस शासन में भी जारी रहा। मोदीजी की सरकार आने के साथ ही हिंदुत्व में उभार आया। जो इन ताकतों को पच नहीं रहा। बंगालादेश में सत्ता परिवर्तन,  पहलगांव में धर्म पूछ कर आतंकी हमला और फिर पाकिस्तान के आर्मी चीफ को वाइट हॉउस में भोजन करना और फिर भारत पर अनावश्यक आक्रामकता  से टेरीफ लगाना। इसी संदर्भ का हिस्सा हैँ।
=======

भारतीय प्रायद्वीप में हिंदुत्व-विरोध और ईसाईकरण की रणनीति – कालक्रम

पहली सहस्त्राब्दी (1 CE – 1000 CE)

प्रारंभिक ईसाई मिशन:

ईसा मसीह के बाद ईसाई धर्म का प्रसार पश्चिम एशिया, यूरोप और उत्तरी अफ्रीका तक सीमित था।

भारत में सीमित ईसाई उपस्थिति (जैसे सेंट थॉमस परंपरा के तहत केरल में छोटे ईसाई समूह), लेकिन कोई व्यापक प्रभाव नहीं।

पोप की दृष्टि का पहला चरण: यूरोप में ईसाई धर्म का सुदृढ़ीकरण और राजनीतिक-धार्मिक शक्ति का केंद्रीकरण।

दूसरी सहस्त्राब्दी (1000 CE – 2000 CE)

1. क्रूसेड्स और औपनिवेशिक नींव (11वीं–15वीं सदी)

यूरोप में इस्लामी और अन्य प्रभाव को हटाने के लिए क्रूसेड्स।

समुद्री अन्वेषण के बहाने एशिया, अफ्रीका में ईसाई साम्राज्यवाद की शुरुआत।

2. पुर्तगाली आगमन (1498)

वास्को-दा-गामा के साथ पुर्तगालियों का भारत आगमन।

गोवा और अन्य तटीय क्षेत्रों में ईसाई मिशनरी गतिविधियों की शुरुआत।

जबरन धर्मांतरण और गोवा इनक्विज़िशन जैसी घटनाएँ – हिंदू धार्मिक स्थलों और परंपराओं का विध्वंस।

3. ब्रिटिश औपनिवेशिक काल (1757–1947)

मिशनरी शिक्षा संस्थानों के जरिए अंग्रेजी भाषा और ईसाई नैतिकता का प्रसार।

चार्ल्स ग्रांट, विलियम कैरी जैसे मिशनरियों की सक्रियता।

भारतीय समाज में "सभ्यता सुधार" के नाम पर हिंदू परंपराओं की आलोचना।

4. 20वीं सदी में पोप का दृष्टिकोण

1990 के दशक के अंत में पोप जॉन पॉल द्वितीय का बयान:

पहली सहस्त्राब्दी – यूरोप, दूसरी – अमेरिका/ऑस्ट्रेलिया, तीसरी – एशिया को ईसा के ध्वज तले लाना, भारत इसकी चाबी है।

यह बयान भारतीय ईसाईकरण को वैश्विक चर्च की प्राथमिकता के रूप में दर्शाता है।

तीसरी सहस्त्राब्दी (2000 CE – वर्तमान)

1. वैश्विक राजनीतिक-सांस्कृतिक दबाव

अमेरिका और यूरोप में “धार्मिक स्वतंत्रता” रिपोर्टों के माध्यम से भारत पर आलोचना।

NGOs, थिंक टैंक्स और अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में Hindutva को नकारात्मक रूप से प्रस्तुत करना।

2. “Dismantling Global Hindutva” अभियान (2021 के आसपास)

अमेरिका, कनाडा और यूरोप के सैकड़ों प्रोफेसरों का संयुक्त प्रयास।

हिंदुत्व को “फासीवाद” और “मानवाधिकार उल्लंघन” से जोड़ने की कोशिश।

इस विमर्श को मीडिया, राजनीति और अकादमिक जगत में फैलाना।

3. जॉर्ज सोरस और पश्चिमी वित्तपोषण

खुले मंचों पर भारत की मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था को बदलने की इच्छा जताना।

NGOs और “मानवाधिकार” संगठनों को फंडिंग।

4. भारतीय राजनीति में प्रतिध्वनि

कुछ भारतीय नेताओं द्वारा विदेश मंचों पर हिंदुत्व को लेकर नकारात्मक बयान, जो इस अंतरराष्ट्रीय नैरेटिव से मेल खाते हैं।

विपक्षी राजनीति में इन विमर्शों का उपयोग।

5. अमेरिकी रणनीतिक प्रभाव

रक्षा और व्यापार साझेदारी के साथ-साथ सांस्कृतिक प्रभाव बढ़ाना।

मिशनरी नेटवर्क और चर्च-संबंधित NGOs की सक्रियता को अप्रत्यक्ष समर्थन।

भारत में सामाजिक विभाजन को “अल्पसंख्यक अधिकार” के नाम पर उभारना।

निष्कर्ष
यह प्रक्रिया क्रमिक और बहुस्तरीय है—औपनिवेशिक दौर से लेकर आधुनिक वैश्वीकरण युग तक।

पोप के वक्तव्य ने इसे धार्मिक-वैचारिक लक्ष्य के रूप में स्पष्ट कर दिया था।

“Dismantling Global Hindutva” जैसे अभियानों और अमेरिकी/यूरोपीय नीतियों में यही दीर्घकालिक एजेंडा झलकता है।

1. हिंदुत्व को कमजोर करना
2. सांस्कृतिक पहचान को पुनर्परिभाषित करना
3. अंततः भारत को ईसाई धर्म के प्रभाव में लाना।
=======
पश्चिमी देशों में हिंदुत्व-विरोधी अभियानों की पृष्ठभूमि

1. अभियान की पहचान – “Dismantling Global Hindutva”

पिछले कई वर्षों में, कनाडा, अमेरिका और यूरोप के कुछ देशों में “Dismantling Global Hindutva” नामक विचारधारा/अभियान देखने को मिला।

यह अभियान शैक्षणिक परिसरों, मीडिया प्लेटफॉर्मों और थिंक टैंक्स के माध्यम से हिंदुत्व को “सांप्रदायिक”, “कट्टर” और “अल्पसंख्यक विरोधी” के रूप में प्रस्तुत करता है।

इस अभियान की भाषा और तर्कशैली कई राजनीतिक व्यक्तित्वों और पश्चिमी वित्तपोषित समूहों के वक्तव्यों में प्रतिध्वनित होती है, जैसे:

जॉर्ज सोरस – भारत की राजनीतिक दिशा बदलने और मौजूदा व्यवस्था को चुनौती देने के बयान।

राहुल गांधी – विदेश मंचों पर हिंदुत्व की आलोचना।

कई अमेरिकी संस्थान – मानवाधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर रिपोर्ट जारी करना।

2. ऐतिहासिक धार्मिक एजेंडा – पोप का वक्तव्य

एक समय, भारत यात्रा के दौरान पोप ने कहा था:

पहली सहस्त्राब्दी – यूरोप में ईसाई धर्म की स्थापना।

दूसरी सहस्त्राब्दी – अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया आदि में ईसाई धर्म का प्रसार।

तीसरी सहस्त्राब्दी – एशिया को ईसा मसीह के ध्वज तले लाना, और इसमें भारत को “चाबी” के रूप में देखा जाना।

इसका संकेत यह था कि भारत, जो सांस्कृतिक, जनसंख्या और आध्यात्मिक दृष्टि से एशिया का प्रमुख केंद्र है, को ईसाईकरण की दिशा में निर्णायक माना गया।

3. अमेरिकी भू-राजनीतिक रणनीति और भारत

भारत में बढ़ते हिंदुत्व के प्रभाव को अमेरिकी-यूरोपीय रणनीतिक हलकों में “सांस्कृतिक राष्ट्रवाद” के रूप में देखा जाता है, जो पश्चिमी मूल्यों के विपरीत है।

अमेरिकी नीतियों में निम्नलिखित प्रवृत्तियाँ देखी जाती हैं:

धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट में भारत पर नकारात्मक टिप्पणियाँ।

भारत के भीतर ईसाई मिशनरी गतिविधियों के लिए अप्रत्यक्ष संरक्षण।

अकादमिक संस्थानों और NGOs को वित्तपोषण, जो हिंदुत्व की आलोचना को बढ़ावा दें।

वैश्विक मंचों पर भारत की धार्मिक नीतियों पर दबाव बनाना।

4. लक्ष्य – हिंदुत्व को कमजोर कर ईसाईकरण को प्रोत्साहन

हिंदुत्व को “अल्पसंख्यकों के लिए खतरा” बताने की कोशिश।

स्थानीय असंतोष और सामाजिक विभाजन को उभारकर हिंदू एकता को तोड़ना।

धर्मांतरण को “मानवाधिकार” और “स्वतंत्रता” के रूप में प्रस्तुत करना।

भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता को कमजोर कर पश्चिमी वैचारिक वर्चस्व स्थापित करना।

5. निष्कर्ष

“Dismantling Global Hindutva” केवल एक शैक्षणिक विमर्श नहीं, बल्कि धार्मिक-राजनीतिक एजेंडा से जुड़ा हुआ प्रतीत होता है।

पोप के ऐतिहासिक बयान और अमेरिकी नीतिगत रुझान इस व्यापक रणनीति के संकेतक हैं।

भारतीय प्रायद्वीप पर बढ़ता अमेरिकी प्रभाव केवल रणनीतिक साझेदारी के लिए नहीं, बल्कि सांस्कृतिक-धार्मिक रूपांतरण के दीर्घकालिक उद्देश्य से भी जुड़ा हो सकता है।
=====---====
"डिस्मेंटल हिंदुत्व" (Dismantle Hindutva) एक अभियान है जिसका उद्देश्य हिंदुत्व विचारधारा और आंदोलन को कमजोर करना है। यह एक ऐसा आंदोलन है जो दक्षिणपंथी हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा को चुनौती देता है, जिसका लक्ष्य भारत को एक हिंदू राष्ट्र बनाना है. इस अभियान में हिंदुत्व के विभिन्न पहलुओं, जैसे कि इसकी विचारधारा, राजनीतिक प्रभाव, और सामाजिक परिणामों पर सवाल उठाए जाते हैं.
मुख्य बातें:
हिंदुत्व क्या है?
हिंदुत्व एक दक्षिणपंथी हिंदू राष्ट्रवादी आंदोलन है जिसका लक्ष्य भारत को एक हिंदू राष्ट्र में बदलना है, जिसमें 200 मिलियन से अधिक मुसलमान रहते हैं.
अभियान का उद्देश्य:
"डिस्मेंटल हिंदुत्व" अभियान का उद्देश्य हिंदुत्व के प्रभाव को कम करना है, खासकर इसके राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव को.
अभियान के तरीके:
यह अभियान विभिन्न तरीकों से हिंदुत्व को चुनौती देता है, जैसे कि शैक्षणिक चर्चाओं, सामाजिक आंदोलनों, और कानूनी चुनौतियों के माध्यम से.
विरोध:
हिंदुत्व के समर्थक इस अभियान को "हिंदू विरोधी" और "भारत विरोधी" बताते हुए इसका विरोध करते हैं.
उदाहरण:
2021 में, 53 से अधिक विश्वविद्यालयों द्वारा प्रायोजित "डिस्मेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व" नामक एक ऑनलाइन सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसमें हिंदुत्व के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई थी.
इस सम्मेलन को हिंदू दक्षिणपंथी समूहों और व्यक्तियों द्वारा विरोध का सामना करना पड़ा, जिन्होंने इसे "हिंदू विरोधी सभा" बताया.
इस अभियान में शामिल लोगों को जान से मारने की धमकियां भी दी गईं, The Guardian ने रिपोर्ट किया.
निष्कर्ष:
"डिस्मेंटल हिंदुत्व" अभियान एक महत्वपूर्ण आंदोलन है जो हिंदुत्व के प्रभाव को चुनौती देता है। यह एक जटिल मुद्दा है, जिसमें विभिन्न दृष्टिकोण और विचार शामिल हैं.
====-=====
"डिस्मेंटल हिंदुत्व" अभियान – पृष्ठभूमि, उद्देश्य और विवाद

1. प्रस्तावना

"डिस्मेंटल हिंदुत्व" (Dismantle Hindutva) एक वैश्विक और भारतीय स्तर पर चर्चा का विषय बना हुआ अभियान है, जिसका उद्देश्य हिंदुत्व विचारधारा और उससे जुड़े राजनीतिक-सामाजिक प्रभाव को चुनौती देना है। यह आंदोलन मानता है कि हिंदुत्व, हिंदू धर्म के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक स्वरूप से अलग एक राजनीतिक विचारधारा है, जिसका लक्ष्य भारत को एक हिंदू राष्ट्र के रूप में परिभाषित करना है।
इस अभियान के समर्थकों का तर्क है कि हिंदुत्व, बहुसांस्कृतिक और बहुधार्मिक भारत के लिए खतरा है, जबकि इसके विरोधी इसे हिंदुओं के खिलाफ एक सुनियोजित प्रोपेगैंडा बताते हैं।
---

2. हिंदुत्व – परिभाषा और ऐतिहासिक संदर्भ

परिभाषा:
"हिंदुत्व" शब्द का लोकप्रिय राजनीतिक उपयोग विनायक दामोदर सावरकर ने 1923 में अपनी पुस्तक Hindutva: Who is a Hindu? में किया।

मुख्य विचार:
हिंदुत्व का आधार यह मान्यता है कि भारत एक हिंदू सभ्यता है और यहां की राष्ट्रीय पहचान हिंदू संस्कृति से जुड़ी है।

राजनीतिक धारा:
हिंदुत्व को भारतीय राजनीति में संघ परिवार (RSS, BJP, VHP आदि) ने संगठित रूप से बढ़ाया, और आज यह भारतीय जनता पार्टी (BJP) की राजनीतिक विचारधारा का केंद्र है।
---

3. "डिस्मेंटल हिंदुत्व" अभियान का उदय

यह आंदोलन सोशल मीडिया, शैक्षणिक जगत और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अधिक सक्रिय है।

2021 में "Dismantling Global Hindutva" नामक एक तीन-दिवसीय ऑनलाइन सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसे 53 से अधिक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों ने समर्थन दिया।

सम्मेलन में हिंदुत्व की विचारधारा, इसके राजनीतिक और सामाजिक असर, और धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर चर्चा की गई।

The Guardian और अन्य अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने रिपोर्ट किया कि इस सम्मेलन के आयोजकों को जान से मारने की धमकियां और ऑनलाइन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा।
---
4. अभियान के उद्देश्य

"डिस्मेंटल हिंदुत्व" अभियान निम्न लक्ष्यों पर केंद्रित है:

1. राजनीतिक प्रभाव को चुनौती देना – हिंदुत्व समर्थक संगठनों और राजनीतिक पार्टियों की नीतियों की आलोचना।

2. मानवाधिकार और अल्पसंख्यक सुरक्षा – धार्मिक अल्पसंख्यकों (विशेषकर मुस्लिम और ईसाई समुदाय) के खिलाफ हिंसा और भेदभाव के मामलों को उजागर करना।

3. शैक्षणिक विमर्श – विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों के माध्यम से हिंदुत्व के ऐतिहासिक और सामाजिक विश्लेषण को बढ़ावा देना।

4. वैश्विक नेटवर्किंग – भारतीय प्रवासी और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों के साथ सहयोग।
---

5. अभियान के तरीके

शैक्षणिक सम्मेलन और वेबिनार – जैसे "Dismantling Global Hindutva"।

सोशल मीडिया कैंपेन – ट्विटर, इंस्टाग्राम, फेसबुक पर हैशटैग और पोस्ट्स के जरिए जनजागरूकता।

कानूनी चुनौतियां – सांप्रदायिक हिंसा, घृणास्पद भाषण और भेदभावपूर्ण कानूनों के खिलाफ याचिकाएं।

कलात्मक और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति – डॉक्यूमेंट्री, नाटक, लेख, और कला प्रदर्शनियों के जरिए संदेश फैलाना।
---

6. विरोध और विवाद

हिंदुत्व समर्थक समूह इस अभियान पर निम्न आरोप लगाते हैं:

1. यह हिंदू धर्म विरोधी है, न कि केवल हिंदुत्व विरोधी।

2. यह भारत की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खराब करने का प्रयास है।

3. इसमें विदेशी हस्तक्षेप और फंडिंग शामिल हो सकती है।

4. यह अभियान एकतरफा है और केवल दक्षिणपंथी विचारधारा को निशाना बनाता है, जबकि अन्य धार्मिक कट्टरवाद पर चुप रहता है।

2021 के सम्मेलन के दौरान, कई दक्षिणपंथी संगठनों ने इसे "हिंदू विरोधी सभा" बताया और इसके आयोजकों के खिलाफ ऑनलाइन अभियान चलाया।
---
7. सामाजिक और राजनीतिक असर

इस अभियान ने हिंदुत्व पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहस को तेज किया।

भारत में, यह मुद्दा ध्रुवीकरण (polarization) का कारण बना — एक तरफ इसे लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति माना गया, दूसरी तरफ इसे "विभाजनकारी एजेंडा" कहकर खारिज किया गया।

सोशल मीडिया पर, इस विषय से जुड़े हैशटैग और बहस अक्सर ट्रेंड में रहे, जिससे जनमत में तीखी विभाजन रेखा खिंच गई।
---
8. निष्कर्ष

"डिस्मेंटल हिंदुत्व" केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक वैचारिक संघर्ष का प्रतीक बन चुका है। इसमें दो स्पष्ट धाराएं दिखती हैं:

समर्थकों की दृष्टि: यह लोकतंत्र, बहुलतावाद और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए जरूरी है।

विरोधियों की दृष्टि: यह हिंदू पहचान और भारत की सांस्कृतिक जड़ों पर हमला है।

अंततः, यह मुद्दा सिर्फ एक राजनीतिक बहस नहीं, बल्कि भारतीय समाज की पहचान, धर्मनिरपेक्षता और भविष्य की दिशा से जुड़ा प्रश्न है। इसकी जटिलता इस तथ्य में है कि "हिंदुत्व" और "हिंदू धर्म" के बीच की रेखा अक्सर धुंधली कर दी जाती है, जिससे संवाद कठिन और विवाद गहरा हो जाता है।
---


टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

कण कण सूं गूंजे, जय जय राजस्थान

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

छत्रपति शिवाजी : सिसोदिया राजपूत वंश

‘‘भूरेटिया नी मानू रे’’: अंग्रेजों तुम्हारी नहीं मानूंगा - गोविन्द गुरू

भगवा आतंकवाद गढ़ने वालों पर प्रभावी कार्यवाही होनी चाहिए - अरविन्द सिसोदिया

मोदीजी के नेतृत्व में भारत सबसे तेजगति की आर्थिकशक्ति - अरविन्द सिसोदिया

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

खींची राजवंश : गागरोण दुर्ग

प्रधानमंत्री मोदीजी के आव्हान पर स्वदेशी खरीददारी का संकल्प लें - अरविन्द सिसोदिया