मोक्ष ही परमधाम


मोक्ष : आत्मा की परम यात्रा

सनातन धर्म की गहन शिक्षाओं में जीवन का अंतिम लक्ष्य केवल भौतिक सुख या सांसारिक सफलता नहीं है, बल्कि आत्मा की शाश्वत यात्रा का समापन है। यह समापन मोक्ष या मुक्ति कहलाता है।

आत्मा का अनंत प्रवास

वेद-पुराणों में वर्णित है कि ईश्वर द्वारा निर्मित जीवात्मा शाश्वत है। यह न कभी जन्म लेती है और न कभी नष्ट होती है। किन्तु कर्मों के बंधन से बंधकर यह आत्मा 84 लाख प्रकार की योनियों में विचरण करती रहती है—कभी पशु, कभी पक्षी, कभी मनुष्य, तो कभी देवगति में।  कभी शरीरधारी तो कभी सूक्ष्म शरीर में,यही जन्म और मृत्यु का चक्र संसार का आवागमन कहलाता है और निरंतर चलता रहता है। यही रहस्य श्रीमद भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण , अर्जुन को बताते हैँ।

मनुष्य जन्म इन सब योनियों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसका कारण यही है कि मनुष्य को विवेक, बुद्धि, साधना और ईश्वर का स्मरण करने की क्षमता प्राप्त होती है। यही सुअवसर आत्मा के लिए मोक्ष का द्वार खोलता है।

मोक्ष का वास्तविक अर्थ
मोक्ष का अर्थ केवल मृत्यु से छुटकारा पाना नहीं है। यह तो आत्मा का अपने मूल स्रोत, परमात्मा में लय होना है। जब जीवात्मा अपने कर्म बंधनों से मुक्त होकर ईश्वर के श्रीचरणों में शरण पाती है, तभी वह जन्म-मृत्यु के चक्र से परे हो जाती है। यही परम शांति, परम आनन्द और अमरता की अवस्था मोक्ष है।

मोक्ष का मार्ग
मोक्ष प्राप्ति के लिए सनातन संस्कृति ने अनेक साधन बताए हैं –

भक्ति : ईश्वर के नाम, रूप, गुण और लीलाओं का निरंतर स्मरण व आराधना। क्योंकि अंतिम सत्य यही है कि जिसने जीवात्मा को बनाया, शरीरों को बनाया, प्रकृति और बृह्माण्ड को बनाया, वही सर्वश्रेष्ठ और सर्वक्तिमान है। उसकी शरणगती ही उत्तम गति है।

ज्ञान : आत्मा और परमात्मा के स्वरूप का बोध।

ध्यान व योग : मन को स्थिर करके आत्मा को परम सत्य से जोड़ना। क्योंकि इस संपूर्ण सृजन में हमारा कुछ नहीं है, न जीवन, न जीवात्मा और न विविध प्रकार की संपत्तीयां... सब का स्वामी जगत का निर्माता है।

सत्कर्म : धर्म, दया, करुणा और सेवा का आचरण। मनुष्य के रूप में जन्म लेनें पर प्राप्त विवेक हमें दया, करुणा, क्षमा और सहयोग रूपी सेवा के अवसर प्रदान करता है। जो जीवन को उच्चस्तर की ओर ले जाते हैँ। इनका हमें लाभ उठाना चाहिए।

इन मार्गों का सार यही है कि जीवात्मा अपने अहंकार, इच्छाओं और अज्ञान को त्यागकर, ईश्वर की शरण में स्थिर हो जाए।
निष्कर्ष

जन्म-मृत्यु का चक्र संसार का नियम है, किन्तु मोक्ष उस नियम से परे जाने की स्थिति है। यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि आत्मा की परम सत्य यात्रा है। जब जीवात्मा ईश्वर के श्रीचरणों में स्थिर हो जाती है, तब उसे न कोई भय रहता है, न कोई दुख। वहीं है शाश्वत शांति और अमृत आनंद।
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