पूरी दुनिया को बर्बाद करने पर तुले ट्रंप को, भारतवासी अपनी एकजुटता से जबाब देंगे - अरविन्द सिसोदिया

पूरी दुनिया को बर्बाद करने पर तुले ट्रंप को, भारतवासी अपनी एकजुटता से जबाब देंगे - अरविन्द सिसोदिया 


जब कोई डोनाल्ड ट्रंप जैसे व्यक्ति भारत को "गंदा", "गिरती हुई अर्थव्यवस्था" कहता है, या राहुल गांधी जैसे विपक्षी नेता भारत को "पूंजीपतियों के लिए चलाया गया असफल प्रयोगशाला" बताते हैं, तो यह ज़रूरी हो जाता है कि इन बयानों को सिर्फ खारिज न किया जाए, बल्कि तथ्यों और वैश्विक संदर्भ में परखा जाए। और ऐसा करने के लिए सबसे उपयुक्त तुलनात्मक दृष्टिकोण है—भारत बनाम अमेरिका।

भारत बनाम अमेरिका को समझें 
अमेरिका अभी भी दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, लेकिन इसके भीतर विकृत सोच,आर्थिक विषमताएँ और अस्थिरताएँ लगातार बढ़ रही हैं। 2024 में अमेरिका का कुल राष्ट्रीय कर्ज 34 ट्रिलियन डॉलर पार कर गया, जो उनकी जी डी पी से भी अधिक है। वहीं भारत का कर्ज अभी भी नियंत्रित दायरे में है—लगभग 83% जीडीपी के आसपास, वह भी अधिकतर घरेलू है और उसके पुनर्भुगतान की स्थिति स्थिर बनी हुई है। अमेरिका में ब्याज दरें तेज़ी से बढ़ीं, जिससे बैंकों का संचालन कठिन हुआ और उपभोक्ता क्रेडिट पर भारी दबाव आया। अमेरिका में बैंक डूब गया यह भी हमनें सुना। इसके विपरीत भारत ने रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया के संतुलित नीतिगत कदमों से मुद्रास्फीति को अपेक्षाकृत नियंत्रित रखा।

महंगाई की बात करें तो, अमेरिका में 2022-23 के दौरान कंजूमर प्राइज इंडेक्स 7% तक जा पहुँचा, जो 40 साल का उच्चतम स्तर पर था। भारत में भी महंगाई रही, लेकिन खाद्य सब्सिडी और  ऊर्जा सब्सिडियों और बेहतर वितरण तंत्र के कारण यह तुलनात्मक रूप से संयमित रही। अमेरिका में 2024 के पहले छह महीनों में बेरोज़गारी 4% के आसपास रही, पर तकनीकी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर छँटनी से हुई। भारत में स्टार्टअप संस्कृति, मसमे एमएसएमइ विस्तार और सेवा क्षेत्र की निरंतर वृद्धि ने लाखों लोगों को आजीविका दी है। भारत में बेरोजगारी है मगर जहाँ जरूरत है वहाँ रोजगार के अवसर अधिक और व्यक्ति कम हैँ। इसलिए समायोजित संतुलन बना हुआ है।

अब डिजिटल भुगतान और फिनटेक की बात करें। अमेरिका में अब भी क्रेडिट कार्ड संस्कृति हावी है, जबकि भारत ने यू पी आई जैसे साधनों के माध्यम से छोटे गाँवों तक में डिजिटल भुगतान की पहुँच बना दी है। भारत हर महीने 12 अरब से अधिक डिजिटल ट्रांजैक्शन करता है। जो अमेरिकी जैसे कथित समृद्ध देश से कहीं बहुत अधिक है। अमेरिका से पहले भारत ने इंटरऑपरेबल पेमेंट्स, क्यू आर आधारित माइक्रोपेमेंट और डिजिटल पहचान को राष्ट्रीय स्तर पर अपनाया, जो भारत में बढ़ती वैज्ञानिकता का भी प्रमाण है।

ट्रंप का दावा था कि भारत अमेरिका से सिर्फ लेता है, बदले में कुछ नहीं देता। लेकिन अगर वैश्विक सप्लाई चेन की बात करें, तो भारत अब चीन के विकल्प के रूप में उभर रहा है। एक विश्वसनीय  निर्माण केंद्र बन कर उभरा है। एप्पल, माइक्रोन, टेस्ला जैसी कंपनियाँ भारत में निवेश कर रही हैं। वहीं अमेरिका की निर्माण इकाइयाँ चीन और वियतनाम पर मोहताज हैँ वे वहाँ से वापसी तक नहीं कर पा रही हैं क्योंकि अमेरिका में श्रम लागत और लॉजिस्टिक्स की समस्या बनी हुई है।

इस सब के बीच, सबसे बड़ी बात यह है कि भारत की वृद्धि "लोकतंत्र" के भीतर हो रही है। जहाँ अमेरिका में समाज गहरे ध्रुवीकरण, नस्लीय तनाव और राजनैतिक टकराव से जूझ रहा है, भारत ने एक बहुभाषी, बहुसांस्कृतिक, और विविध समाज में स्थिरता बनाए रखी है।

भारत में बहुतसारी समस्याएँ हैं, जिसका कारण दीर्घकालीन ज्यादा है। इस कारण बेरोज़गारी, शिक्षा की गुणवत्ता, जलवायु संकट और स्वास्थ्य सेवाओं की सीमाएँ, ये सब गंभीर विषय हैं। किन्तु भारत की दिशा स्पष्ट है। वह वैश्विक अर्थव्यवस्था में अधिक भागीदारी, आत्मनिर्भरता और तकनीकी नवाचार की ओर बढ़ रहा है। मात्र वर्तमान 10 वर्षो में भारत नें कमाल कर दिखाया है। इसके विपरीत, अमेरिका के सामने अपनी मुद्रा की स्थिरता, व्यापार घाटा, और समाजिक एकता की चुनौती निरंतर बढ़ रही है, विषमता गहरी होती जा रही है।

इसलिए, जब ट्रंप या राहुल गांधी जैसे लोग भारत की अर्थव्यवस्था को “डूबती” कहते हैं, तो असल में वे एक ऐसे देश की शक्ति को नकारते हैं जिसने बेहद सीमित संसाधनों से वैश्विक प्रतिस्पर्धा में जगह बनाई है। भारत की अर्थव्यवस्था न तो विफल है, न ही धीमी है, बल्कि वह पुनर्रचना की अवस्था में है और यह पुनर्रचना लोकतंत्र, नवाचार और जनभागीदारी की बुनियाद पर खड़ी है। इसलिए बेहद मजबूत भी है।

.भारत अब केवल 'उभरता हुआ बाजार' नहीं रहा; वह एक आत्मविश्वासी राष्ट्र है जो अपनी आर्थिक नीतियों के माध्यम से दुनिया को बता रहा है कि विकल्प केवल पश्चिम नहीं हैं। और इस आत्मविश्वास की नींव रखने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।भारत की आवाज़ अब विनम्र होकर नहीं, दृढ़ होकर बोल रही है। तथ्यों के साथ, आत्मबल के साथ।

-----शेष भाग.....

2014 में जब मोदीजी सत्ता में आए, उस समय भारत की अर्थव्यवस्था स्थिरता के संकट से जूझ रही थी। नीतिगत पंगुता, भ्रष्टाचार और निवेशकों में अविश्वास छाया हुआ था। मोदी सरकार ने पहले ही कार्यकाल में आर्थिक सुधारों को प्राथमिकता दी। ‘मेक इन इंडिया’, ‘स्टार्टअप इंडिया’, ‘डिजिटल इंडिया’ जैसे अभियानों ने केवल नारे नहीं, बल्कि ठोस ढाँचागत बदलावों की शुरुआत की।

जिस देश में करोड़ों लोग बैंक खाता नहीं रखते थे, वहाँ जनधन योजना के माध्यम से 50 करोड़ से अधिक खाते खोले गए। जहाँ नकद लेनदेन ही मुख्य था, वहाँ यूपीआई जैसी प्रणालियाँ हर नागरिक के हाथ में स्मार्टफोन के ज़रिए डिजिटल बैंकिंग ला चुकी हैं। ये सिर्फ टेक्नोलॉजिकल उपलब्धियाँ नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक समावेशन की दिशा में क्रांति हैं।

कोविड महामारी के दौरान जब दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ लड़खड़ा रही थीं, अमेरिका जैसा सबसे विकसित देश भी लाशों का संग्रालय बन गया था। तब भारत नें न केवल वेक्सीन खोजी और महामारी को परास्त। उस दौरान भारत ने 'आत्मनिर्भर भारत' पैकेज के ज़रिए न केवल राहत दी, बल्कि उसे एक पुनर्निर्माण के अवसर में बदला। आज सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन, डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग और ग्रीन एनर्जी जैसे क्षेत्रों में जो निवेश हो रहे हैं, वे मोदी सरकार की दूरदृष्टि के परिणाम हैं।

विदेश नीति और अर्थव्यवस्था के जुड़ाव की दृष्टि से भी मोदी युग उल्लेखनीय है। निवेशकों का भरोसा बढ़ा है,आसानी के व्यापार अर्थात ईजी ऑफ़ डुइंग बिजनेस में भारत की रैंक सुधरी है और भारत अब वैश्विक मंचों पर केवल एक सहभागी नहीं, बल्कि नीति-निर्माता की भूमिका निभा रहा है। चाहे वह जी 20 की अध्यक्षता हो या  इंटरनेशनल सोलर अलायंसकी अगुवाई।

मोदीजी की शैली पर मतभेद हो सकते हैं,आलोचनाएँ हो सकती हैं लेकिन यह तथ्य नहीं झुठलाया जा सकता कि उनके नेतृत्व में भारत की अर्थव्यवस्था ने एक स्पष्ट दिशा, एक उद्देश्यपूर्ण गति, और एक वैश्विक पहचान प्राप्त की है।

===2===

हॉल ही में भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर कुछ ऐसे बयान सामने आए हैं, जो न केवल अतिशयोक्तिपूर्ण हैं, बल्कि देश की वास्तविक आर्थिक तस्वीर से कोसों दूर हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को एक पिछड़ा, गंदा और असंतुलित देश बताते हुए आर्थिक सहयोग की संभावनाओं को कमतर आँका, जबकि राहुल गांधी ने अपने देश की अर्थव्यवस्था को “नष्ट होती”, “असमान” और “चुनिंदा पूंजीपतियों के लाभ के लिए नियंत्रित” कहा। इन दोनों ही बयानों में एक समानता है—एक पूर्वग्रह और तथ्यों से कटकर बनाई गई धारणाएँ।

ट्रंप की टिप्पणियाँ मुख्यतः अमेरिकी घरेलू राजनीति को साधने के लिए थीं, लेकिन इसके प्रभाव अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक रिश्तों पर पड़ सकते हैं। वहीं राहुल गांधी, एक जिम्मेदार विपक्षी नेता होने के बावजूद, बार-बार भारत की अर्थव्यवस्था को गिरावट में दिखाने का प्रयास करते हैं, जो देश की वैश्विक छवि को नुकसान पहुँचाता है। भारत की जनता और नीति-निर्माताओं को यह समझने की आवश्यकता है कि आलोचना तब तक स्वस्थ होती है जब वह तथ्यों पर आधारित हो, लेकिन जब कोई बयान अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश के प्रति अविश्वास पैदा करे, तब उसका प्रतिवाद आवश्यक हो जाता है।

वास्तविकता यह है कि भारत इस समय विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है, और वह भी एक लोकतांत्रिक ढाँचे और कठिन वैश्विक परिस्थितियों के बावजूद। IMF और विश्व बैंक दोनों ने 2024 और 2025 के लिए भारत की विकास दर को 6% से अधिक आँका है, जबकि विकसित अर्थव्यवस्थाएं धीमी गति से बढ़ रही हैं या ठहराव की ओर जा रही हैं। भारत एक ऐसा देश है जो वैश्विक मंदी के बावजूद उपभोग, विनिर्माण और नवाचार में आगे बढ़ रहा है।

अगर कोई भारत की क्षमता को समझना चाहता है, तो उसे केवल आंकड़ों पर नहीं, भारत की जमीन पर हो रहे बदलावों पर भी ध्यान देना होगा। UPI जैसी डिजिटल भुगतान प्रणालियाँ न केवल देश के भीतर एक क्रांति ला रही हैं, बल्कि अन्य देशों में भी भारत से सीखने की प्रवृत्ति देखी जा रही है। करोड़ों लोग आज बैंकिंग व्यवस्था से जुड़े हैं, और टेक्नोलॉजी के जरिए सरकार और जनता के बीच की दूरी पहले से कहीं अधिक कम हुई है।

जहाँ एक ओर विकसित राष्ट्रों में औद्योगिक उत्पादन ठप पड़ रहा है, भारत में 'मेक इन इंडिया' अभियान के तहत वैश्विक कंपनियाँ जैसे Apple, Foxconn और Micron निवेश कर रही हैं। रक्षा, सेमीकंडक्टर, फार्मा, और इलेक्ट्रॉनिक्स में आत्मनिर्भरता की ओर भारत लगातार अग्रसर है। स्टार्टअप संस्कृति का इतना गहरा प्रसार किसी “ढहती” अर्थव्यवस्था में संभव नहीं होता—भारत में 100 से अधिक यूनिकॉर्न कंपनियाँ हैं, और हजारों नवोन्मेषी युवा रोज़ नई समस्याओं के व्यावहारिक समाधान खोज रहे हैं।

तो ऐसे में सवाल यह नहीं है कि कोई भारत को क्या कहता है, बल्कि यह है कि भारत खुद को किस रूप में देखता है और प्रस्तुत करता है। यह ज़रूरी है कि भारत की आर्थिक यात्रा की कहानी केवल नीति निर्माताओं की रिपोर्टों में सिमटी न रहे, बल्कि देश के युवाओं, उद्यमियों, किसानों और श्रमिकों की मेहनत और नवाचार को एक वैश्विक विमर्श में स्थान मिले। भारत की कहानी संघर्ष से सफलता तक की है, और वह केवल आंकड़ों से नहीं, आत्मविश्वास और क्षमता से लिखी जाती है।

हम एक ऐसे समय में हैं जहाँ वैश्विक शक्ति-संतुलन बदल रहा है। भारत अब केवल एक उभरता हुआ देश नहीं, बल्कि एक निर्णायक भागीदार बन रहा है। ऐसे में जब कोई देश या नेता भारत की आर्थिक क्षमताओं को कम आँकता है, तो उसका उत्तर केवल खंडन नहीं, बल्कि उदाहरणों और उपलब्धियों के माध्यम से देना अधिक प्रभावशाली होता है। भारत की अर्थव्यवस्था न तो डूब रही है और न ही कमजोर हो रही है—वह आकार ले रही है, विस्तार कर रही है और दुनिया के सामने एक विकल्प के रूप में उभर रही है।

हमें आवश्यकता है कि हम इस यात्रा में आलोचना और आत्मनिरीक्षण को स्थान दें, लेकिन साथ ही आत्मगौरव और सटीक तथ्यों के साथ भारत की ताकत को प्रस्तुत करें। क्योंकि जब कोई राष्ट्र अपनी क्षमताओं पर विश्वास करता है, तब दुनिया उसे अनदेखा नहीं कर सकती।

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भारत की अर्थव्यवस्था पर ट्रंप और राहुल गांधी के बयानों का खंडन: वास्तविकता और भारत की क्षमता की पुनर्स्थापना

हाल ही में भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर दो प्रमुख राजनीतिक व्यक्तियों – अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और भारत के विपक्षी नेता राहुल गांधी – ने ऐसे बयान दिए जो भारत की आर्थिक हकीकत से काफी दूर प्रतीत होते हैं। इन बयानों में भारत को एक "डूबती" या "नष्ट होती" अर्थव्यवस्था के रूप में प्रस्तुत किया गया है। ऐसे वक्तव्यों का खंडन केवल राजनीतिक आवश्यकता नहीं है, बल्कि यह भारत की वास्तविक वैश्विक आर्थिक स्थिति और संभावनाओं के पक्ष में सत्य की स्थापना का कार्य भी है।

ट्रंप और राहुल गांधी के दावे: राजनीतिक भाषा या आर्थिक सच्चाई?

डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को एक "निर्धन और गंदा देश" की छवि के साथ जोड़ते हुए इसके साथ व्यापार समझौते को हानिकर बताया था। यह वक्तव्य 21वीं सदी के भारत के आर्थिक विकास की अनदेखी करता है। दूसरी ओर, राहुल गांधी अक्सर भारत की आर्थिक नीतियों को "निष्फल", "जनविरोधी" या "पूंजीपतिपरस्त" कहकर आलोचना करते हैं और दावा करते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था "ढह रही है"।

हालांकि आलोचना लोकतंत्र का हिस्सा है, लेकिन जब ये आलोचनाएँ तथ्यों से परे जाती हैं और वैश्विक मंच पर भारत की छवि को नुकसान पहुँचाती हैं, तब उनका खंडन आवश्यक हो जाता है।
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भारत की वर्तमान आर्थिक स्थिति: तथ्य क्या कहते हैं?

1. दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था:
2023 में भारत ने GDP के मामले में ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का स्थान प्राप्त किया। IMF और विश्व बैंक दोनों ही भारत की विकास दर को 6-7% के बीच अनुमानित करते हैं – जो विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज़ है।

2. डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर और UPI क्रांति:
भारत में हर महीने अरबों डिजिटल ट्रांजैक्शन होते हैं। UPI का वैश्विक विस्तार और डिजिटल समावेशन एक उदाहरण है कि भारत केवल उपभोक्ता नहीं, तकनीकी नवाचारकर्ता भी है।

3. मैन्युफैक्चरिंग और ‘मेक इन इंडिया’:
भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा, ऑटोमोबाइल, और फार्मा सेक्टरों में निवेश बढ़ रहा है। Apple, Tesla, Foxconn जैसी कंपनियाँ अब भारत में निर्माण इकाइयाँ स्थापित कर रही हैं।

4. स्टार्टअप और युवा शक्ति:
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है, जिसमें 100+ यूनिकॉर्न कंपनियाँ हैं। यह युवा आबादी की उद्यमशीलता और नवाचार क्षमता का प्रमाण है।

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भारत की आर्थिक क्षमताओं की पुनर्स्थापना कैसे हो?

1. वैश्विक मंचों पर सक्रिय जवाबदेही:
भारतीय राजनयिक, अर्थशास्त्री और थिंक टैंक को चाहिए कि वे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर तथ्यों के साथ भारत की क्षमता को रेखांकित करें और गलत धारणाओं को चुनौती दें।

2. घरेलू स्तर पर डेटा-आधारित संवाद:
सरकार और नीति-निर्माताओं को चाहिए कि वे आम नागरिकों के साथ संवाद करते समय GDP, बेरोज़गारी, एक्सपोर्ट, टैक्स कलेक्शन जैसे आँकड़े प्रस्तुत करें, ताकि नागरिक स्वयं भ्रामक बयानों का मूल्यांकन कर सकें।

3. नकारात्मक आख्यानों को सकारात्मक पहलुओं से संतुलित करना:
मीडिया और सोशल मीडिया पर भारत के नवाचार, ग्रामीण विकास, MSME सफलता, महिला उद्यमिता, और हरित ऊर्जा प्रयासों की कहानियाँ अधिक सामने लाई जानी चाहिए।

4. राजनीतिक विमर्श में राष्ट्रहित को प्राथमिकता:
विपक्ष की भूमिका आलोचना की हो सकती है, परंतु जब आर्थिक क्षेत्र की बात हो, तो तथ्यों के साथ राष्ट्रीय हित में संतुलित आलोचना होना चाहिए, न कि निराधार अफवाह फैलाना।

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निष्कर्ष

भारत कोई डूबती हुई अर्थव्यवस्था नहीं है, बल्कि यह एक परिवर्तनशील, सक्षम और उभरती हुई वैश्विक शक्ति है। ट्रंप और राहुल गांधी जैसे बयान, चाहे वे आंतरिक राजनीति के लिए हों या विदेशी रणनीति का हिस्सा – भारत की वास्तविक आर्थिक यात्रा और संभावनाओं को नहीं नकार सकते।

भारत की कहानी केवल आंकड़ों में नहीं, बल्कि उसके 140 करोड़ नागरिकों की आकांक्षाओं, नवाचारों, और सामर्थ्य में लिखी जा रही है। हमें उस कहानी को दुनिया के सामने तथ्य, आत्मविश्वास और गर्व के साथ प्रस्तुत करना होगा।
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