सड रहा अनाज मर रहा आदमी-----!!!!
सरकार को डूब मारने वाली बात ....!
अनाज सड़ाने का बड़ा रैकेट .....!
आम आदमी का हत्यारा कौन...?
- अरविन्द सीसोदिया
एक तरफ तो खुले आसमान तले रखा हुआ गेंहू खराब हो रहा है वहीं दूसरी तरफ गरीब आदमी भूखे पेट सोता है। पंजाब, उत्तरप्रदेश, हरियाणा व राजस्थान आदि प्रदेशों के विभिन्न हिस्सों में स्थित खुले गोदामों में 77 लाख 36 हजार 255 टन गेंहू खुले आसमान के नीचे पड़ा ख़राब हो रहा है। यह हालत तो वर्षा आने के कई महीने पहले से है . दूसरी तरफ सक्सेना कमेटी भी अपनी रिपोर्ट में यह दर्शा चुकी है कि देशभर में 51 फीसदी ऐसे लोग है जो गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करने को मजबूर हो रहे है और इन लोगों को बीपीएल कार्ड तक भी उपलब्ध नहीं कराए गए है अर्थात देश को तो भगवान भरोसे छोड़ रखा है.
लाखों टन गेंहू सरकार के कुप्रबंधन के चलते सड़ रहा है वहीं दूसरी तरफ 51 फीसदी लोग भूखे मरने को मजबूर हो रहे है। देश को किसी भी आपात् स्थिति से निपटने के लिए बफर स्टॉक की जरुरत होती है किन्तु आज देश के पास 453.38 लाख टन खाद्यान्न बफर स्टॉक में होते हुए भी देश का गरीब आदमी भूखे मरने को मजबूर है।
महंगाई को लेकर मची हायतौबा के बीच एफसीआई गोदामों में गेहूं बदइंतजामी की भेंट चढ़ रहा है। गोदामों में रखने की जगह नहीं होने से भारी मात्रा में गेहूं खुले में पड़ा है। बारिश के इस मौसम में भी कहीं बोरियों को ढंकने का इंतजाम नहीं हैं तो कहीं तिरपाल फटे हैं। ऐसी स्थिति के कारण कई जगह बोरियों में फफूंद लग गई है तो कहीं गेहूं अंकुरित होने लगा है। राजस्थान प्रदेश में एफसीआई के 37 डिपो हैं और इनमें 19 लाख टन गेहूं का भंडारण किया जा सकता है, लेकिन इनमें 20 लाख टन गेहूं पहुंचा हुआ है। इसके अलावा हजारों टन गेहूं रेलवे स्टेशनों पर भी पड़ा है।
खाद्य प्रसंस्करण मंत्री ने राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा था कि , 'मड़ाई के बाद विभिन्न स्तरों पर बर्बादी के कारण करीब 50,000 करोड़ रुपए का खाद्यान्न नष्ट हो जाता है।' खेतों के छोटे आकार, कृषि उत्पाद विपणन (विकास एवं नियमन) कानून के प्रावधानों और कोल्ड चेन, परिवहन, भंडारण और प्रसंस्करण सुविधाओं के अभाव के कारण खाद्यान्न की यह बर्बादी होती है। एक आकलन के अनुसार इस तरह लगभग 30 प्रतिशत खाद्यान्न बर्बाद हो जाते हैं। इसकी वजह है देश में भंडारण, परिवहन, कोल्ड चेन जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध न होना।
- चूंकि खाद्यान्न का भंडारण और वितरण कभी सरकार की वरीयता में रहा ही नहीं, इसलिए खाद्यान्न बैंकों की स्थापना नहीं हो सकी। इसके लिए हमेशा संसाधनों की कमी का रोना रोया गया है। ३५ हजार करोड़ राष्ट्र मंडल खेलों में लुटाने वाले देश पर गोदाम बनाए के लिए पैसा नहीं है ,
- सरकारी खरीद के खाद्यान्नों की भंडारण सुविधाओं की भारी कमी का सामना कर रही एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने डेढ़ साल में एक करोड़ 28 लाख टन भंडारण की अतिरिक्त सुविधा स्थापित करने की योजना बनाई है।
सरकारी ऐजेंसियों के पास पौने पांच करोड़ टन भंडारण की सुविधा थी। इसमें अकेले एफसीआई के पास 2.85 करोड़ टन भंडारण सुविधा थी। इस समय सरकारी गोदामों में कुल 4.28 करोड़ टन से कुछ अधिक अनाज पड़ा है।
- 2008-09 में एजेंसी ने रिकॉर्ड मात्रा में गेहूं और चावल की खरीद की। इस दौरान भंडारण और वितरण का नुकसान पिछले साल के 233.91 करोड़ रुपये की तुलना में 22 प्रतिशत कम रहा।
अनाज में नमी, स्टॉक में गिरावट, स्टॉक में कवक संक्रमण, कृंतक समस्या और बोरों की सिलाई कमजोर होने और लंबे समय तक गोदामों में पड़े रहने के चलते भंडारण नुकसान होता है। एफसीआई साल में औसतन 1,500 किलोमीटर दूरी तक 270-280 लाख टन अनाज भेजती है।
-भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी का मानना है कि सरकार की शह पर गोदामों में जानबूझ कर अनाज सड़ाने का कुचक्र रचा जाता है,सरकारी अधिकारीयों की मदद से गोदामों में अनाज सड़ाने का बड़ा रैकेट चल रहा है ताकि सड़े हुए अनाज को शराब बनाने के लिए भेजा जा सके। यह बहुत ही गंभीर आरोप है , सरकार को इसका जबाब देना चाहिए . क्या सच है , यदि यैसा है तो सरकार को डूब मारने वाली बात है .
सड रहा अनाज मर रहा आदमी-----!!!!
यह देश है हमारे वीर घोटालेबाज नेताओं का...
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