" राजा डरता हिन्दुस्तानी , सारा खेल पाकिस्तानी "
" राजा डरता हिन्दुस्तानी ,
सारा खेल पाकिस्तानी "
" जलता सारा कश्मीर है,
मनमोहन पीता खीर है"
" प्रज्ञा अन्दर बंद है ,
गिलानी बाहर दबंग हैं "
- अरविन्द सीसोदिया
भारत में लोकतन्त्र, न्याय और समता कि फजीहत देखो, बिना किसी सबूत के हिन्दू साध्वी प्रज्ञा तो वर्षों से अन्दर बंद है , हजारों सबूत के बाद भी कश्मीरी अलगाववादी आजाद हैं. वे भारत के स्वतंत्रता दिवस को काला दिवस घोषित करने का दुस्साहस करते हैं , पाकिस्तान से एकता की बात करते हैं . वे सब तो जेल के योग्य नहीं हैं , जो हिंदुस्तान को हिंदुस्तान कहती है , वह जेल में है. कांग्रेस कि यह हिन्दू और मुस्लमान के आधार पर अलग अलग नीति , अधर्म और अन्याय है . अभी सत्ता मद में आप कुछ भी करलो इतिहास तुम्हे कभी ना तो माफ़ करेगा और ना ही भारत का हित चिन्तक बताएगा .
हुर्रियत नेता अली शाह गिलानी ने कश्मीरियों से अपील की है कि वे , पाकिस्तानी स्वतंत्रता दिवस (14 अगस्त) को 'एकता दिवस' और भारत के स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) को 'काला दिवस' के रूप में मनाएं। यह अब तो खुले में स्पष्ट कर रहा है कि या सारा खेल पाकिस्तानी है. हिंदुस्तान की निकम्मी सरकार अब भी वार्ता वार्ता का रट लगाये है. जबकी पहला काम वहां की सरकार भंग करके , कानुक व्यवस्था की जिम्मेवारी राज्यपाल को सोंपना चाहिए . एक अनुभवहीन और कमसे कम अब स्पष्ट रूप से निकम्मा कहा जाने योग्य मुख्यमंत्री क्यों बनाये रखा है . स्वंय कांग्रेस और कश्मीरी कांग्रेस यह मानती है की उमर को सत्ता संभलना गलती थी.उन्हें बनाये रखना और बड़ी गलती है. मगर उमर की एक ही योग्यता है की वह रहुक का मित्र है .
अलगाववादी नेता मीरवाइज उमर फारुक ने कहा कि उन्होंने विसैन्यीकरण, दमनकारी कानूनों के निरसन, राजनीतिक कैदियों की रिहाई जैसे विशिष्ट उपायों का प्रस्ताव दिया था और विश्वास निर्माण के लिए वार्ता प्रक्रिया को आगे ले जाने की पेशकश की थी, जो लोगों को काफी राहत प्रदान करते लेकिन दुर्भाग्य से इन मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया.
कुल मिला कर बात यह है कि जो भी पाकिस्तान चाहता है , वही बात कश्मीर में अलगाववादी करते हैं , वही बात वहां के भिन्न भिन्न दल करते हैं . जो दल भारत के संविधान को नही मानते वे भारत में राजनीती कर सकते और चुनाव भी नही लड़ सकते . फिर यह तमाशा कश्मीर में क्यों चल रहा है . भारत का मॉल खाएं भारत को गाली दें . यह लगातार एक दो दिन नही , बल्की लगातार ६० साल से चल रहा है . चीन ने तो सारा तिब्बत निगल लिया और अब वहाँ कोई चूँ भी नही. हमारे जैसा आत्मघाती देश कहीं नहीं मिलेगा. जो अलगाववाद को लगातार पोषण करता हो .
सारा खेल पाकिस्तानी "
" जलता सारा कश्मीर है,
मनमोहन पीता खीर है"
" प्रज्ञा अन्दर बंद है ,
गिलानी बाहर दबंग हैं "
- अरविन्द सीसोदिया
भारत में लोकतन्त्र, न्याय और समता कि फजीहत देखो, बिना किसी सबूत के हिन्दू साध्वी प्रज्ञा तो वर्षों से अन्दर बंद है , हजारों सबूत के बाद भी कश्मीरी अलगाववादी आजाद हैं. वे भारत के स्वतंत्रता दिवस को काला दिवस घोषित करने का दुस्साहस करते हैं , पाकिस्तान से एकता की बात करते हैं . वे सब तो जेल के योग्य नहीं हैं , जो हिंदुस्तान को हिंदुस्तान कहती है , वह जेल में है. कांग्रेस कि यह हिन्दू और मुस्लमान के आधार पर अलग अलग नीति , अधर्म और अन्याय है . अभी सत्ता मद में आप कुछ भी करलो इतिहास तुम्हे कभी ना तो माफ़ करेगा और ना ही भारत का हित चिन्तक बताएगा .
हुर्रियत नेता अली शाह गिलानी ने कश्मीरियों से अपील की है कि वे , पाकिस्तानी स्वतंत्रता दिवस (14 अगस्त) को 'एकता दिवस' और भारत के स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) को 'काला दिवस' के रूप में मनाएं। यह अब तो खुले में स्पष्ट कर रहा है कि या सारा खेल पाकिस्तानी है. हिंदुस्तान की निकम्मी सरकार अब भी वार्ता वार्ता का रट लगाये है. जबकी पहला काम वहां की सरकार भंग करके , कानुक व्यवस्था की जिम्मेवारी राज्यपाल को सोंपना चाहिए . एक अनुभवहीन और कमसे कम अब स्पष्ट रूप से निकम्मा कहा जाने योग्य मुख्यमंत्री क्यों बनाये रखा है . स्वंय कांग्रेस और कश्मीरी कांग्रेस यह मानती है की उमर को सत्ता संभलना गलती थी.उन्हें बनाये रखना और बड़ी गलती है. मगर उमर की एक ही योग्यता है की वह रहुक का मित्र है .
अलगाववादी नेता मीरवाइज उमर फारुक ने कहा कि उन्होंने विसैन्यीकरण, दमनकारी कानूनों के निरसन, राजनीतिक कैदियों की रिहाई जैसे विशिष्ट उपायों का प्रस्ताव दिया था और विश्वास निर्माण के लिए वार्ता प्रक्रिया को आगे ले जाने की पेशकश की थी, जो लोगों को काफी राहत प्रदान करते लेकिन दुर्भाग्य से इन मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया.
कुल मिला कर बात यह है कि जो भी पाकिस्तान चाहता है , वही बात कश्मीर में अलगाववादी करते हैं , वही बात वहां के भिन्न भिन्न दल करते हैं . जो दल भारत के संविधान को नही मानते वे भारत में राजनीती कर सकते और चुनाव भी नही लड़ सकते . फिर यह तमाशा कश्मीर में क्यों चल रहा है . भारत का मॉल खाएं भारत को गाली दें . यह लगातार एक दो दिन नही , बल्की लगातार ६० साल से चल रहा है . चीन ने तो सारा तिब्बत निगल लिया और अब वहाँ कोई चूँ भी नही. हमारे जैसा आत्मघाती देश कहीं नहीं मिलेगा. जो अलगाववाद को लगातार पोषण करता हो .
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