कांग्रेस का साम्पदायिक खेल है साम्प्रदायिकता विधेयक ,हिदू मुश्लिम लड़ाओ,इसाई राज बनाओ

-अरविन्द सीसौदिया,कोटा ,राजस्थान ।
लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज 
 भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक को संघीय ढांचे पर प्रहार बताते हुए कहा है कि इसे संसद में पेश नहीं किया जाना चाहिए। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने शनिवार को यहां एक कार्यक्रम में पत्नकारों के सवालों के जवाब में कहा कि राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक तीन वर्ष बाद हो रही है और इसमें ऐसे विषय पर चर्चा हो रही है जो अभी प्रासंगिक नहीं है इसलिए यह चर्चा प्रभावशाली कैसे हो सकती है। उन्होंने कहा कि अभी सांप्रदायिक हिंसा के बजाय आतंकवाद या नक्सलवाद कहीं ज्यादा प्रासंगिक विषय है। इसपर चर्चा कराई जानी चाहिए थी,जो सार्थक भी होती।
सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक को बेहद खतरनाक बताते हुए उन्होंने कहा कि यह देश के संघीय ढांचे पर कुठाराघात है और इससे देश बहुसंख्यकों और अल्पसंख्यकों में बंट जाएंगे। केन्द्र सरकार राज्य सरकारों को अलग कर सारे अधिकार अपने पास रखना चाहती है। स्वराज ने कहा कि इस विधेयक से ऐसा लगता है कि बहुसंख्यक लोग जन्म से अन्यायी हैं और अल्पसंख्यक जन्म से पीड़ित हैं। उन्होंने कहा कि यह विधेयक सभी के खिलाफ है क्योंकि किसी राज्य में जो बहुसंख्यक है कहीं और वह अल्पसंख्यक है। उन्होंने कहा कि देश को बांटने वाले इस तरह के विधेयक को संसद में नहीं लाया जाना चाहिए।
नीतीश कुमार ने साम्प्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक पर आपत्ति की 
बिहार के मुख्यमंत्नी नीतीश कुमार ने शनिवार को राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में प्रस्तावित साम्प्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक का विरोध करते हुए। आंतरिक अशांति की स्थिति में राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के प्रावधान पर आपत्ति प्रकट की है।
कुमार की ओर से राज्य के जल संसाधन मंत्नी विजय कुमार चौधरी ने उनका लिखित भाषण पढते हुए बैठक में प्रतिनिधित्व किया। मुख्यमंत्नी ने अपने भाषण में दो टूक शब्दों में कहा कि हमें सूचना मिली है कि साम्प्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए केन्द्र सरकार एक विधेयक संसद में प्रस्तुत करने जा रही है। इसकी तैयारी लम्बे समय से चल रही है। परन्तु यह विधेयक संसद में रखने के पूर्व उसके प्रारूप पर गहन विचार करना एवं राज्य सरकारों से परामर्श कर आवश्यक सुधार करना परम आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि प्रस्तावित विधेयक में अंतरिक अशांति की स्थिति में संविधान की धारा 355 लागू करने की बात कही गयी है। ऐसा प्रावधान करने की आवश्यकता बिलकुल नहीं है। यह तो राज्य सरकार के क्षेत्नाधिकार में अनावश्यक हस्तक्षेप के प्रयास की श्रेणी में आता है।
लेकिन अगर किसी परिस्थिति में राज्य सरकार व्यापक स्तर पर अपना संवैधानिक दायित्व पूरा करने में सक्षम साबित नहीं हो रही है तो संविधान में निहित प्रावधानों के अंतर्गत कार्रवाई होनी चाहिए। कुमार ने विधेयक पर आपत्ति इस बात को लेकर भी की कि इससे जनमानस में ऐसी धारणा उत्पन्न हो सकती है कि बहुसंख्यक समुदाय ही सामप्रदायिक घटनाओं के लिये हमेशा दोषी होता है।
इसलिये यह धारणा बहुसंख्यकों मे प्रतिक्रिया उत्पन्न कर अल्पसंख्यकों के विरुद्ध ही जा सकती हे और विधेयक के मूल मकसद पर भी विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि विधेयक की परिकल्पना के पीछे छिपी यह धारणा पूर्णतः गलत है कि राज्यों मे ही प्रशासनिक निर्णय में गड़बड़ियां होती हैं और केन्द्र को हस्तक्षेप कर इसे ठीक करना चाहिए। मुझे इस धारणा का प्रतिकार करने में कोई हिचक नहीं है कि केवल राज्य सरकारें ही गलतियां करती हैं। केन्द्र सरकार से भी कई मुद्दों पर गंभीर चूक हुई है जिसका ज्वलंत उदाहरण केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति में देखा जा सकता है।
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ज्यादातर दी खिलाफ हैं इस विधेयक के..
विवादास्पद सांप्रदायिक व लक्षित हिंसा (निषेध) विधेयक के ड्राफ्ट को लेकर केंद्र सरकार की शनिवार को जमकर आलोचना हुई। इस मुद्दे पर न सिर्फ विपक्ष ने सरकार की आलोचना की, बल्कि यूपीए सरकार के अहम घटक तृणमूल कांग्रेस ने भी इस बिल की आलोचना की है। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने भी इस बिल के ड्राफ्ट का विरोध किया है। 
 
राष्ट्रीय एकता परिषद की शनिवार को हुई बैठक में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए के साथ ही तृणमूल कांग्रेस ने प्रस्तावित सांप्रदायिक हिंसा का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि यह ऐसा खतरनाक कानून साबित होगा, जो देश के संघीय ढांचे को नुकसान पंहुचा सकता है।  
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में शनिवार को हुई राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में एनडीए शासित राज्यों- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और पंजाब के मुख्यमंत्रियों ने प्रस्तावित विधेयक के मौजूदा प्रारूप पर कड़ी आपत्ति जताई। बैठक में शामिल लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने भी इसका विरोध करते हुए कहा कि यह ऐसा खतरनाक कानून साबित होगा, जो सांप्रदायिकता को काबू करने की बजाय उसे हवा देगा। साथ ही यह बहुसंख्यकों और अल्पसंख्यकों में दूरी बढ़ाएगा। तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिनेश त्रिवेदी ने भी कहा कि उनकी पार्टी इस विधेयक के वर्तमान प्रारूप का विरोध करती है। 
       उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने भी इस बिल का विरोध किया है।मायावती ने कहा है कि केंद्र सरकार ने बिल का ड्राफ्ट नहीं दिया। मायावती खुद तो इस बैठक में नहीं आईं, लेकिन उनके प्रतिनिधि ने उनकी तरफ से बयान पढ़ा। बीजद शासित उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने कहा कि इसमें कुछ ऐसे आपत्तिजनक प्रावधान हैं, जो राज्यों की स्वायत्तता को सीधे प्रभावित कर सकते हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधेयक के कुछ प्रावधानों पर चिंता जताते हुए कहा कि इससे ऐसी धारणा पैदा हो सकती है कि बहुसंख्यक समुदाय ही सांप्रदायिक घटनाओं के लिए हमेशा दोषी होता है और इससे अंततोगत्वा यह धारणा बहुसंख्यकों में प्रतिक्रिया उत्पन्न कर अल्पसंख्यकों के विरूद्ध ही जा सकती है। बैठक में नीतीश स्वयं उपस्थित नहीं थे और उनकी ओर से राज्य के सिंचाई मंत्री विजय चौधरी ने उनका भाषण पढ़ा। 
कुल मिला कर कांग्रेस का साम्पदायिक खेल है साम्प्रदायिकता विधेयक ,हिदू मुश्लिम लड़ाओ,इसाई राज बनाओ ...

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