भगत सिंह की आशंका सही निकली ... मुक्त कंठ से बोल .. वन्दे मातरम ..!
- अरविन्द सिसोदिया भगत सिंह के एक भाई की मृत्यु हो गई थी , दो भाई कुलवीर सिंह और कुलतार सिंह तथा तीन बहनें अमर कौर , सुमित्रा कौर और शकुंतला कौर थीं | उन्हें अपनी माँ से बहुत प्यार था | उन्होंने एक बार अपनी माँ को एक पत्र लिखा " माँ , मुझे इस बात में बिलकुल भी शक नहीं की एक दिन मेरा देश आजाद होगा | मगर मुझे दर है की 'गोरे साहबों' की खाली हुई कुर्सियों पे काले / भूरे साहब बैठनें जा रहे हैं | " उनका शक सही निकला ,आज भारत का सिंहासन चंद काले अंग्रेजों और उनकी हाँ में हाँ मिलाने वाले राजनैतिज्ञों के हाथ की काठ पुतली बन चूका है |
लोग कहते हैं की भगत सिंह नास्तिक थे मगर सच यह था की वे आस्तिक थे | अनावश्यक कर्मकांड के लिए उनके पास समय जरुर नहीं था | जब उनके वकील प्राणनाथ मेहता नें फांसी वाले दिन पूछा था कि उनकी अंतिम इच्छा क्या है तो भगत सिंह ने जबाव था कि ' में दुबारा इस देश में पैदा होना चाहता हूँ |' अर्थात वे पुर्न जन्म में विश्वास रखते थे | इसके अतिरिक्त वे युवावस्था में श्री कृष्ण विजय नाटक का मंचन भी किया करते थे , जो अंग्रेजों के खिलाफ बनाया गया था |
लोग कहते हैं की भगत सिंह नास्तिक थे मगर सच यह था की वे आस्तिक थे | अनावश्यक कर्मकांड के लिए उनके पास समय जरुर नहीं था | जब उनके वकील प्राणनाथ मेहता नें फांसी वाले दिन पूछा था कि उनकी अंतिम इच्छा क्या है तो भगत सिंह ने जबाव था कि ' में दुबारा इस देश में पैदा होना चाहता हूँ |' अर्थात वे पुर्न जन्म में विश्वास रखते थे | इसके अतिरिक्त वे युवावस्था में श्री कृष्ण विजय नाटक का मंचन भी किया करते थे , जो अंग्रेजों के खिलाफ बनाया गया था |
वन्देमातरम ...
आज वन्देमातरम को साम्प्रदायिक कहने वाले मार्क्सवादियों को भगत सिंह के ये विचार भी पढ़ लेने चाहिए - " ए भारतीय युवक ! तू क्यों गफलत की नींद में पड़ा बेखबर सो रहा है | उठ ,आँख खोल ,देख प्राची दिशा का ललाट सिंदूरी रंजित हो उठा है | अब अधिक मत सो ! सोना हो तो अनंत निद्रा कि गोद में जाकर सो रह !! कापुरुषता के खोल में क्यों सोता है ? माया और मोह त्याग कर गरज उठ - वन्देमातरम - वन्देमातरम ! "
वे आगे लिखते हैं " तेरी माता ,तेरी प्रातः स्मरणीय,तेरी परम पवन वंदनीया , तेरी जगदम्बा , तेरी अन्नपूर्णा, तेरी त्रिशूल धारणी, तेरी सिन्हवाह्नी, तेरी शस्य श्यामला , आज फूट फूट कर रो रही है | क्या उसकी विकलता मुझे तनिक भी चंचल नहीं करती | धिकार है तेरी निर्जिविता पर | तेरे पितर भी नतमस्तक हैं इस नपुंसकत्व पर | यदि अब भी तेरे किसी अंग में तुक हया बांकी हो, तो उठ कर माता के दूध की लाज रख, उसके उद्धार का बीड़ा उठा , उसके आंसुओं की एक - एक बूँद की सौगंध ले , उसका बेडा पार कर और बोल मुक्त कंठ से .., वन्दे मातरम ..! "
पूरा लेख इस लिक पर है..
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