काला कानून साम्प्रदायिक हिंसा का : इसाई हितों का खेल


Prime Minister of India, Rajiv Gandhi and his wife Sonia Gandhi are seen with The Holy father Pope John Paul II (centre), during the former's visit to India, in New Delhi on February 1, 1986.



- अरविन्द सिसोदिया 
साप्प्रदायिक हिंसा रोकने के नाम पर , पूरे देश में एक बार फिर से हिन्दू को मुस्लमान के सामने खडा कर , उन्हे आपस में लडवानें की योजना का पर्दाफास हो चुका है। कांग्रेस की अध्यक्षा एवं यूपीए सरकार की सर्वेसर्वा सोनिया गांधी का यह चेहरा , यह काला कानून साफ बयां करता है कि वे  इस देश के साथ इसाई हितों का खेल खेल रहीं हैं। इनका मकसद साफ है कि हिन्दू मुरिूलम को लडा कर , अंगेजों की भांति  इसाई साम्राज्य  की स्थापना | जो कहीं न कहीं पोप की भारत को इसाई देश बनाने की घोषणा के क्रम में ही की जा रही कार्यवाही  है। यह कानून पास हो या न हो मगर हिन्दू और मुस्लमान के बीच खाई तो डाल ही दी गई ! यह मकसद सोनिया  गांधी का है और यही मकसद एसिया महाद्वीप को इसाई बनाने वाली ताकतों का है। जो लोग हिअसा के बल पर यूरोप,अमेरिका ] आस्ट्रेलिया और अफ्रीका को इसाई बना चुके हैं , उनका इस सहस्त्रावदी का लक्ष्य एसिया को इसाई बनाना है , इसका दरवाजा वे भारत  को मानते हैं .... 

साम्प्रदायिक और लक्षित हिंसा अधिनियम 2011
एक अलोकतांत्रिक एवं साम्प्रदायिक कानून
* भारत सरकार के द्वारा संसद में लाया जाने वाला साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा कानून 2011 एक ऐसा अभूतपूर्व कानून है जैसा मध्यकालीन बर्बर एवं धर्मान्ध शासकों ने भी लागू नहीं  किया। यह कानून देश के लोकतांत्रिक ढांचे को तहस-नहस करने वाला तथा सम्प्रदाय के आधार पर विभेदकारी है। 
* इस कानून का ड्राफ्ट  एक गैर संवैधानिक संस्था, नेशनल एडवाईजरी काउंसिल ने तैयार किया है, जिसको राजकीय मान्यता दी गई है तथा जिसकी अध्यक्षा विदेश से आयी हुई श्रीमती सोनिया गांधी है। इसकी  ड्राफ्ट कमेटी में ऐसे जाने -माने चेहरे सम्मिलित है जिनकी कुख्याति हिन्दू समाज से शत्रुता एवं दुष्प्रचार के लिए विश्वव्यापी है। 
         जैसे :- जाने-माने ईसाई नेता जान दयाल जो हिन्दु संस्कृति की मान्यताओं को अपमानित करने के लिए सम्पूर्ण विश्व में भ्रमण करते हैं। 
           तीस्ता  सीतलवाड और फराह नकवीं की गुजरात में भूमिका सर्वविदित है। अनु आगा घोषित रूप से हिन्दू संगठनों को अपना दुश्मन मानते है। ये लोग अपनी खीज मिटाने के लिये किसी भी सीमा तक जा सकते है। जो काम वे न्यायपालिका के माध्यम से नहीं कर सकते, ऐसा लगता है वह इस विधेयक के माध्यम से करना चाहते है। इनकी घोषित-अघोषित सलाहकारों के नाम इनका भंडाफोड करने के लिये पर्याप्त हैं।                      ‘‘मुस्लिम इण्डिया’’ चलाने वाले सैयद शहाबुद्धीन , हिन्दू देवी-देवताओं का खुला अपमान करने वाले शबनम हशमी और नियाज फारूखी जिस समिति के सलाहकार हों,  वह कैसा विधेयक बना सकते हैं इसका अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है। 
* भारत के बडबोले मंत्री, कपिल सिब्बल द्वारा इस अधिनियम को सार्वजनिक करते हुए गुजरात के दंगो और उनमें सरकार की कथित भूमिका का उल्लेख करना सरकार की नीयत को स्पष्ट करते है। ऐसा लगता है कि सारी सैक्यूलर ब्रिगेड मिलकर जो काम नहीं  कर सकी, उसे सोनिया जी इस विधेयक के माध्यम से पूरा करना चाहती है। 
इस विधेयक के कुछ खतरनाक प्रावधान निम्नलिखित है - 
1. यह विधेयक साम्प्रदायिक हिंसा के लिए अपराधियों को अल्पसंख्यक -बहुसंख्यक के आधार पर बांटने का अपराध करता है। किसी भी सभ्य समाज में यह वर्गीकरण स्वीकार्य नहीं होता। अभी तक यही लोग कहते थे कि अपराधी का कोई धर्म नहीं होता। अब इस विधेयक में क्यों साम्प्रदायिक हिंसा के अल्पसंख्यक अपराधियों को दंड से मुक्त रखा गया है ? प्रस्तावित विधेयक का अनुच्छेद 8 अल्पसंख्यकों के विरूद्ध घृणा का प्रचार अपराध मानता है। परंतु हिन्दुओं के विरूद्ध इनके नेता और संगठन खुले आम दुष्प्रचार करते है। इस विधेयक में उनको अपराधी नहीं माना गया है। इनका मानना है कि अल्पसंख्यक समाज का कोई भी व्यक्ति साम्प्रदायिक तनाव का हिंसा  के लिये दोषी नहीं है। वास्तविकता ठीक इसके विपरीत है। 
2. अनुच्छेद 7 के अनुसार यदि एक मुस्लिम महिला के साथ दुव्र्यवहार होता है तो वह अपराध है, परंतु इस कानून में हिन्दू महिला के साथ किया गया बलात्कार अपराध नहीं है। जबकि अधिकाशं दंगो में हिन्दू महिला की इज्जत ही  निशाने पर रहती है। 
3. इस विधेयक में साम्प्रदायिक हिंसा की परिभाषा दी है ‘‘ वह कृत्य  जो भारत से सैक्यूलर ताने बाने को तोडेगा ‘‘भारत में सैक्युलरिज्म की परिभाषा अलग-अलग है। भारतीय संविधान में या इस विधेयक में कहीं भी इसे परिभाषित नहीं किया गया। क्या अफजल गुरू को फांसी की सजा से बचाना, आजमगढ जाकर आंतकियों के हौंसले बढ़ाना , मुम्बई हमले में बलिदान हुए लोगों के बलिदान पर प्रश्न चिन्ह लगाना, मदरसों में आतंकवाद के प्रशिक्षण को बढ़ावा देना, बांग्लादेशी घुसपैठियों का बढ़ाना देना सोनिया जी की निगाहें में सैक्यूलरिज्म है, और इनके विरूद्ध आवाज उठाना सैक्युलर ताने बाने को तोड़ना ? ये लोग सैक्युलरिज्म की मनमानी परिभाषा देकर क्या देशभक्तों को प्रताड़ित करना चाहते हैं ?
4. विधेयक के उपबंध 74 के अनुसार यदि किसी व्यक्ति के ऊपर घृणा सम्बन्धी प्रचार या साम्प्रदायिक हिंसा    का आरोप है तो उसे तब तक दोषी माना जायेगा जब तक कि वह निर्दोष सिद्ध न हो जाये। यह उपबंध संविधान की मूल भावना के विपरीत है। भारत का संविधान कहता है कि जब तक अपराध सिद्ध न हो जाये तब तक आरोपी निर्दोष माना जाये। यदि यह विधेयक पास हो जाता है तो किसी भी जेल में भेजने के लिये उस पर केवल आरोप लगाना पर्याप्त रहेगा। उसके लिये अपने आपकों निर्दोष सिद्ध करना कठिन ही नहीं असम्भव हो जायेगा। 
5. यदि किसी संगठन का कोई कार्यकर्ता आरोपित है तो उस संगठन का मुखिया भी जिम्मेदार होगा क्योंकि वह भी इस अपराध में शामिल माना जायेगा। अब ये लोग किसी भी हिन्दू संगठन व उनके नेताओं को आसानी से जकड सकेंगे। कसर अब भी नहीं छोड रहे परंतु अब वे अधिक मजबूती से इन पर रोक लगा कर मनमानी कर सकेंगे।
6. प्रस्तावित अधिनियम में निगरानी व निर्णय लेने के लिये जिस प्राधिकरण का प्रावधान है उसमें 7 सदस्य होंगे। अध्यक्ष, उपाध्यक्ष समेत 7 मेंसे 4 सदस्य अल्पसंख्यक वर्ग के होगें। क्या इसके परस्पर अविश्वास नहीं बढेगा। इसका मतलब यह स्पष्ट है कि हर व्यक्ति, चाहें किसी भी पद पर हो, केवल अपने समुदाय की चिंता करता है। इस चिंतन का परिणाम क्या होगा इस पर देश को अवश्य विचार करना होगा। किसी न्यायिक प्राधिकरण का साम्प्रदायिक आधार पर विभाजन देश को किस ओर ले जायेगा ?
7. अनुच्छेद 13 सरकारी कर्मचारियों का इस प्रकार शिकन्जा कसता है कि वे मजबूरन अल्पसंख्यकों का साथ देने के लिये मजबूर होंगे चाहें वे अपराधी ही क्यों न हों। 
8. यदि इस विधेयक लागू हो जाता है तो किसी भी अल्पसंख्यक व्यक्ति के लिये किसी भी बहुसंख्यक को फंसाना बहुत आसान हो जायेगा। यह केवल पुलिस में शिकायत दर्ज करायेगा और पुलिस अधिकारी को उस हिन्दु को बिना किसी आधार के भी गिरतार करना पड़ेगा। वह हिन्दू किसी सबूत की मांग नहीं कर सकता क्योंकि अब उसे ही अपने को निरपराध सिद्ध करना है। वह शिकायतकर्ता का नाम भी नहीं पूछ सकता। अब पुलिस अधिकारी को ही इस मामलें की प्रगति की जानकारी शिकायतकर्ता को देनी है जैसे कि वह उसका अधिकारी हो। शिकायतकर्ता अगर यह कहता है कि आरोपी के किसी व्यवहार, कार्य या इशारे से वह मानसिक रूप से पीड़ित हुआ है तो भी आरोपी दोषी माना जायेगा। इसका अर्थ है कि अब कोई भी किसी मौलवी या किसी पादरी के द्वारा किये गये किसी दुष्प्रचार की शिकायत भी नहीं कर सकेगा न ही वह उनके किसी घृणास्पद साहित्य का विरोध कर सकेगा। 
9. इस विधेयक के अनुसार अब पुलिस अधिकारी के पास असीमित अधिकार होगे। वह जब चाहें आरोपी हिन्दू के घर की तलाशी ले सकता है। यह अंग्रेजो के द्वारा लाये गये कुख्यात रोलेट एक्ट से भी खतरनाक सिद्ध हो सकता है। 
10. इस प्राधिकरण को असीमित अधिकार दिये गये है। ये न केवल पुलिस व सशस्त्र बलों को सीधे निर्देश दे सकते है, अपितु इनके सामनें दी गई गवाही न्यायालय के सामने दी गई गवाही मानी जायेगी। इसका अर्थ है कि तीस्ता सीतलवाड़ा जैसी झूठे गवाह तैयार करने वाली अब अधिक खुलकर अपने षडयंत्रो को अन्जाम दे सकेगी। 
11. इस विधेयक की धारा 81 में कहा गया है कि ऐसे मामलों में नियुक्त विशेष न्यायाधीश किसी अभियुक्त के ट्रायल के लिये उनके समक्ष प्रस्तुत किये बिना भी उसका संज्ञान ले सकेगा और उसकी संपत्ति को भी जब्त कर सकेगा। इस विधेयक के कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों का ही विश्लेषण किया जा सका है। जैसा चित्र अभी तक सामनें आया है यदि वह पास हो जाता है तो परिस्थिति और भी भयावह होगी। आपातकाल में किये गये मनमानीपूर्ण निर्णय भी फीके पड़ जायेंगें। हिन्दू का हिन्दू के रूप में रहना और भी मुश्किल हो जायेगा। मनमोहन सिंह ने पहले कहा था कि देश के संसाधनों पर मुसलमानों का पहला अधिकार है। अब केवल उनका ही अधिकार रह जायेगा। इस विधेयक के विरोध में एक सशक्त आंदोलन खड़ा करना पडेगा तभी तानाशाहीपूर्ण कदम पर रोक लगाई जा सकती है।

अधिक जानकारी के लिये nac.nic.in कृपया देखें.....

प्रस्तावित विश्व हिन्दू परिषद् , कोटा विभाग, राजस्थान 

धर्मांतरण : अपनी गिरेवान में झांके अमरीका
http://arvindsisodiakota.blogspot.com  


कोंग्रेस का साम्प्रदायिक खेल है साम्प्रदायिकता विधेयक , हिदू मुसलिम लड़ो , इसाई राज बनाओ 
http://arvindsisodiakota.blogspot.com/2011    


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