भारतीय काल गणना सृष्टि की सम्पूर्ण गति, लय एवं प्रभाव का महाविज्ञान है - नरूका


प्रबुद्धजन विचार गोष्ठी
भारतीय काल गणना सृष्टि की सम्पूर्ण गति, लय एवं प्रभाव का महाविज्ञान है - नरूका


कोटा 13 मार्च। नववर्ष उत्सव आयोजन समिति कोटा महानगर के तत्वाधान में मंगलवार को गुजराती समाज भवन में आयोजित ’’ भारतीय नववर्ष का वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक महत्व ’’ विषय पर आयोजित प्रबुद्धजन विचार गोष्ठी को सम्बोद्धित करते हुये मुख्य वक्ता प्रध्याापक एवं चिन्तक नन्द सिंह नरूका ने कहा ‘‘ भारतीय पंचाग की काल गणना और उसमें निहित ग्रह - नक्षत्रीय प्रभावों का समाज में व्यापक प्रभाव है। और ‘‘भारतीय नववर्ष सम्बत्सर पूरी तरह वैज्ञानिक आधारों और अनुभवों की आधारशीला पर आधारित होकर सृष्टि के विकास क्रम एवं निरन्तर प्रभाव का महान् अनुसंधान है।
उन्होने कहा ‘‘ एक समय भारत ज्ञान विज्ञान में सर्वोच्च था और हमारे पूर्वजों ने जीवन पद्धति से लेकर गतिशीलता तक गम्भीर अध्ययन किये। और उन्होने लिपिवद्ध किया तथा समाज में इस तरह समाविष्ट कर दिया कि हम आज भी उस ज्ञान विज्ञान का लाभ उठा रहे है। वह आज भी हमारे जीवन के शुभ अवसरो को मार्गदर्शित करते है।
नरूका ने कहा ‘‘ हमारे ज्ञान -विज्ञान और इतिहास का बहुत बडा हिस्सा मुस्लिम आक्रमणों के दौरान जला दिया गया। और अंग्रेजो ने भी हमारे ज्ञान विज्ञान और मौलिक जीवन पद्धति को समाप्त करने तथा अपने आप को थोपने का उपक्रम किया जिसका प्रभाव आज तक  हमें प्रभावित कर रहा है।
उन्होने बताया कि रोमन कलेण्डर कल्पना पर आधारित था। उसमें कभी मात्र 10 महीने हुआ करते थे। जिनमें कुल 304 दिन थे। बाद में उन्होने जनवरी व फरवरी माह जोडकर 12 माह का वर्ष किया। इसमें भी उन्होने वर्ष के दिनो को ठीक करने के लिये फरवरी को 28 और 4 साल बाद 29 दिन की। कुल मिलाकर ईसवी सन् पद्धति अपना कोई वैज्ञानिक प्रभाव नहंी रखती है।
उन्होने कहा कि भारतीय पंचाग में यूं तो 9 प्रकार के वर्ष बताये गये जिसमें विक्रम संवत् सावन पद्धति पर आधारित है। उन्होने बताया कि भारतीय काल गणना में समय की सबसे छोटी इकाई से लेकर ब्रहााण्ड की सबसे बडी ईकाई तक की गणना की जाती है। जो कि ब्राहाण्ड में व्याप्त लय और गति की वैज्ञानिकता को सटीक तरीके से प्रस्तुत करती है।
उन्होने कहा आज कि वैज्ञानिक पद्धति कार्बन आधार पर पृथ्वी की आयु 2 अरब वर्ष के लगभग बताती है। और यहीं गणना भारतीय पंचाग करता है। जो कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर पूरी तरह से प्रमाणिकता के साथ खडा हुआ है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि गजेन्द्र सिंह सिसोदिया ने कहा ‘‘ हमारी पृथ्वी पर जो ऋतु क्रम घटित होता है। वह भारतीय नववर्ष की संवत पद्धति से प्रारम्भ होता है। उन्होने कहा कि हमारे मौसम और विविध प्राकृतिक घटनाओं पर ग्रह नक्षत्रो का प्रभाव पडता है। जिसका गहन अध्ययन भारतीय काल गणना पद्धति मे हुआ है।
उन्होने कहा कि चीन और जापान अपनी -अपनी परम्पराओं पर चलकर विश्व मे अग्रणी बने हुये है। हमे भी अपनी भाषा अपने अंक अपने धर्म पर दृढ़ता पूर्वक विश्वास करते हुये उनका गम्भीरता पूर्वक संरक्षण करना चाहिये एवं अपने जीवन में अपनाना चाहिये।
विशिष्ट अतिथि जी.डी.पटेल ने अपने सम्बोद्धन में कहा कि भारतीय संस्कृति ने ही सबसे पहले सृष्टि रचना का चिन्तन किया वह क्यों है ? किस तरह गतिशील है ? उसका हमारी पृथ्वी पर तथा प्राणी जीवन पर क्या-क्या प्रभाव पड़ रहे है ? इनका अध्ययन भी हमारी काल गणना में समाहित है। उन्होने कहा पाश्चात् जगत हमारी प्रमाणित एवं वैज्ञानिक आधार पर आधारित धरोहर, ज्ञान-विज्ञान को नष्ट कर देना चाहता है। और अपने आप को हम पर थोपना चाहता है। इसलिये हमे अपने ज्ञान विज्ञान एवं धरोहर को संरक्षित करना चाहिये, गर्व पूर्वक हमें चेत्र शुक्ल एकम से प्रारम्भ नववर्ष को उत्सवपूर्वक मनाना चाहिये।
कार्यक्रम के अध्यक्ष आर.पी गुप्ता, ने आव्हान किया कि हमारे पूर्वजो के द्वारा दिया गया हमारा नववर्ष चेत्र शुल्का एकम् को उत्सव के रूप में प्रत्येक घर को मनाना चाहिये।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में अतिथि परिचय एवं स्वागत समिति के मंत्री बाबूलाल भाट ने किया, कार्यक्रम संयोजक प्रहलाद गोस्वामी ने समिति का संक्षिप्त परिचय दिया। संचालन समिति के संयुक्त सचिव एडवोकेट मनोज गौतम ने किया तथा धन्यवाद समिति के संरक्षक बाबूलाल रेनवाल ने किया।
कार्यक्रम में समिति के संरक्षक जटाशंकर शर्मा, खुशपाल सिंह चौहान, त्रिलोक चन्द्र जैन, चन्द्र सिंह,सहित पूर्व मंत्री हरि कुमार औदिच्य, भाजपा जिला अध्यक्ष श्याम शर्मा, अवधेश मिश्रा, अरविन्द्र सिसोदिया नेता खण्डेलवाल, दिनेश सोनी,प्रचार प्रमुख महेश शर्मा, सीमा खण्डेलवाल, कुसुम शर्मा, रामवतार सिंघल, नीता नायक, रामबाबू सोनी, नवीन शर्मा, हरिहर गौतम, दिनेश रावल, जगदीश शर्मा, राकेश भटनागर, विमल जैन, वी.के. योगी , हेमन्त विजयवर्गीय, अरविन्द्र जौहरी, ओम प्रजापति, आदि प्रमुख रूप से उपस्थित थे।
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