द्वारका खोजनेवाले पुरातत्ववेता : प्रो. राव का निधन
प्रो. राव और उनकी टीम ने 560 मीटर लंबी द्वारका की दीवार की खोज की। साथ में उन्हें वहां पर उस समय के बर्तन भी मिले, जो 1528 ईसा पूर्व के हैं। इसके अलावा सिंधु घाटी सभ्यता के भी कई अवशेष उन्होंने खोजे। और उनकी टीम ने 560 मीटर लंबी द्वारका की दीवार की खोज की। साथ में उन्हें वहां पर उस समय के बर्तन भी मिले, जो 1528 ईसा पूर्व के हैं। इसके अलावा सिंधु घाटी सभ्यता के भी कई अवशेष उन्होंने खोजे।
बेंगलूरु (महुआ न्यूज): ऐतिहासिक द्वारका नगरी की खोज करने वाले मशहूर आर्कियोलॉजिस्टा प्रो. एसआर राव का निधन हो गया है। आज उन्होंने बेंगलूरु स्थित अपने घर में अंतिम सांसे ली।
महाभारत में भगवान कृष्ण की द्वारका नगरी के बारे में आपने पढ़ा होगा। एक समय था जब लोग कहते थे कि द्वारका नगरी एक काल्पणनिक नगर है, लेकिन इस कल्पमना को सच साबित कर दिखाया, आर्कियोलॉजिस्टन प्रो. एसआर राव ने। प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रो. राव हमारे बीच नहीं हैं। प्रो. राव का आज गुरुवार को बेंगलूरु में उनके निवास स्थारन पर निधन हो गया।
प्रो. राव ने मैसूर विश्वउविद्यालय से पढ़ाई करने के बाद बड़ौद में राज्य पुरातत्वर विभाग ज्वाइन कर लिया। उसके बाद भारतीय पुरातत्वि विभाग में काम किया। उन्होंने खुदाई के दौरान कई महत्वापूर्ण स्थानों की खोज की, जिनमें रंगपुर, अमरेली, भगतरे, द्वारका, हनुर, ऐहोल, कावेरीपट्नम प्रमुख रूप से शामिल हैं। इसके अलावा गुजरात में लोथल की खोज भी उन्हीं की देन है।
प्रो. राव और उनकी टीम ने 560 मीटर लंबी द्वारका की दीवार की खोज की। साथ में उन्हें वहां पर उस समय के बर्तन भी मिले, जो 1528 ईसा पूर्व के हैं। इसके अलावा सिंधु घाटी सभ्यता के भी कई अवशेष उन्होंने खोजे। उन्होंने सिर्फ पश्चिमी भारत में नहीं बल्कि दक्षिण भारत में भी कई जगह पर खुदाई में ढेर सारी खोज कीं। उनका नाम पुतात्विक खोज की दुनिया में बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है।
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द्वारका की खोज करने वाले आर्कियोलॉजिस्ट प्रो. राव का निधन
बेंगलूरु। महाभारत में भगवान कृष्ण की द्वारका नगरी के बारे में आपने पढ़ा होगा। एक समय था जब लोग कहते थे कि द्वारका नगरी एक काल्पनिक नगर है, लेकिन इस कल्पना को सच साबित कर दिखाया आर्कियोलॉजिस्ट प्रो. एसआर राव ने। आज वही प्रो. राव हमारे बीच नहीं हैं। प्रो. राव का आज गुरुवार को बेंगलूरु में उनके निवास स्थान पर निधन हो गया। प्रो. राव ने मैसूर विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने के बाद बड़ौद में राज्य पुरातत्व विभाग ज्वइन कर लिया। उसके बाद भारतीय पुरातत्व विभाग में काम किया। उन्होंने खुदाई के दौरान कई महत्वपूर्ण स्थानों की खोज की, जिनमें रंगपुर, अमरेली, भगतरे, द्वारका, हनुर, ऐहोल, कावेरीपट्नम प्रमुख रूप से शामिल हैं। इसके अलावा गुजरात में लोथल की खोज भी उन्हीं की देन है।
प्रो. राव और उनकी टीम ने 560 मीटर लंबी द्वारका की दीवार की खोज की। साथ में उन्हें वहां पर उस समय के बर्तन भी मिले, जो 1528 ईसा पूर्व के हैं। इसके अलावा सिंधु घाटी सभ्यता के भी कई अवशेष उन्होंने खोजे। उन्होंने सिर्फ पश्चिमी भारत में नहीं बल्कि दक्षिण भारत में भी कई जगह पर खुदाई में ढेर सारी खोज कीं। उनका नाम पुरातत्व की दुनिया में बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है और हमेशा रहेगा। उस जगह पर भी उन्होंने खुदाई में कई रहस्य खोले, जहां पर कुरुक्षेत्र का युद्ध हुआ था।
प्रो. राव और उनकी टीम ने 560 मीटर लंबी द्वारका की दीवार की खोज की। साथ में उन्हें वहां पर उस समय के बर्तन भी मिले, जो 1528 ईसा पूर्व के हैं। इसके अलावा सिंधु घाटी सभ्यता के भी कई अवशेष उन्होंने खोजे। उन्होंने सिर्फ पश्चिमी भारत में नहीं बल्कि दक्षिण भारत में भी कई जगह पर खुदाई में ढेर सारी खोज कीं। उनका नाम पुरातत्व की दुनिया में बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है और हमेशा रहेगा। उस जगह पर भी उन्होंने खुदाई में कई रहस्य खोले, जहां पर कुरुक्षेत्र का युद्ध हुआ था।
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