महाकुंभ में : विदेशी भक्तों की अनूठी सहभागीता
महाकुंभ में विदेशियों की अनूठी आस्था
Thursday, January 24, 2013,
बिमल कुमार
हिंद की माटी ही कुछ ऐसी है कि जिसके कण-कण में आस्था गहरी समाई हुई है। चाहे वह भारतवासी हो या किसी अन्य देश का, कोई इससे अछूता नहीं है। इस बात को बखूबी साबित कर रहे हैं दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेले महाकुंभ के दौरान अमृत प्राप्ति की चाह में आने वाले विदेशी श्रद्धालु। अमृत पान की चाह केवल भारतीय श्रद्धालुओं को ही अपनी ओर आकर्षित नहीं कर रही, बल्कि कई देशों के श्रद्धालु महाकुंभ में बरबस खींचे चले आ रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि महाकुंभ में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। मोक्ष किसे नहीं चाहिए, बस फर्क है तो मर्म समझने की। जिसने मर्म समझ लिया, वह दुनिया के किसी कोने में बैठा हो, उसके कदम महाकुंभ की इस पावन धरा की तरफ आएंगे ही।
तीर्थराज प्रयाग के संगम में डुबकी लगाने आ रहे लाखों श्रद्धालुओं में से हजारों ऐसे भी हैं, जो सात समंदर पार से आए हैं। भारतीय संस्कृति और महाकुंभ का सम्मोहन उन्हें यहां तक खींच लाया है। वैश्विक जगत को आध्यात्मिकता का अनूठा संदेश दे रही इस महाकुंभ के दौरान `वसुधैव कुटुंबकम` भी भलीभांति चरितार्थ हो रही है।
भारत के पड़ोसी देश नेपाल से लेकर एशिया, यूरोप और अमेरिकी महाद्वीप के विभिन्न देशों के लोगों का गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पावन संगम पर आना निरंतर जारी है। संभवत: सबको इस बात का एहसास है कि दुनिया के इस सबसे बड़े धार्मिक मेले में अगर इस बार शामिल होने से चूक गए तो फिर 12 साल बाद ही ऐसा मौका आएगा। वैदिक काल से ही महाकुंभ की विशेषता और इसका महत्व खासा प्रचलित हुआ। जिसे बाद में हिंदू संतों व धर्माचार्यों ने दुनिया के कोने-कोने तक इसे फैलाया। इसी का परिणाम है कि आज विदेशों से हजारों लोग आस्था में पूरी तरह तल्लीन होकर संगम के तट पर डुबकी लगाने पहुंच रहे हैं।
श्रद्धालुओं में शामिल कोई रूसी है तो कोई नेपाली, कोई जर्मन तो कोई अमेरिकी है। दुनिया के इस अद्भुत धार्मिक आयोजन का हिस्सा बनने के लिए कोने-कोने से लोग यहां आए हैं। जर्मनी का एक परिवार संगम के तट पर पहुंचने के बाद कुछ दिनों तक यहीं का होकर रह गया। उसके शब्दों में महाकुंभ की आस्था ही कुछ ऐसी है, जो उसे सात समुंदर से खींचकर ले आई।
भारतीय श्रद्धालु और विदेशी लोगों को एक साथ देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि इलाहाबाद में दुनिया एक जगह सिमट आई है। यह वाकई अपने आप में अद्भुत है। शायद ही दुनिया का कोई अन्य धार्मिक मेला हो, जहां विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ एकत्रित होकर उसमें रम जाते हों। पर महाकुंभ की महिमा ही ऐसी है कि यह पूरी दुनिया को अपनी ओर खींच रही है।
विदेशों से आने वाले लोगों को यदि सैर सपाटा करना होता तो ये घूमने के लिए किसी दूसरे शहर भी जा सकते थे, लेकिन ये तो प्रयाग की धरती पर उस शांति की अनुभूति करने आए हैं, जिसकी चर्चा दुनिया भर में होती है। रूस की अला अपने पति के साथ कुंभ में लंबा वक्त बिताने आई हैं। एक महीने तक महाकुंभ में कल्पवास करके यह जोड़ा भक्ति और आस्था का आनंद उठाएगा। कुंभ की इस धरती पर न तो उन्हें भाषाई दिक्कत पेश आ रही है और न ही अन्य कोई दिक्कत। यहां की संस्कृति में घुलने-मिलने के लिए वे तत्पर नजर आते हैं।
संगम के तीरे पर संतों व धर्माचार्यों के प्रवचनों के प्रवचनों का ये विदेशी श्रद्धालु खूब आनंद लेते नजर आ रहे हैं। कनाडा से आई एक महिला यहां के वातावरण में कुछ इस तरह रम गईं कि उन्हें देखकर यह कहना मुश्किल है कि भारत और भारतीय उसमें रची बसी न हो। पूजा-अर्चना के दौरान ध्यानमग्न होना, रोज सुबह संगम में डुबकी लगाना, प्रवचनों में रम जाना आदि ऐसी बातें हैं, जिससे स्पष्ट है कि उन्हें भारतीय संस्कृति से खासा लगाव हो गया है। वहीं, अमेरिका से कुंभ का अद्भुत अनुभव करने पहुंचे एक अन्य परिवार भी कुछ इसी तरह रम गया है।
इसमें कोई शक नहीं है कि प्रयाग में संगम तट पर भारत के साथ विश्व की अलग-अलग संस्कृतियों का भी संगम हो रहा है। धरती का शायद ही ऐसा कोई कोना बचा होगा, जहां से लोग महाकुंभ के दौरान संगम में पवित्र डुबकी लगाने न आए हों। विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं का ये कारवां बढ़ता ही जा रहा है। यदि यही आलम रहा तो 55 दिवसीय इस महाकुंभ मेले में विदेशी भक्तों की संख्या 50 लाख को पार कर जाएगी।
तीर्थराज प्रयाग में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों के संगम तट पर मकर संक्रांति के मौके पर दुनिया के सबसे बड़ा धार्मिक मेला प्रारंभ हुआ और नागा साधुओं के स्नान के साथ संगम में करोड़ों श्रद्धालु अंतिम शाही स्नान महाशिवरात्रित तक आस्था की डुबकी लगाएंगे। हजारों विदेशी मेहमान तो स्नान के पहले दिन ही पहुंच गए थे।
महानिर्वाणी अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, जूना अखाड़ा, बैरागी अखाड़ा समेत कई अन्य अखाड़ों में भी ये विदेशी श्रद्धालु ध्यानमग्न अवस्था में बैठे देखे गए। ये कुछ इस तरह ध्यानमग्न होते हैं, जैसे शांति की प्राप्ति का इससे बेहतर स्थान कोई हो ही न।
अहले सुबह श्रद्धालुओं का कारवां संगम की ओर चल पड़ता है और इसमें शामिल होते हैं कई विदेशी श्रद्धालु। भेदभाव और अन्य बातों से कोसों दूर। ढोल बजाते और शंखध्वनि करते ऐसे पैदल चलते हैं, लगता है जैसे यही उनकी आखिरी मंजिल हो। मां गंगा को स्पर्श करने की आतुरता और कुंभ क्षेत्र के माहौल में ये दुनिया से खुद को सर्वोपरि महसूस करने लगते हैं।
इस रोमांचक क्षण को वे भरपूर जीना चाहते हैं, शायद उन्हें ये क्षण पहले नसीब ही न हुए हों।
संगम तट पर चारों तरफ ` गंगा मैया की जय`, `नमो नारायण`, `जय शिवशंकर` के उद्घोषों के बीच ये विदेशी खुद को बेहद सहज पाते हैं। विदेशों से आए श्रद्धालु न सिर्फ आस्था की डुबकी लगाते हैं, बल्कि वहां बैठकर पूजा-पाठ और दान-पुण्य भी पूरे विधि-विधान से करते हैं।
दुनिया के इस सबसे बड़े धार्मिक मेले की कई खासियत हैं। विदेशी मेहमानों में पवित्र गंगा जल को साथ लेकर जाने का उत्साह तो है ही, साथ ही शाही स्नान के दौरान पवित्र नागा सन्यासी जिन मार्गों से होकर गुजरे हैं, वहां की रेत को भी पोटलियों में भरकर वे अपने साथ ले जा रहे हैं। शाही स्नान के दौरान प्रसिद्ध अखाड़ों के नागा संत जिन रास्तों से गुजरे हैं, कुछ लोग वहां की धूल को माथे पर तिलक के रूप में लगा रहे हैं तो कोई पदचिन्हों पर मत्था टेककर अपने ईष्ट को याद कर रहा है।
वहीं, विदशी भक्तों तक इस चरण रज को पहुंचाने के लिए छोटी-छोटी पोटलियों में इन्हें रखा जा रहा है और करीब 100 से अधिक देशों में उन्हें भेजने की व्यवस्था की जा रही है। आपकों बता दें कि श्रद्धालु हमेशा से नागा सन्यासियों को देवता का दर्जा देते रहे हैं। यह कारण है कि उनके चरणों की धूल देश ही नहीं विदेशों से आए भक्त भी लेकर जा रहे हैं।
विदेशों से आए श्रद्धालुओं को यहां हर चीज अनोखी प्रतीत होती है और वे भारत की सांस्कृतिक विरासत को दुनिया के समक्ष लाजवाब पाते हैं। न सिर्फ आस्था की डुबकी बल्कि ये विदेशी श्रद्धालु आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश में यहां आज रहे हैं। समृद्ध धार्मिक संस्कृति और धरोहरों के चलते ये विदेशी श्रद्धालु बरबस ही मन में यह संकल्प लेकर जाएंगे कि अब उन्हें मोक्ष की प्राप्ति तो मिल ही गई। विदेशी श्रद्धालुओं के भारतीय संस्कृति और धर्म से जुड़ने की हजारों घटनाएं हैं, जो शांतिपूर्ण और आनंदमयी जीवन की चाह में अध्यात्म की ओर मुड़ गए। महाकुंभ में कोटि-कोटि आस्था पहले भी रही है और सदियों तक यह अनवरत जारी रहेगी।
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अद्वितीय कुंभ:
पौष पूर्णिमा पर संगम में डुबकी लगाने के बाद सूर्य को अर्घ्य देती फ़िनलैंड से पधारी रिचर्ड.
हिंद की माटी ही कुछ ऐसी है कि जिसके कण-कण में आस्था गहरी समाई हुई है। चाहे वह भारतवासी हो या किसी अन्य देश का, कोई इससे अछूता नहीं है। इस बात को बखूबी साबित कर रहे हैं दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेले महाकुंभ के दौरान अमृत प्राप्ति की चाह में आने वाले विदेशी श्रद्धालु। अमृत पान की चाह केवल भारतीय श्रद्धालुओं को ही अपनी ओर आकर्षित नहीं कर रही, बल्कि कई देशों के श्रद्धालु महाकुंभ में बरबस खींचे चले आ रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि महाकुंभ में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। मोक्ष किसे नहीं चाहिए, बस फर्क है तो मर्म समझने की। जिसने मर्म समझ लिया, वह दुनिया के किसी कोने में बैठा हो, उसके कदम महाकुंभ की इस पावन धरा की तरफ आएंगे ही।
तीर्थराज प्रयाग के संगम में डुबकी लगाने आ रहे लाखों श्रद्धालुओं में से हजारों ऐसे भी हैं, जो सात समंदर पार से आए हैं। भारतीय संस्कृति और महाकुंभ का सम्मोहन उन्हें यहां तक खींच लाया है। वैश्विक जगत को आध्यात्मिकता का अनूठा संदेश दे रही इस महाकुंभ के दौरान `वसुधैव कुटुंबकम` भी भलीभांति चरितार्थ हो रही है।
भारत के पड़ोसी देश नेपाल से लेकर एशिया, यूरोप और अमेरिकी महाद्वीप के विभिन्न देशों के लोगों का गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पावन संगम पर आना निरंतर जारी है। संभवत: सबको इस बात का एहसास है कि दुनिया के इस सबसे बड़े धार्मिक मेले में अगर इस बार शामिल होने से चूक गए तो फिर 12 साल बाद ही ऐसा मौका आएगा। वैदिक काल से ही महाकुंभ की विशेषता और इसका महत्व खासा प्रचलित हुआ। जिसे बाद में हिंदू संतों व धर्माचार्यों ने दुनिया के कोने-कोने तक इसे फैलाया। इसी का परिणाम है कि आज विदेशों से हजारों लोग आस्था में पूरी तरह तल्लीन होकर संगम के तट पर डुबकी लगाने पहुंच रहे हैं।
श्रद्धालुओं में शामिल कोई रूसी है तो कोई नेपाली, कोई जर्मन तो कोई अमेरिकी है। दुनिया के इस अद्भुत धार्मिक आयोजन का हिस्सा बनने के लिए कोने-कोने से लोग यहां आए हैं। जर्मनी का एक परिवार संगम के तट पर पहुंचने के बाद कुछ दिनों तक यहीं का होकर रह गया। उसके शब्दों में महाकुंभ की आस्था ही कुछ ऐसी है, जो उसे सात समुंदर से खींचकर ले आई।
भारतीय श्रद्धालु और विदेशी लोगों को एक साथ देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि इलाहाबाद में दुनिया एक जगह सिमट आई है। यह वाकई अपने आप में अद्भुत है। शायद ही दुनिया का कोई अन्य धार्मिक मेला हो, जहां विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ एकत्रित होकर उसमें रम जाते हों। पर महाकुंभ की महिमा ही ऐसी है कि यह पूरी दुनिया को अपनी ओर खींच रही है।
विदेशों से आने वाले लोगों को यदि सैर सपाटा करना होता तो ये घूमने के लिए किसी दूसरे शहर भी जा सकते थे, लेकिन ये तो प्रयाग की धरती पर उस शांति की अनुभूति करने आए हैं, जिसकी चर्चा दुनिया भर में होती है। रूस की अला अपने पति के साथ कुंभ में लंबा वक्त बिताने आई हैं। एक महीने तक महाकुंभ में कल्पवास करके यह जोड़ा भक्ति और आस्था का आनंद उठाएगा। कुंभ की इस धरती पर न तो उन्हें भाषाई दिक्कत पेश आ रही है और न ही अन्य कोई दिक्कत। यहां की संस्कृति में घुलने-मिलने के लिए वे तत्पर नजर आते हैं।
संगम के तीरे पर संतों व धर्माचार्यों के प्रवचनों के प्रवचनों का ये विदेशी श्रद्धालु खूब आनंद लेते नजर आ रहे हैं। कनाडा से आई एक महिला यहां के वातावरण में कुछ इस तरह रम गईं कि उन्हें देखकर यह कहना मुश्किल है कि भारत और भारतीय उसमें रची बसी न हो। पूजा-अर्चना के दौरान ध्यानमग्न होना, रोज सुबह संगम में डुबकी लगाना, प्रवचनों में रम जाना आदि ऐसी बातें हैं, जिससे स्पष्ट है कि उन्हें भारतीय संस्कृति से खासा लगाव हो गया है। वहीं, अमेरिका से कुंभ का अद्भुत अनुभव करने पहुंचे एक अन्य परिवार भी कुछ इसी तरह रम गया है।
इसमें कोई शक नहीं है कि प्रयाग में संगम तट पर भारत के साथ विश्व की अलग-अलग संस्कृतियों का भी संगम हो रहा है। धरती का शायद ही ऐसा कोई कोना बचा होगा, जहां से लोग महाकुंभ के दौरान संगम में पवित्र डुबकी लगाने न आए हों। विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं का ये कारवां बढ़ता ही जा रहा है। यदि यही आलम रहा तो 55 दिवसीय इस महाकुंभ मेले में विदेशी भक्तों की संख्या 50 लाख को पार कर जाएगी।
तीर्थराज प्रयाग में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों के संगम तट पर मकर संक्रांति के मौके पर दुनिया के सबसे बड़ा धार्मिक मेला प्रारंभ हुआ और नागा साधुओं के स्नान के साथ संगम में करोड़ों श्रद्धालु अंतिम शाही स्नान महाशिवरात्रित तक आस्था की डुबकी लगाएंगे। हजारों विदेशी मेहमान तो स्नान के पहले दिन ही पहुंच गए थे।
महानिर्वाणी अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, जूना अखाड़ा, बैरागी अखाड़ा समेत कई अन्य अखाड़ों में भी ये विदेशी श्रद्धालु ध्यानमग्न अवस्था में बैठे देखे गए। ये कुछ इस तरह ध्यानमग्न होते हैं, जैसे शांति की प्राप्ति का इससे बेहतर स्थान कोई हो ही न।
अहले सुबह श्रद्धालुओं का कारवां संगम की ओर चल पड़ता है और इसमें शामिल होते हैं कई विदेशी श्रद्धालु। भेदभाव और अन्य बातों से कोसों दूर। ढोल बजाते और शंखध्वनि करते ऐसे पैदल चलते हैं, लगता है जैसे यही उनकी आखिरी मंजिल हो। मां गंगा को स्पर्श करने की आतुरता और कुंभ क्षेत्र के माहौल में ये दुनिया से खुद को सर्वोपरि महसूस करने लगते हैं।
इस रोमांचक क्षण को वे भरपूर जीना चाहते हैं, शायद उन्हें ये क्षण पहले नसीब ही न हुए हों।
संगम तट पर चारों तरफ ` गंगा मैया की जय`, `नमो नारायण`, `जय शिवशंकर` के उद्घोषों के बीच ये विदेशी खुद को बेहद सहज पाते हैं। विदेशों से आए श्रद्धालु न सिर्फ आस्था की डुबकी लगाते हैं, बल्कि वहां बैठकर पूजा-पाठ और दान-पुण्य भी पूरे विधि-विधान से करते हैं।
दुनिया के इस सबसे बड़े धार्मिक मेले की कई खासियत हैं। विदेशी मेहमानों में पवित्र गंगा जल को साथ लेकर जाने का उत्साह तो है ही, साथ ही शाही स्नान के दौरान पवित्र नागा सन्यासी जिन मार्गों से होकर गुजरे हैं, वहां की रेत को भी पोटलियों में भरकर वे अपने साथ ले जा रहे हैं। शाही स्नान के दौरान प्रसिद्ध अखाड़ों के नागा संत जिन रास्तों से गुजरे हैं, कुछ लोग वहां की धूल को माथे पर तिलक के रूप में लगा रहे हैं तो कोई पदचिन्हों पर मत्था टेककर अपने ईष्ट को याद कर रहा है।
वहीं, विदशी भक्तों तक इस चरण रज को पहुंचाने के लिए छोटी-छोटी पोटलियों में इन्हें रखा जा रहा है और करीब 100 से अधिक देशों में उन्हें भेजने की व्यवस्था की जा रही है। आपकों बता दें कि श्रद्धालु हमेशा से नागा सन्यासियों को देवता का दर्जा देते रहे हैं। यह कारण है कि उनके चरणों की धूल देश ही नहीं विदेशों से आए भक्त भी लेकर जा रहे हैं।
विदेशों से आए श्रद्धालुओं को यहां हर चीज अनोखी प्रतीत होती है और वे भारत की सांस्कृतिक विरासत को दुनिया के समक्ष लाजवाब पाते हैं। न सिर्फ आस्था की डुबकी बल्कि ये विदेशी श्रद्धालु आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश में यहां आज रहे हैं। समृद्ध धार्मिक संस्कृति और धरोहरों के चलते ये विदेशी श्रद्धालु बरबस ही मन में यह संकल्प लेकर जाएंगे कि अब उन्हें मोक्ष की प्राप्ति तो मिल ही गई। विदेशी श्रद्धालुओं के भारतीय संस्कृति और धर्म से जुड़ने की हजारों घटनाएं हैं, जो शांतिपूर्ण और आनंदमयी जीवन की चाह में अध्यात्म की ओर मुड़ गए। महाकुंभ में कोटि-कोटि आस्था पहले भी रही है और सदियों तक यह अनवरत जारी रहेगी।
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अद्वितीय कुंभ:
पौष पूर्णिमा पर संगम में डुबकी लगाने के बाद सूर्य को अर्घ्य देती फ़िनलैंड से पधारी रिचर्ड.
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