विवेकानंद मेरी दृष्टि में -रजनी भारद्वाज

मुझे यह लेख स्वामी जी के विषय में लिखे गए अनेकों लेखों में सर्वोपरी प्रतीत हुआ सो लेखिका की अनुमति के बिना ही आप की सेवा में जनहित में प्रस्तुत है .....
- अरविन्द सिसोदिया 
 

लेखिका - रजनी भारद्वाज  Rajani Bhardwaj 

Lecturer in Biology
Jaipur City, Rajasthan, India
Friday, January 11, 2013


विवेकानंद मेरी दृष्टि में


                स्वामी विवेकानंद शब्द जब मन और मस्तिष्क पे दस्तक देता है तो प्रथमतः गेरुआ वस्त्र पहने, सिर पे पाग बांधें ,चौड़े कंधे और तेजमय ओज से भरा एक धीर गंभीर चेहरा कौंधता है . फिर कुछ पल ठहर एक विचारक ,एक दार्शनिक ,एक आध्यात्म गुरु  या विश्व में जन जागरण की अलख जगाने वाला युवा ..अनेक छवियाँ एक के बाद एक बरबस ही चेतना के मानस पटल पे अंकित होने लगती हैं और अंतस के गर्भ में समाने लगती हैं .
               कलकत्ता के प्रसिद्द वकील श्री राम मोहन दत्त व श्रीमती भुवनेश्वरी जी के यंहा विजयादशमी के दिन 12 जनवरी 1863  ई. की सुबह जन्म हुआ स्वामी विवेकानंद का . कायस्थ वंश में जन्मे विवेकानंद का वास्तविक नाम था नरेन्द्र दत्त . नरेन्द्र बचपन से ही एक बहुआयामी व्यक्तित्व के रूप में विकसित हो रहे थे क्योकि घर का खुला आध्यात्मिक,पारिवारिक वातावारण उनके विकास के विभिन्न पहलुओं को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर रहा था जहाँ शास्त्र चर्चा व अध्ययन के प्रति घोर अनुराग था इसलिए आनुवांशिक गुणों के साथ साथ अनुकूल वातावरणीय प्रभाव से नरेन्द्र के व्यक्तित्व का सर्वांगीड़ विकास हो रहा था . वे न केवल पढने में मेधावी थे बल्कि चित्रकला ,संगीत, गीत ,गणित, योग, व्यायाम आदि अनेक विधाओं में भी दक्ष हो रहे थे .और इन विविध आयामी गुणों से सुसंस्कृत ,परिष्कृत व परिमार्जित होता हुआ ये बालक बड़ा होकर बना स्वामी विवेकानंद .

              स्वामी विवेकानंद समुंद्र की अथाह जलराशि के समान विशाल व अतल गहरे तो वहीं पर्वत समान अडिग,
अविचल तो आकाश जैसे विस्तृत असीमित और अपरिमित. श्री रामकृष्ण परमहंस के परम शिष्य विवेकानंद को जितना मैंने पढ़ा ,जाना या समझा है उस से मेरे मानस पे उनकी छवि एक ऐसे असाधारण युगदृष्टा शिक्षक के रूप में उभर के आती है जिन्होंने शिक्षा,समाज,संस्कृति,अध्यात्म,मुक्ति,विज्ञान व सम सामयिक परिपेक्ष्य में उभरते अनेकानेक सवालो पे ना केवल युवाओं का आह्वान किया वरन उनकी मौलिकता, नैतिकता, चारित्रिक दृढ़ता व वैज्ञानिक तथ्यात्मकता को पोषित भी किया साथ ही मानव के समक्ष जीवन के वे आधारभूत सिद्धांत प्रस्तुत किये जिससे वह जीवन के चरम लक्ष्य को प्राप्त कर सके इन सब के बावजूद वे स्वयं भी एक शिष्य के समान ज्ञान पिपासु ,खोजी, अन्वेषी ,व जिज्ञासु उपासक बने रहे और ज्ञान के निरंतर अवबोध व परिमार्जन को ग्राह्य करते रहे . वे सम्पूर्ण  जीवन सरल सलिल से बहते रहे पूरे वेग से और उसमे उतरने वाले अनगिनत लोगों को सही दिशा दी.
         स्वामी विवेकानंद के शिक्षक स्वरूप को समझे तो उन्होंने ज्ञान ,ज्ञानी और ज्ञान पिपासु तीनों को इस प्रकार से एक कड़ी में पिरोया की हर एक ने उन्हें जीवन के अध्यात्म गुरु के पद पर प्रतिष्ठित किया . मेरी दृष्टि में मैं बात करना चाहूंगी उन छोटे छोटे कथन व व्यक्तव्यों की जिन्हें उन्होंने उदृत किया बहुत ही अनौपचारिक रूप से और  पूरे विश्व को खुले विद्यालय में बदल दिया और हर ज्ञान पिपासु को विद्यार्थी में, जो जानना चाहता है स्वयं के बारे में, स्वयं  के होने के बारे में समझना चाहता है, अस्तित्व की अवधारणा को, धर्म की धारणा को, कर्मयोग को ...और इस प्रकार से विवेकानंद का सबसे अहम् ,सुनहरा और उत्कृष्ट पक्ष एक गुरु या शिक्षक के रूप में अवतरित होता है जो ज्ञान को थोपता नही है और ना ही उसे महिमा मंडित कर मानने पे विवश करता है वरन आध्यात्म  के आधार पर तर्क की कसौटी पे कस के आत्मसात करने को अभिप्रेरित करता है

              शिक्षा या ज्ञान का उद्देश्य आत्म निर्भरता के साथ साथ आध्यात्मिक चेतनता को जागृत करना भी है. शिक्षा वह जो मानव को जीवन संघर्ष के लिए तैयार करें, उसके पलायनवादी रुख को पलट दे, नया करने व प्राप्त करने को तत्पर बना दे इसलिए शिक्षा में आध्यात्म तत्व के साथ विज्ञान व तकनीकी का पुट भी सम्मिलित होना चाहिए .और इन सबसे अहम बात जो कही वो आज के परिपेक्ष्य में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है कि मानव को अपने व्यक्तित्व विकास की स्वतंत्रता होनी चाहिए , शारीरिक भी और मानसिक भी इसलिए उन्होंने वर्तमान प्रचलित शिक्षा प्रणाली का खंडन किया क्योकि उनका मानना रहा कि इस तरह की शिक्षा पद्दति से चिंतन शक्ति के विकास में बाधा आती है अतः शिक्षा में प्रयोग विधि उचित है

                 शिक्षा देने में विवेकानंद व्यक्ति विभेद को भी बहुत ही स्पष्ट तरीके से विभेदित करते हुए कहते हैं कि यूँ तो प्रत्येक मनुष्य में ज्ञान प्राप्त करने कि क्षमता होती है किन्तु प्रत्येक शिक्षार्थी का ग्राह्य शक्ति एक जैसी नही होती है अतः शिक्षार्थी की व्यैक्तिक भिन्नता व मानसिक योग्यता व समझ के अनुरूप ही शिक्षा दी जानी चाहिए जहाँ भय या दंड का कोई स्थान नही होना चाहिए .

                   स्वामी विवेकानंद के गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस थे अतः उन्होंने गुरु के पद ,मान ,नाम ,व प्रतिष्ठा की शिक्षक के रूप में विशद विवेचना की है और बहुत ही सरल अर्थो में बताया है की गुरु कैसा?? गुरु कौन ??? उन्होंने कहा कि एक गुरु वे जो केवल विषय या शास्त्र का सैद्धांतिक व वस्तुनिष्ठ ज्ञान को माध्यम के रूप में हस्तांतरित करते हैं और एक गुरु वे जो कार्य व व्यवहार से हमारी सुसुप्त जिज्ञासाओं को जगा देते हैं हमारी इन्द्रियों को जागृत करते हैं और हमे जड़ से चेतनता व स्थूल ,मूर्त चिंतन से अमूर्त सूक्ष्म चेतना तक ले जाते हैं , जो विवश कर देते है श्री कृष्ण के समान ये मानने को कि मुझे ही आचार्य मानो . और इसीलिए गुरुओं की आवश्यकता सदैव बनी रही व संसार में आचार्य का पद कभी रिक्त नही हुआ . वास्तव में गुरु ही आत्मानुभूति का साधन है ..पूर्णता का मार्ग है .

               स्वामी विवेकानंद ने कहा कि शिक्षा समस्त मानव जाति के प्रति विशुद्ध प्रेम से ही प्रेरित होनी चाहिए जिसमे लाभ या यश की कामना का विलोपन हो क्योकि ये प्रेम तत्व को नष्ट कर देते हैं साथ ही उन्होंने भारतीय व पाश्चात्य विचारधारा का प्रबल सर्थन किया और वे भारतीय शिक्षा की वैचारिक चिंतन शीतलता व पाश्चात्य वैज्ञानिक गतिशीलता के बीच सेतु बने.

               स्वामी विवेकानंद ने शिष्य को इंगित करते हुए कहा की शिष्य वह जिसमें ज्ञान प्राप्त करने की प्यास हो , लगन के साथ वह परिश्रम युक्त हो एवं वाणी ,विचार व कार्य की पवित्रता से पूर्ण हो . ज्ञान पिपासा से तात्पर्य अन्तःकरण की चाहना से रहा तात्पर्य जब तक ह्रदय में उच्चतर आदर्श के सच्ची व्याकुलता उत्पन्न न हो जाये तब तक कोई भी मनुष्य शिष्य नही हो सकता . गुरु के प्रति सहज विश्वास, विनम्रता व श्रृद्धा का भाव उसमे होना नितांत अपरिहार्य है और वाणी, मन व तन में ब्रह्मचार्य का पालन हो . दृढ संकल्प शक्ति हो ,सत्य का उपासक हो ,सूक्ष्म तत्व को समझने व धारण करने की उत्कट लालसा हो . स्वामीजी ने कहा कि-- गुरु तो लाखो मिल जाते है किन्तु एक श्रेष्ठ शिष्य मिल पाना अत्यंत कठिन होता है क्योकि ज्ञान की प्राप्ति में शिष्य की मनोवृति सर्वाधिक महवपूर्ण होती है. जब प्राप्त करने वाला योग्य होता है तो उसमे ज्ञान के दिव्य प्रकाश का आभिर्भाव होता ही है इसलिए शिष्य में मुक्त होने की भावना उत्कृष्ट होनी चाहिए और तीव्र इच्छा शक्ति भी.. जैसे किसी व्यक्ति के हाथ पैर इस प्रकार बांध दिए जाये की वह हिल डुल न सके और उसके शरीर पे दहकता अंगारा रख दिया जाये तो वह उसे हटाने केलिए अपनी सम्पूर्ण चेतना शक्ति व उर्जा को लगा देगा और तब उसका ह्रदय कमल सा खिल उठेगा और वह अनुभव करेगा  कि गुरु उसके तन में ही विद्यमान है और यही अनुभूति उसे मुक्ति का मार्ग दिखाएगी .

                  इस प्रकार मैं देखती हूँ कि विवेकानंद द्वारा प्रदत्त शिक्षा जीवन रह्स्योंकी परतों को खोलती है, ज्ञान का उदय करती है व उसका विस्तार करती है. मन, वाणी ,विचार, सोच व कार्य में एकरूपता लाती है .श्रृद्धा,विश्वास,प्रेम, नम्रता सिखाती है .सत्य व असत्य में विवेक सम्मत अंतर करना समझाती है. वह व्यक्ति एवं समाज हित में अंतर नही करती और सामाजिक निर्माण के लिए मानव निर्माण आवश्यक बताती है .एक शिक्षक के सार्वभौमिक गुणों से ओतप्रोत विवेकानंद एक  सह्रदय कवि ,अध्धयन वेत्ता , दार्शनिक, चिन्तक ,राष्ट्रवादी ,विश्वबंधुत्व भाव से भरे एवं   वर्ग ,जाति, वर्ण ,लिंग से ऊपर उठे महामानव दिखते हैं. उनका चिंतन मानव जीवन की वास्तविकता ,उपयोगी मानव-वाद तथा यथार्थता आधारित है , वे व्यवहारिक कर्मयोगी हैं , राष्ट्रवादी हैं और साथ ही विशुद्ध समाज सुधारक भी .कर्मशील समाज के रचनाकार, वेदान्तवादी ,वैयक्तिकता व सामाजिकता के समर्थक व स्त्रियों के प्रति श्रिष्ट सम्मान भाव के पोषक भी हैं . उन्होंने प्राणियों के दुःख दर्द में बराबर का भागिदार बन कर उनकी मुक्ति को ही स्वयं की मुक्ति माना.

             चिंतन, आलोचन ,विश्लेषण, विवेचन के कारण ही शायद उन्हें विवेकानंद कहा गया. 4 जुलाई 1902 को रात्रि नौ  बजे के लगभग ये ज्ञान सूर्य अपने दिव्य प्रकाश से विश्व को आलोकित कर महाप्रयाण कर गये किन्तु उनकी ज्ञान ज्योति आज भी मानव का मार्ग प्रशस्त कर रही है . मेरा उन्हें शत शत नमन………..


लेखिका - रजनी भरद्वाज Rajani Bhardwaj 
Lecturer in Biology
Jaipur City, Rajasthan, India
Friday, January 11, 2013


टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

गोरक्षा आंदोलन : गोपाष्टमी के दिन इंदिरा गांधी ने चलवा दी थीं संतों पर गोलियां

Veer Bal Diwas वीर बाल दिवस और बलिदानी सप्ताह

भारत को बांटने वालों को, वोट की चोट से सबक सिखाएं - अरविन्द सिसोदिया

महाराष्ट्र व झारखंड विधानसभा में भाजपा नेतृत्व की ही सरकार बनेगी - अरविन्द सिसोदिया

स्वामी विवेकानंद और राष्ट्रवाद Swami Vivekananda and Nationalism

शनि की साढ़े साती के बारे में संपूर्ण

एआई तकनीकी से न्यायपालिका, कार्यों को जल्द निबटा सकेगी - अरविन्द सिसोदिया

देव उठनी एकादशी Dev Uthani Ekadashi