खनन माफियाओं का सरगना नरेंद्र सिंह भाटी ही है - विस्फोट डॉट कॉम



खनन माफियाओं का सरगना नरेंद्र सिंह भाटी ही है -  विस्फोट डॉट कॉम
खनन माफियाओं का सरगना नरेंद्र सिंह भाटी ही है| नरेन्द्र सिंह भाटी का नाम तब शायद शक के घेरे में न आता अगर वे सफाई देने के लिए मीडिया चैनलों पर चढ़कर दलील न देने लगते। लेकिन चोर की दाढ़ी में तिनका वाली बात भाटी साहब के ऊपर भी लागू हो चली है। नोएडा की बर्खास्त अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल के मामले में भाटी साहब चैनलों पर चढ़ चढ़कर बोल रहे थे कि उनका निलंबन इसलिए किया गया कि उनके काम से सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ रहा था। लेकिन मीडिया ने अब उनकी हकीकत सामने ला दी है। यह भाटी ही थे जिन्होंने दावा निलंबन के दूसरे ही दिन दावा कर दिया कि निलंबन उन्हीं के इशारे पर हुआ है। आखिर भाटी साहब को नोएडा में सांप्रदायिक सद्भाव की इतनी चिंता क्योंकर होने लगी? चिंता उन्हें सांप्रदायिक सद्भाव की नहीं है बल्कि चिंता अपने अवैध कारोबार और राजनीति की है। आश्चर्य है कि भाटी खुद ही चोरी करवाते हैं और सीनाजोरी करने चैनलों पर पहुंच गये। लेकिन वे चैनलों पर क्या नजर आये पूरे नजारे के पीछे अब उन्हीं का नाम नजर आ रहा है। इसी साल अप्रैल महीने में अनिल पांडेय ने अपनी पत्रिका संडे इंडियन के लिए एक स्टोरी की थी नोएडा के खनन माफियाओं पर। इस स्टोरी पर ही मुख्यमंत्री कार्यालय में सचिव आलोक कुमार ने संज्ञान लेते हुए जांच के आदेश भी दे दिये थे। लेकिन मुख्यमंत्री कार्यालय में बाप बेटे की रस्साकसी के बीच नरेन्द्र सिंह भाटी बाप के खेमे में खड़े नजर आये। उस वक्त अनिल पांडेय जब खनन माफियाओं की खोजबीन कर रहे थे तब भी बार बार एक ही नाम सामने आया और वह नाम कोई और नहीं बल्कि इन्हीं नरेन्द्र सिंह भाटी का था। खुद भाटी तो खनन कारोबार में सीधे तौर पर शामिल नहीं है लेकिन उनके कई सगे संबंधी 20 से 25 करोड़ रूपये के इस मासिक अवैध खनन कारोबार को अंजाम देते हैं। कथित तौर पर खुद भाटी का भाई भी अवैध खनन कारोबारी है। और जब मुख्यमंत्री कार्यालय के आदेश पर प्रशासन सक्रिय हुआ तो माफियाओं के लिए मुश्किल खड़ी होनी शुरू हो गई। उस वक्त खुद अनिल पांडेय को कई धमकियों भरे फोन आये थे और एक बार तो एक खनन माफिया के खनन क्षेत्र में एक ट्रैक्टर ड्राइवर ने धमकी दी थी कि साहब यहां से चले जाओ क्योंकि यहां के ट्रैक्टरों में ब्रेक नहीं होते हैं। खैर, उस वक्त अनिल पांडेय वहां से जरूर हट गये लेकिन अपनी स्टोरी पर डटे रहे। उनकी स्टोरी छपी भी लेकिन उस स्टोरी में प्रमाण के अभाव में वे किसी खनन माफिया का नाम नहीं ले सके। तब, जबकि उन्होंने अपनी स्टोरी में किसी का नाम भी नहीं लिया था, उन्हें धमकियों भरे फोन आये। घर से लेकर आफिस तक खनन माफियाओं ने धमकाने का सिलसिला जारी रखा और परिणाम भुगतने की ताकीद की जाती रही। अनिल पांडेय की स्टोरी तो पुरानी पड़ गई लेकिन नई स्टोरी आई तो भाटी खुद ब खुद जाल में फंसने चले आये। जो जानकारी मिल रही है उससे एक बात तो स्पष्ट है कि यह नरेन्द्र सिंह भाटी ही हैं जिन्होंने दुर्गाशक्ति का शिकार करने के लिए मस्जिद की दीवार गिरवाने की साजिश रची। और यह कोई और नहीं खुद उन्हीं के बयानों से साबित हो रहा है। एक तरफ तो वे कह रहे हैं कि उन्होंने मस्जिद बनाने के लिए पचास हजार रूपये दिये लेकिन दूसरी तरफ वे यह भी कह रहे हैं कि वहां कोई मस्जिद अभी तक बनी नहीं है। अगर वहां कोई मस्जिद बनी ही नहीं किस मस्जिद की दीवार तोड़ दी गई? और अगर जो दीवार तोड़ी गई वह मस्जिद की दीवार नहीं थी तो पाक रमजान के महीने में सांप्रदायिक सद्भाव कहां बिगड़ रहा था जो दुर्गा शक्ति को निलंबित कर दिया गया? जाहिर है, भाटी ने एक साजिश रची और अब वे खुद उसी साजिश में फंसते नजर आ रहे हैं। अगर सचमुच अखिलेश सरकार ईमानदार है तो दुर्गा शक्ति जैसे अधिकारियों को निलंबित करने की बजाय राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त ऐसे माफियाओं को पार्टी से बाहर करना चाहिए जो इस वक्त पश्चिम से लेकर पूरब तक खनन का अवैध कारोबार चला रहे हैं। इन माफियाओं में अगर एक तरफ नरेन्द्र सिंह भाटी जैसे लोग हैं तो दूसरी तरफ विजय मिश्रा जैसे बाहुबली हैं, जो पूरब की नदियों का बालू अवैध तरीके से उलीचकर विनाशलीला का तांडव कर रहे हैं। क्या अखिलेश कुमार यादव में है इतनी हिम्मत कि वे अपने बाप चाचाओं के चहेतों पर कार्रवाई कर पायेंगे? अगर नहीं तो ईमानदार अधिकारों का शिकार करके उनकी छवि कहीं से चमकदार नहीं होनेवाली है। और अगर मुलायम सिंह की पार्टी और अखिलेश की सरकार भी इन्हीं खनन माफियाओं, भवन माफियाओं, शराब माफियाओं के पैसे से चल रही है तो ईमानदारी का समाजवादी चोला भी उतारकर फेंक देना चाहिए। सरकारें भ्रष्ट होती हैं, यह हम सब जानते हैं। [पोस्ट साभार विस्फोट डॉट कॉम ]
खनन माफियाओं का सरगना नरेंद्र सिंह भाटी ही है

नरेन्द्र सिंह भाटी का नाम तब शायद शक के घेरे में न आता अगर वे सफाई देने के लिए मीडिया चैनलों पर चढ़कर दलील न देने लगते। लेकिन चोर की दाढ़ी में तिनका वाली बात भाटी साहब के ऊपर भी लागू हो चली है। नोएडा की बर्खास्त अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल के मामले में भाटी साहब चैनलों पर चढ़ चढ़कर बोल रहे थे कि उनका निलंबन इसलिए किया गया कि उनके काम से सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ रहा था। लेकिन मीडिया ने अब उनकी हकीकत सामने ला दी है। यह भाटी ही थे जिन्होंने दावा निलंबन के दूसरे ही दिन दावा कर दिया कि निलंबन उन्हीं के इशारे पर हुआ है। आखिर भाटी साहब को नोएडा में सांप्रदायिक सद्भाव की इतनी चिंता क्योंकर होने लगी?
चिंता उन्हें सांप्रदायिक सद्भाव की नहीं है बल्कि चिंता अपने अवैध कारोबार और राजनीति की है। आश्चर्य है कि भाटी खुद ही चोरी करवाते हैं और सीनाजोरी करने चैनलों पर पहुंच गये। लेकिन वे चैनलों पर क्या नजर आये पूरे नजारे के पीछे अब उन्हीं का नाम नजर आ रहा है।

इसी साल अप्रैल महीने में अनिल पांडेय ने अपनी पत्रिका संडे इंडियन के लिए एक स्टोरी की थी नोएडा के खनन माफियाओं पर। इस स्टोरी पर ही मुख्यमंत्री कार्यालय में सचिव आलोक कुमार ने संज्ञान लेते हुए जांच के आदेश भी दे दिये थे। लेकिन मुख्यमंत्री कार्यालय में बाप बेटे की रस्साकसी के बीच नरेन्द्र सिंह भाटी बाप के खेमे में खड़े नजर आये। उस वक्त अनिल पांडेय जब खनन माफियाओं की खोजबीन कर रहे थे तब भी बार बार एक ही नाम सामने आया और वह नाम कोई और नहीं बल्कि इन्हीं नरेन्द्र सिंह भाटी का था। खुद भाटी तो खनन कारोबार में सीधे तौर पर शामिल नहीं है लेकिन उनके कई सगे संबंधी 20 से 25 करोड़ रूपये के इस मासिक अवैध खनन कारोबार को अंजाम देते हैं। कथित तौर पर खुद भाटी का भाई भी अवैध खनन कारोबारी है। और जब मुख्यमंत्री कार्यालय के आदेश पर प्रशासन सक्रिय हुआ तो माफियाओं के लिए मुश्किल खड़ी होनी शुरू हो गई।
उस वक्त खुद अनिल पांडेय को कई धमकियों भरे फोन आये थे और एक बार तो एक खनन माफिया के खनन क्षेत्र में एक ट्रैक्टर ड्राइवर ने धमकी दी थी कि साहब यहां से चले जाओ क्योंकि यहां के ट्रैक्टरों में ब्रेक नहीं होते हैं। खैर, उस वक्त अनिल पांडेय वहां से जरूर हट गये लेकिन अपनी स्टोरी पर डटे रहे। उनकी स्टोरी छपी भी लेकिन उस स्टोरी में प्रमाण के अभाव में वे किसी खनन माफिया का नाम नहीं ले सके। तब, जबकि उन्होंने अपनी स्टोरी में किसी का नाम भी नहीं लिया था, उन्हें धमकियों भरे फोन आये। घर से लेकर आफिस तक खनन माफियाओं ने धमकाने का सिलसिला जारी रखा और परिणाम भुगतने की ताकीद की जाती रही। अनिल पांडेय की स्टोरी तो पुरानी पड़ गई लेकिन नई स्टोरी आई तो भाटी खुद ब खुद जाल में फंसने चले आये।

जो जानकारी मिल रही है उससे एक बात तो स्पष्ट है कि यह नरेन्द्र सिंह भाटी ही हैं जिन्होंने दुर्गाशक्ति का शिकार करने के लिए मस्जिद की दीवार गिरवाने की साजिश रची। और यह कोई और नहीं खुद उन्हीं के बयानों से साबित हो रहा है। एक तरफ तो वे कह रहे हैं कि उन्होंने मस्जिद बनाने के लिए पचास हजार रूपये दिये लेकिन दूसरी तरफ वे यह भी कह रहे हैं कि वहां कोई मस्जिद अभी तक बनी नहीं है। अगर वहां कोई मस्जिद बनी ही नहीं किस मस्जिद की दीवार तोड़ दी गई? और अगर जो दीवार तोड़ी गई वह मस्जिद की दीवार नहीं थी तो पाक रमजान के महीने में सांप्रदायिक सद्भाव कहां बिगड़ रहा था जो दुर्गा शक्ति को निलंबित कर दिया गया?
जाहिर है, भाटी ने एक साजिश रची और अब वे खुद उसी साजिश में फंसते नजर आ रहे हैं। अगर सचमुच अखिलेश सरकार ईमानदार है तो दुर्गा शक्ति जैसे अधिकारियों को निलंबित करने की बजाय राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त ऐसे माफियाओं को पार्टी से बाहर करना चाहिए जो इस वक्त पश्चिम से लेकर पूरब तक खनन का अवैध कारोबार चला रहे हैं। इन माफियाओं में अगर एक तरफ नरेन्द्र सिंह भाटी जैसे लोग हैं तो दूसरी तरफ विजय मिश्रा जैसे बाहुबली हैं, जो पूरब की नदियों का बालू अवैध तरीके से उलीचकर विनाशलीला का तांडव कर रहे हैं। क्या अखिलेश कुमार यादव में है इतनी हिम्मत कि वे अपने बाप चाचाओं के चहेतों पर कार्रवाई कर पायेंगे? अगर नहीं तो ईमानदार अधिकारों का शिकार करके उनकी छवि कहीं से चमकदार नहीं होनेवाली है। और अगर मुलायम सिंह की पार्टी और अखिलेश की सरकार भी इन्हीं खनन माफियाओं, भवन माफियाओं, शराब माफियाओं के पैसे से चल रही है तो ईमानदारी का समाजवादी चोला भी उतारकर फेंक देना चाहिए। सरकारें भ्रष्ट होती हैं, यह हम सब जानते हैं।

[पोस्ट साभार विस्फोट डॉट कॉम ]

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