भारत में चलने वाले न्यूज़ चैनल, अखबार वास्तव में भारत के नही
विश्व संबाद केन्द्र , पंजाब
क्या आप जानते है की कोई मीडिया समूह हिन्दू या हिन्दू संघठनो के प्रति इतना बैरभाव क्यों
रखती है. -भारत में चलने वाले न्यूज़ चैनल, अखबार वास्तव में भारत के है ही नही
http://vskpunjab.org/hindi/?p=988
सन २००५ में एक फ़्रांसिसी पत्रकार भारत दौरे पर आया उसका नाम फ़्रैन्कोईस था उसने भारत
में हिंदुत्व के ऊपर हो रहे अत्याचारों के बारे में अध्ययन किया और उसने फिर बहुत हद तक इस
कार्य के लिए मीडिया को जिम्मेवार ठहराया. फिर उसने पता करना शुरू किया तो वह आश्चर्य
चकित रह गया की भारत में चलने वाले न्यूज़ चैनल, अखबार वास्तव में भारत के है ही नहीं…
फीर मैंने एक लम्बा अध्ययन किया उसमे निम्नलिखित जानकारी निकल कर आई जो मै आज
सार्वजानिक कर रहा हु ..विभिन्न मीडिया समूह और उनका आर्थिक श्रोत……
१-दि हिन्दू … जोशुआ सोसाईटी , बर्न, स्विट्जरलैंड , इसके संपादक एन राम , इनकी पत्नी ईसाई में बदल चुकी है.
२-एन डी टी वी … गोस्पेल ऑफ़ चैरिटी, स्पेन , यूरोप
३-सी एन एन , आई बी एन ७, सी एन बी सी …१००% आर्थिक सहयोग द्वारा साउदर्न बैपिटिस्ट चर्च
४-दि टाइम्स ऑफ़ इंडिया, नवभारत , टाइम्स नाउ… बेनेट एंड कोल्मान द्वारा संचालित ,८०% फंड वर्ल्ड क्रिस्चियन काउंसिल द्वारा , बचा हुआ २०% एक अँगरेज़ और इटैलियन द्वारा दिया जाता है. इटैलियन व्यक्ति का नाम रोबेर्ट माइन्दो है जो यु पी ए अध्यक्चा सोनिया गाँधी का निकट सम्बन्धी है.
५-स्टार टीवी ग्रुप …सेन्ट पीटर पोंतिफिसिअल चर्च , मेलबर्न ,ऑस्ट्रेलिया
५-हिन्दुस्तान टाइम्स,दैनिक हिन्दुस्तान…मालिक बिरला ग्रुप लेकिन टाइम्स ग्रुप के साथ जोड़ दिया गया है..
६-इंडियन एक्सप्रेस…इसे दो भागो में बाट दिया गया है , दि इंडियन एक्सप्रेस और न्यू इंडियन एक्सप्रेस
(साउदर्न एडिसन) -Acts Ministries has major stake in the Indian express and later is still विथ
the Indian कौन्तेर्पर्त
७-दैनिक जागरण ग्रुप… इसके एक प्रबंधक समाजवादी पार्टी से राज्य सभा में सांसद है… यह एक मुस्लिम्वादी पार्टी है.
८-दैनिक सहारा .. इसके प्रबंधन सहारा समूह देखती है इसके निदेशक सुब्रोतो राय भी समाजवादी पार्टी के बहुत मुरीद है
९-आंध्र ज्योति..हैदराबाद की एक मुस्लिम पार्टी एम् आई एम् (MIM ) ने इसे कांग्रेस के एक मंत्री के साथ कुछ साल पहले खरीद लिया
१०- दि स्टेट्स मैन… कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया द्वारा संचालित इस तरह से एक लम्बा लिस्ट हमारे सामने है जिससे ये पता चलता है की भारत की मीडिया भारतीय बिलकुल भी नहीं है.. और जब इनकी फंडिंग विदेश से होती है है तो भला भारत के बारे में कैसे सोच सकते है.. अपने को पाक साफ़ बताने वाली मीडिया के भ्रस्ताचार की चर्चा करना यहाँ पर पूर्णतया उचित ही होगा बरखा दत्त जैसे लोग जो की भ्रस्ताचार का रिकार्ड कायम किया है उनके भ्रस्ताचरण की चर्चा दूर दूर तक है , इसके अलावा आप लोगो को सायद न मालूम हो पर आपको बता दू की लगभग ये १००% सही बात है की NDTV की एंकर बरखा दत्त ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया है.. प्रभु चावला जो की खुद रिलायंस के मामले में सुप्रीम कोर्ट में फैस ला फिक्स कराते हुए पकडे गए उनके सुपुत्र आलोक चावला, अमर उजाला के बरेली संस्करण में घोटाला करते हुए पकडे गए. दैनिक जागरण ग्रुप ने अवैध तरीके से एक ही रजिस्ट्रेसन नो. पर बिहार में कई जगह पर गलत ढंग से स्थानीय संस्करण प्रकाशित किया जो की कई साल बाद में पकड़ में आया और इन अवैध संस्करणों से सरकार को २०० करोड़ का घटा हुआ. दैनिक हिन्दुस्तान ने भी जागरण के नक्शेकदम पर चलते हुए यही काम किया उसने भी २०० करोड़ रुपये का नुकशान सरकार को पहुचाया इसके लिए हिन्दुस्तान के मुख्य संपादक सशी शेखर के ऊपर मुक़दमा भी दर्ज हुआ है.. शायद यही कारण है की भारत की मीडिया भी काले धन , लोकपाल जैसे मुद्दों पर सरकार के साथ ही भाग लेती है…..सभी लोगो से अनुरोध है की इस जानकारी को अधिक से अधिक लोगो के पास पहुचाये ताकि दूसरो को नंगा करने वाले मीडिया की भी
सच्चाई का पता लग सके…..
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भारतीय मीडिया में विदेशी पैसा
FRIDAY, MARCH 28, 2008
(SURESH CHIPLUNKAR
क्या सचमुच भारत का मीडिया विदेशी हाथों में पहुँच चुका है?
Foreign Investment Indian Media Groups
भारत में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के मालिक कौन हैं? हाल ही में एक-दो ई-मेल के जरिये इस बात की जानकारी मिली लेकिन नेट पर सर्च करके देखने पर कुछ खास हाथ नहीं लग पाया (हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है, यह तो मीडिया वाले ही बता सकते हैं) कि भारत के कई मीडिया समूहों के असली मालिक कौन-कौन हैं?
हाल की कुछ घटनाओं के मीडिया कवरेज को देखने पर साफ़ पता चलता है कि कतिपय मीडिया ग्रुप एक पार्टी विशेष (भाजपा) के खिलाफ़ लगातार मोर्चा खोले हुए हैं, गुजरात चुनाव और चुनावों के पूर्व की रिपोर्टिंग इसका बेहतरीन नमूना रहे। इससे शंका उत्पन्न होती है कि कहीं हमारा मीडिया और विख्यात मीडियाकर्मी किन्हीं “खास” हाथों में तो नहीं खेल रहे? भारत में मुख्यतः कई मीडिया और समाचार समूह काम कर रहे हैं, जिनमें प्रमुख हैं – टाइम्स ऑफ़ इंडिया, इंडियन एक्सप्रेस, हिन्दू, आनन्दबाजार पत्रिका, ईनाडु, मलयाला मनोरमा, मातृभूमि, सहारा, भास्कर और दैनिक जागरण समूह। अन्य कई छोटे समाचार पत्र समूह भी हैं। आईये देखें कि अपुष्ट और गुपचुप खबरें क्या कहती हैं…
समाचार चैनलों में एक लोकप्रिय चैनल है NDTV, जिसका आर्थिक फ़ंडिंग स्पेन के “गोस्पेल ऑफ़ चैरिटी” से किया जाता है। यह चैनल भाजपा का खासमखास विरोधी है। इस चैनल में अचानक “पाकिस्तान प्रेम” जाग गया है, क्योंकि मुशर्रफ़ ने इस एकमात्र चैनल को पाकिस्तान में प्रसारण की इजाजत दी। इस चैनल के सीईओ प्रणय रॉय, कम्युनिस्ट पार्टी के कर्ता-धर्ता प्रकाश करात और वृन्दा करात के रिश्तेदार हैं। सुना गया है कि इंडिया टुडे को भी NDTV ने खरीद लिया है, और वह भी अब भाजपा को गरियाने लग पड़ा है। एक और चैनल है CNN-IBN, इसे “सदर्न बैप्टिस्ट चर्च” के द्वारा सौ प्रतिशत की आर्थिक मदद दी जाती है। इस चर्च का मुख्यालय अमेरिका में है और दुनिया में इसके प्रचार हेतु कुल बजट 800 मिलियन डॉलर है। भारत में इसके कर्ताधर्ता राजदीप सरदेसाई और उनकी पत्नी सागरिका घोष हैं। गुजरात चुनावों के दौरान नरेन्द्र मोदी और हिन्दुओं को लगातार गाली देने और उनकी छवि बिगाड़ने का काम बड़ी ही “स्वामिभक्ति” से इन चैनलों ने किया। गुजरात के दंगों के दौरान जब राजदीप और बरखा दत्त स्टार टीवी के लिये काम कर रहे थे, तब उन्होंने सिर्फ़ मुसलमानों के जलते घर दिखाये और मुसलमानों पर हुए अत्याचार की कहानियाँ ही सुनाईं, किसी भी हिन्दू परिवार का इंटरव्यू नहीं लिया गया, मानो उन दंगों में हिन्दुओं को कुछ हुआ ही न हो।
टाइम्स समूह “बेनेट कोलमेन” द्वारा संचालित होता है। “वर्ल्ड क्रिश्चियन काउंसिल” इसका 80% खर्चा उठाती है, एक अंग्रेज और एक इतालवी रोबर्टियो मिन्डो इसके 20% शेयरों के मालिक हैं। यह इतालवी व्यक्ति सोनिया गाँधी का नजदीकी भी बताया जाता है। स्टार टीवी तो खैर है ही ऑस्ट्रेलिया के उद्योगपति का और जिसका एक बड़ा आका है सेंट पीटर्स पोंटिफ़िशियल चर्च मेलबोर्न। 125 वर्ष पुराना दक्षिण के एक प्रमुख समाचार समूह “द हिन्दू” को अब जोशुआ सोसायटी, बर्न्स स्विट्जरलैण्ड ने खरीद लिया है। इसके कर्ताधर्ता एन.राम की पत्नी स्विस नागरिक भी हैं। दक्षिण का एक तेलुगु अखबार “आंध्र ज्योति” को हैदराबाद की मुस्लिम पार्टी “एम-आई-एम” और एक कांग्रेसी सांसद ने मिलकर खरीद लिया है। “द स्टेट्समैन” समूह को कम्युनिस्ट पार्टी संचालित करती है, और “कैराल टीवी” को भी। “मातृभूमि” समूह में मुस्लिम लीग के नेताओं का पैसा लगा हुआ है। “एशियन एज” और “डेक्कन क्रॉनिकल” में सऊदी अरब का भारी पैसा लगा हुआ है। जैसा कि मैने पहले भी कहा कि हालांकि ये खबरें सच हैं या नहीं इसका पता करना बेहद मुश्किल है, क्योंकि जिस देश में सरकार को यह तक पता नहीं लगता कि किसी एनजीओ को कुल कितनी मदद विदेश से मिली, वहाँ किसी समाचार पत्र के असली मालिक या फ़ाइनेन्सर का पता लगाना तो बहुत दूर की बात है। अधिग्रहण, विलय, हिस्सेदारी आदि के जमाने में अन्दर ही अन्दर बड़े समाचार समूहों के लाखों-करोड़ों के लेन-देन हुए हैं। ये खबरें काफ़ी समय से इंटरनेट पर मौजूद हैं, हवा में कानोंकान तैरती रही हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह कि आपके मुहल्ले का दादा कौन है ये आप जानते हैं लेकिन लोकल थानेदार जानते हुए भी नहीं जानता। अब ये पता लगाना शौकिया लोगों का काम है कि इन खबरों में कितनी सच्चाई है, क्योंकि कोई खोजी पत्रकार तो ये करने से रहा। लेकिन यदि इसमें जरा भी सच्चाई है तो फ़िर ब्लॉग जगत का भविष्य उज्जवल लगता है।
ऐसे में कुल मिलाकर तीन समूह बचते हैं, पहला “ईनाडु” जिसके मालिक हैं रामोजी राव, “भास्कर” समूह जिसके मालिक हैं रमेशचन्द्र अग्रवाल और तीसरा है “जागरण” समूह। ये तीन बड़े समूह ही फ़िलहाल भारतीय हाथों में हैं, लेकिन बदलते वक्त और सरकार की मीडिया क्षेत्र को पूरी तरह से विदेशियों के लिये खोलने की मंशा को देखते हुए, कब तक रहेंगे कहना मुश्किल है। लेकिन एक बात तो तय है कि जो भी मीडिया का मालिक होता है, वह अपनी राजनैतिक विचारधारा थोपने की पूरी कोशिश करता है, इस हिसाब से भाजपा के लिये आने वाला समय मुश्किलों भरा हो सकता है, क्योंकि उसे समर्थन करने वाले “पाञ्चजन्य” (जो कि खुद संघ का मुखपत्र है) जैसे इक्का-दुक्का अखबार ही बचे हैं, बाकी सब तो विरोध में ही हैं।
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एफडीआई
http://hi.wikipedia.org/s/4s9e
मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
खुदरा कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआई को लेकर इन दिनों देश में बहस का दौर जारी है। इससे ग्राहकों, स्थानीय खुदरा कारोबारियों और खुदरा कारोबार के वैश्विक दिग्गजों के हित जुड़े हों तो बहस होना स्वाभाविक ही है। पिछले कई साल से इस पर बातचीत जारी है लेकिन 14 सितंबर 2012 को केंद्र सरकार ने भारत में इसे मंजूरी दे दी है। एफडीआई से जहां उपभोक्ताओं को तो फायदा होता ही है, वहीं बुनियादी ढांचे और अर्थव्यवस्था को भी लाभ मिलता है। देश में दूरसंचार, वाहन और बीमा क्षेत्र में एफडीआई की वजह से आई कामयाबी को हम देख ही चुके हैं। इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर हुए निवेश की वजह से ग्राहकों को बेहतर सेवाएं और उत्पाद नसीब हुए हैं।
मनमोहन सिंह की सरकार ने देश में विदेशी निवेश में बढ़ावा देते हुए मल्टी ब्रांड रिटेल क्षेत्र 51 फीसदी विदेश निवेश को मंजूरी दे दी। वहीं एकल ब्रांड में सौ फीसदी विदेशी निवेश को मंजूरी दे दी गई। हालांकि केंद्र सरकार ने विदेशी कंपनियों को राज्यों में प्रवेश देने का फैसला राज्य सरकारों पर छोड़ दिया है। इसके अलावा सीसीईए की बैठक में देसी एयरलाइंस कंपनियों में 49 फीसद की एफडीआई को मंजूरी दे दी गई है। विनिवेश की गाड़ी को आगे बढ़ाते हुए मंत्रिमंडल ने चार सरकारी कंपनियों में विनिवेश को हरी झंडी दे दी है। एमएमटीसी और ऑयल इंडिया में दस फीसदी, हिंदुस्तान कॉपर में 9।59 फीसदी और नाल्को में 12।5 फीसदी विनिवेश हो सकेगा। साथ ही मनमोहन सिंह सरकार ने ब्रॉडकास्ट मीडिया क्षेत्र में एफडीआई की सीमा बढ़ाकर 74 फीसदी कर दिया है।
भारत में खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश को लेकर विशेषज्ञ पहले ही चेतावनी देते रहे हैं। रविवार के स्तंभकार जे के कर के अनुसार भारत में वर्तमान खुदरा व्यवसाय 29।50 लाख करोड़ रुपयों का है, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद का करीब 33 प्रतिशत है। अब यदि यह हिस्सा विदेशी धन्ना सेठों के हाथ चला गया तो जितना पैसा मुनाफे के रुप में विदेश चला जाएगा, उससे देश में आयात-निर्यात का संतुलन बिगड़ना तय है। भारत में छोटे और मंझौले खुदरा दुकानों की संख्या 1 करोड़ 20 लाख के आसपास है। इन दुकानों में करीब 4 करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है। ऐसे में सवाल पूछने का मन होता है कि अगर इन 4 करोड़ लोगों के बजाये 4 या 5 धन्ना कंपनियों को रोजगार दे दिया जाएगा तो क्या इससे देश का भला होगा ? भारत में अगर एक बार इन महाकाय कंपनियों को खुदरा के क्षेत्र में प्रवेश दे दिया गया तो ये कंपनियां दिखा देंगी कि लूट पर टिकी हुई अमानवीय व्यापार की परिभाषा क्या होती है ! इन दुकानों के सस्ते माल और तरह-तरह के लुभावने स्कीम के कारण भारतीय दुकानों को अपना बोरिया-बिस्तर समेटना पड़ जाएगा। जब इन कंपनियों का एकाधिकार कायम हो जाएगा, उसके बाद ये अपने असली रुप को सामने लाएंगी।
सन २००५ में एक फ़्रांसिसी पत्रकार भारत के दौरे पर आया उसका नाम फ़्रैन्कोईस था उसने भारत में हिंदुत्व के ऊपर हो रहे अत्याचारों के बारे में अध्ययन किया और उसने फिर बहुत हद तक इस कार्य के लिए मीडिया को जिम्मेवार ठहराया. फिर उसने पता करना शुरू किया तो वह आश्चर्य चकित रह गया कि भारत में चलने वाले न्यूज़ चैनल, अखबार वास्तव में भारत के है ही नहीं..?....
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