श्रद्धालुओं की मौत : धमारा स्टेशन पर यदि ऊपरी पुल होता, तो नहीं होता हादसा



जानकारी के अनुसार, राजधानी एक्सप्रेस (गाड़ी संख्या 12567) सोमवार की सुबह सहरसा से पटना जा रही थी। मानसी रेलखंड पर धमारा रेलवे स्टेशन के पास मां कात्यायिनी का एक मंदिर है, जहां पूजा के लिए लोग जमा थे। सावन महीने के आखिरी सोमवार और सोमवारी मेले की वजह से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ थी। वे मंदिर में जल चढ़ाने आए थे। स्पीड में आ रही ट्रेन से बेखबर लोग ट्रैक पार कर दूसरी तरफ मंदिर की ओर जा रहे थे। इसी बीच अचानक राजधानी एक्सप्रेस आने से पटरी पर खड़े लोग इसकी चपेट में आ गए।इसमें करीब 50 लोग घायल हो गए। मृतकों में 22 महिलाएं और चार बच्चे हैं। 


बिहार के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) ए. के. भारद्वाज और खगडिया के सांसद दिनेश चंद्र यादव ने इस हादसे में 35 लोगों की मौत की पुष्टि की थी। हालांकि, बाद में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बताया कि मृतकों की संख्या बढ़कर 37 हो गई है। कई घायलों की हालत गंभीर है और मृतकों की संख्या बढ़ने की आशंका जताई जा रही है।

इस हादसे के बाद लोगों में भारी आक्रोश फैल गया। गुस्साए लोगों ने ट्रेन के दोनों ड्राइवरों को उतार लिया और उनकी जमकर पिटाई की। इसके अलावा भीड़ ने  राजधानी  एक्सप्रेस और यहां खड़ी एक और ट्रेन में आगजनी की। बताया जा रहा है कि राजधानी एक्सप्रेस के 4 डिब्बे जलकर खाक हो गए।

हादसे के बाद रेल राज्यमंत्री अधीर रंजन चैधरी ने स्थानीय प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि जब वहां मेले का आयोजन होता है, तो स्थानीय प्रशासन ने व्यवस्था क्यों नहीं संभाली थी। उन्होंने कहा कि मैं आम लोगों को इसके लिए जिम्मेदार नहीं मानता। जिस समय यह हादसा हुआ ट्रेन की रफ्तार 80 किलोमीटर प्रति घंटे थी।

एक अन्य व्यक्ति ने प्रतिक्रिया में बताया कि जब हादसे से पहले के स्टेशन के स्टेशन मास्टर को मालूम है (स्थानीय होने के कारण) कि श्रावण के सोमवार या शिव रात्रि के दिनों मे इस मंदिर मे आत्यधिक भीड़ होती है तो उसे वहन से गुजरने वाली सभी ट्रेन चालक को ओपिटी - 27 देना चाहिये था. यह वह कागज होता है जिसके मिलने पर चालक के लिये आदेश होता है कि ट्रेन को एकदम धीरे-धीरे चलाये और रास्ते मे कहीं भी खतरा देखने पर एकदम ट्रेन को रोके. इस तरह ट्रेन को 5-10 किलोमीटर की गति से ही चलाया जाता है. अगर ऐसा होता तो दूर से ही देख कर चालक आराम से रोकलेता और सारी जानें बच जाती. तो इसके लिये सही व्यवस्था नही करने के लिये बिहार प्रशासन के साथ-साथ पिछले स्टेशन का स्टेशन मास्टर भी ज्यादा जिम्मेदार है. 

क्या हैं रेलवे के नियम
- त्योहार के मद्देनजर एक कैलेंडर बनता है, इसमें हर स्टेशन पर भीड़ की सूचना अधिकारी और ड्राइवरों को दी जाती है।
- स्टेशनों पर पीछे से आने वाली ट्रेनों की उद्घोषणा होनी चाहिए।
- गैर प्लेटफार्म स्टेशनों पर ज्यादा यात्री उतरने की सूचना स्टेशन मास्टर को पड़ोसी दोनों स्टेशनों को देनी होती है। 

- बताना होता है कि सुपरफास्ट, मेल, एक्सप्रेस, राजधानी, शताब्दी आदि ट्रेनें ऐसे स्टेशनों से धीमी गति से गुजरें।

सरकार ओर स्थानीय प्रशासन की कमी ये है जब उन को पता है के यहाँ हमेशा लोग पूजा करने आते है तो उन को उस जगह पर लोहे का ओवर ब्रिड्ज बना देना चाहिये जिस से लोग सेफ्टी से आ जा सके अब सरकार करीब 80 लाख तो खर्च करेगी मगर 10 लाख लगा कर ब्रिज नही बना सकी ।

ऊपरी पुल होता, तो नहीं होता हादसा
Aug 20 2013 5:04AM ||
खगड़िया : धमारा स्टेशन पर यदि ऊपरी पुल होता तो शायद इतने लोगों की जान नहीं जाती. स्थानीय लोगों का कहना है कि आवागमन की सुविधा के लिए स्टेशन तो बना दिया गया. लेकिन यात्रियों के एक प्लेटफॉर्म से दूसरे प्लेटफॉर्म पर जाने के लिए अतिरिक्त सुविधा नहीं दी गयी.

यहां तक यात्रियों के पांव पैदल चलने के लिए सड़क तक का निर्माण नहीं कराया गया. जिस वजह से जो भी यात्री ट्रेन से उतरते ट्रैक पर ही उतरते और उसी रास्ते से मंदिर या फिर अपने घरों तक पहुंचते हैं. लोगों ने बताया कि हादसे के समय सिग्नल ग्रीन था. लेकिन देहात के लोगों को कितना समझ में आता है.


लोगों ने बताया कि जो भी लोग सोमवार को मां कात्यायानी स्थान में वैरागन के पूजन में भाग लेने के लिए आते हैं. वे लोग गाजे बाजे के साथ आते हैं. मरने वाले सभी लोगों के पीछे ढोल, नगारा आदि लेकर बजाते हुए चल रहे थे. जिस वजह से भी उन लोगों को ट्रेन के आने का पता नहीं चल पाया और वे लोग हादसे का शिकार हो गये.

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