भगवद गीता के उपदेशों का ऋणी हूँ-गाँधी
- अरविन्द सीसोदिया
महात्मा गाँधी का जन्म हिंदू धर्म में हुआ, उनके पूरे जीवन में अधिकतर सिधान्तों की उत्पति हिंदुत्व से ही हुई , साधारण हिंदू कि तरह वे सारे धर्मों को समान रूप से आदर करते थे और सारे प्रयासों जो उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए कोशिश किए जा रहे थे उसे उन्होंने अस्वीकार किया. वे ब्रह्मज्ञान के जानकार थे और सभी प्रमुख धर्मो को विस्तार से पढ़तें थे. उन्होंने हिंदू धर्म के बारे में कहा है.हिंदू धर्म के बारें में जितना मैं जानता हूँ यह मेरी आत्मा को संतुष्ट करता है | और सारी कमियों को दूर करता है जब मुझे संदेह घेर लेता है, जब निराशा मुझे घूरने लगती है और जब मुझे आशा की कोई किरण नजर नही आती है, तब मैं भगवद् गीता को पढ़ लेता हूँ और तब मेरे मन को असीम शान्ति मिलती है और तुंरत ही मेरे चेहरे से निराशा के बादल छंट जातें हैं और मैं खुश हो जाता हूँ.मेरा पुरा जीवन त्रासदियों से भरा है और यदि वो दृश्यात्मक और अमिट प्रभाव मुझ पर नही छोड़ता, मैं इसके लिए भगवद गीता के उपदेशों का ऋणी हूँ.गाँधी ने भगवद गीता की व्याख्या गुजराती में भी की है.महादेव देसाई ने गुजराती पाण्डुलिपि का अतिरिक्त भूमिका तथा विवरण के साथ अंग्रेजी में अनुवाद किया है गाँधी के द्वारा लिखे गए प्राक्कथन के साथ इसका प्रकाशन १९४६ में हुआ था .[१][२]
१. महादेव देसाईअनाशक्तियोग : द गोस्पेल ऑफ़ सेल्फ्लेस एक्सन, या द गीता अकोर्डिंग टू गाँधी .नवजीवन प्रकाशन घर; अहमदाबाद (प्रथम संस्करण १९४६).अन्य संस्करण; १९४८, १९५१, १९५६.
२. देसाई की अतिरिक्त कमेन्ट्री के एक बड़े भागी को काटने के बाद एक छोटा संस्करण अनाशक्तियोग : द गोस्पेल ऑफ़ सेल्फ्लेस एक्सन के रूप में प्रकाशित किया गया। जिम रंकिन,सम्पादक. लेखक एम् के की सूचि में आते हैं गाँधी; अनुवादक महादेव देसाई (ड्राई बोनस प्रेस, सन फ्रांसिस्को, १९९८) ISBN १ - ८८३९३८ - ४७ ३
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