हिस्ट्रीशीट सोहराबुद्दीन : एक पहलू यह भी





SC से तुलसी प्रजापति केस में अमित शाह को राहत
Apr 08, 2013 आईबीएन-7
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने तुलसी प्रजापति एनकाउंटर मामले में अमित शाह के खिलाफ अलग-अलग एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि तुलसी राम प्रजापति की हत्या, सोहराबुद्दीन और उसकी पत्नी कौसर बी की हत्या के मामले से जुड़ी हुई है। इसलिए अलग से एफआईर दर्ज करने की जरूरत नहीं है। इसके बाद अमित शाह की सीबीआई गिरफ्तारी पर रोक लग गई है। इससे पहले अमित शाह सोहराबुद्दीन मामले में जेल जा चुके हैं। अमित शाह अब कौसर बी, सोहराबुद्दीन एनकाउंटर के साथ साथ तुलसी राम प्रजापति केस में आरोपी बने रहेंगे और केस की सुनवाई मुंबई की अदालत में जारी रहेगी।


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सोहराबुद्दीन एनकाउंटर: एक पहलू यह भी
2 मई, 2007 by अतुल शर्मा

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सोहराबुद्दीन एनकाउंटर को लेकर जो शब्द सभी धर्मनिरपेक्ष और मानव अधिकार वाले उपयोग में ला रहे हैं वह है हिन्दु तालिबानी। हिन्दुत्व के नाम का स्यापा करने वाले यह भी जान लें कि इस एनकाउंटर में सोहराबुद्दीन और कौसर बी के साथ जिस तीसरे व्यक्ति को मारा गया उसका नाम तुलसी प्रजापत था। मीडिया ने इस नाम को उजागर क्यों नहीं किया। सोहराबुद्दीन मध्यप्रदेश का हिस्ट्रीशीटर था और उज्जैन जिले के झिरन्या गाँव में मिले एके 47 और अन्य ‍हथियारों में इसी का हाथ था। सोहराबुद्दीन के संपर्क छोटा दाउद उर्फ शरीफ खान से थे जो अहमदाबाद से कराची चला गया था। इसी शरीफ खान के लिए सोहराबुद्दीन मार्बल व्यापारियों से हफ्ता वसूल करता था। इस एनकाउंटर के पीछे सोहराबुद्दीन से त्रस्त व्यापारी भी माते जाते हैं। यह एक आपराधिक घटनाक्रम था जिसमें एक अपराधी को पुलिस ने मार गिराया। इस घटना को कितनी आसानी मीडिया ने धर्म का चोला पहना दिया। एक मुसलमान नहीं मारा गया बल्कि एक अपराधी मारा गया है। इसके साथ तुलसी भी मरा है। सोहराबुद्दीन, तुलसी और पुलिस तो परिदृश्य में नज़र आने वाली कठपुतलियाँ हैं इनको चलाने वाले हाथ उस पर्दे की पीछे हैं जो राजनीति और माफिया के नाते ताने से बुना गया है। नेपथ्य में जो भी है शायद मीडिया जानता भी होगा तो सामने नहीं लाएगा।

सोहराबुद्दीन के साथ मारा गया तुलसी प्रजापत कुख्यात शूटर था। किसी समय ठेले पर सब्जी बेचने वाला तुलसी कभी कभी पैसों के लिए छोटी-मोटी चोरियाँ भी कर लिया करता था। धीरे-धीरे इसने लूट, नकबजनी, डकैतियों को भी अंजाम देना शुरु कर दिया। बाद में यह शूटर बन गया, यह एक ही गोली में व्यक्ति का काम तमाम कर देता था। यह भी उज्जैन का हिस्ट्रीशीटर था। उज्जैन की भैरवगढ़ जेल में तुलसी की मुलाकात राजू से हुई। राजू छोटा दाउद उर्फ शरीफ खान के लिए काम करता था। राजू ने ही तुलसी की दोस्ती सोहराबुद्दीन के साथी लतीफ से कराई थी। यह वही अब्दुल लतीफ है जिसने अहमदाबाद में सायरा के जरिए ट्रक से हथियार ‍झिरन्या (उज्जैन) पहुँचाए थे।
सोहराबुद्दीन मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले के झिरन्या गाँव का रहने वाला था। पारिवारिक पृष्ठभूमि अच्छी थी परंतु तमन्ना थी ट्रक ड्राइवर बनने की, इसी के चलते वह 1990 में इन्दौर के आशा-ज्योति ट्रांसपोर्ट पर ट्रक क्लीनर का काम करने लगा। सन 1994 में अहमदाबाद की सायरा नामक महिला ने एके 47 मध्यप्रदेश के लिए रवाना की थी और इस ट्रक का ड्राइवर उज्जैन जिले के महिदपुर का पप्पू पठान था और सहयोगी ड्राइवर सोहराबुद्दीन था। इस ट्रक का क्लीनर सारंगपुर का अकरम था। जब सायरा अहमदाबाद में पकड़ी गई तो उसने पप्पू के ट्रक में हथियार पहुँचाने की बात कबूली। पप्पू के पकड़े जाने पर अहमदाबाद पुलिस ने जाल बिछाया और सोहराबुद्दीन को जयपुर में पकड़ा। सोहराबुद्दीन के पास से सिक्स राउंड पिस्टल भी बरामद हुई थी जो कि मध्यप्रदेश मंदसौर के गौरखेड़ी गाँव से कासम से खरीदी गई थी। सायरा को अब्दुल लतीफ ने हथियार दिए थे। लतीफ के साथ ही सोहराबुद्दीन की पहचान समीम, पठान आदि माफियाओं से हुई थी। बाबरी ढाँचे के गिरने के बाद लतीफ ने ही छोटा दाउद उर्फ शरीफ खान से कराची से हथियार बुलवाए थे। शरीफ खान के कहने पर ही सोहराबुद्दीन ने रउफ के साथ मिल कर अमहमदाबाद के दरियापुर से हथियारों को झिरन्या पहुँचाया था। यहाँ पर हथियारों को कुएँ में छुपा दिया गया था। इस मामले में पप्पू और सोहराब सहित 100 लोगों पर अपराध कायम किया गया था। यह उसी समय की बात है जब संजय दत्त को हथियार रखने के अपराध में गिरफ्तार किया गया था। उसी समय झिरन्या कांड भी बहुत चर्चित हुआ था। यदि आप पुराने 94 के अखबारों में खोजेंगे तो झिरन्या हथियार कांड के बारे में मिल जाएगा।
मैं मालवा अंचल के बारे में आपको बताना चाहूँगा कि यह बहुत ही शांत क्षेत्र है और इसीलिए इस अंचल का उपयोग माफिया लोग फरारी काटने या अंडरग्राउंड होने के लिए करते हैं, यहाँ पर ये लोग वारदात करते क्योंकि ये अपराधियों की पनाहगाह है। अपराधी यहाँ अपराध इसलिए नहीं करते कि यहाँ पर कोई भी वारदात होने से यह जगह भी पुलिस की नज़रों और निशाने पर आ जाएगी। मालवा छुपने के लिए बहुत ही मुफीद जगह है। यहाँ की शांति की वजह से यहाँ पर पुलिस की सरगर्मियाँ भी दूसरे राज्यों के मुकाबले कम रहतीं हैं। अन्य राज्यों के फरार सिमी कार्यकर्ता भी यहीं से पकड़े गए हैं। सोहराबुद्दीन ने भी इन्दौर में छ: माह तक फरारी काटी थी।

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@नीरज दीवान
नीरज भाई आप निश्चित रूप से मुझसे अधिक जानते हैं। आप पुलिस प्रशासन, सरकार पर प्रश्न चिह्न लगा सकते हैं परंतु एक अपराधी तो अपराधी ही था। आप भी जानते हैं कितने ही माफिया जेल में बैठ कर अपना कारोबार कर रहे हैं। इन लोगों को राजनैतिक संरक्षण प्राप्त होता है। ऐसे में पुलिस की स्थिति क्या होती है जब अपराधी उन्हें ही आँखें दिखाए और यदि पुलिस कुछ करना चाहे तो अपराधियों के आका राजनेता के कारण कुछ कर न पाए।
वैसे भी यह एक आपराधिक घटनाक्रम था और मैं इसे धार्मिक रंग देने के विरुद्ध हूँ।
जैसा कि आपने लिखा कि मेरे रिश्ते नातेदार। अच्छा कटाक्ष है भाई साहब सोहराबुद्दीन की तुलना मेरे या आपके या किसी के भी आम रिश्तेदारों से न करें। यदि आप चाहें तो आप ही भारतीय पुलिस के ‍इतिहास में मुझे ऐसे सैकड़ों उदाहरण बता देंगे। परंतु मैं एक अपराधी की बात कर रहा हूँ, अपराधी भी ऐसा जो कोई चोर, उठाईगिरा या लूट मचाने वाला नहीं था।
@shazul
शाज़ुल भाई या शज़ुल भाई, शादी के 21 वर्षों बाद जब पहले पति की नौकरी छूटने से घर की आर्थिक स्थिति डाँवाडोल हो गई तो तलाक की नौबत आ गई, उस समय कौसर बी के बच्चे लगभग बालिग हो चुके थे, ऐसे में पति का साथ देना था। धन और ग्लेमर का आकर्षण ही उसके और सोहराबुद्दीन के साथ का कारण बना। अपराधियों का मारा जाना हत्या नहीं होती।
सोहराबुद्दीन की फरारी के समय इन्दौर में कौसर बी उसके साथ ही थी। भाईजान यदि कोई व्यक्ति किसी चोर के साथ है तो पुलिस एकबारगी तो उसे भी थाने बैठा लेगी। बुजुर्ग लोग कुसंगति के बारे में समझा गए हैं।
एक बात और शाज़ुल भाईजान, मरने वाले गाँधी नहीं थे और मारने वाले गोडसे नहीं हैं। मैं मध्य प्रदेश में रहता हूँ फिर भी कहता हूँ कि गुजरात की स्थिति अन्य राज्यों से कम से कम हिन्दी भाषी राज्यों से अच्छी है। मोदी के गुजरात को क्यों कोसते हैं इस घटनाक्रम में हैदराबाद पुलिस भी शामिल है, और यह घटना आंध्र प्रदेश में भी हो सकती थी।
@सागर
क्या आप सागर चन्द्र नाहर हैं? खैर आप कोई भी हों, आपको भी बता दुँ यदि कोई अपराधी पुलिस के हाथों मारा जाता है तो उसे हत्या नहीं कहते। दूसरी बात यह पोस्ट किसी हत्या के समर्थन में नहीं लिखी गई है। आप इसे फिर से एक बार पढ़ें। इसमें सोहराबुद्दीन का वर्णन ज्यादा हो गया है, परंतु उसकी पृष्ठभूमि के बारे में बताना भी ज़रूरी था।
मैं केवल यह कहना चाहता हूँ कि इस घटना में तुलसी का नाम क्यों नहीं आया और इसे किसी भी धर्म से क्यों जोड़ा जा रहा है। यह अपराध जगत की एक घटना है और इसके साथ हिन्दू, मुसलमान की बात करना बेमानी है। मीडिया दिखाता है कि मुसलमान को मारा गया। मीडिया नहीं जानता कि एक अपराधी मारा गया। और तुलसी कहाँ गया? हिन्दु होने के कारण उसका तो नाम ही नहीं लिया गया। 

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