मोहिनी एकादशी व्रत






मोहिनी एकादशी व्रत का महत्व |
Importance of Mohini Ekadashi Vrat
- Neena Sharma 21-05-2013
मोहिनी एकादशी व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप और दु:ख नष्ट होते है. वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि में जो व्रत होता है. वह मोहिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य़ मोह जाल से छूट जाता है. अत: इस व्रत को सभी दु:खी मनुष्यों को अवश्य करना चाहिए. मोहिनी एकादशी के व्रत के दिन इस व्रत की कथा अवश्य सुननी चाहिए.

मोहिनी एकादशी व्रत विधि |
Mohini Ekadashi Vrat Vidhi
मोहिनी एकादशी व्रत जिस व्यक्ति को करना हों, उस व्यक्ति को व्रत के एक दिन पूर्व ही अर्थात दशमी तिथि के दिन रात्रि का भोजन कांसे के बर्तन में नहीं करना चाहिए. दशमी तिथि में भी व्रत दिन रखे जाने वाले नियमों का पालन करना चाहिए. जैसे इस रात्रि में एक बार भोजन करने के पश्चात दूबारा भोजन नहीं करना चाहिए. रात्रि के भोजन में भी प्याज और मांस आदि नहीं खाने चाहिएं. इसके अतिरिक्त जौ, गेहुं और चने आदि का भोजन भी सात्विक भोजन की श्रेणी में नहीं आता है.

एकादशी व्रत की अवधि लम्बी होने के कारण मानसिक रुप से तैयार रहना जरूरी है. इसके अलावा व्रत के एक दिन पूर्व से ही भूमि पर शयन करना प्रारम्भ कर देना चाहिए. तथा दशमी तिथि के दिन भी असत्य बोलने और किसी को दु:ख देने से बचना चाहिए. इस प्रकार व्रत के नियमों का पालन दशमी तिथि की रात्रि से ही करना आवश्यक है.

व्रत के दिन एकादशी तिथि में उपवासक को प्रात:काल में सूर्योदय से पहले उठना चाहिए. और प्रात:काल में ही नित्यक्रियाएं कर, शुद्ध जल से स्नान करना चाहिए. स्नान के लिये किसी पवित्र नदी या सरोवर का जल मिलना श्रेष्ठ होता है. अगर यह संभव न हों तो घर में ही जल से स्नान कर लेना चाहिए. स्नान करने के लिये कुशा और तिल एक लेप का प्रयोग करना चाहिए. शास्त्रों के अनुसार यह माना जाता है, कि इन वस्तुओं का प्रयोग करने से व्यक्ति पूजा करने योग्य होता है.

स्नान करने के बाद साफ -शुद्ध वस्त्र धारण करने चाहिए. और भगवान श्री विष्णु जी के साथ-साथ भगवान श्री राम की पूजा की जाती है. व्रत का संकल्प लेने के बाद ही इस व्रत को शुरु किया जाता है. संकल्प लेने के लिये इन दोनों देवों के समक्ष संकल्प लिया जाता है.

देवों का पूजन करने के लिये कुम्भ स्थापना कर, उसके ऊपर लाल रंग का वस्त्र बांध कर पहले कुम्भ का पूजन किया जाता है, इसके बाद इसके ऊपर भगवान कि तस्वीर या प्रतिमा रखी जाती है. प्रतिमा रखने के बाद भगवान का धूप, दीप और फूलों से पूजन किया जाता है. तत्पश्चात व्रत की कथा सुनी जाती है.

मोहिनी एकादशी व्रत कथा |
Mohini Ekadashi Vrat Katha
सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नाम की एक नगरी थी. इस नगरी में घृ्त नाम का राजा रहता था. उसके राज्य में एक धनवान वैश्य रहता था. वह बडा धर्मात्मा और विष्णु का भक्त था. उसके पांच पुत्र थे. बडा पुत्र महापापी था, जुआ खेलना, मद्धपान करना और सभी बुरे कार्य करता था. उसके माता-पिता ने उसे कुछ धन देकर घर से निकाल दिया.

माता-पिता से उसे जो मिला था, वह शीघ्र ही समाप्त हो गया. इसके बाद जीवनयापन के लिए उसने चोरी आदि करनी शुरु कर दी. चोरी करते हुए, पकडा गया. दण्ड अवधि बीतने पर उसे नगरी से निकाल दिया गया. एक दिन उसके हाथ शिकार न लगा. भूखा प्यासा वह एक मुनि के आश्रम में गया. और हाथ जोडकर बोला, मैं आपकी शरण में हूँ, मुझे कोई उपाय बतायें, इससे मेरा उद्वार होगा.

उसकी विनती सुनकर, मुनि ने कहा की तुम वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन व्रत करों. अनन्त जन्मों के पापों से तुम्हे मुक्ति मिलेगी. मुनि के कहे अनुसार उसने मोहिनी एकादशी व्रत किया. ओर पाप मुक्त होकर वह विष्णु लोक चला गया.
Mohini Ekadashi occurs during the Shukla Paksha (waxing phase of moon) in the month of April/May. In 2013, the date of Mohini Ekadasi is May 21. Ekadasi fasting, which falls on the 11th day of a lunar fortnight, is dedicated to Lord Vishnu. It is believed that one will be able to overcome sadness and remorse by observing Mohini Ekadasi.Mohini Ekadashi falls in the month of Vaishakha in calendars followed in North India and other regions. It falls during Chithirai Month in Tamil Calendar.

Importance of Mohini Ekadashi is mentioned in the Surya Purana. The greatness of it was narrated to Yudhishtira by Lord Krishna.

It is said that Lord Vashishta advised Lord Ram to observe Mohini Ekadashi to get over the remorse and distress caused from the separation from Mata Sita.

All the regular practices associated with Ekadasi are followed during Mohini Ekadasi. Those observing partial fast avoid rice.

story--

Mohini Ekadashi fasting dedicated to Lord Vishnu is observed during the waxing phase of moon (Shukla Paksha) in Vaishakha month (April – May). Mohini Ekadashi Vrat Katha was first narrated to Lord Ram by Sage Vasishta. The story was later told to Yudhishitira by Lord Krishna and is found in the Surya Purana.

Once there lived a famous and pious merchant named Dhanapala in Bhadravati, a city along the banks of Saraswati River. An ardent devotee of Vishnu, Dhanapala was known for this charity and spiritual activities. But unfortunately the pious man had a son named Dhrstabuddhi, who was just the opposite of his father in behavior. Due to bad association Dhrstabuddhi was thrown out of the house.

After roaming in the city and spending his last remaining wealth, Dhrstabuddhi took to stealing and was caught by the guards. The king, keeping in mind the reputation of his father, asked him to leave the kingdom immediately.

He immediately left the kingdom and took refuge in a forest. There he started to kill animals to suffice his hunger. He lived the life of a hunter for several years. But quite often he was immersed in remorse thinking about his past deeds and the lovely childhood.

Once he accidentally arrived at the ashram of Sage Kaundinya. The holy atmosphere there generated different emotions in him. Sage Kaundinya was returning from this bath and accidentally a few drops of water fell on Dhrstabuddhi and he broke down in tears.

Dhrstabuddhi narrated his tale to Sage Kaundinya. The sage patiently heard the lamentations of the sinful soul and advised him to observe Mohini Ekadashi falling in Vaiskhaka month. He said that this particular Ekadasi has the power to nullify the sins committed, even if the sins accumulated is equal to mount Meru.

After observing Mohini Ekadasi, Dhrstabuddhi was able to wash away all the sins and he turned into a Vishnu devotee. He served the poor people and those that are ill. Finally, he attained Moksh

Ekadasi, or Ekadashi, is an important Upvaas (fast) dedicated to Lord Vishnu. Millions of Hindu devotees observe Ekadasi, which is considered highly auspicious by Lord Vishnu devotees. The traditional approach is to abstain from food completely on the day. But nowadays a complete fast is not possible for many people. Such people consume certain food items on the Ekadasi day and observe only a partial fast.

It is believed that demon Mura found a dwelling place in the rice and Lord Vishnu appeared in the form of Ekadasi to annihilate Mura. Therefore devotees who fast on the Ekadashi day avoid food made from grains.

Many devotees due to several reasons – like health and job commitments – observe partial fast on the day. Such people avoid non-vegetarian and food items made from beans, pulses and grains, especially rice. The most preferred Ekadasi fasting food in western parts of India is Sabudana Khichadi with potatoes and ground nut - but no onion and garlic.

The food that can be consumed on the Ekadasi day includes fresh and dried fruits, milk products, vegetables and nuts.

As the list of Ekadasi food expands there will be new issues cropping up like – Are you sure this can be consumed on Ekadasi?

So the golden rule is avoid pulses and grains on Ekadasi.

Drink lots of water and eat fresh and dried fruits.

In Hinduism, Upvaas is meant to bring a person close to Brahman. So forget about the rules and regulations and what you are going to gain from the Ekadashi fast. Spend the day in purifying the mind and body

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