मनरेगा में न्यूनतम मजदूरी तक नहीं देना चाहती कांग्रेस

कांग्रेस की खुल गई पोल , सामने आया असली चेहरा
मनरेगा में न्यूनतम मजदूरी तक नहीं देना चाहती कांग्रेस
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अरूणा राय ने छोड़ी सोनिया की एनएसी

30 May 2013
नई दिल्ली। सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार समिति (एनएसी) से अब इसकी सबसे सक्रिय और पुरानी सदस्य अरूणा राय ने भी किनारा कर लिया है। इतना ही नहीं उन्होंने एनएसी की सिफारिशों को नहीं मानने को लेकर संप्रग सरकार को जम कर लताड़ा भी है। सोनिया ने पत्र लिख कर उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया है। एक तरफ जहां सरकार और कांग्रेस पार्टी आम चुनाव से पहले अपनी छवि चमकाने की जी-तोड़ कोशिश में जुटी है, ठीक उसी समय इसकी छवि को एक और झटका लगा है। अरूणा राय ने इसी महीने की 11 तारीख को सोनिया गांधी को लंबी चि_ी लिख कर साफ कर दिया कि अब वे एनएसी से और नहीं जुड़ी रह सकतीं। उन्होंने खास तौर पर मनरेगा में काम करने वालों को न्यूनतम मजदूरी नहीं देने के लिए सरकार को आड़े हाथों लिया है। अरूणा ने तो यहां तक कहा है कि उन्हें समझ नहीं आता कि कैसे भारत जैसा देश अपने लोगों को न्यूनतम मजदूरी तक देने से इंकार कर सकता है और इसके बाद भी सभी के विकास की बात कर सकता है। उन्होंने प्रधानमंत्री को भी निशाना बनाया है। अरूणा के मुताबिक कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद उसे मानते हुए लोगों को न्यूनतम मजदूरी देने की जगह प्रधानमंत्री ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना सही समझा। सुप्रीम कोर्ट ने भी जब इस पर सरकार की मदद करने से इंकार कर दिया तब भी वे नहीं माने। इस सरकार के दौरान सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून और महात्मा गांधी रोजगार गारंटी (मनरेगा) योजना जैसे बड़े कदमों के पीछे अहम भूमिका निभाने वाली अरूणा ने सोनिया से कहा है कि वे यह सुनिश्चित करें कि लोकपाल , लोक शिकायत कानून और भ्रष्टाचार को उजागर करने वालों को सुरक्षा देने वाले व्हिशल ब्लोअर कानून को जल्दी से जल्दी लाया जाए। सोनिया गांधी ने 20 मई को जवाबी चि_ी में उनके अब तक के सहयोग की तारीफ करते हुए एनएसी से अलग रखने का अनुरोध मान लिया है।
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यूं ही नहीं हटीं अरुणा रॉय एनएसी से

29 May 2013
-मनरेगा मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी की अनुशंसा अस्वीकार करने से खफा
जागरण संवाददाता, लखनऊ :
मजदूर किसान शक्ति संगठन की संस्थापक व नेशनल एडवायजरी कमेटी (एनएसी) की सलाहकार अरुणा रॉय अब मजदूरों के हित में काम करना चाहती हैं। उन्होंने एनएसी अध्यक्ष सोनिया गांधी से अब आगे काम न कर पाने का अनुरोध किया है। अरुणा का कहना है कि उनके नाम पर अगले कार्यकाल के लिए विचार न किया जाए। वह कहती हैं कि एनएसी से बाहर रहकर वह सामाजिक सरोकारों के अभियानों के लिए काम करना चाहती हैं।
हालांकि अरुणा का यह फैसला उतना सामान्य भी नहीं जितना वह जताती हैं। बख्शी का तालाब में आयोजित सेमिनार पारदर्शिता एवं खुलासा में शिरकत करने आईं अरुणा ने बताया कि एनएसी द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट (मनरेगा) के क्रियांवयन से जुड़े कई सुझाव दिए गए थे। सलाहकार समूह द्वारा इन संस्तुतियों को ग्राम्य विकास मंत्रालय को भेजा गया था। उन्होंने कहा कि मनरेगा लाभार्थियों का एक बहुत बड़ा समूह है जो इसकी आलोचना तो करता है किंतु इस विधेयक का समर्थन भी करता है। इस व्यापक समूह का सार्वजनिक व राजनीतिक स्थान एक ऐसे छोटे, मुखर व सत्ता संपन्न अल्पसंख्यक वर्ग द्वारा छीना जा रहा है जो मनरेगा के आधारभूत उद्देश्यों को कम आंकने पर आमादा है। वह कहती हैं कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा मनरेगा मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी की दर से वेतन दिए जाने की अनुशंसा को अस्वीकार कर दिया गया। रॉय कहती हैं कि प्रधानमंत्री ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध अपील करने का निर्णय लिया है। उससे भी अधिक परेशानी की बात यह है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा कर्नाटक उच्च न्यायालय के मनरेगा मजदूरों के फैसले पर जो स्थगन आदेश दिया है सरकार ने उसे भी नहीं माना और मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी देने से इंकार कर दिया है। अरुणा इसे लेकर काफी क्षुब्ध हैं। उनका कहना है कि यह समझना मुश्किल हो गया है कि जो सरकार समानता मूलक विकास का दावा करती है वह ऐसा कैसे कर सकती है। वह कहती हैं कि न्यूनतम मजदूरी का भुगतान करने के लिए सरकार को तैयार करने के लिए एनएसी के बाहर काम किया जाना चाहिए।
देश में कुपोषण और भूख की स्थिति के मद्देनजर खाद्य सुरक्षा बिल पर चर्चा करके उसे अब तक पारित कर दिया जाना चाहिए था। बिल के विविध प्रावधानों पर एनएसी तथा सार्वजनिक क्षेत्र में स्वस्थ और विस्तृत संवाद हुआ है। इससे स्पष्ट होता है कि संसद यदि इसे उठाती तो यह एक मजबूत व जन समर्थित विधेयक हो सकता था। पारदर्शिता व जवाबदेही कार्यकारी समूह ने भी कई मुद्दे उठाए हैं। इसमें लोकपाल, शिकायत प्रकोष्ठ, व्हीसल ब्लोअर बिल आदि शामिल हैं। इनमें से कई विधेयकों को अब संसदीय समिति से मंजूरी दी जा चुकी है और उसे अब अविलंब पारित किए जाने की की जरूरत है। अरुणा कहती हैं कि लोकतांत्रिक शासन के लिए इन सभी मुद्दों पर तुरंत निर्णय लिया जाना जरूरी है।

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