दो साल से ज्यादा की सजा : तो सांसदों, विधायकों की सदस्यता रद्द



दो  साल से ज्यादा की सजा हुई तो सांसदों, विधायकों की सदस्यता रद्द होगी : सुप्रीम कोर्ट

नवभारतटाइम्स.कॉम | Jul 10, 2013,

सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने के बावजूद सांसदों, विधायकों को संरक्षण प्रदान करने वाले कानूनी प्रावधान जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 (4) निरस्त कर दिया है। कोर्ट ने दोषी निर्वाचित प्रतिनिधि की अपील लंबित होने तक उसे पद पर बने रहने की अनुमति देने वाले जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान को गैरकानूनी करार दिया।

नई दिल्ली।। आपराधिक चरित्र के जनप्रतिनिधियों को बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने जोर का झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है कि जिसके बाद आपराधिक चरित्र के नेताओं के लिए चुनाव मुश्किल हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश के मुताबिक अगर सांसदों और विधायकों को किसी भी मामले में 2 साल से ज्यादा की सजा हुई है तो ऐसे में उनकी सदस्यता (संसद और विधानसभा से) रद्द हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सभी निर्वाचित जनप्रतिनिधियों पर तत्काल प्रभाव से लागू होगा। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 (4) निरस्त कर दिया है। हालांकि, कोर्ट ने इन दागी प्रत्याशियों को एक राहत जरूर दी है कि सुप्रीम कोर्ट का कोई भी फैसला इनके पक्ष में आएगा तो इनका सदस्यता स्वत: ही वापस हो जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने के बावजूद सांसदों, विधायकों को संरक्षण प्रदान करने वाले कानूनी प्रावधान निरस्त कर दिया है। कोर्ट ने दोषी निर्वाचित प्रतिनिधि की अपील लंबित होने तक उसे पद पर बने रहने की अनुमति देने वाले जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान को गैरकानूनी करार दिया।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के मुताबिक, इतना ही नहीं, कैद में रहते हुए किसी नेता को वोट देने का अधिकार भी नहीं होगा और न ही वे चुनाव लड़ सकेंगे। फैसले के मुताबिक, जेल जाने के बाद उन्हें नामांकन करने का अधिकार नहीं होगा। हालांकि, आज से पहले सजा पा चुके लोगों पर यह फैसला लागू नहीं होगा। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने कई जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करने के बाद यह ऐतिहासिक फैसला दिया है। कोर्ट ने पार्टियों के सामने आपराधिक चरित्र के नेताओं को खड़ा करने का अब कोई भी विकल्प नहीं छोड़ा है। इस फैसले में कोर्ट ने फैसले को चुनौती देने की भी गुंजाइश नहीं छोड़ी है।

सुप्रीम कोर्ट ने वकील लिली थॉमस और गैर सरकारी संगठन लोक प्रहरी के सचिव एस.एन. शुक्ला की जनहित याचिका पर यह फैसला सुनाया। इन याचिकाओं में जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) को निरस्त करने का अनुरोध करते हुए कहा गया था कि इस प्रावधान से संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन होता है।

गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने इस साल की शुरुआत में कहा था कि अदालत से दोषी ठहराए गए सांसद, विधायक को अपील पर अंतिम फैसला होने तक सदन का सदस्य बने रहने की छूट देने वाला कानून सही और जरूरी भी है। सरकार ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 (4) का पक्ष लेते हुए सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर यही दलील दी थी। सुप्रीम कोर्ट के अहम फैसले के तत्काल बाद बीजेपी प्रवक्‍ता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि वह इसका स्‍वागत करते हैं। उन्होंने कहा कि कोर्ट के फैसले से विधायिका में सुधार होगा।

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