साम्प्रदायिक आधार पर भारत को नष्ट करने का षडयन्त्र - विश्वजीत सिंह ' अनंत '
भारत के छद्म सेक्यूलर नेताओं द्वारा साम्प्रदायिक आधार पर भारत को नष्ट करने का भयानक षडयन्त्र !
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '
प्रिय राष्ट्र प्रेमियों -
एक वो समय था जब गाय माँ की रक्षा के लिये 1857 ईश्वी में क्रांति हो गई थी और हमारे पूर्वजों ने 4 लाख गद्दारों व अंग्रेजों को काट डाला था, ओर एक समय ये है जब 3500 हजार कत्लखानों में रोज माँ को काटा जा रहा है और हम तथाकथित अहिंसा व सेक्यूलरिज्म की आड़ में नपुंसकता की चादर ओढ़े घरों में दुबके बैठे है। एक प्रदेश की मुख्यमंत्री सार्वजनिक मंच से 'गौ मांस खाना मेरा मौलिक अधिकार है' कहने का दुश्साहस करती है, किन्तु देश में उसके खिलाप कोई सशक्त प्रतिक्रिया नहीं आती, कारण भारत के नेतृत्व का भारतीयता विरोधी छद्म सेक्यूलरों के हाथों में होना, इनके द्वारा नित्य प्रति भारत के स्वाभिमान को ठेस पहुँचाने के कुचक्र रचे जा रहे है। देश की सीमाओं, संस्कृति, पुरातन धरोहर, हमारी शिक्षा पद्धति, हमारे मंदिर, साधु - सन्यासी, हमारी परंपराओं एवं राष्ट्रीय स्वाभिमान पर सदैव सुनियोजित रीति से बहु - आयामी आक्रमण किये जा रहे है। हमारा देश छद्म सेक्यूलर नेताओं के कारण भीषण संकट के दौर से गुजर रहा है।
भारत में छद्म सेक्यूलरिज्म की संगठित शुरूआत 20 अगस्त 1920 को मोहनदास गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन के नाम से खिलापत आंदोलन (अरबपंथी कट्टर जेहादियों द्वारा तुर्की के खलीपा के समर्थन में चलाया गया एक विशुद्ध साम्प्रदायिक आंदोलन, जिसका भारत या भारत के मुसलमानों से कोई संबंध नहीं था।) को अपना नेतृत्व प्रदान करने से हुई। गांधी के शब्दों में - मुसलमानों के लिए स्वराज्य का अर्थ है - जो होना ही चाहिए खिलापत की समस्या के लिए भारत की क्षमता का, प्रभाव पूर्ण व्यवहार, इस दृष्टिकोण के साथ सहानुभूति न रखना एकदम असंभव है, खिलापत आंदोलन की पूर्ति के लिए आवश्यक लगने पर मैं स्वराज प्राप्ति की कार्यवाही को सहर्ष स्थगित करने के लिए आग्रह कर दूंगा। जब खिलापत आंदोलन असफल हो गया तो अरबपंथी जेहादियों का गुस्सा हिन्दुओं पर उतरा, मोपला में हिन्दुओं की संपत्ति, धन व जीवन पर सबसे बड़ा हमला हुआ। हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाया गया, स्त्रियों के अपमान हुये। गांधी जो अपनी नीतियों के कारण इसके उत्तरदायी थे, मौन रहे। प्रत्युत यह कहना शुरू कर दिया कि मालाबार में हिन्दुओं को मुसलमान नहीं बनाया गया। यद्यपि उनके मुस्लिम मित्रों ने यह स्वीकार किया कि सैकड़ों घटनाऐं हुई है। और उल्टे मोपला मुसलमानों के लिए फंड शुरू कर दिया।
मोहनदास गांधी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआता में हिन्दी को बहुत प्रोत्साहन दिया। लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि कुछ साम्प्रदायिक मुसलमान इसे पसंद नहीं करते, तो वे उन्हें खुश करने के लिए हिन्दी के स्थान पर हिन्दुस्तानी (फारसी लिपि में लिखे जाने वाली उर्दू भाषा) का प्रचार करने लगे। बादशाह दशरथ, शहजादा राम, बेगम सीता, मौलवी वशिष्ठ जैसे नामों का प्रयोग होने लगा। सम्प्रदाय विशेष को खुश करने के लिए हिन्दुस्तानी भाषा विद्यालयों में पढ़ाई जाने लगी। इसी अवधारणा से मुस्लिम तुष्टिकरण का जन्म हुआ, जिसके मूल से ही उन्नीसवीं सदी की सबसे भयानक त्रासदी साम्प्रदायिक आधार पर हिन्दुस्थान का पाकिस्तान और भारत के रूप में विभाजन हुआ, जिसमें लगभग 25 लाख निर्दोष लोगों को अपने प्राण गवाने पड़े।
14 - 15 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में हिन्दुस्थान विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था कि गांधी ने वहां पहुँच कर प्रस्ताव का समर्थन कराया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं कहा था कि देश का बटवारा उनकी लाश पर होगा। देश का साम्प्रदायिक आधार पर विभाजन हुआ, मुसलमानों का पाकिस्तान और हिन्दुओं का भारत, तो जिन्ना ने सम्पूर्ण साम्प्रदायिक जनसंख्या के स्थानांतरण की बात रखी, जिसे गांधी और नेहरू ने अस्वीकार कर दिया। नास्तिक नेहरू ने हिन्दू विद्वेषवश भारत को हिन्दू राष्ट्र न बनाकर सेक्यूलर राष्ट्र बना दिया। विभाजन के पश्चात भारत में कुल 3 करोड़ मुस्लिम जनसंख्या थी, जो आज बढ़कर 23 करोड़ हो गयी है, दूसरी ओर पाकिस्तान में हिन्दुओं की जनसंख्या 21 प्रतिशत थी, जो अब घटकर 1.4 प्रतिशत रह गयी है। तुर्क और मुगलों की प्रापर्टी की सुरक्षा व्यवस्था के लिए वफ्फ तैयार किया गया और और उनको पाकिस्तान में प्रापर्टी वफ्फ के द्वारा सौपी गयी और कमी समझने पर उनकी जमीन का पेमेन्ट भी किया गया। मुसलमानों के हिस्से की जमीन पाकिस्तान में चली गयी और वफ्फ के द्वारा मुसलमानों को सभी सुविधाऐं दी गयी, परन्तु पाकिस्तान से भारत आने वाले हिन्दुओं के लिये कुछ नहीं किया गया। आखिर ऐसा विद्वेष हिन्दुओं के साथ क्यों किया गया और यह विद्वेष आज भी जारी क्यों है ! जो मुसलमान पाकिस्तान चले गये उनकी संपत्ति की खातिर सरकार फिर ऐसा कानून बनाना चाहती है कि वह संपत्ति उन पर पहुँच जाये। मुगलकाल में हिन्दुओं के लिए नियम अलग और मुस्लिमों के लिए अलग होता था, आज भी वह नियम लागू है, जब कोई हिन्दू मेला या तीर्थयात्रा होती है तो टैक्स या किराया बढ़ा दिया जाता है और मुसलमानों को हज यात्रा में आर्थिक अनुदान दिया जाता है। छात्रवृत्ति, बैंक लोन, शिक्षा, रोजगार आदि क्षेत्रों में सम्प्रदायिक तुष्टिकरण व मजहबी आरक्षण की भेदभाव पूर्ण नीति अपनायी जाती है। इसपर स्वयं भारत का सुप्रीम कोर्ट सभी भारतीय नागरिकों के लिए समान कानून बनाने का सुझाव दे चुका है तथा साम्प्रदायिक समुदायों के पर्सनल लॉ में बदलाव नहीं करने पर केन्द्र सरकार को लताड़ चुका है। लेकिन फिर भी भारत का छद्म सेक्यूलर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह देश के समस्त संसाधनों पर पहला अधिकार एक सम्प्रदाय विशेष (मुसलमानों) का बताता है। साम्प्रदायिक आधार पर भारत को नष्ट करने के लिए कट्टर साम्प्रदायिक चरित्र वाले व्यक्तियों की सोनिया गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद गठित कर सांप्रदायिक एवं लक्ष्य केन्द्रित हिंसा निवारण विधेयक 2011 बनाया जाता है तो कभी राजिन्द्र सच्चर के नेतृत्व में कमेटी गठित कर मुसलमानों के लिए विशेषाधिकार की बात की जाती है।लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान कहते है कि असली प्रजातंत्र हम जब समझेगें जब देश का प्रधानमंत्री मुसलमान होगा। हैदराबाद का एक विधायक मौलाना ओवैसी दुर्गा मंदिर में बजने वाले घण्टे को गैर इस्लामी बताकर प्रतिबंधित कराने का प्रयास करता है, तो बरेली की खचाखच भरी एक चुनावी सभा में एक मौलवी सार्वजनिक रूप से कहता है कि शहजिल इस्लाम (प्रत्यासी) को वोट देकर इतना मजबूत कर दो कि वो गैर मुस्लिम का सिर कलम कर सके। चुनाव जितने पर विधायक शहजिल इस्लाम ओसामा बिन लादेन को आतंकी नहीं जेहादी बताता है। इसका अर्थ यह हुआ कि जिस प्रकार पहले तलवार के बल पर कत्ले आम मचाकर नंगा नाच होता था, मतांतरण कराया जाता था, कच्चे चमड़े के बोरों में जीवित लोगों को ठूँस - ठूँस भरकर सीलकर तडफते हुये मरने के लिये डाल दिया जाता था, नारियों का शील भंग किया जाता था, इन जेहादियों के आतंक से कन्याओं की भ्रुण हत्या कर दी जाती थी तथा नारियाँ सामूहिक रूप से एकत्र होकर अग्नि में प्राण गवाँ देती थी, जैसे मुगलकाल में हिन्दुओं के लिए नियम अलग और मुसलमानों के लिए अलग थे आज भी वो प्रक्रिया जारी है । जब हकीकत को मौत की सजा सुनाई गई तो हकीकत ने कहा अगर यह बोलने पर मैं दोषी हूँ तो मेरे से पहले यह मुस्लिम बच्चे दोषी है , जिन्होनें दुर्गा माता के लिए यह शब्द कहे थे मैंने तो केवल उनके शब्द दोहराये है। मुसलमान सेक्यूलरिज्म को नहीं मानता है और सरकार सेक्यूलरिज्म को मानती है तो मजहब (आधुनिक शब्दों में धर्म) के नाम पर आरक्षण क्यों देती है। सरकार में बैठे हुये व्यक्ति मजहब के आधार पर आतंकवादियों की मदद क्यों करते है। बाटला हाऊस में इस्पेक्टर शर्मा आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हो जाते है, इस्पेक्टर शर्मा के बलिदान को कोई महत्व नहीं दिया जाता, उल्टा कांग्रेस का महासचिव दिग्विजय सिंह आजमगढ़ जिले के सरजूपुर ग्राम में आतंकवादियों के घर जाकर मुठभेड़ को फर्जी बताता है और उनका उत्साहवर्धन करता है कि हम स्पेशल अदालत बैठाकर आपके बच्चों को न्याय दिलायेगे। हापुड़ के पास मंसूरी ग्राम में आतंकवादियों की सूचना मिलने पर पुलिस छापा मारती है तो एक आतंकवादी उसी समय गाडी में बैठकर आता है तो गाडी ड्राइवर व मकान मालिक को भी पुलिस हिरासत में ले लेती है तो सेक्यूलर नेता चिल्लाते है कि मानव अधिकार का हनन हो रहा है। इसी प्रकार एक दरगाह में 40 आतंकवादी थे तो सरकार कहती है दरगाह पर हमला मत करना और मौका पाकर आतंकवादी फरार हो जाते है, स्वर्ण मंदिर को तो तहस नहस कर सकती है सरकार लेकिन दरगाह में आतंकवादी पाकर हमली नहीं कर सकती। जामा मस्जिद का इमाम कहता है कि मैं आई एस आई का एजेन्ट हूँ सरकार में हिम्मत है तो मुझे गिरफ्तार करे। एक योगगुरू काले धन के लिए शांतिपूर्वक अनशन करता है तो सरकार सोते हुये बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गो पर घिनौने तरीके से बल प्रयोग करती है। हिन्दू साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को कोई पुष्ट प्रमाण न मिलने पर भी अमानवीय यातनाऐ दी जाती है और आतंकवादियों को बिरयानी खिलायी जाती है, जामा मस्जिद के इमाम के नाम पर गर्दन नीची कर ली जी जाती है।
सरकार की भारत विरोधी मानसिकता देखिये भारतीय नगरों के नाम अरब साम्राज्यवादी आक्रांताओं के नाम पर रखे गये, भारतीय महापुरूषों को हाशिये पर फेंक दिया गया, देखिये विजयनगर हिन्दू राज्य था उसका नाम बदलकर सिकंदराबाद रख दिया गया। महाराणी कर्णावती के नाम से नगर का नाम कर्णावती रखा गया परन्तु इसका नाम बदलकर क्रुर आतंकी के नाम पर अहमदाबाद रख दिया गया और अकबर ने प्रयाग का नाम बदलकर इलाहाबाद रख दिया और साकेतनगर जो राम के राज्य से नाम था उसे बदलकर फैजाबाद कर दिया गया, शिवाजी नगर का नाम बदलकर आतंकी औरंगजेब के नाम पर औरंगाबाद कर दिया गया, लक्ष्मीनगर का नाम बदलकर नबाब मुजफ्फर अली के नाम पर मुजफ्फरनगर रख दिया, भटनेरनगर का नाम गाजियाबाद रख दिया, इंद्रप्रस्थ का नाम दिल्ली रख दिया गया। इसी प्रकार आज भी हमारे उपनगरों व रोडों के नाम आतंकवादियों के नाम पर रखे जा रहे है, तुगलक रोड, अकबर रोड, औरंगजेब रोड, आसफ अली रोड, शाहजहाँ मार्ग, जहागीर मार्ग, लार्ड मिन्टो रोड, लारेन्स रोड, डलहोजी रोड आदि - आदि। जरा विचार करो, नीच किस्म के आतंकवादियों के नामों का इस प्रकार से भारत पर जबरदस्ती थोपा जाना एक षडयन्त्र है नहीं है क्या, यह वैचारिक गुलामी का प्रतिक है। अयोध्या के श्री राम मंदिर को विश्व जानता है कि यहां राम का जन्म हुआ और उसका भव्य मंदिर था, एक अरबपंथी लुटेरा जेहादी सेना लेकर आया उसने लूट मचाई, भारतीय स्वाभिमान को नीचा दिखाने के लिए उसने मंदिर को तोड दिया, लुटेरा भी चला गया और देश का एक भाग भी चला गया, परन्तु फिर भी मुकदमा भारतीय स्वाभिमान के प्रतिक श्रीराम और एक लुटेरे के बीच में ? कैसी है यह आजादी !
आज भारतीयों की मानसिकता देखकर मुझे दुःख होता है और मैं विचार करता हूँ कि जब आर्य महान थे तो उनकी संतान इतनी निकृष्ट कैसे हो गई। जब राष्ट्रगीत वंदे मातरम् पर कुछ संकिर्ण विचारधारा के व्यक्ति आपत्ति जताते है तो तुरंत वंदे मातरम् गायन को स्वैच्छिक कर दिया जाता है और राष्ट्रगान जन गन मन जो जार्ज पंचम का स्वागत गीत था, उस पर कोई आपत्ति नहीं सुनी जाती। इसी प्रकार भारत माता व हिन्दू देवी - देवताओं की मूर्तियां बनाकर भारतीयता को अपमानित करने वाले को सहयोग और उसके खिलाप बोलने वालों पर मुकदमे। आज भारतीय हिन्दू समाज के छद्म सेक्यूलर नेता तात्कालिक लाभ के लिए देश को गद्दारों के हवाले करने का काम कर रहे है। भारत के सात राज्यों में तो हिन्दू अल्पसंख्य हो ही चुका है, अब सम्पूर्ण भारत की बारी है। हे भारत वंशियों अभी भी समय है चेत जाओं, वरना आने वाले समय में तुमको भयंकर यातनाओं का शिकार होना पडेगा और तुम्हारी बहन - बेटियों को जेहादी विधर्मीयों की रखैल बनकर रहना पडेगा, इसका इतिहास साक्षी है।
वन्दे मातरम्
जय माँ भारती ।
- विश्वजीत सिंह ' अनंत '
प्रिय राष्ट्र प्रेमियों -
एक वो समय था जब गाय माँ की रक्षा के लिये 1857 ईश्वी में क्रांति हो गई थी और हमारे पूर्वजों ने 4 लाख गद्दारों व अंग्रेजों को काट डाला था, ओर एक समय ये है जब 3500 हजार कत्लखानों में रोज माँ को काटा जा रहा है और हम तथाकथित अहिंसा व सेक्यूलरिज्म की आड़ में नपुंसकता की चादर ओढ़े घरों में दुबके बैठे है। एक प्रदेश की मुख्यमंत्री सार्वजनिक मंच से 'गौ मांस खाना मेरा मौलिक अधिकार है' कहने का दुश्साहस करती है, किन्तु देश में उसके खिलाप कोई सशक्त प्रतिक्रिया नहीं आती, कारण भारत के नेतृत्व का भारतीयता विरोधी छद्म सेक्यूलरों के हाथों में होना, इनके द्वारा नित्य प्रति भारत के स्वाभिमान को ठेस पहुँचाने के कुचक्र रचे जा रहे है। देश की सीमाओं, संस्कृति, पुरातन धरोहर, हमारी शिक्षा पद्धति, हमारे मंदिर, साधु - सन्यासी, हमारी परंपराओं एवं राष्ट्रीय स्वाभिमान पर सदैव सुनियोजित रीति से बहु - आयामी आक्रमण किये जा रहे है। हमारा देश छद्म सेक्यूलर नेताओं के कारण भीषण संकट के दौर से गुजर रहा है।
भारत में छद्म सेक्यूलरिज्म की संगठित शुरूआत 20 अगस्त 1920 को मोहनदास गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन के नाम से खिलापत आंदोलन (अरबपंथी कट्टर जेहादियों द्वारा तुर्की के खलीपा के समर्थन में चलाया गया एक विशुद्ध साम्प्रदायिक आंदोलन, जिसका भारत या भारत के मुसलमानों से कोई संबंध नहीं था।) को अपना नेतृत्व प्रदान करने से हुई। गांधी के शब्दों में - मुसलमानों के लिए स्वराज्य का अर्थ है - जो होना ही चाहिए खिलापत की समस्या के लिए भारत की क्षमता का, प्रभाव पूर्ण व्यवहार, इस दृष्टिकोण के साथ सहानुभूति न रखना एकदम असंभव है, खिलापत आंदोलन की पूर्ति के लिए आवश्यक लगने पर मैं स्वराज प्राप्ति की कार्यवाही को सहर्ष स्थगित करने के लिए आग्रह कर दूंगा। जब खिलापत आंदोलन असफल हो गया तो अरबपंथी जेहादियों का गुस्सा हिन्दुओं पर उतरा, मोपला में हिन्दुओं की संपत्ति, धन व जीवन पर सबसे बड़ा हमला हुआ। हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाया गया, स्त्रियों के अपमान हुये। गांधी जो अपनी नीतियों के कारण इसके उत्तरदायी थे, मौन रहे। प्रत्युत यह कहना शुरू कर दिया कि मालाबार में हिन्दुओं को मुसलमान नहीं बनाया गया। यद्यपि उनके मुस्लिम मित्रों ने यह स्वीकार किया कि सैकड़ों घटनाऐं हुई है। और उल्टे मोपला मुसलमानों के लिए फंड शुरू कर दिया।
मोहनदास गांधी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआता में हिन्दी को बहुत प्रोत्साहन दिया। लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि कुछ साम्प्रदायिक मुसलमान इसे पसंद नहीं करते, तो वे उन्हें खुश करने के लिए हिन्दी के स्थान पर हिन्दुस्तानी (फारसी लिपि में लिखे जाने वाली उर्दू भाषा) का प्रचार करने लगे। बादशाह दशरथ, शहजादा राम, बेगम सीता, मौलवी वशिष्ठ जैसे नामों का प्रयोग होने लगा। सम्प्रदाय विशेष को खुश करने के लिए हिन्दुस्तानी भाषा विद्यालयों में पढ़ाई जाने लगी। इसी अवधारणा से मुस्लिम तुष्टिकरण का जन्म हुआ, जिसके मूल से ही उन्नीसवीं सदी की सबसे भयानक त्रासदी साम्प्रदायिक आधार पर हिन्दुस्थान का पाकिस्तान और भारत के रूप में विभाजन हुआ, जिसमें लगभग 25 लाख निर्दोष लोगों को अपने प्राण गवाने पड़े।
14 - 15 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में हिन्दुस्थान विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था कि गांधी ने वहां पहुँच कर प्रस्ताव का समर्थन कराया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं कहा था कि देश का बटवारा उनकी लाश पर होगा। देश का साम्प्रदायिक आधार पर विभाजन हुआ, मुसलमानों का पाकिस्तान और हिन्दुओं का भारत, तो जिन्ना ने सम्पूर्ण साम्प्रदायिक जनसंख्या के स्थानांतरण की बात रखी, जिसे गांधी और नेहरू ने अस्वीकार कर दिया। नास्तिक नेहरू ने हिन्दू विद्वेषवश भारत को हिन्दू राष्ट्र न बनाकर सेक्यूलर राष्ट्र बना दिया। विभाजन के पश्चात भारत में कुल 3 करोड़ मुस्लिम जनसंख्या थी, जो आज बढ़कर 23 करोड़ हो गयी है, दूसरी ओर पाकिस्तान में हिन्दुओं की जनसंख्या 21 प्रतिशत थी, जो अब घटकर 1.4 प्रतिशत रह गयी है। तुर्क और मुगलों की प्रापर्टी की सुरक्षा व्यवस्था के लिए वफ्फ तैयार किया गया और और उनको पाकिस्तान में प्रापर्टी वफ्फ के द्वारा सौपी गयी और कमी समझने पर उनकी जमीन का पेमेन्ट भी किया गया। मुसलमानों के हिस्से की जमीन पाकिस्तान में चली गयी और वफ्फ के द्वारा मुसलमानों को सभी सुविधाऐं दी गयी, परन्तु पाकिस्तान से भारत आने वाले हिन्दुओं के लिये कुछ नहीं किया गया। आखिर ऐसा विद्वेष हिन्दुओं के साथ क्यों किया गया और यह विद्वेष आज भी जारी क्यों है ! जो मुसलमान पाकिस्तान चले गये उनकी संपत्ति की खातिर सरकार फिर ऐसा कानून बनाना चाहती है कि वह संपत्ति उन पर पहुँच जाये। मुगलकाल में हिन्दुओं के लिए नियम अलग और मुस्लिमों के लिए अलग होता था, आज भी वह नियम लागू है, जब कोई हिन्दू मेला या तीर्थयात्रा होती है तो टैक्स या किराया बढ़ा दिया जाता है और मुसलमानों को हज यात्रा में आर्थिक अनुदान दिया जाता है। छात्रवृत्ति, बैंक लोन, शिक्षा, रोजगार आदि क्षेत्रों में सम्प्रदायिक तुष्टिकरण व मजहबी आरक्षण की भेदभाव पूर्ण नीति अपनायी जाती है। इसपर स्वयं भारत का सुप्रीम कोर्ट सभी भारतीय नागरिकों के लिए समान कानून बनाने का सुझाव दे चुका है तथा साम्प्रदायिक समुदायों के पर्सनल लॉ में बदलाव नहीं करने पर केन्द्र सरकार को लताड़ चुका है। लेकिन फिर भी भारत का छद्म सेक्यूलर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह देश के समस्त संसाधनों पर पहला अधिकार एक सम्प्रदाय विशेष (मुसलमानों) का बताता है। साम्प्रदायिक आधार पर भारत को नष्ट करने के लिए कट्टर साम्प्रदायिक चरित्र वाले व्यक्तियों की सोनिया गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद गठित कर सांप्रदायिक एवं लक्ष्य केन्द्रित हिंसा निवारण विधेयक 2011 बनाया जाता है तो कभी राजिन्द्र सच्चर के नेतृत्व में कमेटी गठित कर मुसलमानों के लिए विशेषाधिकार की बात की जाती है।लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान कहते है कि असली प्रजातंत्र हम जब समझेगें जब देश का प्रधानमंत्री मुसलमान होगा। हैदराबाद का एक विधायक मौलाना ओवैसी दुर्गा मंदिर में बजने वाले घण्टे को गैर इस्लामी बताकर प्रतिबंधित कराने का प्रयास करता है, तो बरेली की खचाखच भरी एक चुनावी सभा में एक मौलवी सार्वजनिक रूप से कहता है कि शहजिल इस्लाम (प्रत्यासी) को वोट देकर इतना मजबूत कर दो कि वो गैर मुस्लिम का सिर कलम कर सके। चुनाव जितने पर विधायक शहजिल इस्लाम ओसामा बिन लादेन को आतंकी नहीं जेहादी बताता है। इसका अर्थ यह हुआ कि जिस प्रकार पहले तलवार के बल पर कत्ले आम मचाकर नंगा नाच होता था, मतांतरण कराया जाता था, कच्चे चमड़े के बोरों में जीवित लोगों को ठूँस - ठूँस भरकर सीलकर तडफते हुये मरने के लिये डाल दिया जाता था, नारियों का शील भंग किया जाता था, इन जेहादियों के आतंक से कन्याओं की भ्रुण हत्या कर दी जाती थी तथा नारियाँ सामूहिक रूप से एकत्र होकर अग्नि में प्राण गवाँ देती थी, जैसे मुगलकाल में हिन्दुओं के लिए नियम अलग और मुसलमानों के लिए अलग थे आज भी वो प्रक्रिया जारी है । जब हकीकत को मौत की सजा सुनाई गई तो हकीकत ने कहा अगर यह बोलने पर मैं दोषी हूँ तो मेरे से पहले यह मुस्लिम बच्चे दोषी है , जिन्होनें दुर्गा माता के लिए यह शब्द कहे थे मैंने तो केवल उनके शब्द दोहराये है। मुसलमान सेक्यूलरिज्म को नहीं मानता है और सरकार सेक्यूलरिज्म को मानती है तो मजहब (आधुनिक शब्दों में धर्म) के नाम पर आरक्षण क्यों देती है। सरकार में बैठे हुये व्यक्ति मजहब के आधार पर आतंकवादियों की मदद क्यों करते है। बाटला हाऊस में इस्पेक्टर शर्मा आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हो जाते है, इस्पेक्टर शर्मा के बलिदान को कोई महत्व नहीं दिया जाता, उल्टा कांग्रेस का महासचिव दिग्विजय सिंह आजमगढ़ जिले के सरजूपुर ग्राम में आतंकवादियों के घर जाकर मुठभेड़ को फर्जी बताता है और उनका उत्साहवर्धन करता है कि हम स्पेशल अदालत बैठाकर आपके बच्चों को न्याय दिलायेगे। हापुड़ के पास मंसूरी ग्राम में आतंकवादियों की सूचना मिलने पर पुलिस छापा मारती है तो एक आतंकवादी उसी समय गाडी में बैठकर आता है तो गाडी ड्राइवर व मकान मालिक को भी पुलिस हिरासत में ले लेती है तो सेक्यूलर नेता चिल्लाते है कि मानव अधिकार का हनन हो रहा है। इसी प्रकार एक दरगाह में 40 आतंकवादी थे तो सरकार कहती है दरगाह पर हमला मत करना और मौका पाकर आतंकवादी फरार हो जाते है, स्वर्ण मंदिर को तो तहस नहस कर सकती है सरकार लेकिन दरगाह में आतंकवादी पाकर हमली नहीं कर सकती। जामा मस्जिद का इमाम कहता है कि मैं आई एस आई का एजेन्ट हूँ सरकार में हिम्मत है तो मुझे गिरफ्तार करे। एक योगगुरू काले धन के लिए शांतिपूर्वक अनशन करता है तो सरकार सोते हुये बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गो पर घिनौने तरीके से बल प्रयोग करती है। हिन्दू साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को कोई पुष्ट प्रमाण न मिलने पर भी अमानवीय यातनाऐ दी जाती है और आतंकवादियों को बिरयानी खिलायी जाती है, जामा मस्जिद के इमाम के नाम पर गर्दन नीची कर ली जी जाती है।
सरकार की भारत विरोधी मानसिकता देखिये भारतीय नगरों के नाम अरब साम्राज्यवादी आक्रांताओं के नाम पर रखे गये, भारतीय महापुरूषों को हाशिये पर फेंक दिया गया, देखिये विजयनगर हिन्दू राज्य था उसका नाम बदलकर सिकंदराबाद रख दिया गया। महाराणी कर्णावती के नाम से नगर का नाम कर्णावती रखा गया परन्तु इसका नाम बदलकर क्रुर आतंकी के नाम पर अहमदाबाद रख दिया गया और अकबर ने प्रयाग का नाम बदलकर इलाहाबाद रख दिया और साकेतनगर जो राम के राज्य से नाम था उसे बदलकर फैजाबाद कर दिया गया, शिवाजी नगर का नाम बदलकर आतंकी औरंगजेब के नाम पर औरंगाबाद कर दिया गया, लक्ष्मीनगर का नाम बदलकर नबाब मुजफ्फर अली के नाम पर मुजफ्फरनगर रख दिया, भटनेरनगर का नाम गाजियाबाद रख दिया, इंद्रप्रस्थ का नाम दिल्ली रख दिया गया। इसी प्रकार आज भी हमारे उपनगरों व रोडों के नाम आतंकवादियों के नाम पर रखे जा रहे है, तुगलक रोड, अकबर रोड, औरंगजेब रोड, आसफ अली रोड, शाहजहाँ मार्ग, जहागीर मार्ग, लार्ड मिन्टो रोड, लारेन्स रोड, डलहोजी रोड आदि - आदि। जरा विचार करो, नीच किस्म के आतंकवादियों के नामों का इस प्रकार से भारत पर जबरदस्ती थोपा जाना एक षडयन्त्र है नहीं है क्या, यह वैचारिक गुलामी का प्रतिक है। अयोध्या के श्री राम मंदिर को विश्व जानता है कि यहां राम का जन्म हुआ और उसका भव्य मंदिर था, एक अरबपंथी लुटेरा जेहादी सेना लेकर आया उसने लूट मचाई, भारतीय स्वाभिमान को नीचा दिखाने के लिए उसने मंदिर को तोड दिया, लुटेरा भी चला गया और देश का एक भाग भी चला गया, परन्तु फिर भी मुकदमा भारतीय स्वाभिमान के प्रतिक श्रीराम और एक लुटेरे के बीच में ? कैसी है यह आजादी !
आज भारतीयों की मानसिकता देखकर मुझे दुःख होता है और मैं विचार करता हूँ कि जब आर्य महान थे तो उनकी संतान इतनी निकृष्ट कैसे हो गई। जब राष्ट्रगीत वंदे मातरम् पर कुछ संकिर्ण विचारधारा के व्यक्ति आपत्ति जताते है तो तुरंत वंदे मातरम् गायन को स्वैच्छिक कर दिया जाता है और राष्ट्रगान जन गन मन जो जार्ज पंचम का स्वागत गीत था, उस पर कोई आपत्ति नहीं सुनी जाती। इसी प्रकार भारत माता व हिन्दू देवी - देवताओं की मूर्तियां बनाकर भारतीयता को अपमानित करने वाले को सहयोग और उसके खिलाप बोलने वालों पर मुकदमे। आज भारतीय हिन्दू समाज के छद्म सेक्यूलर नेता तात्कालिक लाभ के लिए देश को गद्दारों के हवाले करने का काम कर रहे है। भारत के सात राज्यों में तो हिन्दू अल्पसंख्य हो ही चुका है, अब सम्पूर्ण भारत की बारी है। हे भारत वंशियों अभी भी समय है चेत जाओं, वरना आने वाले समय में तुमको भयंकर यातनाओं का शिकार होना पडेगा और तुम्हारी बहन - बेटियों को जेहादी विधर्मीयों की रखैल बनकर रहना पडेगा, इसका इतिहास साक्षी है।
वन्दे मातरम्
जय माँ भारती ।
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