अटलजी : 'भारत रत्न'






                                             अटलजी का जीवन परिचय

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धूल और धुएँ की बस्ती में पले एक साधारण अध्यापक के पुत्र श्री अटलबिहारी वाजपेयी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री बने। उनका जन्म 25 दिसंबर 1925 को हुआ। अपनी प्रतिभा, नेतृत्व क्षमता और लोकप्रियता के कारण वे चार दशकों से भी अधिक समय से भारतीय संसद के सांसद रहे।

उनमें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की संकल्पशक्ति, भगवान श्रीकृष्ण की राजनीतिक कुशलता और आचार्य चाणक्य की निश्चयात्मिका बुद्धि है। वे अपने जीवन का क्षण-क्षण और शरीर का कण-कण राष्ट्रसेवा के यज्ञ में अर्पित कर रहे हैं। उनका तो उद्‍घोष है - हम जिएँगे तो देश के लिए, मरेंगे तो देश के‍ लिए। इस पावन धरती का कंकर-कंकर शंकर है, बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है। भारत के लिए हँसते-हँसते प्राण न्योछावर करने में गौरव और गर्व का अनुभव करूँगा।'

प्रधानमंत्री अटलजी ने पोखरण में अणु-परीक्षण करके संसार को भारत की शक्ति का एहसास करा दिया। कारगिल युद्ध में पाकिस्तान के छक्के छुड़ाने वाले तथा उसे पराजित करने वाले भारतीय सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए अटल जी अग्रिम चौकी तक गए थे।

उन्होंने अपने एक भाषण में कहा था - 'वीर जवानो! हमें आपकी वीरता पर गर्व है। आप भारत माता के सच्चे सपूत हैं। पूरा देश आपके साथ है। हर भारतीय आपका आभारी है।'

अटल जी के भाषणों का ऐसा जादू है कि लोग उन्हें सुनते ही रहना चाहते हैं। उनके व्याख्यानों की प्रशंसा संसद में उनके विरोधी भी करते थे। उनके अकाट्‍य तर्कों का सभी लोहा मानते हैं। उनकी वाणी सदैव विवेक और संयम का ध्यान रखती है। बारीक से बारीक बात वे हँसी की फुलझड़ियों के बीच कह देते हैं। उनकी कविता उनके भाषणों में छन-छनकर आती रहती है।

अटलजी का कवि रूप भी शिखर को स्पर्श करता है। सन् 1939 से लेकर अद्यावधि उनकी रचनाएँ अपनी ताजगी के साथ टाटक सामग्री परोसती आ रही है। उनका कवि युगानुकूल काव्य-रचना करता आ रहा है। वे एक साथ छंदकार, गीतकार, छंदमुक्त रचनाकार तथा व्यंग्यकार हैं।

यद्यपि उनकी कविताओं का प्रधान स्वर राष्ट्रप्रेम का है तथापि उन्होंने सामाजिक तथा वैचारिक विषयों पर भी रचनाएँ की हैं। प्रकृति की छबीली छटा पर तो वे ऐसा मुग्ध होते हैं कि सुध-बुध खो बैठते हैं। हिंदी के वरिष्ठ समीक्षकों ने भी उनकी विचार-प्रधान नई कविताओं की सराहना की है।

जन्म, बाल्यकाल और शिक्षा
उत्तर प्रदेश के आगरा जनपद के सुप्रसिद्ध प्राचीन तीर्थस्थान बटेश्वर में एक वैदिक-सनातन धर्मावलंबी कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार रहता था। श्रीमद्‍भगवतगीता और रामायण इस परिवार की मणियाँ थीं। अटलजी के पितामह प. श्यामलाल जी बटेश्वर में ही जीवनपर्यंत रहे किंतु अपने पुत्र कृष्ण बिहारी को ग्वालियर में बसने की सलाह दी। ग्वालियर में अटलजी के पिता पं. कृष्ण बिहारी जी अध्यापक बने। अध्यापन के साथ-साथ वे काव्य रचना भी करते थे। उनकी कविताओं में राष्ट्रप्रेम के स्वर भरे रहते थे। 'सोते हुए सिंह के मुख में हिरण कहीं घुस जाते' प्रसिद्ध पंक्ति उन्हीं की है। वे उन दिनों ग्वालियर के प्रख्यात कवि थे। अपने अध्यापक जीवन में उन्नति करते-करते वे प्रिंसिपल और विद्यालय-निरीक्षक के सम्मानित पर पर पहुँच गए। ग्वालियर राजदरबार में भी उनका मान-सम्मान था अटलजी की माताजी का नाम श्रीमती कृष्णा देवी था।

ग्वालियर में शिंदे की छावनी में 25 सितंबर सन् 1925 को ब्रह्ममुहूर्त में अटलजी का जन्म हुआ था। पं. कृष्ण बिहारी के चार पुत्र अवध बिहारी, सदा बिहारी, प्रेम बिहारी, अटलबिहारी तथा तीन पुत्रियाँ विमला, कमला, उर्मिला हुईं। परिवार भरा-पूरा था।

परिवार का विशुद्ध भारतीय वातावरण अटलजी की रग-रग में बचपन से ही रचने-बसने लगा। वे आर्यकुमार सभा के सक्रिय कार्यकर्ता थे। परिवार 'संघ' के प्रति विशेष निष्ठावान था। परिणामत: अटलजी का झुकाव भी उसी ओर हुआ और वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बन गए। वंशानुक्रम और वातावरण दोनों ने अटलजी को बाल्यावस्था से ही प्रखर राष्ट्रभक्त बना दिया। अध्ययन के ‍प्रति उनमें बचपन से ही प्रगाढ़ रुचि रही।

अटलजी की बी.ए. तक की शिक्षा ‍ग्वालियर में ही हुई। वहाँ के विक्टोरिया कॉलेज (आज लक्ष्मीबाई कॉलेज) से उन्होंने उच्च श्रेणी में बी.ए. उत्तीर्ण किया। वे विक्टोरिया कॉलेज के छात्र संघ के मंत्री और उपाध्यक्ष भी रहे। वादविवाद प्रतियोगिताओं में सदैव भाग लेते थे। ग्वालियर से आप उत्तरप्रदेश की व्यावसायिक नगरी कानपुर के प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र डी.ए.वी.कॉलेज आए। राजनीतिशास्त्र से प्रथम श्रेणी में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। एलएलबी की पढ़ाई को बीच में ही विराम देकर संघ के काम में लग गए।

पिता-पुत्र की कानून की पढ़ाई साथ-साथ
अटलजी और उनके पिता दोनों ने कानून की पढ़ाई में एक साथ प्रवेश लिया। हुआ यह कि जब अटलजी कानून पढ़ने डी.ए.वी.कॅलेज, कानपुर आना चाहते थे, तो उनके पिताजी ने कहा - मैं भी तुम्हारे साथ कानून की पढ़ाई शुरू करूँगा। वे तब राजकीय सेवा से निवृत्त हो चुके थे। अस्तु, पिता-पुत्र दोनों साथ-साथ कानपुर आए। उन दिनों कॉलेज के प्राचार्य श्रीयुत कालकाप्रसाद भटनागर थे। जब ये दोनों लोग उनके पास प्रवेश हेतु पहुँचे तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। दोनों लोगों का प्रवेश एक ही सेक्शन में हो गया। जिस दिन अटलजी कक्षा में न आएँ, प्राध्यापक महोदय उनके पिताजी से पूछें - आपके पुत्र कहाँ हैं? जिस दिन पिताजी कक्षा में न जाएँ, उस दिन अटलजी से वही प्रश्न 'आपके पिताजी कहाँ हैं?' फिर वही ठहाके। छात्रावास में ये पिता-पुत्र दोनों साथ ही एक ही कमरे में छात्र-रूप में रहते थे। झुंड के झुंड लड़के उन्हें देखने आया करते थे।

प्रथम जेल यात्रा
बचपन से ही अटल जी की सार्वजनिक कार्यों में विशेष रुचि थी। उन दिनों ग्वालियर रियासत दोहरी गुलामी में थी। राजतंत्र के प्रति जनमानस में आक्रोश था। सत्ता के विरुद्ध आंदोलन चलते रहते थे। सन् 1942 में जब गाँधी जी ने 'अँग्रेजों भारत छोड़ो' का नारा दिया तो ग्वालियर भी अगस्त क्रांति की लपटों में आ गया। छात्र वर्ग आंदोलन की अगुवाई कर रहा था। अटलजी तो सबके आगे ही रहते थे। जब आंदोलन ने उग्र रूप धारण कर लिया तो पकड़-धकड़ होने लगी।

कोतवाल, जो उनके पिताश्री कृष्ण बिहारी के परिचित थे, ने पिताजी को बताया कि आपके चिरंजीवी कारागार जाने की तैयारी कर रहे हैं। पिताजी को अटल जी के कारागार की तो चिंता नहीं थी, किंतु अपनी नौकरी जाने की चिंता जरूर थी। इसलिए उन्होंने अपने पुत्र को अपने पैतृक गाँव बटेश्वर भेज दिया। वहाँ भी क्रांति की आग धधक रही थी। अटलजी के बड़े भाई श्री प्रेमबिहारी उन पर नजर रखने के लिए साथ भेजे गए थे। अटलजी पुलिस की लपेट में आ गए। उस समय वे नाबालिग थे। इसलिए उन्हें आगरा जेल की बच्चा-बैरक में रखा गया। चौबीस दिनों की अपनी इस प्रथम जेलयात्रा के संस्मरण वे हँस-हँसकर सुनाते हैं।
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'भारत रत्न' को ही गौरवान्वित किया अटलजी ने

शुक्रवार, 27 मार्च 2015

देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेजी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। वह ना केवल एक राजनीतिज्ञ हैं, बल्कि एक महान कवि भी हैं। वाजपयी ने ढेरों कविताएं लिखीं। वे पत्रकार के रूप में भी सक्रिय रहे। वे इतने उच्च कोटि के वक्ता रहे हैं कि संसद में उनके भाषणों को पंडित नेहरू जैसे राजनीतिक विरोधियों ने भी सराहा। लम्बे समय तक राजनीति में रहे, लेकिन उन्होंने कभी किसी के बारे में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं कहा।

 संसदीय लोकतंत्र में एक विरोधी दल के नेता और बाद में एक प्रधानमंत्री के रूप में देश की सेवा की। अपने पूरे जीवन में अजातशत्रु रहने वाले अटलजी की ‍खूबियों और उपलब्धियों की एक लम्बी सूची है। अपने आचरण और व्यवहार में वे एक ऐसे व्यक्ति रहे जिसने कभी किसी को शिकायत का मौका नहीं दिया और अगर आज के नेताओं से उनकी तुलना करें तो पाएंगे कि उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में किसी तरह का आरोप लगाने का मौका नहीं दिया और पूरी तरह कबीर की भांति 'ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया' की तरह बेदाग रहे।

वाजपेयी के नेतृत्व की क्षमता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि वे एनडीए (राजग) सरकार के पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री के तौर पर 5 साल बिना किसी समस्या के पूरे किए। उन्होंने 24 दलों के गठबंधन से सरकार बनाई थी जिसमें 81 मंत्री थे, जिन्हें संभालना किसी विरले व्यक्ति का काम हो सकता है, लेकिन उन्होंने अपनी कविता 'हार नहीं मानूंगा' की तर्ज पर सदैव ही नीर-क्षीर विवेक से काम लिया।

अटलजी उन चंद लोगों में से एक हैं जिन्होंने भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी। इतना नही नहीं, वे वर्ष 1968 से 1973 तक वह उसके अध्यक्ष भी रहे थे। राजनीतिज्ञ वाजपेयी का एक और चेहरा अच्छे कवि और संपादक का भी है। उनकी कविताओं का संकलन 'मेरी इक्यावन कविताएं' शीर्षक से प्रकाशित हुआ। एक पत्रकार के तौर पर उन्होंने लंबे समय तक राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर-अर्जुन आदि पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया और समसामयिक मामलों पर अपने विचार रखे।

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर शहर  में हुआ था और उनकी प्रारंभिक शिक्षा भी ग्वालियर में हुई, लेकिन कॉलेज की पढ़ाई-लिखाई के लिए उन्हें कानपुर में रहना पड़ा। वे अपने कॉलेज के समय से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के स्वयंसेवक बन गए थे। डीएवी कालेज में पढ़ाई के दौरान उन्होंने राजनीति शास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। एलएलबी भी करना चाहते थे, लेकिन पढ़ाई बीच में ही छोड़कर राजनीति में पूरी तरह सक्रिय हो गए।

राजनीति में उनका पहला कदम अगस्त 1942 में रखा गया, जब उन्हें और बड़े भाई प्रेम को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 23 दिन के लिए गिरफ्तार किया गया। वर्ष 1951 में वे भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक बने। उन्होंने 1955 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। 1957 में जनसंघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया। इस प्रयोग का परिणाम यह रहा कि वे लखनऊ में चुनाव हार गए। दूसरे निवार्चन क्षेत्र मथुरा संसदीय क्षेत्र में तो उनकी ज़मानत भी ज़ब्त हो गई, लेकिन बलरामपुर (जिला गोण्डा, उत्तर प्रदेश) से चुनाव जीतकर वे लोकसभा पहुंचे थे।

वे 1957 से 1977 तक (जनता पार्टी की स्थापना तक) जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे। 1968 से 1973 तक उन्हें भारतीय जनसंघ के राष्टीय अध्यक्ष पदासीन होने का मौका मिला। देश में आपातकाल के बाद हुए आम चुनावों में वर्ष 1977 में पहली बार वाजपेयी गैर कांग्रेसी विदेश मंत्री बने। उस समय मोरारजी देसाई की सरकार थी। वह 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री रहे और इस दौरान संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में उन्होंने हिंदी में भाषण दिया। वे पहले ऐसे विदेश मंत्री थे, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था।

आपातकाल के बाद जिस जनता पार्टी का राजनीतिक जन्म हुआ था उसमें शुरू से ही राजनीतिक अस्थिरता और उठापटक का माहौल बना हुआ था। परिणाम स्वरूप उन्होंने 1980 में जनता पार्टी से असंतुष्ट होकर पार्टी छोड़ दी और भाजपा की स्थापना में मदद की। 1980 से 1986 तक उन्हें बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया और इसी दौरान वे बीजेपी संसदीय दल के नेता भी रहे। दो बार राज्यसभा के लिए भी निर्वाचित हुए। 16 मई 1996 को उन्हें पहली बार प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला, लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित न कर पाने के कारण 31 मई 1996 को उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद 1998 तक वह लोकसभा में विपक्ष के नेता बने रहे।

उनके  राजनीतिक जीवन से जुड़ा एक आश्चर्यजनक पहलू यह रहा है कि अटलजी नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए। वे सबसे लम्बे समय तक सांसद रहे हैं। उनकी दृढ़ता को इसी बात से जाना जा सकता है कि परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों की संभावित नाराजगी से विचलित हुए बिना उन्होंने परमाणु परीक्षण कर देश की सुरक्षा के लिए साहसी कदम भी उठाया। यह परमाणु परीक्षण वर्ष 1998 में राजस्थान में जैसलमेर जिले के पोखरण कस्बे के पास किए गए थे।

वाजपेयी जी को काव्य रचनाशीलता एवं रसास्वाद के गुण विरासत में मिले। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर रियासत में अपने समय के जाने-माने कवि और शिक्षक थे। उन्हें 1992 में पद्म विभूषण सम्मान, 1994 में लोकमान्य तिलक पुरस्कार, 1994 में श्रेष्ठ सांसद पुरस्कार और 1994 में ही गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार से सम्मानित किया गया। आज यानी 27 मार्च 2015 को उन्हें भारत रत्न का सम्मान दिया गया है, जिसके वे एक लम्बे समय से हकदार थे। वास्तव में, यह कहना गलत ना होगा कि भारत सरकार ने उन्हें पुरस्कार प्रदान कर भारत रत्न की ही गरिमा को बढ़ाया है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा को लोकसभा में पूर्ण बहुमत प्राप्त है, लेकिन स्वतंत्रता बाद के शुरुआती दिनों में भाजपा की पूर्ववर्ती भारतीय जनसंघ की स्थिति की कल्पना की जा सकती है। वर्ष 1957 की दूसरी लोकसभा में भारतीय जनसंघ के सिर्फ चार सांसद थे। जब इन सांसदों का परिचय तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एस. राधाकृष्णन से कराया गया तब राष्ट्रपति ने हैरानी व्यक्त करते हुए कहा था कि वह किसी भारतीय जनसंघ नाम की पार्टी को नहीं जानते। अटलजी उन चार सांसदों में से एक थे, जिन्हें राष्ट्रपति से मिलवाया गया था।

एक सांसद से देश के प्रधानमंत्री तक के सफर में अटलजी ने कई पड़ाव तय किए। नेहरू-गांधी परिवार के प्रधानमंत्रियों के बाद अटलबिहारी वाजपेयी का नाम भारत के इतिहास में उन चुनिंदा नेताओं में शामिल है, जिन्होंने केवल अपने नाम, व्यक्तित्व और करिश्मे के बूते पर सरकार बनाई और देश पर शासन किया।

अटल सरकार ने 11 और 13 मई 1998 को पोखरण में पांच भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट करके भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित कर दिया। इस कदम से उन्होंने भारत को निर्विवाद रूप से विश्व मानचित्र पर एक सुदृढ वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करने का काम किया। यह सब इतनी गोपनीयता से किया गया कि अति विकसित जासूसी उपग्रहों व तकनीकी से संपन्न पश्चिमी देशों को इसकी भनक तक नहीं लगी। यही नहीं, इसके बाद पश्चिमी देशों द्वारा भारत पर अनेक प्रतिबंध लगाए गए लेकिन वाजपेयी सरकार ने सबका दृढ़तापूर्वक सामना करते हुए आर्थिक विकास की ऊंचाइयों को छुआ।

अटलजी के कार्यकाल को पाकिस्तान से संबंधों में सुधार की पहल किए जाने के लिए याद किया जाएगा। 19 फरवरी, 1999 को सदा-ए-सरहद नाम से दिल्ली से लाहौर तक बस सेवा शुरू की गई। इस सेवा की शुरुआत करते हुए प्रथम यात्री के रूप में वाजपेयी जी ने पाकिस्तान की यात्रा करके नवाज़ शरीफ से मुलाकात की और आपसी संबंधों में एक नई शुरुआत की।

कुछ ही समय पश्चात पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज़ मुशर्रफ की शह पर पाकिस्तानी सेना व उग्रवादियों ने कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ करके कई पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लिया था। अटल सरकार ने पाकिस्तान की सीमा का उल्लंघन न करने की अंतरराष्ट्रीय सलाह का सम्मान करते हुए धैर्यपूर्वक किंतु ठोस कार्यवाही करके भारतीय क्षेत्र को मुक्त कराया। इस युद्ध में प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण भारतीय सेना को जान माल का काफी नुकसान हुआ और पाकिस्तान के साथ शुरू किए गए संबंध सुधार एकबार फिर शून्य हो गए।

उनके कार्यकाल में ही भारत भर के चारों कोनों को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना (अंगरेजी में- गोल्डन क्वाड्रिलेट्रल प्रोजेक्ट या संक्षेप में जी क्यू प्रोजेक्ट) की शुरुआत की गई थी। इसके अंतर्गत दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई व मुंबई को राजमार्ग से जोड़ा गया। वाजपेयी के कार्यकाल में ही एक सौ साल से भी ज्यादा पुराने कावेरी जल विवाद को सुलझाया गया।
   
संरचनात्मक ढांचे के लिए कार्यदल, सॉफ्टवेयर विकास के लिए सूचना एवं प्रौद्योगिकी कार्यदल, विद्युतीकरण में गति लाने के लिए केन्द्रीय विद्युत नियामक आयोग आदि का गठन उनके ही शासन काल में हुआ। राष्ट्रीय राजमार्गों एवं हवाई अड्डों का विकास शुरू कराया गया और नई टेलीकॉम नीति तथा कोंकण रेलवे की शुरुआत करके बुनियादी संरचनात्मक ढांचे को मजबूत करने वाले कदम उठाए गए।

वाजपेयी के 90 साल के होने के एक दिन पहले उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा 24 दिसंबर, 2014 को की गई थी। उम्र से जुड़ी बीमारियों के कारण वे इन दिनों सार्वजनिक जीवन से दूर हैं। एक राजनेता के रूप में वाजपेयी की सराहना की जाती है और अक्सर उनका जिक्र भाजपा के एक उदारवादी चेहरे के रूप में होता है।






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