एस बैंड घोटाला : देश कि सुरक्षा के बड़ी लापरवाही



- अरविन्द सीसोदिया 
    मेरे एक मित्र हैं शालीन गुप्ता , उन्होंने मुझस टेलीफोन कर बताया कि यह जो आवंटन हुआ है वह तो देश के लिए बहुत ही खतरनाक है , इस से देश के परमाणु ठिकानें भी खतरे कि जद में आ गये हैं ...! देश के किसी भी कोनें की कोई भी बात जानी जा सकती है .., यह दुर्लभ तरंगें किसी को भी सार्वजनिक करने से पहले बहुत ही गहन विचार और सुरक्षा सम्बन्धी जांच पड़ताल की जाती है !
   मैनें इस संदर्भ में जब नेट पर पड़ताल कि तो मेरे सामनें दैनिक भास्कर . कॉम की एक रिपोर्ट सामनें आई जो यथावत यहाँ प्रस्तुत है ...
  सबसे दुःख और आश्चर्य की बात यह है कि देश कि सुरक्षा के प्रती इतनी  बड़ी लापरवाही एक प्रधानमंत्री के द्वारा हो ...? आज का असल सवाल यही है की असली राज नेता और जबरिया बनाये गये राजनेता में जो अनुभव , योग्यता और परिपक्वता का अंतर होता है वह इस सरकार में स्पष्ट अभाव के रूप में दिख रहा है ...! फॉरेन इंवेस्टमेंट प्रोमोशन बोर्ड द्वारा 74 प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति देवास के पास है।


http://www.bhaskar.com/article/nat-s-band-scam-isuue-of-national-security-1830697.html

     एस बैंड घोटाला : परमाणु ठिकानों पर भी खतरा 
नई दिल्ली. 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के बाद सामने आ रहे नए घोटाले को जानकार देश की सुरक्षा के लिए भी बड़ा खतरा बता रहे हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह ने दैनिक भास्‍कर.कॉम से बातचीत में कहा कि एस बैंड स्‍पेक्‍ट्रम इस तरह निजी कंपनी को दिया जाना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकता है। उनका मानना है कि इसके जरिए दुश्मन देश आपके परमाणु ठिकानों समेत तमाम अहम जगहों पर नजर रख सकता है। उनके मुताबिक ऐसी तकनीक के जरिए आसानी से जासूसी की जा सकती है।
        वहीं पीएमओ ने इस मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि इस घोटाले की जो भी रिपोर्ट आ रही हैं वे बिलकुल आधारहीन हैं और सरकार ने एस-बैंड के आवंटन पर कोई फैसला नहीं लिया था। घोटाले में हुए नुकसान को भी पीएमओ ने गलत बताया है और कहा है कि इस मामले में रेवेन्यू में किसी भी तरह के नुकसान का सवाल ही नहीं उठता।

        दरअसल, देवास मल्टीमीडिया को आवंटित हुए 70 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम के जरिए दूर-दराज के इलाकों में भी अपनी पहुंच बढ़ाई जा सकती है। दूरदर्शन ने देश के दूरदराज के इलाकों में अपना प्रसारण पहुंचाने के लिए इस स्‍पेक्‍ट्रम और तकनीक का इस्तेमाल किया था। इस स्पेक्ट्रम के जरिए तकरीबन पूरे देश में संपर्क किया जा सकता है, इसलिए यह मामला सिर्फ सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाने का नहीं है बल्कि इससे राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा भी सीधे तौर पर जुड़ा है।
       आरोप है कि देवास मल्‍टीमीडिया को बिना नीलामी के स्‍पेक्‍ट्रम आवंटित कर दिए गए और सुरक्षा संबंधी संवेदनशील नियमों की भी अनदेखी की गई। सीएजी को संदेह है कि एस -बैंड स्पेक्ट्रम आवंटन में सरकारी खजाने को करीब दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचा है। इस रकम के जरिए सरकारी घाटे को कम किया जा सकता था जो इस साल करीब ३.८० लाख रुपये का है। हालांकि, सीएजी की यह रिपोर्ट अभी पूरी नहीं है।                            डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस ने कहा है कि अंतरिक्ष और देवास टेलीकम्युनिकेशन के बीच हुई डील पर जल्द ही फैसला लिया जा सकता है। डिपार्टमेंट का कहना है कि ऑडिटिंग चल रही है। डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस सीधे तौर पर प्रधानमंत्री के तहत आता है। इसलिए एस बैंड स्पेक्ट्रम घोटाले में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह पर सवाल उठ रहे हैं। मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी ने इस मामले में डॉ. मनमोहन सिंह को घेरा है। 
      अंतरिक्ष विभाग और इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) संदेह के दायरे में हैं, जिन पर आरोप है कि उन्होंने बिना नीलामी के बैंड एक निजी कंपनी को आवंटित किया। बीजेपी ने इस घोटाले की पूरी जांच करवाने की मांग की है। 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला केवल 1.7 लाख करोड़ रुपयों का है। देवास मल्टीमीडिया इसरो से जुड़ी कंपनी अंतरिक्ष के साथ मिलकर सेटेलाइट ब्रॉडबैंड सर्विस मुहैया कराने का काम करती है। सरकार ने पिछले साल थ्री जी मोबाइल सर्विस के लिए 15 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम की नीलामी से 67,719 करोड़ रुपये कमाए थे। सरकार को ब्रॉडबैंड वायरलेस एक्सेस सर्विस के स्पेक्ट्रम की नीलामी से 38,000 करोड़ रुपये की आमदनी हुई। ऑपरेटरों ने इस स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल 4 जी मोबाइल सेवा में करने का प्रस्ताव दिया।
      सीएजी ने 2005 में इसरो द्वारा इस संबंध में किए गए करार की जांच शुरू कर दी है। यह करार इसरो की ही एक शाखा एंट्रिक्स कार्पोरेशन लिमिटेड ने निजी कंपनी देवास मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड के साथ करीब 600 करोड़ रुपए में किया गया।  इस कंपनी को इस करार से जबर्दस्त लाभ हुआ। इस कंपनी के डायरेक्टर डॉ. एमजी चंद्रशेखर हैं, जो पहले इसरो में ही वैज्ञानिक थे।  2010 में केंद्र सरकार को 3जी मोबाइल सर्विस के लिए केवल 15 मेगाहर्ट्ज की नीलामी पर 67,719 करोड़ रुपए मिले थे।
       इस डील के बाद देवास मल्टीमीडिया को ब्राडबैंड स्पेक्ट्रम के कुल 2500 मेगाहर्ट्ज बैंड में से 70 मेगाहर्ट्ज बैंड मिले। ये बैंड पहले दूरदर्शन के पास थे जो सैटेलाइट और इन 70 मेगाहर्ट्ज बैंड की मदद से देशभर में अपने कार्यक्रम प्रसारित करता था। वर्तमान में इनकी कीमत काफी ज्यादा है।
        सीएजी को शंका तब हुई, जब उन्हें पता चला कि इसरो ने पहले दिए कांट्रेक्ट्स में स्पेक्ट्रम को दूसरी कंपनी को किराए पर न दिए जाने की शर्त हमेशा रखी लेकिन इस कांट्रेक्ट में ऐसी कोई शर्त नहीं रखी गई।इस करार के माध्यम से एस बैंड, जिसकी रेंज 2500 से 2690 मेगाहर्ट्ज के बीच है, पहली बार निजी क्षेत्र के लिए खोला गया। सीएजी को पुख्ता जानकारी है कि करार करने में न केवल इसरो के नियमों का उल्लंघन किया गया बल्कि प्रधानमंत्री दफ्तर, कैबिनेट और स्पेस कमीशन को भी अंधेरे में रखा गया। 
दो महीने से चल रही है डील रद्द करने की प्रक्रिया
        सरकार से जुड़े सूत्रों के मुताबिक देवास मल्टीमीडिया के साथ हुए इस समझौते को रद्द करने की प्रक्रिया पिछले दो महीने से चल रही है। सूत्रों का कहना है कि इसरो प्रमुख के. राधाकृष्णन ने इस बाबत प्रधानमंत्री कार्यालय को चिट्ठी लिखकर डील को रद्द किए जाने की मंग की है। टेलीकम्यूनीकेशंस विभाग के उच्च अधिकारियों के मुताबिक देवास मल्टीमीडिया को ब्रॉडबैंड सेवाओं के परीक्षण करने के लिए दिए गए स्पेक्ट्रम को जल्द ही वापस ले लिया जाएगा। अगर ऐसा होता है तो देवास को स्पेक्ट्रम के इस्तेमाल के लिए पूर्ण तौर पर लाइसेंस के लिए आवेदन करना पड़ेगा। देवास ने अपने ब्रॉडबैंड सेवाओं के लिए ट्रायल स्पेक्ट्रम के लिए आवेदन किया था। देवास मल्टीमीडिया ने कहा, नहीं हुआ कोई घोटाला देवास मल्टीमीडिया कंपनी ने कहा है कि उन्हें अभी तक किसी भी तरह के कोई कांट्रेक्ट आवंटित होने के संबंध में कोई अधिकृत जानकारी नहीं मिली है। कंपनी के अनुसार उनके पास कोई स्पेक्ट्रम नहीं हैं और वे जो भी सेवाएं देंगे, वह इसरो से लीज पर लिए गए सैटेलाइट ट्रांसपोंडर की मदद से देंगे। इस परिस्थिति में सैटेलाइट और स्पेक्ट्रम, दोनों इसरो के ही होंगे, कंपनी केवल उनका इस्तेमाल करेगी।   
क्या है एस-बैंड       न्यू यॉर्क के इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर्स (आईईईई) के मुताबिक एस बैंड उन रेडियो तरंगों को कहते हैं जिनकी फ्रीक्वेंसी दो से चार गीगा हर्ट्ज के बीच हो। एस बैंड का प्रयोग मौसम रडार, समुद्र तल पर मौजूद जहाज के रडार और सूचना के भेजने और पाने से संबंधित सैटेलाइटों में किया जाता है, खासतौर पर वे जो नासा द्वारा स्पेस शटल और अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन से संपर्क करने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं। इस १० सेमी रडार के सबसे छोटी बैंड की सीमा भी 1.55 से 5.2 गीगा हर्ट्ज तक की होती है। 
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daenik bhaskar .com 
http://www.bhaskar.com/article/NAT-what-is-devas-multimedia-1827870.html
देवास मल्टीमीडिया बंगलुरू में 2004 में स्थापित की गई थी। इसके अध्यक्ष डॉ. एम.जी. चंद्रशेखर हैं जो कि इसरो के पूर्व वैज्ञानिक सचिव रह चुके हैं। इससे पहले वे एक सैटेलाइट रेडियो कंपनी वर्ल्ड स्पेस के भी मैनेजिंग डायरेक्टर भी रह चुके हैं। यह कंपनी भारत में पिछले साल बंद कर दी गई थी।
 2008 में डॉच्चे टेलीकॉम ने देवास में 17 प्रतिशत की हिस्सेदारी के लिए 75 मिलियन डॉलर का निवेश किया। अंतरराष्ट्रीय निवेशकों में कोलंबिया कैपीटल और टेलीकॉम वेन्चर्स ने भी पैसा लगाया। देवास के बोर्ड ऑफ  डायरेक्टर्स में नासकॉम के पूर्व प्रेसिडेंट किरन कारनिक, वेरिज़ोन कंपनी के पूर्व उपाध्यक्ष लैरी बाबियो और एक्स एम सिरियस सैटेलाइट के पूर्व चेयरमैन गैरी पारसन्स शामिल हैं।  
क्या है प्लान 
देवास अपनी सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवाएं भारत भर में विभिन्न प्लेटफॉर्म पर देता है जिसमें मोबइल कंपनियां भी शामिल हैं। देवास का दावा है कि उनके पास अपना पोर्टेबल डिवाइस है जो एक वाई-फाई राउटर की तरह काम करता है। कंपनी भारतीय रेलवे के साथ भी कुछ सेवाओं के लिए बातचीत कर रही है, जैसे कि रियल-टाइम स्पॉटिंग और भिडंत बचाव के लिए सेवाएं। कंपनी का दावा है कि इन सेवाओं का सफलतापूर्वक परीक्षण 2009 और 2010 में किया जा चुका है।
कैसे हुई थी डील
28 जनवरी 2005 को देवास मल्टीमीडिया और इसरो की कमर्शियल इकाई, एंट्रिक्स के साथ हुए एक समझौते के अंतर्गत एंट्रिक्स को देवास एस बैंड ट्रांसपोंडर कैपेसिटी को लीज़ पर देगा जिसका इस्तेमाल जी सैट-6 और जी-सैट-6ए के लिए किया जाना था। इस समझौते के अंतर्गत ट्रांसपोंडर्स के अलावा 2500 मेगा हर्टज के स्पेक्ट्रम बैंड में से 70 मेगा हर्टज बैंड का इस्तेमाल देवास कर सकता है। देवास मल्टीमीडिया सेटेलाइट और टेरेस्ट्रियल नेटवर्क द्वारा एक ब्रॉडबैंड सेवा लांच करने की योजना भी बना रहा है।
क्या था समझौता
समझौते के अनुसार देवास मल्टीमीडिया प्री-लांच कैपेसिटी रिज़र्वेशन के लिए 40 मिलियन डॉलर और सैटेलाइट कैपेसिटी की लीज़ के लिए 250 मिलियन डॉलर की रकम देगा। देवास के मल्टीमीडिया बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में इसरो/ एंट्रिक्स का एक प्रतिनिधि शामिल है। सेवाएं चालू हो जाने के बाद दोनों ही कंपनियां होने वाली कमाई को शेयर करेंगे। एक बार सेवाएं शुरू हो जाने के बाद कंपनी 500 से 750 मिलियन डॉलर का और निवेश करने का विचार बना रही है।
कब लांच होंगी ये सेवाएं
भारत से दो नए सैटेलाइट 2010 में लांच किए जाने थे पर इसमें देरी हो गई। अब इसरो जीसैट-6 को एरिएनस्पेस नाम की एक यूरोपियन कंपनी द्वारा लांच करवाने की योजना बना रही है क्योंकि समझौते के अनुसार देरी हो जाने पर देवास मल्टीमीडिया को दंड दिए जाने का प्रावधान है। देवास का कहना है कि वो सैटेलाइट के लग जाने पर लांच करने के लिए बिलकुल तैयार हैं।    क्या देवास के पास ज़रूरी अनुमति है? 
देवास के पास इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर लाइसेंस है। फॉरेन इंवेस्टमेंट प्रोमोशन बोर्ड द्वारा 74 प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति देवास के पास है। डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकॉम द्वारा ट्रायल स्पेक्ट्रम और फुल लाइसेंस का आवेदन करने के लिए अनुमति भी है। पर देवास को सैटेलाइट आधारित सेवाओं के लिए ग्लोबल मोबाइल पर्सनल कम्यूनिकेशन बाई सैटेलाइट का लाइसेंस लेना पड़ सकता है। साथ ही यह भी साफ नहीं है कि देवास के पास बिना अतिरिक्त पैसे दिए टेरेस्ट्रियल स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल करने की अनुमति है या नहीं।  

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