मानवता पर विभत्स अत्याचार : मानव अंगों का व्यापार : Against the organ trade

- अरविन्द सीसोदिया
  
     बच्चों और किशोरों के अपहरण का सबसे बड़ा कारण मानव अंगों का व्यापार माना जाता है। भारत में हर साल करीब पैंतालीस हजार बच्चों का कोई सुराग नहीं मिलता है, संख्या इस से भी अधिक ही होगी!  एक अनुमान के मुताबिक इनमें से एक चौथाई बच्चे मार दिए जाते है और उनके अंग निकाल लिए जाते है, मानव अंगों के प्रत्यारोपण में यह अवैध कारोबार जम कर होता है , जो संम्पन्न और सक्षम लोगों के हित में  होता है !! एक टी बी चॅनल बता रहा था कि एक बचे का प्राथमिक दाम ६ से १० हजार और लड़की का प्राथमिक दाम १८ से २५ हजार रूपये होते हैं ..! यह तो उस व्यक्ती को मिलते  हैं जो बस स्टेंड या रेलवे स्टेशन  से घर से भागे या लावारिश बच्चों को मुख्य गिरोह तक पहुचाते हैं ..! मुख्य गिरोह मांग और उपयोगिता के हिसाब से इनसे कमाता है ...!  

      मानव अंगों के अवैध कारोबार में दुनिया में गुर्दो की सबसे ज्यादा मांग है। इनका सौदा चालीस हजार से पचास हजार डॉलर में होते है। मानव अंगों के सौदागर लीवर के सौदे एक से डेढ़ लाख डॉलर में करते है। इनके ज्यादातर खरीददार यूरोप और अन्य विकसित देशों के मरीज होते है, जबकि बेचने वाले एशिया के गरीब मुल्कों के गरीब लोग या अपहरण  कर लिए गये लोग हैं । अब हालांकि कृत्रिम घुटना उपलब्ध है, लेकिन उसमें भी घुमाव की सीमाएं है। इसलिए मानवीय घुटने के खरीददार मिल ही जाते है। इसी प्रकार से नेत्र के हिस्सों की भी मांग रहती है। दलाल इसके लिए दस-बीस हजार डॉलर वसूलते है। हृदय वाल्व कृत्रिम रूप से भी बना लिए गए है और पूर्ण हृदय प्रत्यारोपण के मामले ज्यादातर सफल नहीं हो पाए है, फिर भी दिल का सौदा एक लाख डॉलर से ऊपर ही होता है।
         सस्ती आई.टी. सेवाओं की तरह ही मानव अंगों की आउटसोर्सिग में भी भारत दुनिया के धनी देशों के लोगों की पसंदीदा जगह है। यहां हर अंग के प्रत्यारोपण की सस्ती सुविधा उपलब्ध है। इसलिए ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, ब्रिटेन से लेकर सउदी अरब, कुवैत, ओमान, संयुक्त अरब अमीरात आदि देशों से बड़ी संख्या में लोग अंग खरीदने भारत आते है। 
         एक अनुमान के मुताबिक भारत में हर साल खरीद-फरोख्त के जरिए अवैध रूप से तीन हजार गुर्दे, एक सौ लीवर और बड़ी संख्या में पैंक्रियाज व कॉर्निया प्रत्यारोपित किए जाते है। मानव अंगों का व्यापार स्टेम सेल रिसर्च के लिए भी होता है। पश्चिमी देशों में गुर्दा प्रत्यारोपण काफी मंहगा है। वहां प्रत्यारोपण का औसत खर्च एक लाख से डेढ़ लाख  डॉलर से ज्यादा होता है, लेकिन भारत में यह काम बीस - पच्चीस  हजार डॉलर में हो जाता है। भारत में किडनी की कीमत पचास  हजार रुपए से लेकर पांच  लाख तक लगाई जाती है।

     भारत में मानव अंगों के अवैध व्यापार को रोकने के लिए मानव अंग प्रत्यारोपण कानून 1994 में बनाया गया था। 1994 में बने कानून के मुताबिक करीबी रिश्तेदार या दोस्त मरीज के साथ भावनात्मक जुड़ाव के आधार पर ही अपना अंगदान कर सकता है, उसकी खरीद-फरोख्त नहीं हो सकती है। कानून की खामियों का लाभ उठाकर धनी लोग किसी जरूरतमंद को रिश्तेदार या दोस्त बनाकर अंगदान करवा लेते है। ऐसे मामलों में अंगदान करने वालों को भी पचास हजार से एक लाख रुपए तक मिलते है। दूसरा तरीका जबरन मानव अंग हासिल करने का है।
     आधुनिक चिकित्सा तकनीक ने इस काम को बेहद आसान कर दिया है। साइक्लोस्पोरिन नामक दवा के जरिए यह संभव हो गया है कि किसी व्यक्ति का कोई भी अंग दूसरे व्यक्ति के शरीर में लगाया जा सकता है और वह भलीभांति काम भी करता है। इस दवा के बाजार में आने के बाद ही भारत, चीन और फिलीपींस जैसे देशों में जाकर अंग प्रत्यारोपण करवाने वाले विदेशियों की संख्या में अचानक इजाफा हुआ। इसे रोकने के लिए 1994 में भारत में कानून भी बनाया गया।

चीन में मृत्युदंड पाए कैदियों के अंगों का वैध्य व्यापार 
        इसी तरह एक पत्रकार रूपर्ट विंगफील्ड ने चीन की जेलों में चल रहे अंग व्यापार का खुलासा किया था। तियानजिन सेंट्रल अस्पताल के पदाधिकारियों ने उसके पिता के लिए लीवर दिलवाने के लिए 94,400 डॉलर में सौदा किया था। इस मामले में और पड़ताल करने पर पता चला कि चीन की जेलों में हर साल मौत की सजा पाए कैदियों और अन्य के दो से तीन हजार अंग बेचे जाते है। दरअसल चीन ने मौत की सजा पाए अपराधियों के अंगों की बिक्री का कानून बनाया है। एमनेस्टी इंटरनेशनल के आंकड़ों के मुताबिक चीन में औसतन प्रतिवर्ष एक हजार से बारह सौ लोगों को मौत की सजा दी जाती है। अनाधिकृत आंकड़ों के मुताबिक चीन में हर साल लगभग साढ़े चार हजार लोगों को मौत की सजा होती है और इनमें से करीब तीन हजार के सभी महत्वपूर्ण अंग बेचे जाते है। यह काम सरकार की देख-रेख में दक्ष डॉक्टर करते है। जिनके पास पैसा है वे कानूनी रूप से हर अंग चीन से प्राप्त कर सकते है, लेकिन वहां यह काम भारत के मुकाबले मंहगा होता है। चीन में अंगों की अधिकारिक कीमत लगभग इस प्रकार है: लीवर 12 लाख रुपए, किडनी 8 लाख रुपए, कॉर्निया और पैंक्रियाज 2 लाख रुपए।
           दुनिया भर में मानव अंगों के व्यापार पर नजर रखने और इसे रोकने के लिए ऑर्गन वॉच नामक संस्था के वैश्विक सर्वेक्षण से पता चला है कि जिन देशों में मानव अंगों का अवैध व्यापार सबसे अधिक होता है, उनमें भारत भी है। इनमें अर्जेटाइना, ब्राजील, क्यूबा, इस्त्राइल, तुर्की, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका और ब्रिटेन भी शामिल है। मृतकों से चोरी-छिपे अंग निकालने का धंधा सबसे अधिक अर्जेटाइना और दक्षिण अफ्रीका में होता है। ईरान में गुर्दो का व्यापार वैध है। वहां यह काम सरकार द्वारा मंजूरी प्राप्त दो एन.जी.ओ. चैरिटी एसोसिएशन फॉर द सपोर्ट ऑफ किडनी पेशेंट और चैरिटी फाउंडेशन फॉर स्पेशल डिजीज करते है। ये संस्थाएं मरीज और अंगदाता को मिलाती है और प्रत्यारोपण सुनिश्चित करती है। इसमें दाता को सरकारी फंड से पैसा दिया जाता है।
मोल्दोवा के रोंगटे खड़े करने वाले मामले
       जर्मनी की न्यूज एजेंसी डी.पी.ए. ने फरवरी 2007 में खुलासा किया था कि मोलदोवा से बड़े पैमाने पर पूरी दुनिया में मानवीय अंगों की तस्करी हो रही है। यहां हर 6 मिनट में किसी न किसी का अंग निकालकर बेचा जा रहा है। मोलदोवा पहले सोवियत संघ का हिस्सा था, अब दुनिया का सबसे गरीब देश है। यहां की अस्सी फीसदी आबादी की आमदनी प्रतिदिन एक डॉलर से कम है। आबादी की बड़ी संख्या अंग बेचकर या देह व्यापार से अपनी रोजी-रोटी चलाती है।
---- [ नरेन्द्र देवांगन,लेखक ]




गुर्दे का गोरख धंधा
[ अभिषेक सिंह, लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं ]

देश में अवैध रूप से चल रहे गुर्दा प्रत्यारोपण मामले के प्रकाश में आने के बाद से इससे जुड़े धंधे और उसमें संलिप्त लोगों का पता चलने के साथ-साथ यह भी पता चल रहा है कि पैसे के लिए लोग क्या कुछ नहीं करते। किडनी ट्रांसप्लांट का यह कोई पहला मामला नहीं है। पिछले कई वर्षो से ऐसे कई कारनामे उजागर होते रहे है, पर एक बार मामला ठंडा पड़ने के बाद इनसे जुड़े गिरोह फिर सक्रिय हो जाते हैं और इसी तरह गरीबों को अनजाने या लालच देकर अपना गुर्दा गंवाने को मजबूर किया जाने लगता है। आखिर क्यों बार-बार ये घटनाएं हो रही है और क्यों नहीं अवैध ढंग से चल रहे इस कारोबार पर रोक लग पा रही है? जब हम समस्या की गहराई में जाकर पड़ताल करते है तो इसकी कुछ स्पष्ट वजहे समझ में आती है। अवैध अंग प्रत्यारोपण पर रोक लगाने के लिए देश में 'ट्रांसप्लांटेशन आफ ह्युमन आर्गन्स एक्ट 1994' लागू है। इस कानून का मकसद चिकित्सा जरूरतों के लिए मानव अंगों को निकालने, स्टोर करने और ट्रांसप्लांट करने की प्रक्रिया को रेगुलेट करते हुए उनके कारोबार पर रोक लगाना है। इसके अंतर्गत किडनी ही नहीं, शरीर के किसी भी अंग का व्यापार गैर-कानूनी है। पैसे के लिए अंग बेचना एक ऐसा जुर्म है जिसके लिए कैद और जुर्माना हो सकता है, पर यह कानून कुछ खामियों के चलते कारगर नहीं हो पा रहा है। इसकी सबसे अहम खामी यह है कि इस कानून का उल्लंघन संज्ञेय अपराध नहीं है। दूसरे, करीबी रिश्तेदारों को ही नहीं, बल्कि इस कानून में लगाव और स्नेह के आधार पर गैर रिश्तेदारों को भी अंगों के प्रत्यारोपण की छूट है। यह छूट इसलिए दी गई है ताकि मरीजों को अपने करीबी लोगों से दान में अंग मिल सकें। यानी अगर अंग प्रत्यारोपण के लिए पैसे का लेन-देन नहीं हुआ है तो ऐसे ट्रांसप्लांट की इजाजत है, पर किडनी का कारोबार इस छूट का फायदा उठाता रहा है। अंगदान करने वाले व्यक्ति और मरीज के असली रिश्ते क्या है, दानकर्ता और मरीज कितनी दूर बसे हुए है, इस बाबत कई सवाल और संदेह उठने चाहिए, लेकिन आम तौर पर ऐसा नहीं होता और यह कारोबार चलता जाता है। दलाल पहले से ही डोनर और मरीज को सिखा-पढ़ा कर तैयार कर देते है। कई बार दानकर्ता व्यक्ति यह भरोसा दिलाता है कि उसने मरीज के साथ कई साल तक एक साथ काम किया है और वह उसके परिवार की मदद करना चाहता है। ऐसे कई मामले गरीबों के शोषण को बयान करते हैं। हाल में उजागर किडनी रैकेट के अहम मुखिया अमित के शिकार बने बरेली निवासी अकरम रजा खान का मामला ऐसे ही शोषण की गवाही देता है। अकरम को नौकरी का झांसा दिया गया और मेडिकल जांच के बहाने उसकी किडनी निकाल ली गई। इस गोरखधंधे के खात्मे के कुछ हल तो है, पर उनमें से कई में कानूनी पेचीदगियां है। गौरतलब है कि मानव अंगों में किडनी की मांग सबसे ज्यादा है और इस मांग को पूरा करना मुश्किल हो रहा है। पूरी दुनिया में हर साल साढ़े चार लाख मरीजों को विभिन्न अंगों की जरूरत होती है, पर भारत में पिछले दस साल में महज 35 हजार मरीजों का आर्गन ट्रांसप्लांट हो सका है। हर साल औसतन तीन हजार मरीज वक्त रहते अंग नहीं मिल पाने के कारण जान गंवा देते है। चूंकि मांग की तुलना में किडनी की आपूर्ति बेहद कम है और अंगदान की स्वस्थ परंपरा हमारे देश में विकसित नहीं हो पाई है इसलिए किडनी के सौदागर इस हालत का फायदा उठा रहे है। इस समस्या का सबसे वाजिब हल यही है कि मृत्यु के बाद आंखों की तरह किडनी के दान का भी अभियान चले। तभी किडनी की कमी और इसकी सौदेबाजी भी खत्म हो सकती है। एक अहम बात और है। हमारा देश मेडिकल टूरिज्म के केंद्र के रूप में विकसित होने लगा है। कम खर्च में बेहतर इलाज की आस लिए विदेशों से हजारों मरीज हर साल यहां आने लगे है। जाहिर है, इनमें से बहुत से मरीज किडनी या फिर अपना कोई और अंग बदलवाने की नीयत से यहां आते होंगे और चोरी-छिपे अवैध रूप से वे यह काम करवाते ही होंगे, इसलिए अच्छा हो कि संबंधित कानून में वे तब्दीलियां लाई जाएं जिनसे अंगदान का वास्तव में इच्छुक व्यक्ति अपने अंग ऐसी जरूरतों के लिए उपलब्ध करा सके। ब्रेन-डेड व्यक्ति के शरीर से उसकी इच्छा और पूर्व अनुमति के आधार पर उसके उपयोगी अंग लिए जा सकें, इसके लिए समाज में पर्याप्त जागरूकता की भी जरूरत है। हमारे देश में सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों का आंकड़ा बहुत बड़ा है। हर साल करीब 1.6 लाख लोगों की मृत्यु सड़क दुर्घटना में होती है। ऐसे में अगर अंगदान एक व्यापक अभियान बन सके तो जीवन गंवा चुके व्यक्ति के अंग समाज के काम आ सकते है।
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FRIDAY, FEBRUARY 01, 2008
Organ Trafficking Exposed in India
From the BBC:
Police in India have issued an alert for a doctor alleged to be involved in an organ trading racket.Last week, police in Gurgaon, a suburb of the capital Delhi, raided a house which was used to carry out illegal kidney transplants. Hundreds of poor labourers were tricked into selling kidneys, officials says. 
Trade in human organs is banned in India but many continue to sell their kidneys to clients, including Westerners, waiting for transplants. 
Gurgaon is an affluent suburb of Delhi, home to high-rise apartment blocks and call centres. It is here, in a nondescript house, that many poor labourers were lured from across northern India and bribed into selling their kidneys, according to the police. For this they were allegedly paid up to $2,500. 
The clients are said to be wealthy Indians, and even some foreign visitors, who were in urgent need of a kidney transplant and willing to pay large sums for it. Last week, the police raided the illegal clinic after being tipped-off by a victim. Four people were arrested but the main person alleged to be behind the racket, a doctor, is missing. 
Gurgaon police commissioner Mohinder Lal told the BBC that an alert had been sounded at airports to prevent him from leaving the country. He said police also planned to approach Interpol to issue a warrant for his arrest. 
Despite banning the trade in human organs, India continues to be one of the major centres of the trade.

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