यानी कि गठबंधन प्रधानमंत्री को चोरों का राजा होना चाहिए ...
- अरविन्द सिसोदिया
हाल ही में दृश्य मीडिया से बातचीत करते हुए देश के प्रधानमंत्री ने अपनी राजनैतिक अपरिपक्वता से देश - दुनिया को फिर से परिचित करवाया ..! इससे देश की इज्जत को अनावश्यक ही बट्टा लगा है !!
एक सहजं प्रश्न हो सकता है ...कैसे ...?
उन्होंने सारे प्रश्नों के जबाव .., एक प्रधानमंत्री के रूप न देकर , एक नौकरशाह या वेतन भोगी मुख्य कार्यकारी अधिकारी की तरह दिए ..! जिससे स्पष्ट झलकता है कि उनमें एक प्रधानमंत्री का न तो जज्वा है न ही आत्मविश्वास बल्की वे इतने चिंता मुक्त हैं कि उन्हें देश के हित और नुकसान से जैसे कोई लेनादेना ही नहीं है ! जो हो जाये वही ठीक ..! उन्हें एक अबोध बच्चे की तरह यह ज्ञात नहीं है की वे जिस आग से खेल रहे हैं उसमें देश जल सकता है , उसकी व्यवस्था छिन्न - भिन्न हो सकती है ! जनता भड़क उठी तो जान के लाले पड सकते हैं , कई देशो में इसी तरह के भ्रष्टाचार के विरुद्ध जन विद्रोह हो चुकें हैं !
१- गठबंधन की मजबूरी के नाम पर देश के खजानें को लुटावा देनें का अधिकार किसी भी प्रधानमंत्री को नहीं है ! कोई भी विभाग किसी भी घटक दल को चलाने दिया जा सकता है , बेंचनें नहीं ..! प्रधानमंत्री ने परोक्ष रूप से यही कहा है की वे भ्रष्टाचार की छूट देकर सरकार चला रहे हैं ...!
२- उनका पूरा जबावी रोल इस तरह का रहा की मानों वे तो छाया प्रधानमंत्री हों ; असल जिम्मेवारी या जबावदेही किसी ओर की है ...!
३- प्रधानमंत्री के ओर अपराध माफ़ कर भी दिए जाएँ तो उन्हें इतिहास में दो महत्व पूर्ण गलतियों को स्वीकारने के लिए कभी माफ़ नहीं किया जाएगा - एक तो जम्मू ओर कश्मीर में फिर से सत्त्गत अलगाव वाद स्थापित करने के लिए ..! दूसरा सरकार के उस खजानें में जो जनता के हित के लिए है सत्ता के द्वारा अति सम्पन्न लोगों के लिए लुटवानें में ..!! प्रधानमंत्री सहायक बनें ...!!
कोई प्रधानमंत्री अगर अपनी व्यक्तिगत छवि को सरकार की छवि से अलग मानते हुए हर वक्त अग्निपरीक्षा देने की तैयारी दिखाता है तो वह डॉ. मनमोहन सिंह हो जाता है। अत: माना जा सकता है कि डॉ. मनमोहन सिंह सरकार में हैं भी और नहीं भी। शायद इसीलिए प्रधानमंत्री के प्रत्येक सार्वजनिक प्रकटीकरण के बाद यह सवाल अनुत्तरित ही रह जाता है कि सरकार के उत्तरदायित्वों के संबंध में जवाब-तलब आखिरकार किससे किया जाए!
संसद का बजट सत्र प्रारंभ होने के पांच दिन पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के संपादकों के साथ बातचीत करने का जोखिम उठाने के पूर्व डॉ. मनमोहन सिंह जानते तो अवश्य रहे होंगे कि उन्हें किस तरह के सवालों का सामना करना पड़ेगा। आश्चर्य व्यक्त किया जा सकता है कि हर बार की तरह प्रधानमंत्री एक और अवसर का सरकार के हित में लाभ लेने में चूक गए।
मीडिया के धुरंधरों के साथ सवाल-जवाब में डॉ. मनमोहन सिंह की मुद्रा को देखकर ऐसा लगता था कि वे एक ऐसे विपक्ष से मुखातिब हैं, जिसमें उनकी ही पार्टी के लोग भी शामिल हैं और उनके एक सक्षम प्रधानमंत्री सिद्ध न हो पाने की सफाई मांग रहे हैं और आर्थिक मोर्चे पर अंतरराष्ट्रीय जगत में देश की शान बढ़ाने वाले डॉ. मनमोहन सिंह गठबंधन सरकारों की मजबूरियों का हवाला देते हुए असहाय से नजर आ रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार की तमाम कमजोरियों को स्वीकार करते हुए उनका बचाव भी किया। उन्होंने मंजूर किया कि गलतियां हुई हैं पर जोड़ दिया कि वे उतने बड़े दोषी नहीं हैं जितना उन्हें निरूपित किया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने ताश अपने हाथों में रखी पर पत्तों का रुख देश के सामने कर दिया। इसे प्रधानमंत्री की विनम्रता और सहजता भी माना जा सकता है और ताकत भी।
डॉ. मनमोहन सिंह के दावे पर अगर भरोसा किया जाए तो वे बजट सत्र के बाद अपने मंत्रिमंडल में परिवर्तन करने वाले हैं। सवाल यह है कि गठबंधन सरकारों को चलाने की जिन मजबूरियों का जिक्र उन्होंने किया है क्या वे बजट सत्र के बाद समाप्त हो जाएंगी? इस समय प्रश्न किसी सरकार के सत्ता में होने या न होने का नहीं बल्कि देश की जनता को यह महसूस होने का है कि कोई देश चला भी रहा है और उससे पूछताछ भी की जा सकती है।
प्रधानमंत्री अगर इतने आत्मविश्वास के साथ मानते हैं कि अभी उन्हें बहुत काम करना बाकी है और वे अपना पद नहीं छोड़ रहे हैं तो उनके इस दावे को यह मानते हुए स्वीकार कर लेना चाहिए कि कांग्रेस और यूपीए के पास डॉ. मनमोहन सिंह का विकल्प डॉ. मनमोहन सिंह ही हैं, कोई और नहीं। इसे कांग्रेस की मजबूरी भी माना जा सकता है और साहस भी।
साहस इसलिए भी कि अ.भ. कांग्रेस समिति के हाल में संपन्न हुए बुराड़ी महाधिवेशन में यूपीए की चेयरपर्सन श्रीमती सोनिया गांधी ने ज्यादा तारीफ डॉ. मनमोहन सिंह के कुशल नेतृत्व की ही की थी। डॉ. मनमोहन सिंह अगर कुछ करके दिखाना ही चाहते हैं तो देश बजट सत्र और उसके भी बाद के आने वाले तमाम सत्रों का अपनी सांसें रोककर पेट को पीठ से चिपकाते हुए इंतजार करने को तैयार है। फैसला प्रधानमंत्री को ही करना है कि उन्हें सरकार चलाने के लिए साथ यूपीए गठबंधन में शामिल दलों से बंधी हुई मजबूरियों का चाहिए या देश की जनता का।
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चिंतित हूँ , अफसोस भी है , पर उतना दोषी नहीं ..- प्रधानमंत्री
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
http://thatshindi.oneindia.in/news/2011/02/16/20110216055237-aid0122.htmlसंसद के बजट सत्र से पहले प्रधानमंत्री अपनी सरकार पर लग रहे आरोपों का जवाब देने के लिए बुधवार को 7, रेसकोर्स मार्ग स्थित अपने सरकारी आवास पर टेलीविजन समाचार चैनलों के सम्पादकों से रूबरू हुए और उनके सवालों का जवाब दिया। लगभग 70 मिनट तक चले इस सवाल-जवाब का टीवी पर सीधा प्रसारण किया गया। प्रधानमंत्री ने लगभग सभी विवादित मुद्दों पर पहले अपना पक्ष रखा और उसके बाद उन्होंने देश-विदेश के टेलीविजन समचार चैनलों के सम्पादकों के सवालों का जवाब दिया।
उतना दोषी भी नहीं.. :-
प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने कभी यह दावा नहीं किया की उनसे कभी कोई गलती नहीं हुई लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जिस व्यापक तरीके से प्रचार किया जा रहा है, वह उतने भी दोषी नहीं हैं।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "मैं यह नहीं कहता हूं कि मैंने कभी कोई गलती नहीं की लेकिन जिस व्यापक स्तर पर प्रचार किया जा रहा है और दिखाया जा रहा, मैं उतना भी दोषी नहीं हूं।"
बातचीत के दौरान उन्होंने कहा, "मैं अपनी जिम्मेदारियां समझता हूं और गठबंधन के कारण मौजूदा सरकार की अपनी सीमाएं हैं। गठबंधन सरकार में सभी कुछ वैसे नहीं होता जैसा आप चाहते हैं, गठबंधन धर्म का पालन भी करना पड़ता है।"
भ्रष्टाचार पर चिंतित हूं, पर इस्तीफे का ख्याल नहीं आया :-
मौजूदा व्यवस्था में भ्रष्टाचार को चिंता का विषय करार देते हुए उन्होंने कहा, "यदि न्यायपालिका या विधायिका या फिर जीवन के किसी भी क्षेत्र में भ्रष्टाचार है तो उसे निश्चित तौर पर खत्म करना होगा।"
उन्होंने वादा किया कि भ्रष्टाचार के दोषियों को कठोर सजा दी जाएगी। "मैं आपके माध्यम से देश की जनता से वादा करता हूं कि भ्रष्टाचार के मामलों में जो कोई भी दोषी पाया जाएगा उसे कड़ी सजा दी जाएगी।"
प्रधानमंत्री से जब यह पूछा गया कि क्या वह राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में हुए घोटालों की जांच में हो रही देरी से निराश हैं, तो उन्होंने कहा सरकार अपनी सर्वोत्तम कोशिश कर रही है, लेकिन यह सब एक कानूनी प्रक्रिया के तहत हो रहा है। "कभी-कभी यह निराशाजनक होता है.. इसमें समय लगता है।"
उन्होंने ने कहा, "आपको मेरा आश्वासन है कि गड़बड़ी करने वाले बच नहीं पाएंगे।"
प्रधानमंत्री ने हालांकि उन आरोपों को खारिज कर दिया, जिनमें कहा गया है कि प्रधानमंत्री कार्यालय भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और निजी कम्पनी देवास के बीच हुए एस-बैंड स्पेक्ट्रम समझौते को रद्द करने के अंतरिक्ष आयोग के निर्णय को हल्का करने की कोशिश कर रहा है।
प्रधानमंत्री ने कहा, "अंतरिक्ष आयोग द्वारा समझौते को रद्द करने के लिए दो जुलाई, 2010 को लिए गए निर्णय को किसी भी रूप में प्रधानमंत्री कार्यालय में हल्का करने की कोई कोशिश नहीं की गई।"
प्रधानमंत्री ने कहा, "इस मामले में कोई गोपनीय बातचीत नहीं हुई है और मैं किसी भी व्यक्ति से नहीं मिला हूं। अंतरिक्ष आयोग ने समझौते को रद्द करने का निर्णय दो जुलाई को लिया था।"
ज्ञात हो कि भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने संकेत दिया है कि इसरो की व्यावसायिक शाखा, एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन और देवास के बीच हुए समझौते के कारण देश को दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
एक सवाल के जवाब में प्रधानमंत्री ने साफ-साफ कहा कि भ्रष्टाचार के हाल के मामलों को देखते हुए भी कभी उनके मन में पद से इस्तीफा देने का ख्याल नहीं आया। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री पद के लिए कांग्रेस का अगला उम्मीदवार कौन होगा, इस बारे में कयास लगाना बहुत जल्दबाजी होगी। उन्होंने कहा कि वह अपना कार्यकाल पूरा करेंगे।
उन्होंने कहा, "हम एक लोकतांत्रिक पार्टी हैं।" प्रधानमंत्री ने फिर कहा कि संसद के बजट सत्र के बाद मंत्रिमंडल में फेरबदल होगा।
राजा ने किया था वादा :-
प्रधानमंत्री ने कहा कि पूर्व केंद्रीय दूरसंचार मंत्री ए. राजा ने उनसे 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन प्रक्रिया में पूरी तरह से पारदर्शिता बरतने का वादा किया था। "मैंने राजा को दो नवम्बर 2007 को पत्र लिखा था। मैंने अपनी चिंता के कुछ मुद्दे लिखे थे और उन पर स्पष्टता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने को कहा था। मैंने उनसे स्पेक्ट्रम की नीलामी कराने के तकनीकी और कानूनी पक्ष के बारे में भी पूछा था।"
उन्होंने कहा, "उसी दिन उन्होंने मुझे पत्र लिखकर कहा कि वह इन सभी मुद्दों पर पारदर्शिता रखेंगे मुझे आश्वस्त किया था कि भविष्य में भी वह अपनी तरफ से ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे पारदर्शिता प्रभावित हो।"
उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर मीडिया की कुछ रिपोर्ट आईं थीं और कुछ दूरसंचार कम्पनियों ने चिंताएं व्यक्त की थीं लेकिन इन मुद्दों पर पक्ष और विपक्ष दोनों ओर से शिकायतें थीं।
इसके बावजूद राजा को दूसरी बार अपने मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि गठबंधन सरकार में चीजें वैसी नहीं होती जैसी आप चाहते हैं और गठबंधन धर्म का पालन भी करना पड़ता है।
अफसोस और उपलब्धियां :-
अपने कार्यकाल के सबसे बड़े अफसोस एवं सबसे बड़ी उपलब्धि के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में प्रधानमंत्री ने कहा, "ये जो अनियमितताएं हुई हैं, उन्हें लेकर मुझे निश्चित तौर पर अफसोस। मैं इन घटनाओं से बहुत खुश नहीं हूं।"
प्रधानमंत्री ने कहा कि यह बिल्कुल सच है कि प्रतिकूल वैश्विक आर्थिक स्थितियों के दौरान उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को जो स्थिर बनाए रखा, यह उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है।
संसद चलाने के लिए ईमानदार प्रयास :-
प्रधानमंत्री ने कहा कि संसद का पिछला सत्र किन कारणों से नहीं चल सका, वह इसे समझ पाने में अक्षम हैं, लेकिन अगले सत्र के साथ ऐसा न हो, इसके लिए सरकार सभी ईमानदार प्रयास कर रही है। विपक्ष से बातचीत हो रही है। हमारे मतभेद जो भी ही संसद की कार्यवाही नहीं रुकनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि वह 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के सिलसिले में संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) सहित किसी भी अन्य समिति के समक्ष पेश होने को तैयार हैं।
लोकतंत्र के उदय का स्वागत :-
प्रधानमंत्री ने कहा कि दुनिया के अन्य हिस्सों में लोकतंत्र की ओर बढ़ने की कामना रखने वालों को भारत के लोगों की शुभकामनाएं। कतर के टीवी चैनल 'अल जजीरा' के एक प्रतिनिधि ने जब मिस्र और अन्य अरब देशों के घटनाक्रम के बारे में प्रधानमंत्री का विचार जानना चाहा तो सिंह ने कहा कि भारत किसी देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहता, लेकिन किसी भी जगह होने वाले लोकतंत्र के उदय का वह स्वागत करता है।
प्रधानमंत्री ने कहा, "यदि लोग लोकतांत्रिक प्रक्रिया की ओर आगे बढ़ना चाहते हैं तो उन्हें हमारी शुभकामनाएं।"
सिंह ने कहा कि खाड़ी या मध्य पूर्व के अन्य देशों में कुछ भी घटता है, तो वह भारत के लिए चिंता का विषय होता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि खाड़ी देशों में 50 लाख भारतीय रहते हैं और यदि वहां शांति नहीं है, तो इसका भारत के उन महत्वपूर्ण समुदायों पर असर पड़ सकता है, जो पश्चिम एशियाई देशों के विकास के लिए काम कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने इस बात से इंकार किया कि जिस तरह के विरोध प्रदर्शन कुछ देशों में हो रहे हैं, उस तरह के विरोध प्रदर्शन भारत में भी हो सकते हैं। मनमोहन सिंह ने कहा, "भारत एक सक्रिय लोकतंत्र है।" उन्होंने कहा कि यहां प्रेस को आजादी है और लोग जिस रास्ते को चाहें, अपना सकते हैं।
प्रधानमंत्री चोरो के सरदार नहीं ये तो भ्रष्ट्राचारियो के सरदार है.
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