देश के लुटेरों का एक और सच :दुर्लभ एस-बैंड स्पेक्ट्रम आवंटन
- अरविन्द सीसोदिया
वर्ष २००५ में भारतीय अंतरिक्ष शोध संस्थान (इसरो) के व्यवसायिक धड़े एंट्रिक्स कॉपोरेशन लिमिटेड और देवास मल्टी मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के बीच स्पेक्ट्रम आवंटन को लेकर २० वर्ष का करार हुआ था। सीएजी का आरम्भिक आकलन है कि इस करार से सरकारी खजाने को कम से कम दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। इससे पूर्व में सीएजी ने २ जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में १.७६ लाख करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान लगाया था। "यह अंतरिक्ष मंत्रालय का मामला है और यह मंत्रालय सीधे तौर पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अधीन है। इसलिए प्रधानमंत्री सीधे इस मामले पर अपना बयान दें यह लाजमी है।"
एक रिपोर्ट ......कैग ने 28 जनवरी 2005 को इसरो की व्यावसायिक इकाई एंट्रिक्स कॉरपोरेशन लिमिटेड और निजी कंपनी देवास मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड के बीच हुए स्पेक्ट्रम समझौते की जांच शुरू कर दी है. शुरुआती जांच में कहा है कि इस समझौते से सरकार को दो लाख करोड़ के नुकसान होने की संभावना है
कैसे पहुंचाया नुकसान
रिपोर्ट के अनुसार, 600 करोड़ के समझौते के तहत इसरो ने देवास मल्टीमीडिया के लिए दो उपग्रह लांच किये थे. इसके तहत देवास को गुप्त रूप से फ़ायदा पहुंचाया गया. डील के तहत कंपनी को यह अधिकार भी दे दिया गया कि वह एस-बैंड स्पेक्ट्रम के 2500 मेगाहट्र्ज में से70 मेगाहट्र्ज का 20 साल तक खूब इस्तेमाल करे. इससे कंपनी को जबरदस्त फायदा पहुंचा. दो लाख करोड़ के..सरकार को दो लाख करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ है.
पहले दूरदर्शन के पास थे
ये बैंड पहले दूरदर्शन के पास थे. वह सेटेलाइट और इन बैंड की मदद से देश भर में अपने कार्यक्रम प्रसारित करता था. अब इसकी व्यावसायिक कीमत काफ़ी बढ़ गयी है. अब ऐसा सोचा जा रहा है कि इसका व्यावसायिक उपयोग भी हो, खास कर मोबाइल कम्युनिकेशन की सुविधा प्रदान करने में. इस करार के माध्यम से एस-बैंड जिसकी रेंज 2500 से 2690मेगाहट्र्ज के बीच है, पहली बार निजी क्षेत्र के लिए खोला गया. 2010 में केंद्र सरकार को 3जी मोबाइल सर्विसेज के लिए 15 मेगाहट्र्ज की नीलामी से करीब 67, 719 करोड़ की कमाई हई थी.
अंतरिक्ष आयोग ने उठाये थे सवाल
हालांकि, अंतरिक्ष आयोग ने पिछले साल जुलाई में देवास के साथ हुए समझौते का विरोध किया था. इसे खत्म करने की सिफ़ारिश की थी. पर ऐसा नहीं हआ.
यह तो सीधे प्रधानमंत्री से जुड़ा मामला है
जोगिंदर सिंह, सीबीआइ के पूर्व निदेशक एक के बाद एक लगातार उजागर हो रहे घोटालों से सरकार की विश्वसनीयता कम हुई है. 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में उजागर तथ्यों से यह कह कर प्रधानमंत्री को बचाया जा रहा है कि यह उनसे जुड़ा मामला नहीं है, लेकिन जहां तक इसरो और अंतरिक्ष विभाग का सवाल है,प्रधानमंत्री इससे प्रत्यक्ष जुड़े हुए हैं.
सरकार जान-बूझ कर प्रत्येक घोटाले पर परदा डालने की कोशिश कर रही है. देश के संसाधनों का दोहन कर निजी क्षेत्र को फ़ायदा पहुंचाने की प्रवृत्ति का काफ़ी नकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहा है. ऐसे में अगर सुप्रीम कोर्ट कार्रवाई करता है, तो सरकार द्वारा न्यायिक सक्रियता का प्रश्न उठाया जाता है. मुङो लगता है कि 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले की तरह ही इस मामले की जांच भी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होनी चाहिए.
वर्ष २००५ में भारतीय अंतरिक्ष शोध संस्थान (इसरो) के व्यवसायिक धड़े एंट्रिक्स कॉपोरेशन लिमिटेड और देवास मल्टी मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के बीच स्पेक्ट्रम आवंटन को लेकर २० वर्ष का करार हुआ था। सीएजी का आरम्भिक आकलन है कि इस करार से सरकारी खजाने को कम से कम दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। इससे पूर्व में सीएजी ने २ जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में १.७६ लाख करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान लगाया था। "यह अंतरिक्ष मंत्रालय का मामला है और यह मंत्रालय सीधे तौर पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अधीन है। इसलिए प्रधानमंत्री सीधे इस मामले पर अपना बयान दें यह लाजमी है।"
एक रिपोर्ट ......कैग ने 28 जनवरी 2005 को इसरो की व्यावसायिक इकाई एंट्रिक्स कॉरपोरेशन लिमिटेड और निजी कंपनी देवास मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड के बीच हुए स्पेक्ट्रम समझौते की जांच शुरू कर दी है. शुरुआती जांच में कहा है कि इस समझौते से सरकार को दो लाख करोड़ के नुकसान होने की संभावना है
कैसे पहुंचाया नुकसान
रिपोर्ट के अनुसार, 600 करोड़ के समझौते के तहत इसरो ने देवास मल्टीमीडिया के लिए दो उपग्रह लांच किये थे. इसके तहत देवास को गुप्त रूप से फ़ायदा पहुंचाया गया. डील के तहत कंपनी को यह अधिकार भी दे दिया गया कि वह एस-बैंड स्पेक्ट्रम के 2500 मेगाहट्र्ज में से70 मेगाहट्र्ज का 20 साल तक खूब इस्तेमाल करे. इससे कंपनी को जबरदस्त फायदा पहुंचा. दो लाख करोड़ के..सरकार को दो लाख करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ है.
पहले दूरदर्शन के पास थे
ये बैंड पहले दूरदर्शन के पास थे. वह सेटेलाइट और इन बैंड की मदद से देश भर में अपने कार्यक्रम प्रसारित करता था. अब इसकी व्यावसायिक कीमत काफ़ी बढ़ गयी है. अब ऐसा सोचा जा रहा है कि इसका व्यावसायिक उपयोग भी हो, खास कर मोबाइल कम्युनिकेशन की सुविधा प्रदान करने में. इस करार के माध्यम से एस-बैंड जिसकी रेंज 2500 से 2690मेगाहट्र्ज के बीच है, पहली बार निजी क्षेत्र के लिए खोला गया. 2010 में केंद्र सरकार को 3जी मोबाइल सर्विसेज के लिए 15 मेगाहट्र्ज की नीलामी से करीब 67, 719 करोड़ की कमाई हई थी.
अंतरिक्ष आयोग ने उठाये थे सवाल
हालांकि, अंतरिक्ष आयोग ने पिछले साल जुलाई में देवास के साथ हुए समझौते का विरोध किया था. इसे खत्म करने की सिफ़ारिश की थी. पर ऐसा नहीं हआ.
यह तो सीधे प्रधानमंत्री से जुड़ा मामला है
जोगिंदर सिंह, सीबीआइ के पूर्व निदेशक एक के बाद एक लगातार उजागर हो रहे घोटालों से सरकार की विश्वसनीयता कम हुई है. 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में उजागर तथ्यों से यह कह कर प्रधानमंत्री को बचाया जा रहा है कि यह उनसे जुड़ा मामला नहीं है, लेकिन जहां तक इसरो और अंतरिक्ष विभाग का सवाल है,प्रधानमंत्री इससे प्रत्यक्ष जुड़े हुए हैं.
सरकार जान-बूझ कर प्रत्येक घोटाले पर परदा डालने की कोशिश कर रही है. देश के संसाधनों का दोहन कर निजी क्षेत्र को फ़ायदा पहुंचाने की प्रवृत्ति का काफ़ी नकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहा है. ऐसे में अगर सुप्रीम कोर्ट कार्रवाई करता है, तो सरकार द्वारा न्यायिक सक्रियता का प्रश्न उठाया जाता है. मुङो लगता है कि 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले की तरह ही इस मामले की जांच भी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होनी चाहिए.
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