विदेशी दान :भारतीय लोगों को धर्मान्तरण


- अरविन्द  सिसोदिया  
सबसे पहले हम इडिया टुडे १६ फरवरी २०११ के अंक में प्रकाशित , पड़ताल कलम में विदेशी फंडिंग पर विशेष आलेख ..
तय होगी जवाबदेही
में से बहुत छोटा सा अंश इस प्रकार से है .......
सूत्रों के मुताबिक , सबसे ज्यादा विदेशी चंदा लेने वाले २० प्रमुख संगठनों में से १० इसाई संगठन हैं . इसके आलावा , कई छोटे इसाई कल्याणकारी संगठनों और हिमायती समूहों को विदेशी चंदा मिल रहा है . खबर है कि इनमें से कई धर्मान्तरण  कि गतिविधियों में लिप्त हैं . विशेषकर आदिवासियों को ईसाई बनाने की गतिविधियों में शामिल हैं . हालांकि कानून में धर्मान्तरण की इजाजत है पर जबर धर्मान्तरण अवैध्य है . धर्मान्तरण के लिए रिश्वत या किसी तरह का प्रलोभन देनें के  दोषी पाए गए संगठनों को प्रतिबंधित कर दिया जाता है .
 सरकार ने पाया कि विवादास्पद वाचटावर  बाइबल एंड टैक्ट सोसायटी जबरन धर्मान्तरण की गतिविधियों में लिप्त  है , इसके वाद इसा इसा सोसायटी को विदेशी चन्दा लेने से रोक दिया गया . इससे पहले यह संगठन राष्ट्र गीत गायन के खिलाफ अभियान चला रहा था . 
चालीस एनी स्वंयसेवी  संगठनों को विदेशी चंदा लेने से रोक दिया गया है. और ३५ संगठनों को चंदा हांसिल करने से पहले " पहले मंजूरी " लेने की श्रेणी में दल दिया गया है . इसकी वजह से उन्हें एक भी रुपया चंदा लेने से पहले गृह मंत्रालय की मंजूरी लेनी होती है . ....      
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 सच यह है कि भारत पर अंग्रजों के भी दो हमले एक साथ हुए थे पहल संप्रभुता का अफर्ण और दूसरा भारतीय लोगों को धर्मान्तरण ....., अंग्रेज तो चले गए मगर ईसाई मिशनरियों को यहाँ धर्मांतरण के लिए छोड़ गए .., वे तब से ही विदेशी धन के सहारे पूरे भारत को एक ईसाई राष्ट्र में बदलनें में जुटे हुयें हैं .., सरकार की कानूनी खामियों और इच्छा शक्ती के आभाव में यह सब बहुत आसानीसे चल रहा है .., जबसे  नेहरु  खानदान   की बहु  ईसाई महिला  है तब  से यह और भी नीरंकुश्ता  से चल रहा है ...!
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नई दिल्ली ।। लोकसभा में शुक्रवार( २७ अगस्त 2010 ) को विदेशी दान या डोनेशन के विनियमन से जुड़ा विधेयक ध्वनिमत से पारित हो गया। इसका मकसद स्वयंसेवी संस्थाओं ( एनजीओ ) को विदेशों से प्राप्त होने वाले धन को नियंत्रित किया जा सके और उस धन के खर्च की पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।
किसी संस्थान के बैंक खाते में 10 लाख रुपये की राशि आने पर उसकी जानकारी सरकार को देनी होगी। सरकार का मानना है कि इससे जहां इमानदार एनजीओ को बढ़ाव मिलेगा वहीं विदेशांे से आने वाले पैसे के राष्ट्र के खिलाफ इस्तेमाल पर लगाम लगाई जा सकेगी।
गृह राज्यमंत्री अजय माकन ने सदन में विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए इसे एक अभूतपूर्व विधेयक बताया। उन्होंने कहा कि इस विधेयक को पक्ष और विपक्ष दोनों का समर्थन प्राप्त है। इस विधेयक में स्थायी समिति की 14 में से 12 सिफारिशों को शामिल किया गया है।
किसी एनजीओ द्वारा विदेशी धन का उपयोग करने के लिए 10 शर्तें लगाई गई हैं। इनमें बेनामी संस्थान , धार्मिक कार्यों में शामिल संस्थान , सांप्रदायिक तनाव पैदा करने वाले , धन का दुरुपयोग करने वाले और अपना उद्देश्य हासिल करने के लिए हिंसा का रास्ता अपनाने वाली संस्था द्वारा ऐसे धन का उपयोग करने पर प्रतिबंध लगाया गया है। विधेयक में एनजीओ के प्रशासनिक खर्च की सीमा कुल खर्च का 50 प्रतिशत तय करने के साथ धन के अनुमान या आकलन के आधार पर खर्च पर रोक लगाई गई है। एनजीओ को प्रत्येक पांच साल में अपना नवीकरण कराना होगा। उन्होंने कहा कि सरकार इस पर निगाह रखेगी कि विदेशी धन का किस प्रकार के लोग या संस्थान उपयोग करेंगे और उनका मकसद और क्षेत्र क्या होगा। अगर बैंक में किसी संस्थान के खाते में 10 लाख रुपये से अधिक की राशि आती है तो इसकी जानकारी सरकार को होने की व्यवस्था की गई है। विधेयक पर चर्चा के दौरान सदस्यों ने आमतौर पर इस का समर्थन किया।
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चूंकि विदेश से पैसा लाने के लिए इस कानून के तहत गृहमंत्रालय में पंजीकरण कराना पड़ता है और सालाना हिसाब देना पड़ता है, इसलिए इनके कुछ आंकड़े उपलब्ध है। विदेशों से धन प्राप्त करने वाली संस्थाओं की संख्या 1993-94 में 15,039 थी जो दुगनी से ज्यादा बढ़कर 2007-08 में 34,083 हो गई है। विदेश से आने वाला धन इस अवधि में 1865 करोड़ रु. से बढ़कर 9663 करोड़ रु. यानी पांच गुने से ज्यादा हो गया है। सबसे ज्यादा दान देने वाली संस्थाओं में कुछ इस प्रकार हैं: वल्र्ड विजन, गोस्पेल फॉर एशिया, प्लान इंटरनेशनल, क्रिश्चियन चिल्ड्रन फंड, कंपेशन इंटरनेशनल, डॉ. विक्रम पंडित (सभी संयुक्त राज्य अमरीका), ब्रम्हानंद सरस्वती ट्रस्ट, एक्शन ऐड इंटरनेशनल, ऑक्सफेम इंडिया ट्रस्ट, स्वामी नारायण हिन्दू मिशन (सभी ब्रिटेन) फाउन्डेशन विसेन्टे फेरर (स्पेन) आदि। देश में आने वाला 80 प्रतिशत विदेशी दान अमरीका-कनाडा-यूरोप-जापान-आस्टेªलिया-संयुक्त अरब अमीरात आदि करीब 15 देशों से आता है। पूरी दुनिया को लूट कर अमीर बने इस पूंजीवादी-साम्राज्यवादी देशों में अचानक उमड़ी इस दरियादिली और परोपकारी भावना के पीछे राज क्या है ?
विदेशी धन से चलने वाले कुछ एनजीओ के तेवर क्रांतिकारी और व्यवस्था-विरोधी भी होते हैं। वैश्वीकरण के विरोध में विश्व सामाजिक मंच तथा एशियाई सामाजिक मंच जैसे आयोजनों में भी उनकी प्रमुख भूमिका रहती है। कहीं-कहीं पर किसी मुद्दे विशेष पर जन-आंदोलन खड़ा करने में भी उनकी भूमिका रहती हैं, हालांकि कुछ आंदोलन सचेत रुप से सतर्कतापूर्वक स्वयं को विदेशी संस्थागत फंडिंग से अलग रखते हैं। फिर सैकड़ों की संख्या में एडवोकेसी संगठन भी है ही, जो किसी एक मुद्दे पर, किसी एक क्षेत्र मंे, काफी अच्छी जानकारी एवं रपट जुटाते हैं और अभियान चलाते हैं। लेकिन आगे बढ़कर, व्यवस्थागत कारणों को पहचानकर, देश बदलने वाला समग्र आंदोलन छेड़ने की दिशा में वे आगे नहीं बढ़ते, क्योंकि उसके लिए फंड नहीं मिलेगा। यह एक वैचारिक-राजनैतिक काम है और इसके लिए कोई अंतरराष्ट्रीय एजेन्सी पैसा नहीं देती। वहीं उनकी सीमा आ जाती है। उनके पैर रुक जाते हैं। इस मायने में विदेशी धन पर निर्भरता विकलांग बनाने वाली है।
 
पहले समाजसेवा एवं परोपकार के काम मूलतः स्थानीय पहल एवं भागीदारी से निःस्वार्थ तरीके से होते थे। किन्तु इनके एनजीओकरण और विदेशी दान की बाढ़ से ये सारे गुण गायब हो गए हैं। इनका चरित्र ही बदल गया है। अक्सर स्वयंसेवी संस्थाओं में समाज के बजाय स्वयं की सेवा ज्यादा होने लगी है। गरीबी और कुपोषण पर पांच सितारा होटलों के वातानुकूलित सभागारों में सेमिनार करते हुए और हवाई जहाजों एवं महंगी गाड़ियों में घूमते हुए समाजसेवा के इन चैम्पियनों के चेहरे पर शिकन भी नहीं आती। 
महात्मा गांधी --
‘‘मैं नहीं चाहता कि मेरा मकान चारों तरफ से बंद हो और खिड़कियां भी बंद होने से मेरा दम घुटे। मैं चाहता हूं कि सब जगह की संस्कृतियों की हवा मेरे मकान के आसपास बहती रहे। किन्तु मैं ऐसी हवा नहीं चाहता हूं कि मेरे पैर ही उखड़ने लगें। मैं दूसरों के घर में घुसपैठिये, भिखारी या गुलाम के रुप में रहने से इंकार करता हूं।’’  
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'Pastors trafficking NE children for church grants and foreign donations'


http://timesofindia.indiatimes.com/india/Pastors-trafficking-NE-children-for-church-grants-and-foreign-donations/articleshow/6262576.cms
NEW DELHI: Promising proper education, pastors are trafficking children from the north-eastern states to Tamil Nadu and Karnataka with an oblique motive to get grants from churches and abroad, the National Commission for Protection of Child Rights said in a damning report to the Supreme Court.

Inquring into recent rescue of hundreds of children trafficked from the NE states and housed in Homes illegally run by pastors in the southern states, NCPCR found that girls were even asked to give massage to the directors of these Homes and molested.

Analysing the situation in a detailed report, NCPCR said insurgency coupled with the virtual absence of government officials at the sub-district and block level to address the education, health and developmental problems have made the entire north-east an easy hunting ground for middlemen to lure out children from parents in the name of providing them proper education.

"All-out effort are being made by pastors and other category of persons who are reaching out to source areas through middlemen for getting children in order to obtain financial support from churches within the country or donations from outside," the NCPCR said in response to a direction from the apex court to inquire into the incidents.

The source areas for the pastors are Tamnglong, Senapati, Chandel, Bishnupur, Churachandpur and Imphal in Manipur, North Cachar Hills in Assam and Meghalaya. The destination states are TN, Karnataka, Andhra Pradesh and Kerala.

"The main reason for children being sent out by the poor parents to far off places in southern states is due to their high expectation of quality education for their children which is not available at their own places," the Commission said.

The other main reasons for the parents agreeing to send their children far away were no easy access to schools; lack of basic infrastructure such as road connectivity, power and hospitals; insurgency and lack of a sense of security among parents to send children walking to schools; poor financial status of parents preventing them from putting children in boarding schools; and absence of governance in sub-district and block level to address education, health and developmental problems of vulnerable families.

This provides a perfect opportunity for middlemen to exploit the situation and is being taken advantage of by pastors. But, the children get caught between the devil at home and the deep sea in the Homes in southern states, NCPCR said.

"Mostly these children from north-east who are brought to TN and Karnataka are put in Tamil and Kannada-medium schools for study. It is not easy for these children to have education in the languages which are not spoken in their states," the Commission said.

Apart from giving a series of recommendatory directions to the NE states to improve the educational and health facilities, NCPCR asked the Union HRD ministry to supply data about the number of schools and hostels in the north-east currently occupied by the armed forces.

While asking the HRD ministry to open Kendriya Vidyalayas, Navodaya Vidyalayas and model schools in the affected areas, the Commission said the Union home ministry must ensure that "the para-military forces vacate the schools and hostels occupied by them and submit an action taken report within two months to the SC".



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