आरोप और गिरफतारी में भी घोटाला : जेपीसी की मांग जायज और जरुरी
- अरविन्द सीसोदिया
पूर्व संचार मंत्री ए. राजा की गिरफ्तारी और उन पर लगाये गये आरोपों के बाद इस बात की और भी दरकार हो गई है कि इस सारे मामले की जांच , सही हो , पूरी हो और उसके सही और सम्पूर्ण सच से देश परिचित हो ...! अभी राजा की गिरफ्तारी के बाद मात्र २२ हजार करोड़ के ही आरोप लगाये गये हैं ..., अर्थात आरोप और गिरफतारी में भी घोटाला ...!! यह होना भी था क्यों की सीबीआई सरकारी संस्था है , सरकार के विरुद्ध खड़ी होनें की हिम्मत इसमें है ही नहीं ...! बहुत ही कमजोर स्तर के जांच अधिकारी इसमें होते हैं जो राजनीति कि बड़ी हस्तियों के खिलाफ कुछ भी नहीं कर पाते , कुल मिला कर डर जाते हैं ..! आरुषी ह्त्या काण्ड में इसका सच सामनें आ चुका है....! इसीलिए जेपीसी की मांग जायज और जरुरी हो गई है !
सीबीआई के आधे अधूरे आरोप ....
सीबीआई ने राजा पर मात्र २२ हजार करोड़ के आरोप लगाते हुए , उसे मात्र दो कंपनियों को लाभ पहुचानें का दोषी माना है ..,यह सीवीसी के १.७६ लाख के आकलन से बहुत कम है...! ज्ञातव्य रहे कि २ जी स्पेक्ट्रम लायसेंस आबंटन में स्वान और यूनिटेक कंपनियों नें लायसेंस हांसिल करनें के कुछ ही दिनों बाद बेंच कर करोड़ों रूपये कमाए थे ...! इसके अलावा और बहुत कुछ है जो झुपा लिया गया है ! इसीलिए सीबीआई के अलावा जेपीसी की जांच जरुरी है क्योंकि जेपीसी के सदस्यों का स्तर इतना होता है कि वह खुल कर पूछ सके और नोट लगा सके ...!
सरकार इस गिरफ्तारी के बाद और घिर गई है , वह तथ्यों को छुपाएगी और घिरती जायेगी ..., इसी सन्दर्भ में एक बहुत ही अच्छा लेख नीचे प्रस्तुत है .....
परछाई से लड़ती सरकार
- रणविजय सिंह ( समूह सम्पादक , राष्ट्रीय सहारा )पूर्व संचार मंत्री ए. राजा ने वर्ष 2007-08 में जो स्पेक्ट्रम आवंटित किये, उससे देश को कोई आर्थिक नुकसान नहीं हुआ है. कैग की रिपोर्ट की वजह से सरकार और राष्ट्र दोनों को शर्मिंदगी उठानी पड़ रही है. -दूर संचार मंत्री कपिल सिब्बल - आठ जनवरी, 2011
जस्टिस शिवराज पाटिल कमेटी की रिपोर्ट में दूरसंचार घोटाले में ए. राजा, तत्कालीन टेलीकाम सचिव सिद्धार्थ बेहुरा, निजी सचिव आर.के. चंदौलिया, वायरलेस सलाहकार पी.के. गर्ग सहित विभाग के कई अफसरों को दोषी ठहराया गया. - 01 फरवरी, 2011दूर संचार घोटाले में ए. राजा, बेहुरा और चंदोलिया को सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया. -02 फरवरी, 2011उपरोक्त घटनाएं सरकार की पोल खोलने के लिए काफी हैं. अब आम सवाल यह है कि सरकार ने कार्रवाई में इतना विलम्ब क्यों किया? कैग की रिपोर्ट को वर्तमान दूर संचार मंत्री ने खारिज करते हुए ए. राजा को क्लीनचिट क्यों दी? अब जब राजा गिरफ्तार हो चुके हैं तो श्री सिब्बल चुप क्यों हैं? इस घोटाले को लेकर विपक्ष काफी दिनों से शोर मचा रहा है. संसद का एक सत्र शून्य हो गया किंतु सरकार इस घोटाले की जेपीसी से जांच कराने को तैयार नहीं हुई और विपक्ष अभी भी अपनी इसी मांग पर अड़ा हुआ है.
आखिर सरकार इस घोटाले को उजागर करने की जगह लीपापोती में क्यों लगी रही. अब जनता इसका जवाब चाहती है. इतना ही नहीं, केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के तौर पर पी.जे. थॉमस की नियुक्ति, मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन के.जी. बालाकृष्णन के परिवार पर आय से अधिक सम्पत्ति का मामला, आदर्श सोसायटी घोटाला तथा कॉमनवेल्थ गेम्स घोटालों के एक के बाद एक उजागर होने से सरकार हलकान है. उसकी जनछवि तेजी से गिरी है, वह उससे उबरने और ताबड़तोड़ कार्रवाई करने के बजाय खुद अपनी परछाई से लड़ती नजर आ रही है और आमजन को लगने लगा है कि सरकार इन मामलों को लटकाए रखना चाहती है.
ए. राजा प्रकरण को ही लें. टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच चल रही थी, जिसमें राजा नख से सिख तक फंसे हुए हैं, ऐसे समय में दूर संचार मंत्री कपिल सिब्बल ने उन्हें क्लीन चिट दे डाली. उल्टे कैग की क्षमता पर ही सवाल खड़े कर दिये और कहा कि जिस आधार पर कैग ने 1.76 लाख करोड़ रुपए के राजस्व-नुकसान का आंकलन किया है, वह आधार ही गलत है? दिलचस्प बात तो यह थी कि जिस आधार पर उन्होंने कैग की रिपोर्ट खारिज की, उसी आधार पर एनडीए सरकार पर आरोप लगाया कि उसकी संचार नीतियों की वजह से देश को 1.23 लाख करोड़ रुपये का घाटा हुआ है. दरअसल एनडीए सरकार ने 1999 में नई दूरसंचार नीति लागू की थी. इस नीति में लाइसेंस फीस देने के तरीके में बदलाव किया गया था. पहले से लाइसेंस हासिल करने वाली दूर संचार कम्पनियों को फीस देने के तरीके में बदलाव कर उन्हें काफी राहत दी गई थी.
श्री सिब्बल ने कहा था कि शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने भी उस समय पत्र लिखकर एनडीए की दूरसंचार नीति का विरोध किया था. इसके अलावा उन्होंने कैग को खारिज करने के लिए वह सारे तर्क दिये जो ए. राजा दिया करते थे. उनका कहना था कि टू जी स्पेक्ट्रम का आवंटन टीआरएआई की सिफारिशों के आधार पर किया गया है. यूपीए सरकार की नीतियों की वजह से दूर संचार घनत्व बढ़ाने में मदद मिली है. टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन में सिर्फ 4.4 मेगाहट्र्ज के स्पेक्ट्रम दिये गये हैं. नीति के मुताबिक जिसे भी लाइसेंस दिया जाता है उसे 4.4 मेगा हट्र्ज स्पेक्ट्रम दिया ही जाता है.
दूसरी तरफ कैग ने हानि का आंकलन 6.2 मेगा हट्र्ज स्पेक्ट्रम के आधार कर किया है. उनके इस कथन पर राजनीतिक हलकों में सनसनी फैल गई और सिब्बल के इस आचरण पर सवाल उठने लगे किंतु जस्टिस शिवराज पाटिल की रिपोर्ट ने तो उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में राजा सहित दूर संचार विभाग के कई अधिकारियों को कठघरे में खड़ा कर सिब्बल को बगलें झांकने के लिए विवश कर दिया. इस कमेटी का गठन सिब्बल ने स्वयं 13 दिसम्बर, 2010 को किया था. इसी रिपोर्ट में घोटाले के लिए ए. राजा, तत्कालीन टेलीकाम सचिव सिद्धार्थ बेहुरा, आर.के. चंदोलिया, वायरलेस सलाहकार पी.के. गर्ग, पूर्व संयुक्त सचिव एम.एस. साहू और टेलीकाम विभाग के कुछ अन्य अफसरों को जिम्मेदार ठहराया गया है.
इसके बाद सरकार असहाय हो गई और आनन-फानन में सीबीआई ने उन्हें (राजा) तथा कुछ अन्य अधिकारियों को दबोच लिया. किंतु सरकार ने कार्रवाई में इतनी देरी कर दी कि लोगों को अब उसकी नीयत पर ही शक होने लगा है. क्योंकि सरकार स्वयं राजा के बचाव में उतर आई थी. अब उनकी गिरफ्तारी इस बात की स्वीकारोक्ति तो है ही कि टू जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस के बंटवारे में घोटाला हुआ है. वैसे इस गिरफ्तारी से सरकार और कांग्रेस पार्टी की मुश्किलें कम होती नजर नहीं आती. इससे विपक्ष की जेपीसी की मांग को और बल मिला है. वह इस घोटाले में लाभ लेने वाली कम्पनियों के खिलाफ भी कार्रवाई की मांग कर सकता है.
राजनीतिक पंडित यह मानते हैं कि सरकार ने आज जो दृढ़ता दिखाई है, वह उसे पहले ही दिखानी चाहिए थी. इतनी फजीहत और साख गिराने के बाद सरकार ने आखिर वही किया जो पहले ही हो जाना चाहिए था. इससे जनता को लगता कि सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी हद तक जाने को तैयार है किंतु अब वह मौका चूक गई है. उसके दूरसंचार मंत्री ने राजा को क्लीन चिट देकर सरकार की मुसीबतें और बढ़ा दी हैं. लोगों को यह लगने लगा है कि सरकार ने राजा को बचाने की भरपूर कोशिश की पर बचा नहीं पाई. सरकार इस मसले पर कूटनीतिक रूप से पूरी तरह से विफल रही, जिसमें कपिल सिब्बल की अहम भूमिका रही. प्रधानमंत्री और कांग्रेस पार्टी को ऐसे बड़बोले मंत्रियों पर लगाम लगानी चाहिए, जिनके आचरण से सरकार की किरकिरी होती है.
इसी तरह केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के पद पर पी.जे. थॉमस की नियुक्ति का मामला भी सरकार के गले की हड्डी बन गया है. इस मामले में भी सरकार अपनी चूक को छुपाने के लिए वैसा ही कर रही है, जैसा उसने दूर संचार घोटाले में किया था. यहां पाठकों को याद दिलाना चाहते हैं कि पामोलीन तेल घोटाले में थॉमस पर आरोप पत्र दाखिल हुआ था. आरोप है कि केरल के मुख्य सचिव के बाद केंद्र में सचिव की पदोन्नति देते समय सीवीसी के समक्ष उनका पूरा सर्विस रिकार्ड नहीं रखा गया और न ही घोटाले के संबंध में दायर आरोप पत्र और केस डायरी पेश की गई थी. न ही इस घोटाले पर सीएजी रिपोर्ट से ही अवगत कराया गया.
उल्टे सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह कहा कि 'मात्र चार्जशीट दायर होने से आई.ए.एस. अफसर का करियर कलंकित नहीं होता और आरोपित अफसर को सीवीसी नियुक्त करने पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं है' किंतु कोर्ट की इस टिप्पणी ने कि 'थॉमस को केंद्र में सचिव नियुक्त करते समय उन्हें सीवीसी से क्लीयरेंस कैसे मिली, जबकि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला विचाराधीन था' सरकार की किरकिरी कर दी. इसी बीच गृहमंत्री ने केंद्रीय सतर्कता आयुक्त की चयन समिति में पामोलीन घोटाले और उसमें थॉमस की संलिप्तता पर चर्चा की बात कहकर आग में घी डालने का काम किया है, जिसने सरकार के संकट को और बढ़ा दिया है. उल्लेखनीय है कि केरल सरकार ने इस घोटाले में 31 दिसम्बर 1999 में केंद्र सरकार से थॉमस के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी थी. इसके बावजूद उनकी पदोन्नति हुई. यह सरकार के कामकाज करने की कार्यप्रणाली को दर्शाता है. इसलिए आज जरूरत ऐसे पदों पर बेदाग छवि के लोगों को बैठाने की है.
उदाहरण के तौर पर मैं बताना चाहूंगा कि कुछ दिनों पूर्व केंद्रीय सतर्कता आयुक्त थॉमस ने भ्रष्टाचार की शिकायत के लिए विशेष फोन लाइन और ई-मेल सेवा शुरू की थी. हालत यह है कि यहां अधिकांश शिकायतें खोखली और सिर्फ सीवीसी को परखने के लिए की जा रही हैं. आंकड़ों के अनुसार 09 नवम्बर, 2010 से 15 जनवरी, 2011 के बीच सीवीसी को मिली 203 शिकायतों में से 107 केवल परखने के लिए की गई थीं. इस तरह लगभग 70 दिनों में सीवीसी के पास भ्रष्टाचार की केवल वास्तविक 96 शिकायतें ही आई, जो एक खतरनाक संकेत है, जो सरकार की आंख खोलने के लिए काफी है. इसलिए सरकार को सूचना प्रसारण मंत्रालय पर शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट, आदर्श सोसायटी घोटाला और कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले में यथा-शीघ्र कड़ी कार्रवाई करने की जरूरत है.
यह सच है कि सरकार आये दिन एक के बाद एक घोटालों के सामने आने से परेशान है. इससे निपटने के लिए उसने कदम भी उठाये हैं पर वह काफी नहीं हैं. भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए उसे कड़ी और त्वरित कार्रवाई करने की जरूरत है ताकि जनता को लगने लगे कि सरकार भ्रष्टाचारियों से लड़ने के लिए कृत संकल्प है. यदि वह घपलेबाजों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेगी तो जनता उसका स्वागत करेगी, अन्यथा जनता का विश्वास जीत पाना सरकार के लिए आसान नहीं होगा.
जस्टिस शिवराज पाटिल कमेटी की रिपोर्ट में दूरसंचार घोटाले में ए. राजा, तत्कालीन टेलीकाम सचिव सिद्धार्थ बेहुरा, निजी सचिव आर.के. चंदौलिया, वायरलेस सलाहकार पी.के. गर्ग सहित विभाग के कई अफसरों को दोषी ठहराया गया. - 01 फरवरी, 2011दूर संचार घोटाले में ए. राजा, बेहुरा और चंदोलिया को सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया. -02 फरवरी, 2011उपरोक्त घटनाएं सरकार की पोल खोलने के लिए काफी हैं. अब आम सवाल यह है कि सरकार ने कार्रवाई में इतना विलम्ब क्यों किया? कैग की रिपोर्ट को वर्तमान दूर संचार मंत्री ने खारिज करते हुए ए. राजा को क्लीनचिट क्यों दी? अब जब राजा गिरफ्तार हो चुके हैं तो श्री सिब्बल चुप क्यों हैं? इस घोटाले को लेकर विपक्ष काफी दिनों से शोर मचा रहा है. संसद का एक सत्र शून्य हो गया किंतु सरकार इस घोटाले की जेपीसी से जांच कराने को तैयार नहीं हुई और विपक्ष अभी भी अपनी इसी मांग पर अड़ा हुआ है.
आखिर सरकार इस घोटाले को उजागर करने की जगह लीपापोती में क्यों लगी रही. अब जनता इसका जवाब चाहती है. इतना ही नहीं, केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के तौर पर पी.जे. थॉमस की नियुक्ति, मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन के.जी. बालाकृष्णन के परिवार पर आय से अधिक सम्पत्ति का मामला, आदर्श सोसायटी घोटाला तथा कॉमनवेल्थ गेम्स घोटालों के एक के बाद एक उजागर होने से सरकार हलकान है. उसकी जनछवि तेजी से गिरी है, वह उससे उबरने और ताबड़तोड़ कार्रवाई करने के बजाय खुद अपनी परछाई से लड़ती नजर आ रही है और आमजन को लगने लगा है कि सरकार इन मामलों को लटकाए रखना चाहती है.
ए. राजा प्रकरण को ही लें. टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच चल रही थी, जिसमें राजा नख से सिख तक फंसे हुए हैं, ऐसे समय में दूर संचार मंत्री कपिल सिब्बल ने उन्हें क्लीन चिट दे डाली. उल्टे कैग की क्षमता पर ही सवाल खड़े कर दिये और कहा कि जिस आधार पर कैग ने 1.76 लाख करोड़ रुपए के राजस्व-नुकसान का आंकलन किया है, वह आधार ही गलत है? दिलचस्प बात तो यह थी कि जिस आधार पर उन्होंने कैग की रिपोर्ट खारिज की, उसी आधार पर एनडीए सरकार पर आरोप लगाया कि उसकी संचार नीतियों की वजह से देश को 1.23 लाख करोड़ रुपये का घाटा हुआ है. दरअसल एनडीए सरकार ने 1999 में नई दूरसंचार नीति लागू की थी. इस नीति में लाइसेंस फीस देने के तरीके में बदलाव किया गया था. पहले से लाइसेंस हासिल करने वाली दूर संचार कम्पनियों को फीस देने के तरीके में बदलाव कर उन्हें काफी राहत दी गई थी.
श्री सिब्बल ने कहा था कि शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने भी उस समय पत्र लिखकर एनडीए की दूरसंचार नीति का विरोध किया था. इसके अलावा उन्होंने कैग को खारिज करने के लिए वह सारे तर्क दिये जो ए. राजा दिया करते थे. उनका कहना था कि टू जी स्पेक्ट्रम का आवंटन टीआरएआई की सिफारिशों के आधार पर किया गया है. यूपीए सरकार की नीतियों की वजह से दूर संचार घनत्व बढ़ाने में मदद मिली है. टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन में सिर्फ 4.4 मेगाहट्र्ज के स्पेक्ट्रम दिये गये हैं. नीति के मुताबिक जिसे भी लाइसेंस दिया जाता है उसे 4.4 मेगा हट्र्ज स्पेक्ट्रम दिया ही जाता है.
दूसरी तरफ कैग ने हानि का आंकलन 6.2 मेगा हट्र्ज स्पेक्ट्रम के आधार कर किया है. उनके इस कथन पर राजनीतिक हलकों में सनसनी फैल गई और सिब्बल के इस आचरण पर सवाल उठने लगे किंतु जस्टिस शिवराज पाटिल की रिपोर्ट ने तो उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में राजा सहित दूर संचार विभाग के कई अधिकारियों को कठघरे में खड़ा कर सिब्बल को बगलें झांकने के लिए विवश कर दिया. इस कमेटी का गठन सिब्बल ने स्वयं 13 दिसम्बर, 2010 को किया था. इसी रिपोर्ट में घोटाले के लिए ए. राजा, तत्कालीन टेलीकाम सचिव सिद्धार्थ बेहुरा, आर.के. चंदोलिया, वायरलेस सलाहकार पी.के. गर्ग, पूर्व संयुक्त सचिव एम.एस. साहू और टेलीकाम विभाग के कुछ अन्य अफसरों को जिम्मेदार ठहराया गया है.
इसके बाद सरकार असहाय हो गई और आनन-फानन में सीबीआई ने उन्हें (राजा) तथा कुछ अन्य अधिकारियों को दबोच लिया. किंतु सरकार ने कार्रवाई में इतनी देरी कर दी कि लोगों को अब उसकी नीयत पर ही शक होने लगा है. क्योंकि सरकार स्वयं राजा के बचाव में उतर आई थी. अब उनकी गिरफ्तारी इस बात की स्वीकारोक्ति तो है ही कि टू जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस के बंटवारे में घोटाला हुआ है. वैसे इस गिरफ्तारी से सरकार और कांग्रेस पार्टी की मुश्किलें कम होती नजर नहीं आती. इससे विपक्ष की जेपीसी की मांग को और बल मिला है. वह इस घोटाले में लाभ लेने वाली कम्पनियों के खिलाफ भी कार्रवाई की मांग कर सकता है.
राजनीतिक पंडित यह मानते हैं कि सरकार ने आज जो दृढ़ता दिखाई है, वह उसे पहले ही दिखानी चाहिए थी. इतनी फजीहत और साख गिराने के बाद सरकार ने आखिर वही किया जो पहले ही हो जाना चाहिए था. इससे जनता को लगता कि सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी हद तक जाने को तैयार है किंतु अब वह मौका चूक गई है. उसके दूरसंचार मंत्री ने राजा को क्लीन चिट देकर सरकार की मुसीबतें और बढ़ा दी हैं. लोगों को यह लगने लगा है कि सरकार ने राजा को बचाने की भरपूर कोशिश की पर बचा नहीं पाई. सरकार इस मसले पर कूटनीतिक रूप से पूरी तरह से विफल रही, जिसमें कपिल सिब्बल की अहम भूमिका रही. प्रधानमंत्री और कांग्रेस पार्टी को ऐसे बड़बोले मंत्रियों पर लगाम लगानी चाहिए, जिनके आचरण से सरकार की किरकिरी होती है.
इसी तरह केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के पद पर पी.जे. थॉमस की नियुक्ति का मामला भी सरकार के गले की हड्डी बन गया है. इस मामले में भी सरकार अपनी चूक को छुपाने के लिए वैसा ही कर रही है, जैसा उसने दूर संचार घोटाले में किया था. यहां पाठकों को याद दिलाना चाहते हैं कि पामोलीन तेल घोटाले में थॉमस पर आरोप पत्र दाखिल हुआ था. आरोप है कि केरल के मुख्य सचिव के बाद केंद्र में सचिव की पदोन्नति देते समय सीवीसी के समक्ष उनका पूरा सर्विस रिकार्ड नहीं रखा गया और न ही घोटाले के संबंध में दायर आरोप पत्र और केस डायरी पेश की गई थी. न ही इस घोटाले पर सीएजी रिपोर्ट से ही अवगत कराया गया.
उल्टे सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह कहा कि 'मात्र चार्जशीट दायर होने से आई.ए.एस. अफसर का करियर कलंकित नहीं होता और आरोपित अफसर को सीवीसी नियुक्त करने पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं है' किंतु कोर्ट की इस टिप्पणी ने कि 'थॉमस को केंद्र में सचिव नियुक्त करते समय उन्हें सीवीसी से क्लीयरेंस कैसे मिली, जबकि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला विचाराधीन था' सरकार की किरकिरी कर दी. इसी बीच गृहमंत्री ने केंद्रीय सतर्कता आयुक्त की चयन समिति में पामोलीन घोटाले और उसमें थॉमस की संलिप्तता पर चर्चा की बात कहकर आग में घी डालने का काम किया है, जिसने सरकार के संकट को और बढ़ा दिया है. उल्लेखनीय है कि केरल सरकार ने इस घोटाले में 31 दिसम्बर 1999 में केंद्र सरकार से थॉमस के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी थी. इसके बावजूद उनकी पदोन्नति हुई. यह सरकार के कामकाज करने की कार्यप्रणाली को दर्शाता है. इसलिए आज जरूरत ऐसे पदों पर बेदाग छवि के लोगों को बैठाने की है.
उदाहरण के तौर पर मैं बताना चाहूंगा कि कुछ दिनों पूर्व केंद्रीय सतर्कता आयुक्त थॉमस ने भ्रष्टाचार की शिकायत के लिए विशेष फोन लाइन और ई-मेल सेवा शुरू की थी. हालत यह है कि यहां अधिकांश शिकायतें खोखली और सिर्फ सीवीसी को परखने के लिए की जा रही हैं. आंकड़ों के अनुसार 09 नवम्बर, 2010 से 15 जनवरी, 2011 के बीच सीवीसी को मिली 203 शिकायतों में से 107 केवल परखने के लिए की गई थीं. इस तरह लगभग 70 दिनों में सीवीसी के पास भ्रष्टाचार की केवल वास्तविक 96 शिकायतें ही आई, जो एक खतरनाक संकेत है, जो सरकार की आंख खोलने के लिए काफी है. इसलिए सरकार को सूचना प्रसारण मंत्रालय पर शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट, आदर्श सोसायटी घोटाला और कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले में यथा-शीघ्र कड़ी कार्रवाई करने की जरूरत है.
यह सच है कि सरकार आये दिन एक के बाद एक घोटालों के सामने आने से परेशान है. इससे निपटने के लिए उसने कदम भी उठाये हैं पर वह काफी नहीं हैं. भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए उसे कड़ी और त्वरित कार्रवाई करने की जरूरत है ताकि जनता को लगने लगे कि सरकार भ्रष्टाचारियों से लड़ने के लिए कृत संकल्प है. यदि वह घपलेबाजों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेगी तो जनता उसका स्वागत करेगी, अन्यथा जनता का विश्वास जीत पाना सरकार के लिए आसान नहीं होगा.
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