बलात्कार की घटनाओं से सुप्रीम कोर्ट चिंतित : अभियुक्त को कमजोर आधार पर नहीं छोड़ना चाहिए
सर्वोच्च न्यायलय का स्पस्ट मतलब हे की जहाँ तक अपराधी के ओरधि होने की संभावना हे ..वहां तक उसे बरी नहीं किया जाना चाहिए।।। इसीलिए उसने हाई कोर्ट द्वारा वारी मुलजिम को सजा योग्य माना .....
साक्ष्यों की विवेचना करते समय अदालतों को अधिक सावधानी बरतनी चाहिए और
अभियुक्त को कमजोर आधार पर नहीं छोड़ना चाहिए
समाचार का लिंक ----http://zeenews.india.com/hindi
बलात्कार की बढ़ती घटनाओं से सुप्रीम कोर्ट चिंतित
Friday, October 12, 2012,
नई दिल्ली : हरियाणा सहित देश के विभिन्न स्थानों पर बलात्कार की बढ़ती घटनाओं से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि इस तरह के घृणित अपराधों में लिप्त अभियुक्तों को बेतुके आधार पर छोड़ा नहीं जाना चाहिए। कोर्ट ने इसके साथ ही उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में 11 वर्षीय बच्ची से बलात्कार के बाद उसकी हत्या करने वाले युवक को बरी करने का इलाहाबाद हाईकोर्ट का निर्णय भी रद्द कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्राथमिक चिंता बलात्कार के मामलों में वृद्धि और दुनिया में महिलाओं के प्रति बढ़ रहे अपराध को लेकर है। भारत भी इसका अपवाद नहीं है। कोर्ट ने कहा, ‘हालांकि कानून में इस तरह के अपराधियों के प्रति कठोर दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान है लेकिन अंतत: कोर्ट को ही यह निर्णय करना है कि ऐसी घटना हुई है या नहीं।’
न्यायमूर्ति पी. सदाशिवम और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की अपील पर हाईकोर्ट का निर्णय रद्द करते हुए बलात्कारी हत्यारे मुनीष को उम्र कैद की सजा सुनाई है। इस मामले में सत्र अदालत ने 15 फरवरी, 2003 को मुनीष को 5 मार्च 2002 को 11 वर्षीय लड़की से बलात्कार के बाद उसकी हत्या के जुर्म में मौत की सजा सुनाई थी लेकिन हाईकोर्ट ने 16 अक्तूबर, 2003 को उसे बरी कर दिया था। इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। न्यायाधीशों ने कहा कि इस तरह के मामलों में साक्ष्यों की विवेचना करते समय अदालतों को अधिक सावधानी बरतनी चाहिए और अभियुक्त को कमजोर आधार पर नहीं छोड़ना चाहिए। (एजेंसी)
-----------------------
समाचार का लिंक ---- http://hindi.webdunia.com/news-national
हरियाणा सहित देश के विभिन्न स्थानों पर बलात्कार की बढ़ती घटनाओं से चिंतित उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि इस तरह के घृणित अपराधों में लिप्त अभियुक्तों को बेतुके आधार पर छोड़ा नहीं जाना चाहिए।
न्यायालय ने इसके साथ ही उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर जिले में 11 वर्षीय बच्ची से बलात्कार के बाद उसकी हत्या करने वाले युवक को बरी करने का इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय निरस्त कर दिया।
न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्राथमिक चिंता बलात्कार के मामलों में वृद्धि और दुनिया में महिलाओं के प्रति बढ़ रहे अपराध को लेकर है। भारत भी इसका अपवाद नहीं है। न्यायालय ने कहा कि हालांकि कानून में इस तरह के अपराधियों के प्रति कठोर दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान है, लेकिन अंतत: अदालत को ही यह निर्णय करना है कि ऐसी घटना हुई है या नहीं।
न्यायमूर्ति पी. सदाशिवम और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की खंडपीठ ने उत्तरप्रदेश सरकार की अपील पर उच्च न्यायालय का निर्णय निरस्त करते हुए बलात्कारी हत्यारे मुनीष को उम्र कैद की सजा सुनाई है।
इस मामले में सत्र अदालत ने 15 फरवरी, 2003 को मुनीष को पांच मार्च 2002 को 11 वर्षीय लड़की से बलात्कार के बाद उसकी हत्या के जुर्म में मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने 16 अक्टूबर 2003 को उसे बरी कर दिया था। इसके बाद उत्तरप्रदेश सरकार ने उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की थी।
न्यायाधीशों ने कहा कि इस तरह के मामलों में साक्ष्यों की विवेचना करते समय अदालतों को अधिक सावधानी बरतनी चाहिए और अभियुक्त को कमजोर आधार पर नहीं छोड़ना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने मुनीष को बरी करने के उच्च न्यायालय के निर्णय से असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि यह वारदात शाम साढ़े चार बजे हुई थी और इसकी शिकायत उसी दिन रात में 11 बजकर पांच मिनट पर घटनास्थल से दो किलोमीटर दूर थाने में दर्ज कराई गई।
शिकायत दर्ज कराने में इतना विलंब तो घटना स्थल और थाने के बीच की दूरी तथा हवस की शिकार बच्ची के शरीर को ढंकने और अभियुक्त मुनीष की तलाश के कारण हुआ था। न्यायाधीशों ने कहा, यदि हम इस्तगासा के गवाह द्वारा बनाए संपूर्ण घटनाक्रम पर विचार करें तो इससे यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि इसमें किसी प्रकार का अनुचित या अस्पष्ट विलंब हुआ, जो इस्तगासा के मामले की जड़ तक पहुंचता है।
न्यायालय ने कहा कि मेडिकल साक्ष्य से यह सिद्ध होता है कि पीड़ित बच्ची की मृत्यु से पहले उसके साथ बलात्कार हुआ था और इस्तगासा की कहानी चिकित्सीय साक्ष्य से मेल खाती है, लेकिन दुर्भाग्य से उच्च न्यायालय इस सबूत को महत्व देने में विफल रहा।
न्यायाधीशों ने कहा कि इस मामले में अभियुक्त ने अपनी हवस मिटाने के लिए 11 साल की लड़की के साथ बलात्कार किया और फिर गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी। न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय का विश्लेषण और अंतिम निष्कर्ष इस्तगासा द्वारा पेश स्वीकार्य और विश्वसनीय सामग्री के विपरीत है और इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि अभियुक्त ने पहले बलात्कार का अपराध किया और फिर मृतक की हत्या कर दी।
चूंकि यह वारदात 2002 में हुई थी, इसलिए इस तथ्य के मद्देनजर न्यायालय की राय थी कि अभियुक्त को उम्र कैद की सजा देने की बजाय उसे सश्रम उम्रकैद की सजा देना न्यायसंगत होगा।
न्यायाधीशों ने कहा कि इस तथ्य के मद्देनजर अभियुक्त मुनीष को दो सप्ताह के भीतर संबंधित अदालत में समर्पण करने का निर्देश दिया जाता है। न्यायालय ने कहा कि यदि मुनीष ऐसा करने में विफल रहता है तो सत्र अदालत उसे जेल भेजने के लिए आवश्यक और कारगर कदम उठाएगी। (भाषा)
साक्ष्यों की विवेचना करते समय अदालतों को अधिक सावधानी बरतनी चाहिए और
अभियुक्त को कमजोर आधार पर नहीं छोड़ना चाहिए
समाचार का लिंक ----http://zeenews.india.com/hindi
बलात्कार की बढ़ती घटनाओं से सुप्रीम कोर्ट चिंतित
Friday, October 12, 2012,
नई दिल्ली : हरियाणा सहित देश के विभिन्न स्थानों पर बलात्कार की बढ़ती घटनाओं से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि इस तरह के घृणित अपराधों में लिप्त अभियुक्तों को बेतुके आधार पर छोड़ा नहीं जाना चाहिए। कोर्ट ने इसके साथ ही उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में 11 वर्षीय बच्ची से बलात्कार के बाद उसकी हत्या करने वाले युवक को बरी करने का इलाहाबाद हाईकोर्ट का निर्णय भी रद्द कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्राथमिक चिंता बलात्कार के मामलों में वृद्धि और दुनिया में महिलाओं के प्रति बढ़ रहे अपराध को लेकर है। भारत भी इसका अपवाद नहीं है। कोर्ट ने कहा, ‘हालांकि कानून में इस तरह के अपराधियों के प्रति कठोर दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान है लेकिन अंतत: कोर्ट को ही यह निर्णय करना है कि ऐसी घटना हुई है या नहीं।’
न्यायमूर्ति पी. सदाशिवम और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की अपील पर हाईकोर्ट का निर्णय रद्द करते हुए बलात्कारी हत्यारे मुनीष को उम्र कैद की सजा सुनाई है। इस मामले में सत्र अदालत ने 15 फरवरी, 2003 को मुनीष को 5 मार्च 2002 को 11 वर्षीय लड़की से बलात्कार के बाद उसकी हत्या के जुर्म में मौत की सजा सुनाई थी लेकिन हाईकोर्ट ने 16 अक्तूबर, 2003 को उसे बरी कर दिया था। इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। न्यायाधीशों ने कहा कि इस तरह के मामलों में साक्ष्यों की विवेचना करते समय अदालतों को अधिक सावधानी बरतनी चाहिए और अभियुक्त को कमजोर आधार पर नहीं छोड़ना चाहिए। (एजेंसी)
-----------------------
समाचार का लिंक ---- http://hindi.webdunia.com/news-national
हरियाणा सहित देश के विभिन्न स्थानों पर बलात्कार की बढ़ती घटनाओं से चिंतित उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि इस तरह के घृणित अपराधों में लिप्त अभियुक्तों को बेतुके आधार पर छोड़ा नहीं जाना चाहिए।
न्यायालय ने इसके साथ ही उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर जिले में 11 वर्षीय बच्ची से बलात्कार के बाद उसकी हत्या करने वाले युवक को बरी करने का इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय निरस्त कर दिया।
न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्राथमिक चिंता बलात्कार के मामलों में वृद्धि और दुनिया में महिलाओं के प्रति बढ़ रहे अपराध को लेकर है। भारत भी इसका अपवाद नहीं है। न्यायालय ने कहा कि हालांकि कानून में इस तरह के अपराधियों के प्रति कठोर दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान है, लेकिन अंतत: अदालत को ही यह निर्णय करना है कि ऐसी घटना हुई है या नहीं।
न्यायमूर्ति पी. सदाशिवम और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की खंडपीठ ने उत्तरप्रदेश सरकार की अपील पर उच्च न्यायालय का निर्णय निरस्त करते हुए बलात्कारी हत्यारे मुनीष को उम्र कैद की सजा सुनाई है।
इस मामले में सत्र अदालत ने 15 फरवरी, 2003 को मुनीष को पांच मार्च 2002 को 11 वर्षीय लड़की से बलात्कार के बाद उसकी हत्या के जुर्म में मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने 16 अक्टूबर 2003 को उसे बरी कर दिया था। इसके बाद उत्तरप्रदेश सरकार ने उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की थी।
न्यायाधीशों ने कहा कि इस तरह के मामलों में साक्ष्यों की विवेचना करते समय अदालतों को अधिक सावधानी बरतनी चाहिए और अभियुक्त को कमजोर आधार पर नहीं छोड़ना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने मुनीष को बरी करने के उच्च न्यायालय के निर्णय से असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि यह वारदात शाम साढ़े चार बजे हुई थी और इसकी शिकायत उसी दिन रात में 11 बजकर पांच मिनट पर घटनास्थल से दो किलोमीटर दूर थाने में दर्ज कराई गई।
शिकायत दर्ज कराने में इतना विलंब तो घटना स्थल और थाने के बीच की दूरी तथा हवस की शिकार बच्ची के शरीर को ढंकने और अभियुक्त मुनीष की तलाश के कारण हुआ था। न्यायाधीशों ने कहा, यदि हम इस्तगासा के गवाह द्वारा बनाए संपूर्ण घटनाक्रम पर विचार करें तो इससे यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि इसमें किसी प्रकार का अनुचित या अस्पष्ट विलंब हुआ, जो इस्तगासा के मामले की जड़ तक पहुंचता है।
न्यायालय ने कहा कि मेडिकल साक्ष्य से यह सिद्ध होता है कि पीड़ित बच्ची की मृत्यु से पहले उसके साथ बलात्कार हुआ था और इस्तगासा की कहानी चिकित्सीय साक्ष्य से मेल खाती है, लेकिन दुर्भाग्य से उच्च न्यायालय इस सबूत को महत्व देने में विफल रहा।
न्यायाधीशों ने कहा कि इस मामले में अभियुक्त ने अपनी हवस मिटाने के लिए 11 साल की लड़की के साथ बलात्कार किया और फिर गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी। न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय का विश्लेषण और अंतिम निष्कर्ष इस्तगासा द्वारा पेश स्वीकार्य और विश्वसनीय सामग्री के विपरीत है और इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि अभियुक्त ने पहले बलात्कार का अपराध किया और फिर मृतक की हत्या कर दी।
चूंकि यह वारदात 2002 में हुई थी, इसलिए इस तथ्य के मद्देनजर न्यायालय की राय थी कि अभियुक्त को उम्र कैद की सजा देने की बजाय उसे सश्रम उम्रकैद की सजा देना न्यायसंगत होगा।
न्यायाधीशों ने कहा कि इस तथ्य के मद्देनजर अभियुक्त मुनीष को दो सप्ताह के भीतर संबंधित अदालत में समर्पण करने का निर्देश दिया जाता है। न्यायालय ने कहा कि यदि मुनीष ऐसा करने में विफल रहता है तो सत्र अदालत उसे जेल भेजने के लिए आवश्यक और कारगर कदम उठाएगी। (भाषा)
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें