नैमिषारण्‍य पवित्र् तीर्थस्थल





***नैमिषारण्‍य पवित्र् तीर्थस्थल***
नैमिषारण्य, उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले में गोमती नदी का तटवर्ती एक प्राचीन तीर्थस्थल है।
नैमि षारण्‍य में प्रवाहित होने वाली गोमती का नाम ऋग्‍वेद एवं ब्राम्‍हण- ग्रन्‍थों में मिलता हैं, महाभारत ग्रंथ
में गोमती को सबसे पवित्र् नदी बताया गया है, स्‍कन्‍द पुराण के ब्रम्‍हाखण्‍डार्न्‍तगत धर्मारण्‍य महात्‍म के प्रंसग में गंगा आदि नदियों के साथ गोमती को पावन माना गया है, सभी पुराणों में गोमती की महिमा का बखान है, यह वैदिक कालीन नदियों में है, नैमि षारण्‍य गोमती के पावन तट पर विद्वमान है|
        नैमिषारण्य का प्रायः प्राचीनतम उल्लेख वाल्मीकि रामायण के युद्ध-काण्ड की पुष्पिका में प्राप्त होता है । पुष्पिका में उल्लेख है कि लव और कुश ने गोमती नदी के किनारे राम के अश्वमेध यज्ञ में सात दिनों में वाल्मीकि रचित काव्य का गायन किया ।
महर्षि शौनक के मन में दीर्घकाल तक ज्ञान सत्र करने की इच्छा थी। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उन्हें एक चक्र दिया और कहा- `इसे चलाते हुए चले जाओ। जहां इस चक्र की `नेमि' (बाहरी परिधि) गिर जाय, उसी स्थल को पवित्र समझकर वहीं आश्रम बनाकर ज्ञान सत्र करो।' शौनकजी के साथ अदृसी सहस्र ऋषि थे। वे सब लोग उस चक्र को चलाते हुए भारत में घूमने लगे। गोमती नदी के किनारे एक तपोवन में चक्र की नेमि गिर गयी और वही वह चक्र भूमि में प्रवेश कर गया। चक्र की नेमि गिरने से वह तीर्थ `नैमिश' कहा गया। जहां चक्र भूमि में प्रवेश कर गया, वह स्थान चक्रतीर्थ कहा जाता है। यह तीर्थ गोमती नदी के वाम तट पर है और ५१ पितृस्थानों में से एक स्थान माना जाता है। यहां सोमवती अमावस्या को मेला लगता है।
शौनकजी को इसी तीर्थ में सूतजी ने अठारहों पुराणों की कथा सुनायी। द्वापर में श्रीबलरामजी यहां पधारे थे। भूल से उनके द्वारा रोमहर्षण सूत की मृत्यु हो गयी। बलराम जी ने उनके पुत्र उग्रश्रवा को वरदान दिया कि वे पुराणों के वक्ता हों। और ऋषियों को सतानेवाले राक्षस बल्वल का वध किया। संपूर्ण भारत की तीर्थयात्रा करके बलराम जी फिर नैमिषारण्य आये और यहां उन्होंने यज्ञ किया।

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