ए मेरे वतन के लोगो,ज़रा आँख में भर लो पानी





देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की आंखों में आंसू लाने वाले कवि प्रदीप के गीत ‘ए मेरे वतन के लोगो’ ने चीन से 1962 के युद्ध के बाद देश में संवेदना की एक लहर पैदा कर दी थी और नेहरू इस गीत से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने लता को गले लगा लिया.
 ए मेरे वतन के लोगो
ए मेरे वतन के लोगों
तुम खूब लगा लो नारा
ये शुभ दिन है हम सब का
लहरा लो तिरंगा प्यारा
पर मत भूलो सीमा पर
वीरों ने है प्राण गँवाए
कुछ याद उन्हें भी कर लो -2
जो लौट के घर न आए -2

ए मेरे वतन के लोगों
ज़रा आँख में भर लो पानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो कुर्बानी

जब घायल हुआ हिमालय
खतरे में पड़ी आज़ादी
जब तक थी साँस लादे वोः
फिर अपनी लाश बिछा दी
संगीन पे धर कर माथा
सो गए अमर बलिदानी
जो शहीद...

जब देश में थी दिवाली
वोः खेल रहे थे होली
जब हम बैठे थे घरों में
वोः झेल रहे थे गोली
थे धन्य जवान वोः आपने
थी धन्य वोः उनकी जवानी
जो शहीद ...

कोई सिख कोई जात मराठा
कोई गुरखा कोई मदरासी
सरहद पे मरनेवाला
हर वीर था भारतवासी
जो खून गिरा पर्वत पर
वोः खून था हिन्दुस्तानी
जो शहीद...

थी खून से लात-पथ काया
फिर भी बन्दूक उठाके
दस-दस को एक ने मारा
फिर गिर गए होश गँवा के
जब अंत-समय आया तो
कह गए के अब मरते हैं
खुश रहना देश के प्यारों
अब हम तो सफर करते हैं
क्या लोग थे वोः दीवाने
क्या लोग थे वोः अभिमानी
जो शहीद...

तुम भूल न जाओ उनको
इस लिए कही ये कहानी
जो शहीद...
जे हिंद जे हिंद की सेना -2
जे हिंद, जे हिंद, जे हिंद


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