केजरीवाल के पीछे : कहीं विदेशी करेंसी ( धन ) का खेल तो नहीं
केजरीवाल के पीछे : कहीं विदेशी करेंसी ( धन ) का खेल तो नहीं
अन्ना आंदोलन को धूलधूसरित कर अपनी धधकती इच्छाओं की ज्वालामुखी में देश के
‘लोकतंत्र’ के प्रति अविश्वास पैदा करने की साजिश में लगी अरविंद केजरीवाल की
टीम निश्चित ही उन लोगों के इशारे पर खेल रही है जिसे भारतमाता से प्यार नहीं है।
केन्द्र सरकार को इस आशय की गंभीर छानबीन करनी चाहिए। केजरीवाल का खेल करेंसी का हो
सकता है। अब जानना यह है कि यह करेंसी भारत की है या फिर भारत को कमजोर करने वाली
शक्तियों की। ‘सुपारी’ किसने दी है यह पता तो डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार को लगाना ही चाहिए।
‘केजरीवाल’ को शायद यह नहीं पता कि जिस दिन उन्होंने राजनीति में आने और चुनाव लड़ने
की घोषणा की उसी दिन उसका सेंसेक्स लुढका ही नहीं, जमीन पर आ गया। स्थिति ध्ाीरे-ध्ाीरे स्पष्ट
होती जा रही है। मुझे ध्यान है कि एक दिन अन्ना ने मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह
के बारे में कहा था कि इन्हें तो पूना भेज देना चाहिए। लेकिन आज हम कहना चाह रहे हैं कि अन्ना
‘‘अरविंद केजरीवाल’’ को कहां रखना चाहेंगे! कहा जाता है कि व्यक्ति को अपने गुणों से समाज
और राष्टन्न् में पूजनीय बनना चाहिए, पर कुछ लोगों की गलतफहमी रहती है कि वे दूसरों के दुर्गुणों
का बखान कर समाज में सत् पुरुष बनना चाहते हैं। आजकल केजरीवाल यही कह रहे हैं। उन्होंने
स्वयं को निष्पक्ष बनाने के लिए जब कांग्रेस के ‘वाडन्न्ा’ के मुंह पर कालिख पोती तो उन्हें लगने
लगा कि कांग्रेस के लोग कहीं यह न कहें कि वह भाजपा के हाथ में खेल रहा है? बस! यह सोचकर
भाजपा के राष्टन्न्ीय श्री अध्यक्ष नितिन गडकरी की जायज बातें, जो वे स्वयं अपने भाषणों में कहते
हैं, को उन्होंने नमक-मिर्च और मसाला लगाकर बताना शुरू कर दिया!
यहां से शुरू हुआ केजरीवाल के निष्पक्ष बनने का सिलसिला। श्री नितिन गडकरी जिस दिन
भाजपा के अध्यक्ष बने, उसी दिन से अपने बारे में, अपने कार्यों के बारे मंे स्वयं बताते हुए सहकारिता
के माध्यम से सहयोग करने और सहकारिता आंदोलन को मजबूत करने की बातें बताने लगे।
‘‘केजरीवाल’’ ने कौन सी नई बातें बतायीं? जो भी बातें अरविंद केजरीवाल ने नितिनजी के बारे
में कहीं, उसकी हवा तो स्वयं केन्द्रीय मंत्री शरद पवार ने यह कहकर निकाल दी कि ‘‘नितिन गडकरी
ने कोई गलत काम नहीं किया।’’ यह टिप्पणी केजरीवाल के मुंह पर करारा तमाचा था। वहीं नितिनजी
ने यह कहकर कि उन पर लगाए गए आरोपों की जांच हो जाए, केजरीवाल की अनैतिकता और साजिश
की पोल खोल दी।
श्री शरद पवार ने सच कहा तो उनकी बेटी सुप्रिया को कठघरे में खड़ा कर दिया। यहां यह
बात साफ हो गई कि राजा हरिश्चन्द्र की भूमिका वाले ‘केजरीवाल’, जिसे हम पहले दिन से समझ
रहे थे, की पोल खुल गई। केजरीवाल वैसे निकले जैसे- सौ-सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली।
अरे, जो अन्ना का नहीं वह देश का क्या होगा? विदेशी ध्ान से देशी लोकतंत्र का गड्ढ़ा खोदने में
लगे केजरीवाल शायद यह भूल गए कि भारत के जन-गण-मन की आत्मा की लोकतंत्र के प्रति
गहरी आस्था है। अतः ऐसे परिपक्व नागरिकों को अरविंद केजरीवाल इन छोटे-मोटे अनर्गल निराध्ाार
आरोपों से कमजोर नहीं कर सकते।
‘‘केजरीवाल’’ है क्या? क्या उनके बारे में लोगों को नहीं मालूम कि वह है अन्ना आंदोलन
का ‘ब्लैक मेलर’’ या यूं कहें कि अन्ना के साथ विश्वासघात करने वाला! जिस ‘अन्ना’ ने अरविंद
केजरीवाल को अपने आंदोलन के आंचल का दूध्ा पिलाकर बड़ा किया, उसने उसी ‘अन्ना’ का साथ
छोड़ अपना नाम निश्चित ही देश के विश्वासघातियों में शामिल कर लिया। एक विश्वासघाती को
केजरीवाल के पीछे कहीं विदेशी करेंसी का खेल तो नहीं क्या दूसरों पर आरोप लगाने का कोई नैतिक अध्ािकार है?‘‘अरविंद केजरीवाल’ चाहता है कि उसकी हरकतों पर देश के लोग गुस्सा उतारंे
और जाने-अनजाने में उसकी कहीं पिटाई हो जाए, जिससे भारत की जनता की उसे भावनात्मक समर्थन मिलना शुरू हो जाए। वह उसी बात की बाट जोह रहा है। लेकिन उसे शायद यह नहीं पता कि उन जैसे कितने आए और कितने गए पर भारत का परिपक्व लोकतंत्र कभी ओछी हरकतें नहीं करता। यह गांध्ाी (सोनिया गांध्ाी का नहीं) का देश है जहां लंगोटी लगाकर बापू ने अंग्रेजों को जनशक्ति के बूते भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया था। संगीन आरोपों और साजिशों के ढेर पर बैठकर विदेशी ध्ान से स्वदेशी भावना की लड़ाई नहीं की जा सकती। वो तो भला हो उन चैनलों का जिन्होंने समाज के इन ‘‘कुकुरमुŸाों’’ को मुंह लगाकर अपने चैनलों का कीमती समय बर्बाद किया और जनता को भी गुमराह किया। पर भला हो इस देश की जनता जनार्दन का जो सच और साजिश में, भ्रम और यथार्थ में, भ्रांति और भांति में, अनशन- आंदोलन और प्रोपगंडा में अंतर समझती है। ‘‘खुल गई पोल और पिट गई ढोल!’’ खाल ओढ़कर शेर की भूमिका अदा करना और जमीन पर जंगल में रहते हुए अपना खौफ़ बनाए रखना, सामान्य बातें नहीं होतीं। ‘‘शेर की खाल में... निकला’’ खोदा पहाड़ निकली चुहिया। पर देश का कीमती समय, अमूल्य मानव संसाध्ान और देश को भावनात्मक ब्लैकमेल करने वाला भांडा बहुत शीघ्र फूट गया। यह व्यक्ति के लिये, राजनीति के लिये, राजनैतिक दलों के लिए कितना अच्छा हुआ, यह तो पता नहीं पर इतना अवश्य गर्व से कहा जा सकता है कि भारतीय लोकतंत्र के लिये, उसकी मर्यादा के लिये ‘‘केजरीवाल’’ की पोल खुलना अच्छा ही रहा।
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