जाग्रत , आरोग्य और अमरत्व : शरद पूर्णिमा







Published on 28 Oct-2012 dainik Bhaskar

जाग्रत , आरोग्य और अमरत्व  : शरद पूर्णिमा
 - पं. विनोद रावल, उज्जैन
Dainik Bhaskar
http://epaper.bhaskar.com/Kota/16/28102012/0/1/
हिंदू पंचांग में १२ मास की १२ पूर्णिमा होती हैं। हर मास के समापन की तिथि को पूर्णिमा कहते हैं। इनमें शरद पूर्णिमा सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, जो आश्विन मास की अंतिम तिथि है। इसे रास पूर्णिमा भी कहते हैं। ज्योतिष की मान्यता है शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा अपनी १६ कलाओं से पूर्ण होता है। इसीलिए इस रात को चांदनी अपने संपूर्ण विस्तार तथा चंद्रमा अपने सौंदर्य के चरम पर होता है। मान्यता है कि इस रात्रि को चांदनी के साथ अमृत वर्षा होती है। यही कारण है कि अमरत्व और आरोग्य के लिए सभी को हर वर्ष इस पूर्णिमा का इंतजार रहता है।

कोजागर पूर्णिमा
शरद पूर्णिमा का एक नाम कोजागर पूर्णिमा भी है। इसका आशय है को-जागर्ति यानी कौन जाग रहा है। धार्मिक मान्यता है कि इस रात देवी लक्ष्मी श्वेत वस्त्र धारण कर संसार में विचरण करती हैं। यह उपासना, साधना व जागरण की रात है। देवी हर व्यक्ति के द्वार पर जाती हैं और पूछती है को जागर्ति। अर्थात कौन जाग रहा है। जो जागता है उस पर देवी कृपा करती हैं, जो सोया रहता है उस के द्वार से लौट जाती हैं। इसका अर्थ है कि जो लोग रात्रि में भी अपनी चेतना को जाग्रत रखते हैं, लक्ष्मी उन्हें प्राप्त होती हैं। जो लोग सोए ही रहते हैं, लक्ष्मी उन्हें नसीब नहीं होती। इस अर्थ में शरद पूर्णिमा जीवनभर कर्म करने का संदेश देने वाला पर्व है। शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि जब सारा संसार सोता है, रात्रि में योगी जागते हैं। इसका इतना ही आशय है कि जिन्हें कर्म करना है वे रात्रि में जागते हैं। आम लोगों की तरह सोते नहीं हैं क्योंकि दिन तो २४ घंटे का ही होता है। कर्म के लिए अधिक अवकाश रात्रि में ही संभव है। अत: रात्रि में कम देर सोकर अधिक कर्म करने का संदेश शरद पूर्णिमा देती है।

श्वेत लक्ष्मी, शुभ पूजन
लक्ष्मी के कई रूप माने गए हैं। शरद पूर्णिमा श्वेत वस्त्र धारिणी लक्ष्मी के पूजन का पर्व है। चंद्रमा श्वेत है। उसकी चांदनी भी श्वेत होती है। इस दिन अमृत बरसता है, जो कि श्वेत होता है। यही कारण है श्वेत लक्ष्मी पूजी जाती है। इसका प्रतीक भी यह है कि जो धन आए वह श्वेत हो। यानी काली कमाई न हो। उजली कमाई निष्ठा और समर्पण से कर्म करके मिलती है। इसके लिए जागना होता है। इन्हीं प्रतीकों के कारण शरद पूर्णिमा को श्वेत वस्त्र धारिणी लक्ष्मी के पूजन का विधान किया गया है।

ऐसे करें पूजन
श्वेत वस्त्र धारिणी लक्ष्मी का चित्र या प्रतिमा अपने पूजाघर में स्थापित कर श्वेत वस्तुओं से पूजन करें। इसके लिए सफेद फूल, नारियल, नारियल का पानी, दूध का प्रसाद आदि वस्तुएं प्रमुख रूप से प्रयोग की जाती हैं। यह भी मान्यता है कि इस दिन ऐरावत पर विराजित इंद्र की भी पूजा करना चाहिए। सुविधानुसार दीप प्रज्वलित कर पूजा करें और फिर एक-एक दीप घर के विभिन्न हिस्सों, तुलसी के पौधे और पूज्य वृक्षों के पास भी रखना चाहिए। इस दिन उपवास के साथ आराधना और रात्रि में जागरण करने का विधान है।

चंद्रमा की तिथि और आरोग्य
पूर्णिमा चंद्रमा की तिथि मानी गई है। चंद्रमा मन का प्रतीक है। यह भी समुद्र मंथन में निकले १४ रत्नों में से एक है। इस अर्थ में चंद्रमा अमृत का सहोदर (भाई) है और अमृत का दाता भी। शरद पूर्णिमा की रात्रि को परंपरागत मान्यता में बरसने वाला अमृत धरती पर बिखरी औषधियों में जीवन का संचार करता है। मन का प्रतीक होने से चंद्रमा की आराधना मन को नियंत्रित और संयमित करने के लिए महत्वपूर्ण मानी गई है। इन सारे संदर्भों में शरद पूर्णिमा जागरण, सौंदर्य, कर्म, आरोग्य और अमृत का जीवन संपन्न महापर्व है। 

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