गांधीजी ने की हिंदी की वकालत







गांधीजी ने की हिंदी की वकालत
सन १९१७ की घटना है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन कलकत्ता में हुआ। उसी के साथ राष्ट्रभाषा सम्मेलन भी किया गया। इस सम्मेलन के सभापति थे लोकमान्य तिलक। गांधीजीए सरोजिनी नायडू सहित अनेक बड़े नेता इसमें हिस्सा ले रहे थे। गांधीजी को छोड़कर सभी लोगों ने अंग्रेजी में अपने विचार प्रकट किए। सभापति तिलकने भी अपना भाषण अंग्रेजी में दिया। गांधीजी को यह अच्छा नहीं लगा। वे राष्ट्रभाषा हिंदी के बहुत बड़े पैरोकार थे। उन्होंने अपने भाषण में इस बात पर आपत्ति जताते हुए कहा. श्लोकमान्य तिलक इस सम्मेलन के सभापति होने के साथ बहुत बड़े नेता हैं। यदि राष्ट्रभाषा सम्मेलन का सभापति ही विदेशी भाषा में विचार अभिव्यक्त करे तो यह कैसा राष्ट्रभाषा सम्मेलनघ्श् उनकी बात सुनकर तिलक ने अंग्रेजी में कहा. श्आपका कहना उचित हैए किंतु यह मेरी विवशता है कि मैं हिंदी नहीं जानता।श् तब गांधीजी बोले. श्आप मराठी तो जानते हैं। संस्कृत भाषा के भी जानकार हैं। ये हमारे देश की भाषाएं हैं।श् गांधीजी की बातों ने सभी अंग्रेजी वक्ताओं को भूल का अहसास करा दिया। शाम को जब तिलक का भाषण हुआए तो वे हिंदी में ही बोले। उन्होंने कहा. श्आज मैं पहली बार हिंदी में बोल रहा हूं। मेरी भाषा में कई त्रुटियां होंगीए इसके लिए आप मुझे क्षमा करेंए किंतु मैं गांधीजी की इस बात से सहमत हूं कि हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी है और हमें अपना काम हिंदी में ही करना चाहिए।श् यह प्रसंग उन लोगों के लिए सबक हैए जो अंग्रेजी को हिंदी पर वरीयता देते हुए हिंदी भाषियों को हिकारत की निगाह से देखते हैं। निहितार्थ यह है कि विभिन्न भाषाओं का ज्ञान रखना बहुत अच्छी बात हैए किंतु हमारी राष्ट्रभाषा सर्वोपरि होनी चाहिए।

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